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________________ संधि-६ [१] अह सो मलय-सम्मुहु वच्चंतउ तिहिं दिवसेहिं गिरिहिं पहुत्तउ । सप्पुरिसाहिमाणि जिह तुंगइ आरूढउ गयणग्ग-विलग्गइ । अह मलय-महागिरि तेण दिछ नाणाविहतरु-परिमल-विसिछु । एला-लवंग-लबली-वणेहि कप्पूर-अयरु-हरियंदणेहिं । ५ विप्फुरिय फणस-पोफलि-फलेहिं उबिल्ल वेल्लि-पल्लव-दलेहि । अंतरिय-निरंतर-तरणि-तेउ उच्छलिय-महुर-किन्नर-सुगेउ । घण-किरण-नील-मरगय-तडेसु अविभाविय हरियंकुर-विसेसु । नज्जंति तत्थ निज्झर-जलाई फरिसेण य फलिह-सिलायलाई । कत्थ वि थिय कत्थूरिय-कुरंग उब्भड भमंति निब्भय भुयंग । सिद्ध-बहु मुद्ध अंदोलयंति जहिं सुर वसंत सुर-बहु सुयंति । कत्थ वि कल-कोइल-कलयलेण मंडियउ सिर्हिडिहिं तंडवेण । गुह-मुहहिं सीह जहिं नीसरंति दप्पुटुर वानर वुक्करंति । अह सो दइया-सोय-विमूढउ कोड्ड-विवज्जिउ तहिं आरूढउ । तुंगइ सिहरि मणोरह-पूणि किउ पणिहाणु वि संगम-कारणि ॥१॥ १० कर जोडिवि जंपिउ तो इमेण भो सिहर तुज्झ अणुभावएण । जम्मंतरे वि निय-वल्लहाए महु होज्ज समागमु सरिसु ताए। एरिसु पणिहाणु करेवि तेण अप्पा मुक्कु निरवेक्खएण । एत्तहि हा ह त्ति भणंतरण कह कह वि गयण-गोयर-गएण । ५ धुव्वंत-चारु-चीणंसुएण अइ-गुरुतर-वेग-सम्सुएण । वामंस-निवेसिय-असिवरेण संभमवस-वियलिय-सेहरेण । अच्चंतो वि सोम सुदंसणेण चंदेण व गय-मय-लंछणेण । [१] १. ला० मलय-समुहु, पु० दिवसिहि २. ला० सप्पुरिसाहिमाणे...गयणग्गे... ४. ला०-अयर- ५. ला० उग्वेल्ल ७. ला० हरियं कुरु ११. ला० सिहंडे हिं १२. ला० सीह जिह....वोकरंति १३. ला०-विमूढओ.. आरूढओ १४. ला० सिहरे... कारणे [२] १. ला० जोडवि.. तुज्झु २. पु० मह ४. पु० एत्तहे ७. पु० अच्चत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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