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गिरनार ।
गीतगोगा
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गिरनारमंडन श्री नेमिनाथाय नमः .
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गिरनार गीतगंगा
: संकलन :
युगप्रधान आचार्यसम, शासनप्रभावक परमपूज्य पंन्यास चन्द्रशेखरविजयजी
___ गणिवर्यना शिष्यरत्न . प.पू.पं. धर्मरक्षितविजयजी गणिवर्यना शिष्य . पं. हेमवल्लभविजयजी गणिवर्य
:प्रकाशक:
गिरनार महातीर्थविकास समिति C/o. गौरवशाळी गिरनारदर्शन, मीनराज शैक्षणिक संकुल सामे,
रूपायतन रोड, भवनाथ तळेटी,
जूनागढ-गिरनार पीन - ३६२००१ फोन नं. : ०२८५-२६५७१९९/०९९ मो. : ९४०९६८५९९९
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Email : girnarbhakti@gmail.com Web: www.girnarbhakti.com
www.girnarmahatirth.org www.girnarjaintirth.com
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प्रथम आवृत्ति : २०१६.
अषाढ सुद ८, संवत २०७२ नेमिनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक दिन
किंमत : ₹ 701
: प्राप्तिस्थान : गिरनार महातीर्थ विकास समिति
C/o. गौरवशाळी गिरनारदर्शन, मीनराज शैक्षणिक संकुल सामे, रूपायतन रोड, भवनाथ तळेटी, जूनागढ - गिरनार पीन - ३६२००१ फोन नं. : ०२८५ - २६५७१९९/०९९ मो. : ९४०९६८५९९९
समक्ति ग्रुप जवाहरनगर, गोरेगांव, मुंबई फोन : ९८२१३२७३८८
भगीरथ इलेक्ट्रोनीक्स २५-२७, बी जादव चेम्बर्स, सेल्स इन्डियानी पाछळ, आश्रम रोड, अमदावाद फोन : २७९ - २७५४६२३८
अखिल भारतीय संस्कृति रक्षक दळ गोपीपुरा, सुभाष चोक,
कम्पोझींग
प्रिन्ट हब
अमदावाद
प्रकाशन व्यवस्था नवभारत साहित्य मंदिर महावीर स्वामी देरासर पासे, पतासा पोळ सामे, गांधी रोड,
अमदावाद - ३८०००१
फोन : ०७९-२२१३९२५३, २२१३२९२१
सुरत फोन : ०२६१ - २५९९३३७
वर्धमान संस्कारधाम भवानीकृपा बिल्डींग, पहेले माळे, गिरगाम चर्च रोड, चर्नी रोड,
ओपेरा हाउस, मुंबई - ४००००४ फोन : ०२२-२३६८०९७४
मुद्रक यश प्रिन्टर्स अहमदाबाद
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पान नं.
विषयानुक्रम क्रम
विषय १. गिरनारनो महिमा न्यारो... २. गिरनार स्तुतिसरिता विभाग
(i) गिरनार नेमिस्तुति (i) सामान्य जिनस्तुति (ii) गिरनार नेमि थोयना जोडा
(iv) गिरनार महातीर्थना खमासमणाना दुहा ३. चैन्यवंदन विधि विभाग ४. गिरनार-नेमि स्तवन विभाग :
(i) नेमिनाथ प्राचीन स्तवन | (ii) गिरनार नेमिनाथ अर्वाचीन स्तवन ५. नेमिभक्तामर स्तोत्रम् ६. गिरनार भक्तिधारा विभाग :
(i) गिरनार-नेमि भक्तिगीत
(ii) सामान्य भक्तिगीत ७. दीक्षागीत विभाग : ८. गुरुभक्तिगीत विभाग : ९. चलतीना दुहा १०. उछामणीना दुहा ११. गिरनार महातीर्थनी ९९ यात्रानी विधि १२. गिरनार महातीर्थना १०८ नाम सहित खमासमणाना दुहा १३. गिरनारनी यात्रा करतां पहेला खास वांचो १४. परमात्माभक्तिना अंते संकल्प १५. गिरनार कल्याणकभूमिनी अमासना स्पर्शना
गिरनार स्तुति सरिता १. गिरनार महातीर्थ स्तुति (९) २. गिरनार वंदनावली (२१) ३. निरख्युं हशे ते दृश्य... (२८) ||४. नेमिजिन स्तुति (८) ॥५. श्री नेमिनाथ भगवाननी स्तुति (८) ६. नेमि भक्तिगान (२१) ७. हे नेमिनाथ जिनेन्द्र... (१८)
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८. हे नेमिनाथ जिनराज सुणो... (१८) ९. वंदन करें धरी भाव दिलमां... (४) १०. गरवा गिरि गिरनारने... (८) ११. भवोभव मळो नेमिजिन... (१०) १२. गिरनार-नेमिस्तुति (५) १३. गिरनार-नेमिनाथ स्तुति
सामान्य जिन स्तुति १. प्रभुमिलननी स्तुतिओ (१३) २. अरिहंत ! तुज सौंदर्य लीला... (९) ३. अवा प्रभु अरिहंतने पंचाग... (४९) ४. रत्नाकर पच्चीशी (२५) ५. संवेदना पच्चीशी (२५) ६. हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान... (९) ७. चारित्रमा मुज मन वसो... (९) ८. आ पापमयं संसार छोडी... (१९) ९. आजथी मारा तमे... (८) १०. मळजो मने जन्मोजनम (1) ११. याचना (6) १२. प्रभुविरह स्तुतिओ (७)
गिरनार-नेमि थोयना जोडा १. राजुल वर नारी (४) २. सुर असुर वंदित (४) ३. श्री गिरनार शिखर (४) ४. नेमिनाथे, वंदे बाढम् (४) ५. श्री गिरनारे जे गुण (४) ६. नेमिनाथ निरंजन निरख्या (४) ७. गिरनारे नेमनाथ गाजे (४) ८. जादवकुलश्री नंद समो ओ (४) ९. गिरनारे गीरुओ (१) १०. हरिवंश वखाणुं (४) ११. गया शस्त्रागारे (४) १२. नमो नेम नगीनो नभमणि (४) १३. श्री नेमिजिन प्रणमी (१)
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१४. नेमिनाथ गुणना भंडार (४) | १५. गढ गिरनारने नमुं (१) १६. दुरित भय निवारं (४)
१७. यादव कुलमंडण (४)
१८. अमर किन्नर ज्योतिषधर नर (४)
| १९. चिक्षेपोजितराजकं रणमुखे (४)
| २०. त्वं येनाक्षतधीरिमा गुणनिधि ( ४ ).
| २१. कमलवल्लपनं तव राजते (४)
| २२. जित मद नम नेमे (४)
| २३. यदुवंशाकाशे उडुपतिसमा (४) २४. गिरनार गिरिवर, नेमि जिनवर (४)
| २५. यदु कुलाम्बर भासन (४) २६. नेमि जिनेसर समरीओ (४)
गिरनारना खमासमणाना दुहा
चैत्यवंदन / चैत्यवंदनविधि
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१. निरख्यो नेमि जिणंदने... २. तोरण आवी रथ... ३. परमातम. पूरण कला... ४. रहो रहो रे यादवजी...
५. अब मोरी अरज... ६. में आज दरिसण पाया... ७. तुज दरीशन दीठं... ८. हारे मारे नेमि जिनेश्वर ... ९. द्वारापुरीनो नेम राजीयो.... १०. सहसावन जई वसीओ.... ११. नेमि जिनेश्रर नमीओ... १२. अरजी सुन लो हो नेम नगीना .... १३. नेम प्रभुना चरणकमळनी... १४. नेमजी कागल मोकले... १५. सुणो सखी सज्जन... १६. आव्या उग्रसेन दरबार...
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गिरनार - नेमि स्तवन
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११३ | १७. नेमि जिनेसर निज कारज कर्यो... १२४ ११३ | १८. नेमि जिणंद निरंजणो.... ११४ १९. सुणो सैयर मोरी.... ११५२०. थाशुं काम सुभट गयो... ११५ २१. नेमि निरंजन ! नाथ...! ११६ | २२. नेमिसरजिन बावीसमोजी... ११७ २३. देखो माई ! अजब... ११८२४. महेर करो मनमोहन .... ११९ | २५. शौरीपुर सोहामणुं रे.... १२० | २६. नेमि जिनेसर वाल्हो रे.... १२१ | २७. नेमिजिन सांभळो.... १२१ २८. बावीसमा नेमि जिणंद .... १२२ २९. नेमिजिन जादवकुळ... १२२ ३०. सांभळो स्वामी ! चित्त सुखकारी...! १२३ ३१. अह अथिर संसार - स्वरुप...
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१२४ ३२. नेमजी रे तोरण...
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गिरनार - नेमिनाथ अर्वाचीन स्तवन
१. सौ चालो गिरनार जईए... २. वंदो गिरनारने रे...
| ३. रुडा रुडा गिरनार .
४. पल पल तारुं स्मरण... ५. माता शिवादेवीना नंद...
६. में भेट्या यदुकुलमंडन... ७. बाल ब्रह्मचारी नेमजी...
८. जगवत्सल जगबांधवरे...
९. मेरा आतम तेरे हवाले... १०. आतमजीने आ खोळियुं...
११. यात्रा नव्वाणुं करीओ... १२. तारी कीकी कामणगारी... १३. जगतिमिरने मिटावन काजे... १४. नेमिवर निराला...
१. चालो रे... सौ चालो .
२. चालो आपणे साथे ...
३. जिनशासनना इतिहासना...
४. मले तारुं शरणुं ...
५. तारा विना नेम मने...
६. गिरनारजी का नाथ है.....
७.
झलक दिखा...
८. ओ नेमि तेरे भक्त...
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९. ओक राजकुमारी रे... | १०. आ नेम प्रभु के चरणो में... ११. कभी प्यासे को ...
१२. जीवन लडाई जीती जनारा... १३. ये नेमप्रभु अलबेले.... १४. देवाधिदेव तणा... १५. तेरे द्वार खडा भगवान...
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१५. गिरनार गिरिवर समता... १६. घडियाँ धन्यता पाई ...
१७. श्री रे गिरनार भेटीने...
१८. गिरनारेकुं सदा...
१९. गिरनार गिरिवर नयणे...
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२०. गिरनारे चित्तडुं चो ...
