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विलासवई-कहा
गुप्ते कडं, 'तमारा गया पछी तमारा पिताए बधा प्रदेशोमां तमारी शोध करी पण क्यायथी तमारो पत्तो न लाग्यो. एवामां ताम्रलिप्तिमां तमारो वध थयान जाण्यु एथी राजा-राणी बन्ने खूब ज दुःखी थई विलाप करवा लाग्या. जे नैमित्तिके तमे विद्याघर सम्राट थशो एवी भविध्यवाणी करेली तेने पण फरी बोलावी राजाए. तमारा अकाळ-मरणनो खुलासो माग्यो. ते नैमित्तिके निश्चयपूर्वक पोते साची छे अने कुमार जीवित छे, पण तेना कर्म मुजव शुभाशुभ फळ भोगवीने अंते आकाशचारोओनो अधिपति ज़रूर थशे एवो खुलासो को, पछी ईशानचन्द्र राजाना पश्चात्ताप अने विनयंधरना तमारी शोध माटेना विदेशगमन विशे सांभळीने तथा मनोरथदत्त पासे थी तमारी सिंहलगमनना समाचार जाणीने बघाने शांति यई. अंते तमारा ताम्रलिप्तिमां आगमनना समाचार जाणी राजाजीए तमने श्वेताम्बी लई आववा मने मोकलेल छे.' आ रीते अमरगुप्ते का एटले विलासवतीए पण अविलंब श्वेताम्बी जवानी इच्छा व्यक्त करी. पछी सनत्कुमारे श्वेताम्बी जवा माटे ईशानचन्द्र राजानी रजा मागी. विलासवतीए पण गद्गद्कंठे पिता-मातानी आशीष साथे विदाय लीधी. (१४-१८)
विमाने चढी आवता चक्रवर्ती पुत्रने लेवा यशोवर्मा राजा नगरजनो साथे सामे आव्या. पिता-पुत्रनुं हृदयंगम मिलन थथु. माता-पिताए पुत्र तथा बन्ने पुत्रवधूओने आशीर्वाद आप्या. नगर बधुं उल्लास-उत्सवमय बन्यु. नगरजनो कुमारने तथा तेना परिवारने जोवा टोळे वळ्यां. (१९-२१)
सुखपूर्वक केटलाक दिवसो वीत्यां. बाद राजाए कुमारनो राज्याभिषेक करवानी इच्छा व्यक्त करी. कुमारे पोताने मळेलु राज्य पूरतुं छे एम कही अनिच्छा दर्शावी अने जल्दी रथनूपुर नगर जवा तैयारी करी. माता-पिताने तेणे पोतानी साथे आववा विनंति करो. नाना पुत्र की तिवर्माने श्वेताम्बीना राज्यासने स्थापी यशोवर्मा समस्त अन्तःपुर अने परिजनो साथे सनत्कुमार साथे जवा नीकळयो. (२२-२३)
रथनूपुर चक्रवालनी समृद्धि अने सौन्दर्य जोई यशोवर्माने आनन्द थयो. तेणे एक प्रासादमां सपरिवार निवास कर्यो. कुमारे पोताना मित्रोने जुदा जुदा स्थानो पर नियुक्त कर्या. आ रीते शांतिपूर्वक कुमारनु शासन चालवा लाग्यु. क्यारेक राणीओ साथे अंतःपुरमा प्रहेलिकाओ द्वारा गोठडी करीने, क्यारेक रम्य उद्यानमा विहार करीने, क्यारेक कथावार्ता सांभळीने, क्यारेक वीणावादनथी एम अनेक प्रकारे विविध सुखो भोगवतो सनत्कुमार काळ-निर्गमन करवा लाग्यो. (२४-२६)
वखत जतां विलासवतीने अजितबल आदि पांच पुत्रो थया. चन्द्रलेखा तथा बीजी राणीओने पण पुत्रोत्पत्ति थई. आम पूर्वपुण्योदय यो सनत्कुमार सुखपूर्वक विद्याधरराज्य भोगववा लाग्यो. (२७) संधि-११ ___एकदा चित्रांगदसरि नामे चतुर्शानघारक लब्धिवान महामुनि रथनूपुरचक्रवालमां पधार्यां अने शिप्य-परिवारसह नगरोद्यानमा उता. ए जाणीने सनत्कुमार सपरिवार तेमना दर्शन माटे गयो. मुनिवरो वच्चे चिराजेला आचार्य (वर्णन) ने राजाए सर्व जनो साथे वंदन कर्यां. गुरुसहित सर्व मुनि जनाए ‘धर्मलाभ' ना आशीर्वचन उच्चार्या. (१-२)
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