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________________ २.१७-] विलासवईकहा २७ महिल नरयस्स सोवाण-घणपंतिया महिल आणइ अणत्थाई निब्भंतिया । महिल निच्च पि पर- तत्ति-तग्गय-मणा महिल मय-मत्त कारेइ बहु कम्मणा । तिउस कक्कडिय जिह होइ खज्जं तिया । महिल अयसम्मि पाडे दुत्तारए । महिल मुह-महुर परिणाम - विरसिंतिया १० महिल रत्ता विरत्ता य फुड मारए अहवा किमिमेणं वियारिएण विसय- गिद्ध बहु- पाव-रइ | अविवेय- तिमिर-पडिरूद्ध-मइ किं न महिल साहस करइ ॥ १६ ॥ [ १७ ] अह हि पुण ती वि भासिएण अह महिल-वण-वागुरहं मज्झि अहवा ममं पि एरिस अवस्थ जेण य असमिक्खिय - कारयाणि ५ इट्ठा य सा वि किर नरवईस्स ता किमिह जुत्तु किंवा करेमि अहवा जइ साहमि नरवइस्स मई ताव समीहिउ किउ न तीए अकहिज्जेते वि य एत्थ लोइ एरिस पडिवन्तु नराहिवेण । को हरिणु जैव न पडइ असज्झि । संभवहिं दोस जोवणि समत्थ । जीवाण होंति इह जोव्वणाणि । १० भायणु वि भग्गु अहवा न भग्गु मारेइ टणक्कउ कह वि लग्गु । aft वि सहिय कुल - मयलण तहावि ना परह पीड किय सव्वहाव | इय बहु विष्णु परिचितयंतु एत्थंतरि विणयंधरेण वृत्त । ता करहि नरिंदह तणिय आण विणरंधर मई कुल- फंसणेण तो ती विकहिउ पमाणु तस्स । किमि ताव जहउि परिकमि । तो वावाइज्जइ सा अवस्स । पुणु किह दुहु करमि वराइणीए । निच्छउ कुल-लंछणु मज्झ होइ । तो जं कायव्वं एत्थु मई तं कुमारु महु आइसउ । तेणावि भणिउ आइ तुहुं भद्द नरिंद-परव्वसउ ॥ १७॥ Jain Education International [9] पर - लोयह पेसहि मज्झ पाण । गुणु कवणु एत्थु जीवंतएण । [१६] ११. ला० किमिमेण [१७] १. ला० तीय ३. ला० जोवणे ४. ला० असमक्खियकारणाणि हुंति ६. पु० किं ताव ८० पु० म किउ, ला० तीय १३. पु० ता जं कायव्वउं एत्थ. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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