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________________ १४ साहारणकविरइया जंपिउ सहीए एत्थंतर म्मि विठु तत्थ सहरि कुमारु कलहोय-विमल-तलियाए तासु तें जंपिउ आसणु उद्दिसेवि १५ अह सा उवविट्टिय अइसय तुट्टिय जाव खणतरु वोलियउ । ता तत्थ वल्लिउ तीए महल्लउ मित्तभूइ संपावियउ ॥ २४ ॥ पर्णामउ विणण सणकुमारु अह सो विलासas इय भणे ater-yaa वीसरिय जेण ता अज्जु लहुं चिय ते सरेहि ५ एरिसु निमुणेविणु सा भणेइ पडिवज्जिवि तो कंचुइ- समेय जोयंत सिणेह वलंतएहिं मंथर गइ सुललिय- चलिय- हत्थ निय-भवणे किंपि कंपंत-गत्त १० वसुभूइ भइ उट्ठेहि मित्त दिट्ठो च्चिय पर मालवउ देसु छु तुम्ह दंसणमेत्तु जाउ किर गोट्ठि का वि होस विसिद्ध एत्थ वि विलासवइ चज्जिएण बसह विलासव - आसणम्मि । अणुरूव विहिउ महोवयारु । तंबोल वि दिन्न पंचवासु । उवविस विलासवई व देवि । Jain Education International [१.२५ [२५] तेण वि सो विहिउ किrवयारु । नरनाहु कुमरिए आणवे । तुह उवरि कल्लि हउं रुट्ठ तेण । महु पुरउ वीण-वाणु करेहि । जं किंचि ताउ आएसु देइ । लयहरe विणिग्गय सिग्ध-वेय | नयणेहिं कसिणुज्जल-रत्तएहिं । मुहलिय-मणिरसणा खलिय-वत्थ । मयण-सर-घाय-भीय व्व पत्त । निय घरह जाह सुविसत्य-चित्त । मंडा वि न खद्धा इय विसेसु । तो पत्तु महल्लउ अंतराउ । तो पढम - गासि मक्खिय पवि । किं अज्जवि मित्त विलंबिण । १५ निग्गय उज्जाणह चल्लिय भवणह एत्त अस्थि अनंगवर | अंतेउर सारिय नरवर - भारिय कुमरु देक्खि तहिं चलिये मइ ||२५|| [२४] १२. ला० विहियउ १५ ला० अयसय [२५] १. पु० कियोवयारु ४. ला० पुरओ. १० पु० उट्ठिहि.... घरहं जाहं १२. ला० तुम्हह १३. ला० गासे, पु० पइठ १५ ला० अणंगमइ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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