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________________ १६८ साहारणकइविरइया [१०.२३ ५ आलोच्चेवि तो नंदणु कणिटु तहिं किन्तिवम्मु नरवइ निविट्ठ । सामंतहं मंतिहिं अप्पिऊण विविहोवएस सिक्खाविऊण । उचिएसु निउंजेवि संपयाउ संथाविऊण सयलउ पयाउ । सरिसउ अंतेउर-परियणेण चल्लिउ नरिंदु सहुं नंदणेण । खयराहिवेण ससिणेह-चित्तु चालियउ मणोरहदत्तु मित्।। वसुभूइ-वयंसह माणुसाइं चालियइं तेण सह सहरिसाई । परिवारु आसि जो तस्स हिउ कुमरत्तणे सो चल्लिउ सहिउ । अहवा. जो सुह-संचउ करइ तं को न महापहुमणुसरइ । चल्लिउ सणंकुमार वेयड्ढहो छाइय-गयण-मंडलो । वर-सेन्नेण जेंव मंदरसिरि देवेहिं सहुं अखंडलो ॥ २३ ॥ [२४] पाविय रहनेउरचक्कवालि जणु तुट्टउ पत्तए सामिसालि । तो परम-विभूइहि तर्हि पविट्ठ पुरु पेच्छेवि सिरि-जसवम्मु तुटु । किं सग्गु एहु किं असुर-वासु किं अलय-नयरि धणयह निवासु । इय तं वर-नयरु निरूवमाणु गउ मंदिरे सव्वु निरूबमाणु । ५ पडिवत्ति विणउ किउ सयलु तस्स पुत्तेण तह य अंबा-जणस्स । पासाए रम्मे उत्तरिउ राउ अच्छइ सुहेण परिणी-सहाउ । ठावियउ मणोरहदत्त सेट्टि पट्टणु असेसु किउ तस्स हेहि । पडिहारु वि विणयंधरु अजेउ सेणावइ ठाविउ अनिलवेउ । अन्नो वि को वि जो जस्स जोग्गु सो तस्स समप्पिर निय--निओगु । परिपुण्ण-कोसबलु सोक्ख-सारु तो पालइ रज्जु सणंकुमारु । निय-जणणी-जणय--नमंतयह पंचविह-सोक्ख-संपत्तयह । बच्चहिं विलासवइ-मोहियस्स दियहाइं तस्स दढ-सोहियस्स । कइय वि सत्त-तलह-पासायह हम्मिय-तले निविट्ठउ । अच्छइ देवि-सहिउ सुविणोएहिं खयराहिवइ हिट्ठउ ॥ २४ ॥ [२३] १४. ला० देविहिं सहुं [२४] १. ला० . वाले... . सामिसाले । ४. ला० सव्वु सरूवमाणु । ९. पु० निय-निउ. गगु १०. ला० पडिपुन - १२. ला०-मोहियह .. सोहियह । १३. ला० निविदओ . १४.ला. हेट्ठओ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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