२१. जे गिरनारने ध्याया...
२२. नेमि निरंजन किमही ...
२३. साथ गिरनारनो हाथ...
गिरनार भक्तिधारा :
२४. मेरो प्रभु...
२५. तारो तारो नेमिनाथ...
२६. तुम सरीखो दीठो...
२७. धन धन श्री गिरनार ....
२८. शत्रुज्य समो रैवत...
१६. जोगी बनीने चाल्या...
१७. आप क्या जाने...
१८. वो काला सहसावन...
१९. ओ मारा नेमजी...
२०. मेरे सर पर रख दो...
२१. आवो आवो ने नेमकुमार...
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२३. दर्शन करवाने अमे...
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२४. वरसे भले वादळी...
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२५. थाल भरी चोखा..
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२६. घोर अंधारी रे...
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२७. हेलो मारो सांभलो...
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२८. झनन झनन
२९. दीनानाथजी...
३०. नेम राजुल छे...
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सामान्य भक्तिगीत विभाग १. भगवाननी कृपानो.... २०३ | ३७. दादा तारा पगलां... २२४
आशरा इस जहा का... २०३ | ३८. मारा मनमां अक ज तुं... २२५ तुज करुणाधारमां... २०४ | ३९. तुजने जोया करुं...
२२५ ४. तारे द्वारे आवीने.... २०५ | ४०. तारी प्रीतिनी केवी असर? ५. करुणाना सिंधु प्रभुजी.... २०५ | ४१. समजुने शुं कहेवाय... ६. सूरज की गरमी से... २०६ / ४२. आ भवना सागरमां... ७. एक घडी प्रभु...
२०७ | ४३. फहुँ छ पहाड ने जंगल... ८. आंखडी मारी प्रभु...
२०७ ४४. सदा हुं तुं सदा तुं हुं... ९. अमी भरेली नजरुं... २०८ | ४५. मोहे लागी लगन...
२२९ १०. गमे ते स्वरुप...
२०८ | ४६. समयने साचवी लेशो... २३० ११. झगमगता तारला...
.२०९
४७. मंदिर पधारो स्वामी... २३० १२. तमे मन मूकीने...
२०९ ४८. मुझे मेरी मस्ती... . १३. नाम है तैरा तारणहारा....... २१० | ४९. तमारे इसारे तमारी कृपाथी... २३२ १४. बंधन बंधन झंखे मारुं मन... २१० | ५०. फूल नहि तो पांखडी... २३२ १५. मुक्ति मले के न मळे..., २११ | ५१. जैसा मिलता रहे... १६. ओ वीर तास चरणकमलमां... २१२ / ५२. आंसु भरेली आंखे... २३४ १७. मारो धन्य बन्यो... २१२ | ५३. प्रेम भरेलुं हैयु.... २३४ १८. मारा व्हाला प्रभु... २१३ | ५४. स्वामी तारा स्नेहथी... १९. यह है पावन भूमि... २१४ | ५५. मने ज्यां जवानुं मन... २०. हुं करुं धुं प्रार्थना... २१४ / ५६. तुं मने भगवान...
२३६ २१. चार दिवसनां चांदरडां पछी... २१५ | ५७. संसार के सागर में...
२३७ २२. माएं आयखं खूटे... २१५ | ५८. जिंदगी बेकार चाली... २३. भक्ति करता छूटे मारा... २१६ | ५९. मेरे दोनों हाथों में... २४. प्रभु ओ विनंती...
६०. ओवी लागी लगन...
२३९ २५. आटलुं तो आपजे....
२१७ ६१. अक पंखी...
२३९ २६. मैत्रीभाव- पवित्र झर[... २१८ | ६२. तारी जो हांक सुणी कोई ना आवे...२४० २७. समताथी दर्द सहु....
२१८ | ६३. पंखीडा ने आ पीजरूं... २४० २८. व्हाला मारा हैयामां... २१९ ६४. अक ज अरमान छे मने... २४१ २९. अब सोंप दिया...
६५. प्रभु ! तें मने जे... २४२ ३०. बधी मिलकत तने धएं तोपण...
... २२०
६६. प्रभु ! मारा कंठमां देजो... २४२ ३१. दादा ताएं मंदिर...
६७. रंगाई जाने रंगमां... २४३ ३२. चलो बुलावा आया है... | ६८. शब्दमां समाय नहीं... २४४ ३३. दर्शन देजो नाथ... २२२ | ६९. मारो धन्य बन्यो आज... २४५ ३४. जब कोई नहि आता... २२२ | ७०. ओ तारणहारे...
२४५ ३५. अमने अमारा प्रभुजी... २२३ | ७१. प्रभु अमे डूबी रह्या.... २४६ ३६. आ भव मलिया... २२४ | ७२. पाप करतां माप राख्यु...।
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७३. तारी पासे अवुं शुं ? ७४. दूर तमे ना रहेशो, प्रभुजी...
७५. साचो संगम प्रभु साथे ... ७६. खूणे खूणामां हृदय... ७७. दान धर्मनी ज्वलंत ज्योति... ७८. तुं तारे के ना तारे.... ७९. अवतार मानवीनो.... ८०. मोडुं शाने करे छे वधु ? ८१. हृदयने अशांतिमां...
८२. युगोथी हुं पुकारूं छं... ८३. जिनवर मंदिर जे बंधावे...
८४. कर्मो करेला मुजने ...
८५. आज वगडावो..... ८६. केसरियां रे... केसरियां...
८७. ढोलिडा ढोल धीमो...
१. मने वेश श्रमणनो मलजो... २. ओधो छे अणमूलो... ३. जा संयम पंथे दीक्षार्थी ४. जेना रोम रोमथी त्याग...
५. रुडा राजमहेलने त्यागी... ६. यौवनवयमां सुख छोडनारा...
७. साधु बने कोई...
८. साधनाना पंथे आजे...
९. संयम जीवननो....
१०. बेना रे....
११. हुं जउं छं...
१२. क्यारे बनीश हुं साचो रे संत... १३. तमे मारगडो लई ...
१. संत परम हीतकारी
२. तारा गुणोनी पाट ३. गुरुमा तेरे ...
४. औसो चिद्रस दीयो गुरु मैया ५. कोटि कोटि वंदन...
| ६. गुरु प्रेम रोग है
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८८. मारा दादाने दरबारे... ८९. मारे भक्ति तमारी...
२४८
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९०. मारी आजनी घडी छे...
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९९. रंगे रमे आनंदे रमे...
२५१ ९२. अजवाळां देखाडो... २५१ ९३. अरिहंतना ध्याने... २५२
९४. दुःखडा निवारो मारा...
२५३
९५. प्रभुथी पागल थइ...
२५४
९६. खुल्ला मुक्या छे में तो...
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९७. कैसे रीझावुं में तुम्हें...
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९८. इतनी शक्ति हमें.... ९९. हमके मनकी शक्ति...
१००. तुम्हीं हो माता पिता ...
१०१. गिरनार के निवासी...
दीक्षागीत
१४. कदी जो परिषह रडावे
१५. जाग्यो रे आतमा...
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२६८
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२७२
१९. मारे साधवी छे
२७३
२०. तमे ओघो लईने तरिया
२७४
२१. हो संयम साधक शूरवीरो
२७५ २२. लेजो समजीने संयमनो भार
२७५
२३. होजो जयजयकार
२७६
२४. वीरा रे
२७७ २५. हुं तो अरिहंत अरिहंत
२७७
गुरुभक्ति गीत
१६. मुक्ति तणा सपना
१७. आ केशनुं लुंचन छे
१८. आगळ पोथी ने पांछळ
२८७ ७. गुरुदेव मेरे दाता
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८. तुम्हीं हो भ्राता
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९. गुरुवर तेरी परम
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१०. श्वासोनी माळामां
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११. जीवन लीला संकेलीने...
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गिरनार तलेटीएथी
जगमा तीरथ दो वडा, शजय गिरनार, . एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेमकुमार.
जगप्रसिद्ध तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय महातीर्थनी स्पर्शना-भक्ति आजे चतुर्विधसंघमां दिनप्रतिदिन विस्तार पामी छे, तेवा अवसरे आ विश्वना द्वितीय जगप्रसिद्ध श्री गिरनारजी महातीर्थ प्रत्ये केटलाक वर्षोथी समस्तजैनसंघो द्वारा उपेक्षा सेवायेल छे. जेना परिणामे अतीत-अनागत अनंता तीर्थंकरो तथा वर्तमान चोवीसीना बावीसमा तीर्थंकर बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ परमात्माना दीक्षाकेवळज्ञान अने मोक्षकल्याणकोथी पावन बनेली आ तीर्थभूमि चतुर्विघसंघ द्वारा अल्प स्पर्शायेल रहेल छे.
परमात्मा अने पूज्योना प्रसादथी छेल्ला सात वर्षथी आ महातीर्थना माहात्म्यने समस्तजैनसंघना घर-घरमां अने घट-घट सुधी पहोंचाडवाना यत्किंचित् प्रयास |अंतर्गत प्रस्तुत पुस्तक, प्रकाशन थई रहेल छे.
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आजे गिरनार - नेमिनाथ आ बन्ने नामो एकबीजाना पर्याय तुल्य बनी गया छे, गिरनार - नेमिनाथ एकबीजा साथे अनेक घटनाओनी घटमाळथी गुंथायेला छे. | आजे पण आ तीर्थभूमि उपर नेमिप्रभु सह अनंता तीर्थंकरोना दीक्षाकल्याणक | अवसरना वैराग्यरसथी भींजायेलो वसंतीवायरो रोम-रोमने रोमांचित करी रह्यो छे, अनंता केवळज्ञान कल्याणकोनो पुनितप्रकाश अनेक भव्यात्माओना अंतरमां | पडेला मिथ्यातामसने दूर हडसेली सम्यक्त्वनी साधनानो स्पर्श करावी रह्यो छे साथे साथे अनंताजिनना मोक्षकल्याणकोनी मधुरीमहेकथी समग्र प्रकृति |मघमघायमान बनी रही छे.
