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________________ १०.१३] विलासवईकहा [१२] वसुभूइ-पमुह विज्जाहरेस पणमंति नदिह ते असेस । संमाणिय ते वि नराहिवेण संभासणाई उचियक्कमेण । नयरिहिं आढत्तु महा-पमोउ नीसरिउ विहूसिउ नयरि-लोउ । रम्मत्तण जण-मण-जणिय-मोह कारविय नरिदि हट्ट-सोह । ५ सोहाविय सयल वि राय-मग्ग किय गंध-नीर-कुसुमे हिं समग्ग । विरइय तोरण मणहर विसाल गोउरेहिं बद्ध वंदणहं माल ! तो चलिउ नराहिवु सपरिवार निय-रिद्धिहि सहिउ सणकुमारु । तूरइं पहयाइं समोककलाई पुरउ पढंति बंदिण-कुलाई । तो परम-विभूइहि पुरि पविठ्ठ असुय-नायरिय-जणेण दिछु । ० काउ वि वणंति सणंकुमारु अन्ना वि सलाहहिं सुपरिवारु । अन्ना वणंति विलासवइ अवरा सउण्णु सलहहिं निवइ । जणु बहु-रुइ जो जसु आवडइ सो तस्स वि गुण-संपय घडइ । परम-पमोय-भरिय-अइ-विम्हिय-नायर-जण-पसंसिउ । सुंदरि नरवरेण सह निय-मंदिरि खयराहिवु पवेसिउ ॥ १२ ॥ तो सपरिवार-खयराहिवस्स उचिउवयारु किउ सयलु तस्स । ईसाणचंद-नरसामिएण जामाउय-धूय-समागमेण । कारावियाई वद्धावणाई विहियई तह बंधण-मोयणाई । दीणाइहिं दाविय विविह दाण आढत्त विलास महा-पहाण । ५ वसुभूइ-सहिउ तो अनिलवेउ पेसिउ सेयवियहिं तुरिय-वेउ । गयणेण विमाणि समारूहेवि तक्खणि सेयवियहि पत्त बे वि । जसवम्मु नराहिवु तेहिं दिदछु । पणमेवि तणय आगमणु सिटु । परितुडु नराहिवु निय-मणेण आलिंगिउ तो वसुभूइ तेण । पुणु अनिलवेउ आलिंगिऊण उचियक्कमेण समाणिऊण । १० मइसायर-मंतिहि तणउ पुत्तु आणयणे निउत्तउ अमरगुत्तु । [१२] १. ला० काराविय ५. ला० सयले ७. ला० रिद्धिं सहिउ ८ ला० पहायाई सुमो[१३] १. ला० उचियव यारु ७. ला० तेग दिदछु क्कलाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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