________________
विलासवई कहा
पर-दारु विके विपरिच्चयंति एयस्स पंभावें फल लहंति ।
माणुस जम्मे सुउदार - भोय ते वसंत वर-सुंदरी-मणे देव-लोइ अच्छर मणोहरा
न कया विहृति पिय-विप्पओय । ताण कित्ति farers तिहुयणे । पिहुल- पीण उन्नय पहरा ॥ ७ ॥
९.९]
पंचमउं महव्वय रयणु एउ अहवा धण-धन्न - सुवण्णएसु airs परिमाणु परिग्गहस्स तियसाहिव अहच हवंति देव ५ मंडलिय इब्भ तह सत्यवाह उपभोग भोग-सिरि-रिद्धिमंत पण्णा - विष्णाण - कलाहिराम ते बंधु मित्त-पोसणु करंति होंतिय गुणवंत विणीय पुत्त १० धूयाओ होंति वर- रूववंत
ताण रिद्धि न कयावि खुट्टए संपडेइ सइ खाण-पाणयं
भयवं मह वल्लह एक्क धूय जोव्वण- भरे वट्टइ चंदलेह
इय पंचविकहिय महा-वयाई फल एरिसु जइ विन निम्मलाई अन्नाई वि उत्तर-गुण-चयाई ता भो भो उज्जमु इह करेह ५ एत्यंतरे अवसरु जाणिऊण
[९] ६. पु० परम- रूव
[4] किज्जइ न परिग्गहु विविह-भेउ । सव्वे विदुपय-उप्पएसु ! पर- लोए वि लब्भइ फलु इमस्स । चक्कर - नराहिव-जणिय-सेव । aaste से वर नयर - नाह । उप्पज्जहिं तिहुयण - नयण- कंत | हिय- इच्छिय- पाविय-सकल- काम । भिच्च लहिं वित्थरंति । देससंस विस्सुय बुद्धि-जुत्त । ताण वि संपज्जहिं पवर-कंत |
Jain Education International
१३९
धवल-कित्ति तेलोक्कि फुटए । किrs जेहिं परिग्गह पमाणयं ॥ ८ ॥
[3]
[७] १२. पु० कयाइ होंति १४. पु० देव- लोए
[८] १. ला० परिग्गह ६ ला उपज्जहि ८ ला० करेति १०. ला० हुति वर - ख्यवंत
१२. ला जेहि परिगह
तेलोक्के विसयल - वयाहियाइँ | सुद्धई पुणु मोक्ख महा - फलाई । पर एएहिं होंतिहिं होति ताई । जह-सत्ति वय-रयणाई लेह | मुनि पुच्छिउ ताएं पणमिऊण | नीसेस- कलालय परम-रूय । ता कस्स घरिणि होसइ कहेह |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org