आवा महातीर्थनी आराधना - साधना-उपासना आपणा आत्मा उपर गाढ थयेला अनादिकाळना विषय कषायनी वासनाना संस्कारोने मंद पाडी परंपारए परमतत्त्व पर्यंत पहोंचाडवानुं सामर्थ्य धरावे छे, तेथी आ तीर्थभक्ति भव्यजनोनी भावधाराने प्रोत्साहित करे तेवा शुभाशयथी स्तुति, स्तवन, थोय भक्तिगीतो, स्तोत्र, पूजादि संग्रहस्वरूप झरणांओनो संगम करावी प्रस्तुत "गिरनार गीतगंगा" नुं अवतरण करावी भव्यजनोना हैया सुधी वहेतुं करवानो अल्पप्रयास करेल छे. सौ कोई आ गंगाजळनां भावस्नाननी मस्ती माणी परमपंथ तरफ पगरव मांडी परंपराए परमपदने पामे ए ज पिपासा.
जिनाज्ञा विरुद्ध कंई लखायुं होय तो त्रिविधे अंतःकरणपूर्वक क्षमा याचुं छं.
वि.सं. २०७२
| अ. सु.द.
| नेमिनाथ मोक्षकल्याणक दिन
लि. भवोदधितारक गुरुपादरेणु पंन्यास हेमवल्ल्भ विजय
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गिरनारनो महिमा न्यारो एनो गाता नावे आरो
१, गिरनार गिरिवर पण शत्रुज्यगिरिनी माफक प्रायः शाश्वत छे.
पांचमा आराना अंते ज्यारे शत्रुजयनी ऊंचाई घटीने सात हाथ थशे त्यारे गिरनारनी ऊंचाई सो धनुष्य (चारसो हाथ) रहेशे. रैवतगिरि (गिरनार) शजयगिरि पांचमु शिखर होवाथी ते पांचमु ज्ञान अर्थात् केवळज्ञान अपावनारुं छे. आ मनोहर एवो गिरनार समवसरणनी शोभाने धारण करे छे, कारणके मध्यमां चैत्यवृक्ष जेवं मुख्य शिखर अने गढ़ जेवा आजुबाजुमां अन्य नाना पर्वतो आवेला छे जाणे के चार दिशामां झरणां वहेतां होय तेवा चार द्वारोरूप चार पर्वतो शोभी रह्या छे. • गिरनार उपर अनंता तीर्थंकरो आवेला छे अने महासिद्धि अर्थात् मोक्षपदने पामेला छे तथा अनंता तीर्थंकरना दीक्षा-केवळज्ञान अने मोक्षकल्याणक थया छे तेमज अनेक मुनिओ पण मोक्षपदने पाम्या छे अने भविष्यमां पामशे. गइ चोवीसीमां थयेला १, श्री नमीश्वर २, श्री अनिल ३, श्री यशोधर ४, श्री कृतार्थ ५, श्री जिनेश्वर ६, श्री शुद्धमति ७, श्री शिवंकर अने ८, श्री स्पंदन नामना आठ तीर्थंकर भगवंतोना दीक्षा-केवळज्ञान अने मोक्षकल्याणक अने अन्य बे तीर्थंकर भगवंतना मात्र मोक्षकल्याणक गिरनार गिरिवर उपर थया हता. वर्तमान चोवीसीना बावीसमां तीर्थंकर बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ भगवानना दीक्षा-केवळज्ञान कल्याणक अने मोक्षकल्याणक गिरनार उपर थया छे तेमां दीक्षा अने केवळज्ञान कल्याणक सहसावन (सहस्राम्रवन) मां तथा मोक्षकल्याणक पांचमी टुंक उपर थयेल छे.
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७. आवती चोवीसीमां थनारा १. श्री पद्मनाभ, २. श्री सुरदेव, ३. श्री
सुपार्श्व, ४. श्री स्वंयप्रभ, ५. श्री सर्वानुभूति, ६. श्री देवश्रुत, ७. श्री उदय, ८. श्री पेढाल, ९. श्री पोट्टील, १०. श्री सत्कीर्ति, ११. श्री सुव्रत, १२. श्री अमम, १३. श्री निष्कषाय, १४. श्री निष्पुलाक, १५. श्री निर्मम, १६. श्री चित्रगुप्त, १७. श्री समाधि, १८. श्री संवर, १९. श्री यशोघर, २०. श्री विजय, २१. श्री मल्लिजिन, २२. श्री देव आ बीवीस तीर्थंकर परमात्माना मात्र मोक्षकल्याणक तथा २३. श्री अनंतवीर्य, २४. श्री भद्रकृत आ बे तीर्थंकर परमात्माना दीक्षा-केवळज्ञान अने मोक्षकल्याणक भविष्यमा गिरनार महातीर्थ उपर थशे. गिरनार महातीर्थनी भक्ति द्वारा श्री नेमिनाथ भगवानना रहनेमि सहित आठ भाईओ, शांब, प्रद्युम्न आदि अनेक कुमारो, कृष्ण . महाराजानी आठ पट्टराणीओ, साध्वी राजीमतिश्री आदि अनेक भव्यात्माओ मोक्षपदने पाम्या छे अने कृष्ण महाराजाए तो आ तीर्थभक्तिना प्रभावे तीर्थंकरनामकर्म बांधेल छे तेथी तेमनो आत्मा आवती चोवीसीमां बारमा तीर्थंकर श्री अममस्वामी बनी मोक्षपदने
पामशे.
गिरनार महातीर्थ तथा श्री नेमिनाथ भगवान उपर अविहडरागना प्रभावे धामणउली गामना धार नामना वेपारीना पांचपुत्रो १, कालमेघ २, मेघनाद ३, भेरव ४, एकपद अने ५, त्रैलोक्यपद आ
पांचेय पुत्रो मरीने तीर्थना क्षेत्राधिपति देव थया छे. १०. स्वर्गलोक, पाताललोक अने मृत्युलोकना चैत्योमां सुर, असुर अने
राजाओ गिरनारना आकारने हमेशा पूजे छे.
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११. वल्लभीपूरनो भंग थतां इन्द्रमहाराजाए स्थापन करेल श्री नेमिनाथ
भगवानना बिंबनी रत्नकांति गिरनारमां लुप्त करवामां आवी हती ते मूर्ति आजे गिरनारमां मूळनायकना स्थाने बिराजमान छे. १२. गिरनार महातीर्थमां विश्वनी सौथी प्राचीन एवी मूळनायक तरीके बिराजमान श्री नेमिनाथ भगवाननी मूर्ति लगभग १,६५,७३५ वर्ष न्यून (ओछा) एवा २० कोडाकोडी सागरोपम वर्ष प्राचीन छे गई चोवीसीना त्रीजा सागरनामना तीर्थंकरना काळमां ब्रह्मेन्द्र द्वारा बनाववामां आवेल हती. आ प्रतिमाने प्रतिष्ठित कर्याने लगभग ८४,७८५ वर्ष थया छे ते मूर्ति आ ज स्थाने हजु लगभग १८, ४६५ वर्ष सुधी पूजाशे त्यारबाद शासन अधिष्ठायिका द्वारा पाताळलोकमां लइ जइने पूजाशे.
१३. गिरनार उपर इन्द्र महाराजाए वज्रथी छिद्र पाडीने सोनाना बलानक-झरूखावाळु रूपानुं चैत्य बनावीने मध्यभागमां श्री नेमिनाथ परमात्मानी चालीस हाथ ऊंचाइनी श्यामवर्णनी रत्ननी मूर्ति स्थापन करी हती.
१४. इन्द्र महाराजाए पूर्वे बनाव्यं हतु तेवुं पूर्वाभिमुख जिनालय श्री नेमिनाथ भगवानना निर्वाण स्थाने पण बनाव्युं हतुं.
१५. गिरनारमां एक समये कल्याणना कारणस्वरूप छत्रशिला, अक्षरशिला, घंटाशिला, अंजनशिला, ज्ञानशिला, बिन्दुशिला अने सिद्धशिला आदि शिलाओ शोभती हती.
१६. जेम मलयगिरि उपर बीजा वृक्षो पण चंदनमय बनी जाय छे तेम गिरनार उपर आवनार पापी प्राणीओ पण पुण्यवान थई जाय छे.
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१७. जेम पारसमणिना स्पर्शथी लोढुं सुवर्ण थइ जाय छे तेम गिरनारना
स्पर्शथी प्राणी चिन्मय स्वरूपी बनी जाय छे. ||१८. गिरनारनी भक्ति करनारने आ भवमां के परभवमा दारिद्र्य आवतुं
नथी. |१९. गिरनार महातीर्थमां निवास करतां तिर्यंचो (जनावरो) पण .
__ आठभवनी अंदर सिद्धिपदने पामे छे. २०. गिरनार महातीर्थ ए पुण्यनो ढगलो छे. २१. गिरनार महातीर्थ ए पृथ्वीना तिलक समान छे. २२. अनेक विद्याधरो, देवताओ, किन्नरो, अप्सराओ अने यक्षो
पोतपोतानी इष्टसिद्धिने प्राप्त करवानी इच्छाथी गिरनारमां निवास
करे छे. ||२३. गिरनार गिरिवरना पवननो पवित्र आहार करता अने विषममार्गे
चालता एवा योगीओ अहँ पदनी उपासना करता गुफाओमां
साधना करतां होय छे. ||२४. गिरनार महातीर्थनी सेवाथी केटलाय पुण्यात्माओ आ लोकमां
सर्वसंपत्ति अने परलोकमां परमपदने पामे छे. २५. गिरनार महातीर्थनी सेवाथी पापी जीवो पण सर्वकर्मनो क्षय करी
अव्यक्त अने अक्षय एवा शिवपदने पामे छे. ||२६. सर्वतीर्थोमां उत्तम अने सर्वतीर्थनी यात्राना फळने आपनार आ
गिरनार महातीर्थना दर्शन अने स्पर्शनमात्रथी सर्वपापो हणाइ
जाय छे. २७. गिरनार महातीर्थनी भक्ति द्वारा महापापना करनारा अने महादुष्ट
एवा कुष्टादिक रोगवाळा जीवो पण सर्वसुखनां भाजन थाय छे.
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२८. गिरनार महातीर्थना शिखर उपर रहेला कल्पवृक्षो याचकोनां
इच्छितने पूरे छे ते आ गिरिनो ज महिमा छे अहीं रहेला गिरिओ, नदीओ, वृक्षो, कुंडो अने भूमिओ अन्यस्थाने रहेला एक तीर्थनी माफक अहीं तीर्थपणाने पामे छे अर्थात् ते बधा पण
तीर्थमय बनी जाय छे. २९. गिरनार महातीर्थमां पुण्यहीन प्राणीओने नहीं देखाती एवी
सुवर्णसिद्धि करनारी अने सर्वइच्छितफलने आपनारी रसकूपिकाओ
रहेली छे. ३०. गिरनार महातीर्थनी माटीने गुरूगमना योगथी तेल अने घीनी
साथे भेळवीने अग्निमां तपाववाथी ते सुवर्ममय बनी जाय छे. ३१. भद्रशाल वगेरे वनमां सर्वऋतुओना बधी ज जातनां फुलो खीलेला
होय छे, जल अने फल सहित भद्रशालादि वनथी वीटळायेलो आ
रमणीय गिरनार पर्वत इन्द्रोनो एक क्रीडापर्वत छे. ३२. गिरनार महातीर्थमां दरेक शिखरोनी उपर जल, स्थळ अने आकाशमां | फरनारा जे जे जीवो होय छे ते सर्वे त्रण भवमां मोक्षे जाय छे. ३३. गिरनार महातीर्थ उपर वृक्षो, पाषाणो, पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय
अने अग्निकायना जीवो छे, ते व्यक्त चेतना नहि होवा छतां आ
तीर्थना प्रभावथी केटलाक काळे मोक्षे जनारा थाय छे. ३४. जे जीवो गिरनार महातीर्थ उपर आवी पोताना न्यायोपार्जित
धननो सुपात्रदान द्वारा सद्व्यय करे छे, तेओने भवोभव सर्व
संपत्तिओ प्राप्त थाय छे. ३५. उत्तम एवा भव्यजीवो गिरनार महातीर्थमां मात्र एक दिवस पण
शील धारण करे छे ते हमेशा सुर, असुर, नर अने नारीओथी सेववा योग्य थाय छे.
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३६. गिरनार महातीर्थमां जे उपवास, छठ, अठ्ठम आदि तप करे छे ते
सर्वसुखोने भोगवी परमपदने अवश्य पामे छे. ||३७. जे जीवो गिरनार महातीर्थ उपर आवी भावथी,जिनप्रतिमानी
पूजा करे छे ते शीघ्र शिवसुखने प्राप्त करे छे. घेरबेठा पण शुद्ध
भावपूर्वक गिरनारनुं ध्यान धरनार चोथाभवे मोक्षपदने पामे छे. ३८. गिरनार गिरिवरना पवित्र शिखरो, सरिताओ, झरणांओ, धातुओ
अने वृक्षो सर्व प्राणीओने सुख आपनारा थाय छे. ३९. गिरनार गिरिवर उपर श्री नेमिनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा अवसरे
प्रभुजीना स्नात्राभिषेक माटे त्रणेयं जगतनी नदीओ विशाळ एवा गजेन्द्रपदकुंडमां उतरी आवी हती. गिरनार गिरिवरमां मोक्षलक्ष्मीना मुखरूपे रहेला गजेन्द्रपद (गजपद) नामना कुंडना पवित्रजलना स्पर्शमात्रथी जीवोना अनेक भवना
पापो नाश पामे छे. ४१. गिरनार गिरिवरना गजपदकुंडना जलथी स्नान करीने जेणे जिनेश्वर
परमात्माने स्नान (प्रक्षाल) करावेल छे, तेणे कर्ममलवडे लेपायेला
पोताना आत्माने पवित्र कर्यो छे. ४२. गिरनार गिरिवरना गजपदकुंडना जलनुं पान करवाथी काम, श्वास,
अरूचि, ग्लानि, प्रसुति अने उदरमा उत्पन्न थयेला बाह्यरोगो
पण अंतरना कर्ममलनी जेम नाश पामे छे. |४३. जगतमां कोइपण शाश्वती दिव्य औषधीओ, स्वर्णादि सिद्धिओ
अने रसकूपिकाओ नथी के जे आ गिरनार गिरिवर उपर न होय. ४४. आकाशमा उडतां पक्षीओनी छाया पण जो आ गिरनार महातीर्थनो
स्पर्श पामे तो तेओनी पण दुर्गतिनो नाश थाय छे.
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४५. सहसावनमां नेमिनाथ भगवाननी दीक्षा अने केवळज्ञान कल्याणको
थया हता.
४६. सहसावनमां (लक्षारामवन) करोडो देवताओ द्वारा श्री नेमिनाथ भगवानना प्रथम अने अंतिम समवसरणनी रचना करवामां आवी हती अने प्रभु प्रथम तथा अंतिम देशना आपी हती. ४७. सहसावनमां सोनाना चैत्योनी मनोहर चोवीसीनुं निर्माण करवामां
आव्युं हतुं.
४८. सहसावनमां कृष्णवासुदेव द्वारा रजत, सुवर्ण अने रत्नमय प्रतिमायुक्त त्रण जिनालयोनुं निर्माण थयुं हतुं.
४९. सहसावन (लक्षारामवन) नी एक गुफामां भूत- भावि अने वर्तमान • एम त्रण चोवीसीना बोंतेर प्रतिमाओ बिराजमान छे. ·
५०. सहसावनमां श्री रहनेमिजी तथा साध्वी राजीमति श्रीजी आदि मोक्षपदने पाम्या छे.
५१. सहसावनमां हाल संप्रतिकालीन श्री नेमिनाथ परमात्मानी प्रतिमा, श्रीवित स्वामि नेमिनाथयुक्त अद्भूत समवसरण मंदिर छे. ५२. गिरनार गिरिवरनी पहेली ट्रंके हाल चौद-चौद बेनमून जिनालयो गिरिवर तिलक समान शोभी रह्या छे.
५३. भारतभरमां मूळनायक तरीके तीर्थंकर न होय तेवा सामान्य केवली सिध्धात्मा श्री रहनेमिनुं एक मात्र जिनालय गिरनार गिरिवर उपर छे. ५४. श्री हेमचंद्राचार्य, श्री बप्पभट्टसूरि, श्री वस्तुपाळ - तेजपाळ, श्री पेथडशा आदि अनेक पुण्यात्माओने सहाय करनार गिरनार महातीर्थना अधिष्ठायिका श्री अंबिकादेवी आजे पण हाजराहजुर छे.
५५. ज्यां सुधी गिरनारनी यात्रा नथी करी त्यां सुधीज जीव सर्वपाप, सर्व दुःख अने संसार भ्रमण करे छे.
C
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१.
गिरनार स्तुति सरिता
गिरनार महातीर्थ स्तुतिं ( राग : एवा प्रभु अरिहंतने... )
बे तीर्थ जगमां छे वडा ते, शत्रुंजयने गिरनार, एक गढ समोसर्या आदिजिनने, बीजे श्री नेमि जुहार, ए तीर्थ भक्तिना प्रभावे, थाये सौनो बेडोपार ए तीर्थराजने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो...
२. देवांगनाने देवताओ, जेनी सेवना झंखता,
मळी तीर्थ कल्पो वळी, जेना गुणलां गावतां, जिनो अनंता जे भूमिए, परमपदने पामतां, ए गिरनारने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो... ३. पशुओना पोकार सुणी, करूणा दिलमां आणतां, रडती मेली राजीमतिने, विवाहमंडप त्यागतां, संयमवधू केवल श्री, शिवरमणीने परणतां,
ए नेमिनाथने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो...
४. शिवानंदने परणवाना, मनोरथोने सेवतां,
प्रितमतणा पगलेपगले, गिरनारे संयम साधतां, नेमथी वरसो पहेलां, मुक्तिपदने पामतां, ए राजीमतिने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो ... कनक कामिनीने त्यागी, नेमजी पधारतां,
संयमग्रही संग्राम मांडी, घातीकर्म ज्यां चूरतां,
૧૦
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राजीमति दीक्षा ग्रही, शिवशर्मने ज्यां पामतां,
ए सहसावनने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो... ६. अवसर्पिणीमां सौ प्रथम, अरिहंतपदे जे शोभतां, तीर्थतणी रचना करी युगलाधर्म निवारतां, अज्ञानीना तिमिर टाळी, ज्ञानज्योत जलावतां,
ए आदिनाथने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो ... कमठतणा उपसर्गोने, समभावथी जे झीलतां, जे बिथी अमिरसतणा, झरणाओ सहेजे झरतां,
७.
जेना प्रगटप्रभावथी, भविना दुःखडा भांगतां, ए अमिझरापार्श्व वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो... ८. नेमसमीपे व्रतग्रही, गुफामां ध्यानने ध्यावतां,
अशुभकर्मना उदयथी जे, व्रतमां डगमग थावतां, प्रतिबोध पामी राजुल वयणे, मोक्षमारग साधतां, ए रहनेमिने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो... बालब्रह्मचारी नेमनाथ, परमपद ज्यां पामतां, भविजनो मळीने भक्तिकाजे, पगलां ने त्यां ठावतां, परतीर्थीओ जेने वळीं, दत्तात्रय नामे पूजतां, ए पांचमीटूंकने वंदता, मुज जन्म आज सफल थयो...
गिरनार वंदनावली
(राग : अरिहंत वंदनावली - मंदिर छो मुक्ति...)
१. बे तीर्थ जगमां छे वडा ते, शत्रुंजयने गिरनार, एक गढ समोसर्या आदिजिनने, बीजे श्री नेमि जुहार,
११
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ए तीर्थ भक्तिना प्रभावे, थाये सौनो बेडोपार, .
ए तीर्थराजने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) . ___ गत चोवीसीमां जे भूमिए, सिद्धिवधू जिन दस वर्या,
ने आवती चोवीसी मांहे, सौ जिनो शास्त्रे कह्यां, ए गिरनारना गुणघणा पण, अंशथी शब्दे वण्या, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) नंदभद्र, गिरनार, स्वर्णगिरि, ने शाश्वतो रैवत वळी, उज्जयंत, कैलास एम छ आरे नामो धरी, उत्सर्पिणीए शतधनुथी, छत्रीस योजन बनी, .. ए गिरनारने वंदता, पाप बधां दूरे जतां... (२) अप्सराओ ऋषिओ वळी, सिध्धपुरूषने गांधर्वो, आ तीर्थकेरी सेवा काजे, आवतां सौ भविजनो; घेरबेठां पण तस ध्यान घरतां, चोथे भवे शिवसुख लहो, . ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जता... (२) . त्रण त्रण कल्याण भाविकाळे, नेमिजिनना ज्यां जाणी, भरतेश्वरे रचना करावी, सुरसुंदर मंदिर तणी; शोभती जेमां प्रभुनी, मणिमय मूरत घणी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) अज्ञान टाळी भव्यजनना, ज्ञानज्योत जलावतां, "स्वस्तिकावर्तक" प्रासादने, भरतचक्री करावतां, जेमां माणिक्य रत्नने वळी, स्वर्णबिंबो भरावतां, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) ।
R
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________________
७.
