SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहारणकविरइया ___ तो चिंतइ कुमरु असंसयाए होयव्यउं विज्जा-संपयाए । ५ अन्नह किह होइ अयंडि चेव वसुभूइ-समागमु सिग्यमेव । तो साहिउ विज्जा-लाहु तस्स सो ईसि हसेवि जंपइ वयस्स । नेमित्तिय-वयणु म अन्नह त्ति जं चिय विलासवइ हूय पत्ति । हउं जाणमि एएं कारणेण हवियव्वउं पई विज्जाहिवेण । ता कीरउ हियय-समीहियं ति एत्थ वि वयंस अविलंबियं ति । १० तो दिढ-मोणव्वउ सेवंतह परिमिय-वर-फलाई भुंजंतह । सुद्धउ बंभचेरु धारंतह गय छम्मास विज्ज-घोसंतह ॥२२॥ __ [२३] तो पुच-सेव सयल वि समत्त पच्छा विलासवइ तेण वुत्त । तुहं सुंदरि धीरिय ताव होहि मा खेउ चित्ति किंचि वि करेहि । संपन्न मज्झ समीहियं ति किउ सयलु वि जं इह दुक्करं ति। थेवं चिय चिट्ठइ कठु मज्झु फल एक अहो-रत्तेण सज्झु । ५ एरिसु निसुणेविणु तीए वुत्तु पूरेउ मणोरह अज्जउत्तु । पय-कमलु तुम्ह पेच्छंतियाए को चित्त-खेउ सन्निहि ठियाए । तो एह एत्थ बीहिस्सइ त्ति कायर-हियया चिय इत्थिय त्ति । कलिऊण नाइ-दरट्ठियाए सा धरिय मलय-गिरि-वर-गुहाए । अह तिं पारद्ध पहाण सेव पुज्जिय असेस दिसिवाल-देव । १० आणीयइं जल-थल-संभवाई कुसुमइं दसद्ध-वण्णई सुहाई । आउह-वाहण-परियर-समय तहिं ठाविय देवय गरुय-तेय । गुह वारि निवारिय विग्ध-जालु वसुभूइ निवेसिउ रक्खवालु । मुद्दा-मंडलई आलिहियइं उवगरणाइं किय सन्निहियइं । थिरु पउमासण-बंधु निबद्धउ सय-साहस्सु जावु पारद्धउ ॥२३॥ [२२] ४. पु. होएव्वउ ५. ला• कह होइ ६. पु० - लाभु ७. पु० न अन्नह, ला. भूय पत्ति । ८. पु. भवियव्वउ तई ९. ला० नीयय-समीहियं १०. ला. हुंजंतह [२३] ६. पु० को वि खेउ मज्झु सण्णिहि... ७. पु० वि य इत्थिय ९. पु० ते १३. पु० कियई १४. ला० पु० जाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy