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________________ ३. ३] विलासवईकहा ५ विहवो वि छड्डिउ दोस उवज्जिय सुप्पु वि दड्ढउ चणा न भुजिय । अकहेविणु ज लोयहं आइउ भूवहं वंसु अलेक्खउ वाइउ । खद्ध कुमंतिर्हि तुम्हहं केरहं चुल्लह खारि देहि न य चोरहं (१)। तो वसुभूइ तेण संबोहिउ हउं वयंस कारुण्णइं मोहिउ। जइ नरवइहि फुडउं साहिज्जइ तो अणंगवइ वावाइज्जइ । १० ता वरि सहिउ निय-कुल-लंछणु मा वयंस पर-पीडा-दंसणु । इय बहु-वयणेहिं वसुभूइ-चित्तु संठावियउं । मासेहिं य दोहि पवहणं तं सुवण्ण-भूमिं पावियउं ॥२॥ अह ते जाणवत्त-उत्तरिया वहण-सामि पुच्छेविणु चलिया। अइ-मणहर रम्मत्तण भाविय दोण्णि वि सिरिउर-नयरि पराविय । एत्तहे सेयविया-वत्थव्वउ कुमरह बाल-मित्तु सरिसव्वउ । सेटि-समिद्धदत्त-वर-नंदणु सरलु वियक्खणु सुयणाणंदणु । ५ पुव्वमेव वाणिज्जि आइउ तेहिं मणोरहदत्तु पलोइउ । ते वि असंभाविय-आगमणे दिह बे वि पवियासिय-नयणें । कहिं मई एह दिट्ठ चितंतउ का वि वेल संठिउ जोवंतउ । तं पेच्छेविणु दोहिं वि विहसिउ अह सो पच्चभियाणिवि हरिसिउ । धाविवि किउ पणिवाउ कुमारह लग्गु कंठि सहयर-परिवारह । अंसु-पवाहु मुएविणु पुच्छिय कुसलें तुम्हें सरीरिं अच्छिय ।' अवि अम्हहं पहुणो तुह तायह कुसलु कुमार किं वम्मह रायह । तो तमु कुसलु कुमारे कहियउ मित्त-सहिउ निय-मंदिरि नीयउ । तो मज्जिय जिमिय परिहिय विहिय मणोरहदत्त-मित्तएण । उवयारे दो वि पूइया नियय-विहव-पीइ-सरिसएण ॥३॥ [२] ५ ला० छम्निउ, पु० दड्ढडं ६. पु० भूयह, ला० अलिक्खठ ७ ला० कुमंत ....] रहं चुग्गह उवरि...घेरहं, पु० कुमंतेहिं १० ला० विसहिउ ११ ला संमवियं १२. ला० भूमि पावियं [३] १. ला० विहणसामि २. ला० हाविय दोन्नि पु० पराइय ३. पु० एस्तहि. ४. ला० सरल ६. ला० आगमणिं ..नयणिं ७. ला० मइ... जोयतठ ८. ला० पच्चहियाणवि १०. पु० कुसलिहिं तुम्हि सरीरेहिं १२. ला० कुमारि ...मंदिरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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