८.
प्रासादनी प्रतिष्ठा काजे, गणधरो पधारता, हर्षे भरेल इन्द्रो पण, एैरावण पर आवतां हस्तिपादे भक्तिकाजे, गजपद कुंड करावतां, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२)
त्रण भुवननी सरितातणा, सुरभि प्रवाह ते झीलतां, जे जल फरसतां आधि - व्याधि, रोग सौना क्षय थतां;
ते जल थकी जिन अर्चता, अजरामरपद पामतां,
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) देवताओ उर्वशीओ, यक्षोने विद्याधरो, वळी गांधर्वो स्वसिद्धि काजे, तीर्थनी स्तवना करे; ज्यां सूर्य-चंद्र विमान विरामी, हर्षथी स्तवना करे, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) १०. ज्यां देवांगनाना गानमां, आसक्त मयूरो नाचतां, पवने पूरेल वेणुने, झरणांओ सूरने पूरतां; ज्यां वायुवेगे विविधवृक्षो, नृत्य करतां भासतां, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जत.... (२) ११. गुफाओंमां साधको वळी, मंत्रोने आराधतां,
नवरंध्रोथी प्राणोने रोधि, परमनुं ध्यान ध्यावतां; वळी विविध योगासनो वडे जे, योग साधना साधतां, एं गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) १२. स्वर्णमणि माणिक्यरत्नो, सृष्टिने अजवाळतां,
दिवसे मणीरत्नो वळी औषधो रात्रे दीपतां; ने कदलीओना ध्वजपताका, अनंत वैभवे शोभतां,
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२)
१३
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________________
१५.
१३. आ तीर्थ भूमिए पक्षीओनी, छाया पण आवी पडे,
भवभ्रमण केरां दुर्गतिना, बंधनो तेनां टळे; महादुष्टने वळी कुष्टरोगी, सर्वसुख भाजन बने, .
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) १४. आ तीर्थपर जे भावथी, अल्प धर्म पण करे,
आ लोकथी परलोक वळी, ते परमलोकने जई वरे; ते तीर्थनी सेवा थकी, फेरा भवोभवना टळे, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) नेम आव्या जान जोडी, परणवा राजुल घरे, - पशुओतणा पोकार सुणी, ते नेमजी पाछा फरे; वैराग्यना रंगे रमेने, शिववधू मनने हरे,
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) १६. सहसावने वैभव त्यजी, दीक्षा ग्रहे राजुलप्रभु,
युद्ध आदरी चौपनदिने, कर्म करे ते लघु; आसो अमासे चित्रा काळे, कैवल्य पामे जगविभु,
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जता... (२) १७. सुरवृंद नाचे हर्ष साथे, भावथी त्रणगढ रची,
वरदत्त - यक्षिणीवळी, दशार्हने तसश्री मळी; तीर्थथापनाने करी, गौमेध यक्ष अंबा भळी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) सागर प्रभुना काळमां, अतीत चोवीसी मही, ब्रह्मेन्द्रे निजभावि जाणी, नेमनी प्रतिमा भरी; गणधर प्रभुना ए थया, वरदत्त शिववधू धणी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२)
१८.
१४
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________________
१९. आर्य-अनार्य पृथ्वी पर, प्रतिबोधतां विचरण करे,
निर्वाणकाळ समीप जाणी, रैवते प्रभु पाछा फरे, अनशनग्रही अषाढ मासे, शुभाष्टमे सिद्धि वरे,
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) २०. अल्पमति मनमां धरीने, भाव अपार हैये भरी,
संवत सहस्त्र युगलने, संवरतणा वरसे वळी; वर्षान्तमासे शुभ्रपडवे, शब्दो तणी गुंथणी करी,
ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां... (२) २१. गिरनार महिमा आज गायो, श→ज्य महातमथी लई,.
प्रेम - चंद्र- धर्म पसाये, हेम सूरोने ग्रही; हर्षित बन्या नरनारी सौ, अद्भूत गरीमाने सुणी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जता... (२) .
निरख्यु हशे ते दृश्य...
.
जे पांच रूपे इन्द्र प्रभुने मेरुगिरि पर लावता, — पांडुकवनमां स्वर्णना सिंहासने पधरावता; बहु भावथी सहु देवगण करता जनम अभिषेकने, निरख्युं हशे ते दृश्य त्यारे जेमणे ते धन्य छे.
श्यामल प्रभुना देह पर जब क्षीर सागर जळ ढळे,
काली घटामां श्वेत जाणे वीजळीओ झळहळे, वळी देवदुंदुभि दिव्यनादे मेघरव जिम गडगडे,
निरख्यु...२
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माता शिवादेगर्भमां वहता हता जब नाथने, स्वप्ने निहाळे रिष्ट निर्मित चक्र केरी धारने; तेथी अरिष्ट नेमि थाये नाम प्रभुनुं शुभ पळे,
निरख्यं... ३
दश धनुषनी काया उपर वायो वसंती वायरो, जाम्यो मजानो जोवनाइना फुलोनो डायरी; वनराई जेवो श्याम प्रभुनो देह जग कामण करे,
मदभर जुवानीना रसे छलकेल दोस्तो नाथने, रमवा जता खेंची नगरमां सीममां के उपवने; थातो वसंतोत्सव तदा सहु नगर जनना नेत्रने,
निरख्यं... ४
निरख्यं...५
श्री कृष्णनी आयुधशाळामां पहोंच्या एकदा, त्यां मित्र हठथी दाखव्या शस्त्रोतणा दावो बधा; श्री कृष्ण केरो शंख पूर्यो घोरनादे नेमिए,
निरख्यं... ६
श्री कृष्णने बलराम यादव सर्व दोड्या ते स्थळे, चमक्या निहाळी नेमिने त्यां खेलता शस्त्रो वडे; देखी अचिंतित बळ प्रभुनुं चकित चित्ते सर्व ते,
निरख्यं...७
तव नेमिनुं बळ मापवाने कृष्ण कर लांबो करे, पळमां नमावी हाथ हरिनो नाथ निज करने धरे; श्री कृष्ण लटके वांदरानी जेम तोये ना वळे,
निरख्यं...८
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देखी अनंतु नाथनुं बळ कृष्ण मनमां भय करे, शुं नेमि मारुं राज लेवा लालसा मनमां धरे; लेशे कुंवारा नेमि संयम गगनवाणी उच्चरे,
निरख्यु...९ श्रीकृष्ण होरी खेलवा चाल्या उमंगे सरवरे, श्री नेमिने पण खेलवा खेंचे जता साही करे; जळकेली करता त्यां हजारो गोपीओनी संग ते,
निरख्यु...१० श्री कृष्णना आदेशथी श्री नेमिने खेलावती, गोपी बधीए लाज मुकी व्यंग बाणो छोडती; ललचाववाने लग्न माटे गजबना नखरा करे,
निरख्यु...११ तव निर्विकारी नेमि राखी मौन मुख मलक्या करे, सहु स्वजन स्मितने संमति मानी तुरत सगपण करे; ___परणाववाने राजीमतीनी साथ जोडे जानने,
निरख्यु...१२ रेवतगिरिना श्याम शिखरे श्वेत वादलडी रमे,
रे तेज रीते श्यामनेमि गौरी राजुलने गमे; आ श्याम श्वेता जोडलीनी जोड जगमां ना जडे,
निरख्युं...१३ पण गोखमां बेठेल राजुल राह जोती रही गई,
के कर्मराजाने न आवी जोडली मंजुर थई; पशुओ तणा पोकारथी हा ! नेमजी पाछा वळे,
निरख्युं...१४
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करवू नहोतुं लग्न तोये केम आव्या परणवा? नव भव तणी जे प्रीतडी तेने ज नित्य बनाववा; बस कोल देवा राजुलाने के ना भजजो अन्यने,
निरख्यु...१५ लोकांतिकोना वचनथी व्रतग्रहण वेळा मन धरी, दई दान वार्षिक विश्वमा दारिद्र दुःखो संहरी; मातापितानी संमतिथी सर्व ममताने तजे,
निरख्यु...१६ रैवतगिरिनी मध्यमां सहसाम्रवनमा संचर्या, त्यां सहसनर साथे तमे स्वामी प्रव्रज्याने वर्या; ने मनः पर्यवज्ञान प्रगट्युं व्रतग्रहण केरी क्षणे,
निरख्यु...१७ छद्मस्थकाळे दिवस चोप्पन अप्रमत्तपणे रह्या, तप ध्यान केरा उग्र अनले घाती कर्मोने दह्या; . सहसाम्रवनमां श्रेणि मांडी केवलश्री मेळवे,
निरख्यु...१८ रत्न कंचन रजतना त्रण गढ सुरो असुरो रचे, प्रभु देशनानो मेघ वरस्यो बार पर्षदनी विचे; वरदत्त आदि गणधरोनी थापना थई त्यां कने,
निरख्यु...१९ जे मद्य पीए द्यूत खेले केई करे दुष्कर्मने, क्रोडो गमे ते जादवोने पांडवोने सर्वने, आ घोर भवथी तारनारा तीर्थने थाप्युं तमे,
निरख्यु...२०
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तु तीर्थमां वीस कोटी मुनिनी साथ पांडवं भव तर्या, वळी शांब ने प्रद्युम्न क्रोडो साधु साथे शिव वर्या; वसुदेवने श्री कृष्णनो परिवार पण मुक्ति लहे,
निरख्यं... २१
महायुद्ध कर्याक्रोडो मनुज संहारना, ते कृष्ण वासुदेव पण सेवे चरणयुग आपना; सम्यक्त्व पामी बांधता जिनपद प्रदायक कर्मने,
निरख्यं...२२
छोना कर्यं मुज करग्रहण तें नाथ आवी मांडवे, तारा ज़ करथी व्रत ग्रहण हुं करीश आवीने हवे; ते बोल पाळीने बताव्यो नेहघेली राजुलने,
निरख्यं...२३
नव नव जनमनी प्रीतडी श्री नेमराजुलनी हती, अहीं देहनो संबंध तोडी तेमणे जे शाश्वती; प्रीतितणो संबंध जोड्यो मुक्ति केरा मांडवे,
૧૯
निरख्यं... २४
ते धन्य शौरीपुर नगर ज्यां च्यवन जन्म थया हता, ते धन्य सहसावन प्रभु ज्यां दिक्खकेवल पामता; ते धन्य रैवतगिरी शिखर ज्यां शिव रमा संगम लहे,
निरख्यं... २५
गिरनार गिरि पर पांचसो छत्रीस मुनिनी साथमां, निर्वाण पाम्या मासनुं अणसण करी परमातमां; आयुष्य एक हजार वर्षं पूर्ण करी खड्गासने,
निरख्यं...२६
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गिरनारगिरि शणगार तमने कोटि कोटि वंदना, राजुल तणा भरथार तमने कोटि कोटि वंदना; योगीश्वरोना नाथ तमने कोटि कोटि वंदना, नवभव तणा संगाथ तमने कोटि कोटि वंदना... २७ । गिरनार गिरि पर जुग जुगोथ जेमना छे बेसणां, जे नाथनी करूणां थकी पंथे चड्यो अनुभव तणा; दर्शन कराव्या परमना ते नाथ ने स्तवंतां स्तवे, मांगे धुरंधर विजय देजो बोधि लाभ भवे भवे... २८
नेमिजिन स्तुति |
(१) जे प्रभु तणा संस्मरणथी, संताप सवि मनना टळे,
जे प्रभु तणा दर्शन थकी, दुःख दुरित दर्द दूर टळे, जे प्रभु तणा वंदन थकी, विरमे विषयने वासना गिरनार मंडण नेमिजिनने, भावथी करुं वंदना. रमणीय राजुल जेवी नारी त्यजी दीधी पळवारमां, रमणीनुं रुपविरुप लाग्युं, पशु तणा पोकारमां, राजीमतीनु शु थशे, क्षण मात्र नवि करी कल्पना...
