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________________ साहारणकइविरइया [२. १२ निय-जीविउ विहवु परिवारु जेण ढोइउ सरणागय-कारणेण । पडिवन्न-सूरु सो राय-उत्तु सुपुरिसु मारिज्जइ किं निमित्तु । रे एह वत्त तायह कहह इय जं कुमरि ते भणिय । २० तें समर-वज्झु उवसंहरवि राय-पासि गय साहणिय ॥११॥ [१२] वइयरु जाणेवि नराहिवेण अवहरिउ कुमर-रूसण-भएण । कुल-उत्तउ कुमरि एउ वुत्तु भो सुहय-सार पइं कियउं जुत्तु । संपइ मा कस्स वि भद्द भाहि वीसत्थउ निय-गंतव्वि जाहि । तो पेसिउ सो सम्माणिऊण वाहुडिउ कुमारु पराणिऊण । ५ कुल-उत्तउ पयत्तु जयत्थलम्मि तत्थ वि पविटु ससुरह कुलम्मि । गेहिणि पसूय कालक्कमेण उप्पन्नउ पुत्तु मणोरहेण । सो पुण अहमेव सणंकुमार तुह जणइं किउ ममोवयार । तुह ताई तइयहु जण समन्नु तायह मह जणणिहि जीउ दिन्नु । मई सयलु वि साहिउ तांव एउ संपइ कुमार कारणु सुणेउ । १० गउ अज्जु नरेसरु वाहियालि वाहेविणु तुरय नियत्तु कालि । तत्थ वि वित्थरिय-महा-सिणेहु गउ झत्ति अगंगवईए गेहु । सा कररुह-विलिहिय-सव्व-देह नयणंसुय-धोय-कवोल-लेह । रोवंति य धरणियलोवविट्ठ एरिस अणंगवइ तेण दिट्ठ । तो नरवइ पुच्छइ ससि-वयणि काई एउ साहहि सयलु । १५ तीए वि सदुक्खिए अक्खियउ एउ सील-रक्खणह फलु ॥१२॥ [१३] तो नरवइ जंपइ कहहि केण किउ एरिसु सुमरिउ कसु जमेण । सा भणइ न मई विन्नत्तु देव जम्हा असमंजसु सव्वमेव । अन्नं पुणु पयडिय-मय-वियारु मई पत्थइ निच्चु सणकुमारु । [११] १७. पु० ढोविउ [१२] ३. ला० बीय पत्थउ ४. ला वाहुडियु ७. ला० किउ अनोवयार ११. ला० वित्थुरिय १२. पु० सयलदेह १४. ला० ससिवयणे १५. ला० सदुक्खि अक्खिन [१३] ३. ला० पुण..."मइवियारु, पु० अन्नह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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