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प्रस्तावना
२३
सूरिजीए पछी धीरगंभीर स्वरे संसारनी असारता, मनुष्यजन्मनुं दुर्लभपणु, जिन-भाषित धर्मनु पालन करवाथी थतो दुःखोनो नाश अने पुण्यनी प्राप्ति वगेरे, प्रख्यात मधुबिन्दु-दृष्टांत साथे विशद छणावट करी समजाव्यु अने धर्मर्नु पालन तथा प्रमादनो त्याग करवा उपदेश को. (३-१२)
उपदेश पूरो थतां सनत्कुमारे जिज्ञासाथी पूछयु के पोते पूर्वजन्ममा झुं अशुभ कर्म करेल के जेथी पोताना प्रियपात्रथी लांबो वियोग थयो अने कया सुकृत्यो करेल के जेथी विद्याधरोनो पण चक्रवर्ती बन्यो ? जेना जवाबमां सूरिए अवधिज्ञान द्वारा जाणीने का-“आ भारतवर्षमां पांचाल देशमां गंगातटे आवेला कांपिल्यनगरना चन्द्रगुप्त नामे राजानो कुवलयश्री नामे राणीथो जन्नेल तुं रामगुप्त नामे पुत्र हतो. विलासवती गीजनीपति तारापीडनी हारप्रभा नामे राजकुमारी हती तमारा बन्नेना लग्न थयेलां. परस्पर प्रेममां डूबेला तमे बन्ने एकवार गंगातीरे क्रीडानिमित्ते गयेला, त्यां गम्मत खातर एक हंसयुगलने पकडी तेमनां शरीर कुंकुमथी रंगी दीवां. हंसहंसी लाल रंगे रंगावाथी एकबीजाने सारस समजी ओळखी नहि शकवाथी विरहव्याकुळ बनी करुण कूजन करवा लाग्यां, अने आहार पण छोडी मरणने इच्छवा लाग्यां. मरणने इच्छतां ते बन्ने पाणीमां डूबवा लाग्यां त्यारे पाणीथी तेमनो कंकुनो लेप धोवाई जवाथी फरी अन्योन्य
ओळखी गया. आ थोडी वारन जे अंतराय कर्म तमे बांध्यु तेना कारणे तमारे आ जन्ममां वारंवार विलासवतीनो वियोग सहन करवो पड्यो. हवे उत्तम पद-प्राप्ति थई तेनु कारण ए छे के तमारो मनोरथदत्त मित्र पूर्वजन्ममां पण चन्दन नामे तमारो अनन्य मित्र हतो. तेणे तमने मिथ्यात्वथी दूर करी जिनधर्ममा श्रद्धावान करेला. (१३-१६)
चंदन धर्मरत श्रावक हतो. ते तमने धर्मघोष नामना मुनिराजना दर्शने लई गयेल, जेणे तमने पति-पत्नीने विस्तारथी जिन-धर्मना बोध कर्यो, नवतत्वो विशे समजण आपी, श्रावक (गृहस्थ)धर्म समजावी ते ग्रहण करवा अनुरोध कर्यो. तमे श्रावधर्म स्वीकारी, एन रूडी रोते पालन कर्यु. ए पुण्योपार्जनथी तमने आ सघळां वैभवनी प्राप्ति थई.'' (१७-२५)
चित्रांगदसू रिना मुखे पोताना पूर्व जन्म अने कर्मनी हकीकत सांभळी सनत्कुमार तथा बीजाओने ज.तिस्मरण-ज्ञान थयु. विलासवनीने पूर्व कर्मनो आवो विपाक जाणी विस्मय थयु अने जिनधर्म-दीक्षा लेवा आतुरता थई. सनत्कुमारे पण तेगीनी वातनुं अनुमोदन कयु. यशोवर्मा राजाने पण वैराग्यभावना थई (२६-२७).
यशोवर्माए मुनिपासे दीक्षा लेवा इच्छा जाहेर करी. सनत्कुमारे पण तेमनी साथे दीक्षा ग्रहण करवा अनुमति मागो. अजितबल कुमारने विद्याधर-राज्य सोंपी कुमारे दीक्षा माटे तैयारी करवा मांडी. दीक्षामार्गनी कठोरता जाणवा छतां पण विलासवती दीक्षा लेवाना निश्चयमां मक्कम रही. अंत मुनिराजे आपेलो दीक्षानो दिवस आवी पहोंच्यो. सनत्कुमारे पंच परमेष्ठिनी भावपर्वक प्रार्थना करो. (३०-३२) प्रभाते व्रतग्रहणनी सघळी तैयारी करी, स्नानविलेपन दिथी परवारी, सुंदर वस्त्रोमां सज्ज थई, विशाळ पालखीमां बेसी, पिता यशोवर्मा अने समग्र विद्याधर सैन्य साथे राजमार्ग प्रजाजना द्वारा अनेक जातना भावोथो वधावाता सनत्कुमारे गुरु समक्ष जई विधिपूर्वक मुनिव्रत ग्रहण कयु. राजा यशोवर्मा, राणीओ, मित्रो बधा पण मुनि पासे दीक्षित बन्या. (३३-३५)
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