गिरनार... . (३) तोरण सुधी आवीने पण, पाछा वळ्या जीव प्रेमथी,
निर्दोष पशुओनी कतल, जोवाय केम प्रभु नेमथी, अंतर बने करुणा भी, बस आटली मुज प्रार्थना
गिरनार...
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(४) जे भोगना काळे अनुपम, योगने साधी गया,
वनिताना संगम काळमां, विरति शुं प्रीत बांधी गया, महासत्त्वशाळी शिरोमणी, प्रभु सत्त्वनी करूं याचना...
गिरनार... (५) निष्काम निर्मल निर्विकारी, नेमिनाथ नमुं सदा,
चाहु हुं उज्जवल जीवनमां, लागे कलंक नहीं कदा, अविकारता रहो दृष्टिमां, बस आटली मुज प्रार्थना..
गिरनार... (६) अंजनसरिखा पण निरंजन, राग द्वेष विनाशथी
छो श्याम पण जीवन तमारूं, शोभे शुभ प्रकाशथी . केवो विरोधाभास, तारा स्वरुपनी शी कल्पना.....
गिरनार... (७) रैवतगिरीना शिखर पर, प्रभु मुकुट मणी सम ओपतां
मनोहारिणी मुद्राथी भविमां, बोधिना बीज ओपता, हैयुं छे हर्षविभोर आजे, हवे न रही कोई झंखना...
गिरनार... |(८) उत्तंगगिरि गिरनार नजरे दूरथी देखाय ज्यां,
उभराय आनंद रोमे रोमे नयन बे छलकाय त्यां .. मळशे हवे दर्शन प्रभुना, श्वासे श्वासे भावना...'
गिरनार...
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श्री नेमिनाथ भगवाननी स्तुति
प्रणमुं प्रतिदिन प्रेमथी, परमात्मा तारा बिंबने, बावीसमो तुं जिनपति, भवपार करजे तुं मने; मुज प्राण तुं मुज त्राण तुं, मुज जीवननो आधार तुं. करु नमन नेमिजिन चरणमां, स्मरणमा रहेजो सदा
करूं...१
गिरनार गिरि शणगार तुं, तुज धाम ए वखणाय छे, शत्रुजये भमती मही, तुं भावथी पूजाय छे; अर्बुदगिरिए लुणींग वसही, मंदिरे तुज वास छे, करूं...२
गुजरात राजस्थानने सौराष्ट्र तुज प्रदेश छे, मालव प्रदेशे तीर्थ आष्टा, ताहरूं सविशेष छे; रांतेज वालम नाडलाइ, तीर्थपति पण तुंज छे,
करूं...३
भोरल तीर्थे भव्य प्रतिमा, जोइ मन मारूं ठरे, बस बेसी जउ धरूं ध्यान तारूं, भाव एज थया करे; तुज श्यामवर्णी पापहरणी, मूर्ति मुजने खूब गमे, करूं...४
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।
महाब्रह्मचारी तुं विभो, अद्भूत छे तारी कथा, संसार फंदे ना फसायो, राजीमती वरवा छतां; तुज नाम मंत्र जपे शमे, सहु वासनाओनी व्यथा, करूं...५
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तुज द्रष्टिथी द्रष्टि मिले तो, द्रष्टि दोष टळे बधा, तुज मूर्तिमा मन जो भळे तो, निर्विकारी बने तदा; तुज स्पर्शथी महाब्रह्मनी, सिद्धि सधाये सर्वदा, करूं...६
भगवान तुजने निरखनारा, निर्विकारी थाय छे. भगवान तुजने वंदनारा, वंदनीय बनी जाय छे; भगवान तुजने भेटनारा, भव थकी य 'मूकाय छे,
चाय ले.
करूं...७
तुज मूर्तिना दर्शन प्रभु, भवोभव मने मळता रहो, तुज भक्तिनो अवसर प्रभु, भवोभव मने मळतो रहो; मुक्तिकिरण नी ज्योत, भवोभव हृदयमां जलती रहो, करूं...८
नेमि भक्तिगान
नेम प्रभु हुं पुछु प्रेमे, कर्मो मारा केटला ? जन्म मरणना फेरा करवा, हजुए मारे केटला ? मोक्ष पुरीमां, जावा आडे, आगळाओ केटला ? एक समता तुज मिले तो, भार एना केटला ?
पहाडो मांथी नीकळे त्यारे, लागे नागें झरj, नेमि प्रभुनुं मारे लेवू, एवं साचुं शरणुं; झरणुं ज्यारे आगे जातुं, नदी बनती मोटी, नेमि प्रभुनु, शरणुं एवं, कापे कर्मो कोटि.
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शौरिपुरीमां, च्यवन जन्म लइ, दीक्षा लीधी सहेसावने, चोपन दिनमां घाती खपावी, केवल पाम्या सहेसावने सकल कर्मनो अंत करीने, शिव पाम्या प्रभु गिरनारे नेमि प्रभुनुं शरणुं लेता, गिरनारे तेने तारे.
समवसरणमां, आप बिराजी, दीधी देशना शुध्ध यदा, भव्य जीवों जे सांभळी हरखे, हुं भटकतो कयां तदा ? नेमि प्रभु तुज बिंब निहाळी, भावुं भावना एह सदा, समवसरणमां बेसी सुणीश हुं, जिनवाणी आकंठ कदा ?
अध्यात्म गुणमां जे रमे, तेने ज साचुं ब्रह्म छे, वली विषय संगथी जे परे, तेने प्रभु पण ब्रह्म छे, निर्मल एवा ब्रह्मथी, द्विविध जेना पक्ष छे, ते नेमि जिनना चरणे वंदु, एह मारुं लक्ष छे.
कृष्णादिक दश जीव थाशे, तीर्थपति तारा निमित्त, एक कोडि देवो भक्ति भावे, नमन करशे तस विनित, अवतार दशमांथी कोड् एक, तीर्थपति कने आपजो, गिरनार गिरि पर ज्यां तर्या त्यां, नेम मुक्ति आपजो.
गिरनार जे पावन बन्यो छे, आज नेमि नामथी, चोवीश जिनवर मुक्ति थाशे, जे गिरिवर ठामथी, ए गिरिवर संभारता, अमे नेम नमता निर्मळा, नेमि जिणंद कृपा करो जेम, कर्मो थाए वेगळा.
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ब्रह्मचारीमां शिरदार जिनवर, नेम मूर्ति तारनार कळियुगमा ए कल्पवेली, विषय वासना वारनार, दर्शन लडं जे ताहरूं ते, पुण्य केरा प्राग्भार, तारा शरण विण आ जगे बीजो नहि उगारनार.
नेमि प्रभु हुं अवर न याचं, तारुं दर्शन नित मळजो, कुदेवनी सवि वासना संगत, मिथ्यामति मारी बळजो, शासन तारुं पामी प्रभुजी, भवभम्रण मारुं टळजो, अरिहंत देव सुसाधु गुरु, वीतराग कथित धरम मळजो.
• समुद्र विजय शिवादेवी नंदन, श्याम वरण पडिमा दिठी, नहि जपमाळा नहि हथियारो, स्त्री विना लागे मीठी, नयणा पावन करती पडिमा, जे भवियण भावे भजता, एक भविक थावा गति करतां, दूर भवियण दूरे तजता.
षड्रस भोजन में कर्या, तोय ना हटे जे दीनता, गुण गान करतां ताहरा, आश्चर्य रसना लिनता, वाजीव नाद सुण्या घणा तोये, चित्त शान्ति नव जरी, नेमि प्रभु तुज वाणी सुणता, कर्णयुग शान्ति खरी.
एकादशी एक दिन देखाडी, कृष्ण बांधव कारणे, ते निमित्त बनतुं भव्य जननी, दुर्गतिना वारणे, नेमि प्रभु दिनरात ध्यावं, कर्म कुटिल विदारणे, भटकी रह्यो गति चारमां, बोलो प्रभु क्या कारणे ?
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प्राग्भार इषत् पृथ्वी पहोंचे, कर्म छोडी भव्य छे, व्यवहार राशि पामवी, बाकी रही दूर भव्य छे, विण मुक्ति माने भक्ति करतां, जीव ते अभव्य छे, नेमि प्रभु कृपा मिले ते, जीव आसन्न भव्य छे.
