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________________ १७६ साहारणकइविरइया [११.९ एत्तहे नव-उन्नय-मेह-वण्णु चउ-दसण दीह-करु चवल-कण्णु । आरूठ्ठ जीव-संहारयंतु तसु धाविउ वण-कुंजरु महंतु । पुरउ य तस्स कत्तिय-कराल पयलंत-दंत बीभच्छ-बाल । खायति मंसु लोहिउ पियंति वण-रक्खसि धावइ लहलहंति । १० तं पेच्छवि पंथिउ निरह भीउ न वि एयहं पासह मज्झ जीउ । एरिसु चिंतंतई दिसि जोयंतइं नाइदूरे विणिविट्ठउ । गयणग्ग-विलग्गउ सउण-समग्गउ तें वन-पायवु दिट्ठउ ॥ ८ ॥ तो छुट्टउं इह तरुवरे चडेवि धावियउ पहिउ इय चिंतवेवि । पत्तउ नग्गोहह मूलि जाव आरूहेवि न सक्कइ तत्थ ताव । तरुवरु अण्ण जो नहयरेहि आरूहियइ किह अम्हारिसेहिं । इय चिंतेवि गरुय भयाभिभूर पेच्छइ वड-हेट्टइ जुण्ण-कूउ । ५ तण-निवह-वल्लि-छाइय-मुहम्मि पहिएण मुक्कु अप्पाणु तम्मि । तस्स य तडम्मि सरथंभु जाउ तर्हि लग्गउ पहिउ पलंब-काउ । कूवस्स पलोइय जाव हेट्छु ता अयगरु घोरु महंतु दिट्ट । चउसु वि तडेसु चउरो सदप्प डसणाहिलास तिं दिट्ट सप्प । सरथंभु जाव ता मज्झ जीउ इय चितेवि जोवइ मलु भीठ ! १० तं तिक्ख-दाढ दुइ धवल-काल छिदंति मूलु मृसय कराल । सा रक्खसि दुट्ठिय कूव-तड-ट्ठिय खणे खणे कत्तिय वाहइ । वण-कुंजरु मत्तउ रोस-फुरंतउ सो पुणु पंथिउ बाहइ ॥ ९ ॥ [१०] तो पुरिसु तेण अनियत्तएणं वडे वेज्झु दिन्नु आरूढएणं । हल्लाविउ वड-पायवु सभग्गु साहाए तस्स महुयालु लग्गु । फुटटेवि पडि उ तं कूवम्मि महुबिंदु लग्गु पहियह सिरम्मि । सो ओगलंतु तसु मुहि पविठु तं आसायंतउ पहिउ हिटछ । ५ ताओ वि महुयालह मक्खियाउ कोवेण य पुरिसह लग्गियाउ । तं दुक्खु सहंतु वि न य विसन्तु इच्छइ महुबिंदु पडंतु अन्नु । [९] ३. ला० हेठइ उधु कूउ । [१०] १. पु० दिदछु आरुटु. १. पु० सो उगलंतु ..मुहे ६. ला० सहतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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