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ठारक क्रोधानल तणा हे, नेमिनाथ जगत्पति, कारक मुक्तिपुर तणा हे, नेमिनाथ यतिपति; नारक नर तिरि देव भव, मुकावता राजुलपति, धारक गुण समुदायना, गुण आपजो मुज यदुपति.
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धन शौरीपिरीना मानवी, तुज जन्म कल्याणक जुए; धन द्वारिकाना मानवी, दीक्षा कल्याणक उजवे; धन धरा गिरि गिरनारनी, कल्याणक त्रण संपजे, गुण गान बावीस जिन गाता, पुण्य अंकुर नीपजे.
शांब प्रद्युमन वली, वसुदेवनी जे नारीओ, गज़सुकुमाल गुणे भर्यो, आंतर वैरी वारीओ; यदुकुलने सोहावता, नर नारीओ तें तारीओ, तुज कृपा भूख्यो तडपतो, प्रभु केम मुज विसारीओ
विधि जो चूके तो श्याम होवे, सरल ए जग उक्तिने, ते नाश कीधी श्याम देहे, पामी केवल मुक्तिने; ए शामळा बावीशमा, नेमि जिनेसर छोडीने, छे कोण बीजो तारनारो, जाउं हुं त्यां दोडीने.
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कोइ पूर्वभवना पापथी, जेनी मति मैथुनमां, ते पापमति भूलवा रहे, ब्रह्मचारी प्रभु तुज धूनमां; विकार सौ सळगी जतां, ते धूनथी तस खूनमां, नेमिजिनेश्वर ध्यानथी, जीव रमण करतो पुनमां.
चोथे भवे केवल लहे, गिरनार गिरिवर ध्यानथी, मंदिर नेमि जिणंदनुं, सौहावे गिरिवर शानथी, तीर्थपतिने तीर्थ साथे, प्रणमतो बहुमानथी, तरवो बधो संसार सागर, नेमिनाथ सुकानथी.
विचरता जिन वेगळा, नथी पुण्य कीधुं परभवे, बंधन घणा मुंझावनारा, नथी समरतो आ भवे; हुंकेम तुज पामी शकीश, तेथी ज आ पछीना भवे, समाधि मृत्यु याचतो, नेमि जिनेसर भवे भवे.
तुज नाम लेता वांचता ने, सुणता मन उल्लसे, ज्यां मूरति देखूं ताहरी, त्यां अधिक आनंद उल्लसे; हुं बेसता उठता सूता, नेमि स्मरण करूं ताहरु, आ. जीवन तुज चरणे धर्यु, कल्याण करजो माहरु.
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हे नेमिनाथ जिनेन्द्र
राग : मंदिर छो मुक्ति तणां
शौरीपुरी गिरनारमां, कल्याणको ताहरा थया, तेज वालम परोली, भोरोलमा भासित थया; कुंभारीयाजी देलवाडे, वंदना अवधारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो
महाशंख फुंकी शत्रुओनी, शक्तिओ सौ संहरी, रणभूमि पर श्री कृष्णना, महासैन्यनी रक्षा करी; बस आ रीते हे नाथ, आंतर शत्रु मुज संहारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो
राजीमति भूली गइ ते, स्नेह संभार्यो तमे, राजीमतिनो वण कह्यो, आत्मा प्रभु तार्यो तमे; हुं रोज संभारु तने, क्यारेक तो संभारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो
पोकर पशुओना सुणी, सहुने प्रभु तमे उद्धर्या, दीक्षा लइ केवल वरी, बहुने प्रभु तमे उद्धर्या; मारी विनवणी छे हवे, मुजने प्रभु उध्धारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
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श्री कृष्णनी पटराणीओ, लोभाववा तमने मथी, त्यारेय अंतरमा तमारा, कामज्वर आव्यो नथी; हे काम विजयी नाथ मारो, कामरोग निवारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
श्यामल छबी प्रशमाद्र नयनो, रूप आ रळियामj, मुखडु, मनोहर आकृति, रमणीय स्मित सोहामणुं; आ सर्व अंतिम समयमां, मुज नयनमा अवतारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
.हे नाथ तृष्णा अग्निए, जनमोजनम बाळ्यो मने, स्नेहाळ नयनोमा डुबाडी, प्रभु तमे ठार्यो मने; छे झंखना बस एक के, मुजने भवोभव ठारजो हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
आ क्रोध पिशाच नड्यो छे, आकरो प्रभु जाणजो, झाझं कहुं शुं तुजने, छो ज्ञानरुपी भाणजो; अमी नजर फेंकी वात्सल्य देइ, क्रोध मुज विदारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
पडिमा बनावू जगमही, सवि मूरति ने जुहारवा, तुं सहाय करजे मुजने, भवजलधिमांथी तारवा; वीतराग सह श्री संघ भक्ति, पामवा भवपार जो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
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अनुकूळतामां खुश थातो, प्रतिकूळता गमती नहीं, दिनरात जाता एम मारा, रतिने अरति मही; जे पापस्थानक पंदरमुं, ते दूर करवा विचारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो.... ....१०
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ज्यां त्यां फलं जे ते मले, पण वात हुं मारी करूं, कथनी बीजानी टाळतो, फरियाद हुं मारी करूं; बीजो कषाय गाळवा, मुज मन महीं पधारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...११
वीशे विचरता विहरमानो, भक्ति करवा कोड छ । तुं सहाय कर जो मुजने, तो ताहरे शी खोड छे; कर कृपा जेथी लहुं हुं, सुर लोक मां अवतार जो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...१२
समणह कोडि सहस्स दुअ, विचरता जिनवर जिहां, . वैक्रिय रूप करी भक्ति करवा, पहोंचतो निशदिन तिहा, ए भावनाने पूरी करवा, तुज कृपा अवधारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...१३
पंच भरतने ऐरावते तिम महाविदेहे जे वसे, व्रतधारी केवली नामधारी, श्रावकादि जे हशे; सुरशक्तिथी तेहने करुं हुं, भक्तिमां शिरदारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...१४
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चोवीश जिनवर मुक्ति लेशे, जे भूमि गिरनार जो, सिद्धशे वली साधु साध्वी, जे भूमि गिरनार जो; चोवीश जिन मंदिर बनावं, ते भूमि गिरनार जो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
संघपति सहु संघ लइने, आवशे गिरनार जो,
आफत सवि दूरे करुं हुं, जे जता गिरनार जो;
तारा प्रभावे भाव मारा, पामशे
सुखकार जो
हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो...
एक जन्म हो मुज महाविदेहे, संघभक्ति कारणे,
श्रमण गण के श्रावको हो, आवजो मुज बारणे;
जे जे चहे ते ते दउ हुं तेहने पलवार जो,
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....१५
आ भरतमां श्वेतांबर के, होय दिगम्बर भले,
स्थानवासी तेरापंथी, मोक्षमार्गी जे मले;
वीतरागी बनवा झुरता, प्रति नमन वारंवार जो,
हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो......१७
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नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो.... ....१८
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हे नेमिनाथ जिनराज सुणो... रागः भक्तामर प्रणत मौली...
मंदिर त्रण मूलनायक जामनगरे, गोइंज गाम जिल्लामां जामनगरे; रांतेज वालम परोली महीं रसाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
दक्षिणमाहे मूरति गोकाक गामे, मूरति वसी कारकल तिरूवलै ठामे; फोटा ज देखी थयो आनंदनो उछाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
मध्य प्रदेशे मल्हारगढ तुं सोहे, रीगणोद आष्टा महीं देखता मन मोहे; डीगाव नालछा नमे तेहने तुं पाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
नारलाइ राणकपुर फलोधि देखें, नाडोल पाडीव नगरे तुजने पेखु देलवाडा मांहे मूरति ताहरी विशाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ....
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डीकेबीने तिम नरोडा राजनगरे, मंदिर गोमतीपुर महीं राजनगरे; कुंभारीयाजी भोरोल मुजने देखाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ....
मुंबई महीं वसइ गोखीरा नगरे सारी, गोवर्धन नगर मुलुन्ड मांहे भारी; गिरनार घाम भजे तेहनो जाय काळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ... .
...६
कच्छमाहे तुंबडी अने सोधडी गामे, महाराष्ट्रमां तिम वली दोल्थाम ठामे; चांदवड जालना मांहे नमतो निहाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
टी
.
डीसा बीलीमोरा सुरेन्द्रनगरे छाजे, · मंदिर अने नगर नेमिनाथ राजे;
करे जन्म सफल लही ताहरी संभाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
तुं भाखतो शरण चार जगे रहेलो अरिहंत सिध्ध मुनि केवलीए कहेलो; ते धर्मना शरण विण गयो छे काळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
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आजे लहुं शरण चार हुं चित्तमांहे, . जेथी रहुं भवोभव चरणोनी मांहे; जोजे पहुं नहि कदि संसार झाळ, . हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
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धरी देह श्यामल रूपे दीक्षा ग्रहीने, केवल लमु शुक्ल ध्यानमां थे रहीने; याचुं सदा दरिशन महीं जाय काळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
जंगम अने तीरथ स्थावर जेह फरतां, गिरनार तीरथ जइ सवि कर्म हरतां; चोवीश जिन लहेशे शिव भावि काळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ.....
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निगोदथी भटकता हुं रह्यो अनाथ, शासन ताहरूं लही हुं थयो सनाथ; मृत्यु समाधि देइ नाथ मरण टाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
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विध विध तर्क करतां जीव जेह मळतां, द्यो शक्ति जेथी मुज पास सुशांति रळतां; स्थिरता लही गति करे तेह मोक्ष ढाळ, . हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
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अति हर्ष साथे सुणतो हुं बीजाना आळ, वदतो वळी हरख साथे विविध आळ; करजे क्षमा हे जिनराज में दीधा आळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
कीधा घणां जीवनमांही कलह भारी, वळी मानतो करणी तेह अतिज सारी; भालुं हुं तेह सवि जेम कहे ज बाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ... . ...१६
. में तो लह्यो जीवन आशरो एक ताहरो,
जनमो जनम मळजो मुज साथ ताहरो; सेवक ताहरो गणी मुजने तुं भाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
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जन्म अने च्यवन शौरीपुर गामे, कल्याणक त्रण नेमि गिरनार धामे; शौरीपुरी ने गिरनार नमुं त्रिकाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ...
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वंदन करूं धरी भाव दिलमां... राग : मंदिर छो मुक्ति...
भणुं केटलुं हुं तुजने, सर्वज्ञ स्वामी तुं रह्यो, सवि द्रव्य गुण पर्यायनो, प्रभु जाणनारो तुं कह्यो; ज्यां त्यां रहुं जे ते समे, तुज ध्यान हो निरंतरं, वंदन करूं धरी भाव दिलमां, नेमिनाथ जिनेश्वरं ... ... १
तुज जीवनकेरा दृष्टिपाते, मुज जीवन मंगल वसो, पंचेन्द्रियनी जे भरी ते, वासनाओ दूर खसो, निरमतां एवी प्रभु द्यो, स्व - पर निर्मल करं, वंदन करूं धरी भाव दिलमां, नेमिनाथ जिनेश्वरं ...
जुग जुग रहो हे नाथ तारुं, नाम आ जगने विषे, भले मोक्ष मुजने ना मले, रहुं गुण गावा जग विषे, बोधि समाधि वात्सल्य भरपूर दो परमेश्वरं, वंदन करूं धरी भाव दिलमां, नेमिनाथ जिनेश्वरं ...
नेमिजिन तुम गुण गाता, गुण प्रगटे मुज घणा, मंदिर मूरति देखी हरखुं, नेमि जिन हे तुज तणां, तिहुं लोकमां अप्रतिम भासे, दाता नेमि गुणकरं, वंदन करूं धरी भाव दिलमां, नेमिनाथ जिनेश्वरं ....
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...
. ३
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गरवा गिरि गिरनारने राग : मंदिर छो मुक्ति...
जे अमर शत्रुजयगिरि, शिखर पंचम शोभतुं, सोवनमयी सोरठ धरा पर, तिलकसम जे दीपतुं, उत्तुंग जेना शिखर पर छे, नेमिजिनना बेसणा, गरवागिरि गिरनारने होजो सदा मुजवंदना.
गरवा..१
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जे परम उत्तम शृंग पर, श्री नेमिजिन दिक्षित बन्यां, केवल करी केइ जीवतारी ने प्रभु शिव संचर्या, चोवीशे भावी जिनवरा ज्यां पामशे सुख शाश्वता.
गरवा..२
जेने सदा सेवी रह्यां, सुर असुरने नरपति अहो! त्रण कालमांत्रण लोकमां, यश जेहनो गाजी रह्यो, रैवतगिरि, कैलास वळी नंदभद्र नामो गाजतां,
गरवा..३
सुरलोकथी पण अधिक सोहे, पृथ्वी आ गिरनारनी, ज्यां पुनित पगले संचर्या, शिवादेवी नंदन जगपति, राजुल पण विरति वरीने पामी मुक्ति संपदा.
गरवा..४
-
गिरनारना सांनिध्यमां, पामे सहु शाता बहु, गिरनारना सध्यानथी, पापो टळे संचित सहु, गिरनारना आलंबने, उज्जवळ बने छे आतमा.
गरवा..५
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अन्यत्र पण शुभ भावथी जे, ध्यान गिरिवरनुं धरे, चोथे भवे सवि कर्म टाळी, ते भवि शिवपद वरे, महिमा अपार गिरितणो, शब्दो महीं कुहेवाय ना.
पावन करे तन मन भविकजन, आ गिरिना स्पर्शथी, आतम बने पावन अहो, श्री नेमिजिनना दर्शथी, त्रणयोग सफळ बने, गिरिने गिरिपति वंदना.
गिरनारना शुभ दर्शने, नयना सफल- मारा थयां, गिरनारनी यात्रा करी, गात्रो सफल मारा थयां, श्री नेमि जिनवर, आपो मुजने, परम ब्रह्मनी संपदा.
भवोभव मळो नेमिजिन...
राग : सेवो पास शंखेश्वरा मन शुद्धे...
कपडवंज नगरे तु वसीयो किनारे,
अमरेली देरुं रह्यं तुज बजारे, राधनपुर बावन जिनालय संभारो, भवोभव मलो नेमिजिन तुज सहारो.
मेवाड मध्ये उदेपुर नगर सारु, तिम राष्ट्र मध्ये दिल्हीमां सुचारु,
पालनपुरथी मुज हृदये पधारो, भवोभव मलो नेमिजन तुज सहारो.
३८
...
१
गरवा.. ६
गरवा..७
गरवा..८
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गेरिता उपरियाळामां मूरति नानी, हारीज माणसा डोळीयामां सुहानी, लहे हर्ष छाला जई देखनारो, भवोभव मलो नेमिजिन तुज सहारो. ...३ वडोदरा महेता पोळे रह्या छो, गृह मंदिरे पण बिराजी रह्या छो, अंबाजी नगर फालना वसनारो, भवोभव मलो नेमिजन तुज सहारो, ...४ पाटण सालवीवाडे तुज रूप देखे, धन्य ते नयन बीकानेरे जे पेखे, रहे नाल नगरे वली शोभनारो, भवोभव मलो नेमिजन तुज सहारो. ...५ सूरत गोपीपुरामां मूरति सारी, भर्यु भामंडल तिहा शंखे भारी, रांदेर गाममां अदभूत रूप धारो, भवोभव मलो नेमिजन तुज सहारो.. ...६ कदंबगिरि टोचमां तुज देखें रूप, महुवा रह्यं सुंदर तुज स्वरूप, भावनगरमां अलग तारो ठठारो, भवोभव मलो नेमिजिन तुज सहारो. ...७ भीलडी गाममां मंदिर तारूं एक, तीरथमां रही मूरति मोटी ज छेक, घोघा बंदरे तुं बिराजे छे न्यारो, भवोभव मलो नेमिजिन तुज सहारो. ...८
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खंभाते रह्यो भोयरापाडा गलीए, प्रभासपाटणे दर्शने दुःखदलीए, डुंगरपुरमां अमी वरसावनारो, भवोभव मलो नेमिजिन तुज सहारो. ...९ यदुवंश रूपी दरिये जे चंदा, अग्नि बनी दूर करे कर्म फंदा, सवि नाश करजो उपद्रव अमारा, चरणोमां वंदन नेमि तमारा.
।
गिरनार - नेमि स्तुति
मेघ सम देहकांति पेखी, मन मयूर नाची रह्यो, पुनमचंद वदन निहाळी, हृदय चकोर हरखीयो, दर्शन अमृत पान दी●नयनोने आपे खरे, दर्शन सरोवर हंसलो, गुण मोतीनो चारो चरे...१
मत्सर धरी मिथ्यात्वी सुरे, पारणे पोढया ग्रही, लइ जइ गगने ज्ञाने जाण्यो, अज्ञानी सुरने तहीं, स्पर्शी बळांश आपनो, धरतीए खूपी गयो,
सम्यक्त्वनो पसाय पाम्यो, आपना चरणे रह्यो...२ दीक्षा केवल मुक्ति अर्थे नेम पधार्या भूधरे, धन्य बन्यो गिरनार त्यारे, आपना चरणो धरे, कोटी मुनि वर्या मुक्ति आपने भावे स्तवे, ते निसुणी आव्यो प्रभु, निस्तार करजो भवदवे...३ ।।
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सागर प्रभुनी देशना, माधव सुणीने हरखीया, अंजन रतन पडिमा भरावी, स्व विमाने स्थापीया, अति प्राचीन पडिमा, अंबाए हेते दीधी.,
ते नेमिप्रभुना दरिसणे, आनंद उरमांही वधी...४ कोडाकोडी वीश सागर, लाखन्यून प्रभु तमे, पावन करो छो विश्वने पगला पुनित पाडी तमे, सुण्याश्रवणे भावघरी, आव्यो प्रभु उलट धरी, दर्शन अमीरस मेह वूठा, तृप्ति पाम्यो आखरी...५
उपकारकारी नेमिवरने...
मळवू छे तुजने नाथजी, जेम ज्योतने ज्योति मळे, भळवू छे मुजने तुज महीं, जेम बिंदु सिंधुमां भळे, विलंब ना करशो प्रभुजी, तडपी रह्यो छु तुम विना, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना...
प्रति रोममां, प्रति श्वासमां, प्रति पलकमां, प्रभुतुंज छे,
आ सृष्टिमां करूं दृष्टि ज्यां, ते दृश्यमां प्रभु तुं ज छे, - प्रति अणु अने परमाणुमां, संभळाय सूर तुज नामना,
उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना... (२)
संस्मरणो ज्यां ताजा करूं, रोमांचथी मन माहरु, दिन-रात-सांज-सवारमां, बस स्मरण करतुं ताहरु, हती गाढ तुज-मुज लागणी, निर्मोही बनी विसरायना, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना...
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उपसर्गो मारा जीवनमां, अनुकूल के प्रतिकूल हो, आशिष देजो डगमगुना, फुल के भले शूल हो, मुज वेलडी सम आतमानो, तुम थकी उद्धार छे, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना...
मुज जीवननी संध्या ढळे, त्यारे स्मरणमां आवजो, समभाव मारो टकावीने, नवकार याद करावजो, हवे मृत्युनो पण भय नथी, तुम नामनो जयकार छे, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंजना...
गिरनार तारा दर्शथी, हुं भव्य छं समजाय छे, मने मुक्ति मळशे निकटमां, विश्वास एवो थाय छे, रैवतगिरि तुज नाम छे, मम जन्म-मरण निवारजे, - गिरनार वंदी विनवुं, मुज आतमाने तारजे ...
प्रभु मिलननी स्तुतिओ
१, रूप तारुं एवं अद्भूत, पलक विण जोया करूं, नेत्र तारां निरखी निरखी पाप मुज धोया करूं, हृदयना शुभ भाव परखी, भावना भावित बनुं, झंखना एवी मने के, हुं ज तुज रूपे बनुं,
૪૨
(४)
(4)
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दादा तारी मुखमुद्राने, अमीय नजरे निहाळी रह्यो, तारा नयनोमांथी झरतुं, दिव्य तेज हुं झीली रह्यो, क्षणभर आ संसारनी माया, तारी भक्तिमां भूली गयो, तुज मूर्तिमा मस्त बनीने, आत्मिक आनंद माणी रह्यो.
३, छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी, श्री वीरजिणंदनी,
भक्तोने छे सर्वदा सुखकारी , जाणे खीली चांदनी, आ प्रतिमाना गुणभाव धरीने, जे माणसो गाय छे, पामी सघळा सुख ते जगतना, मुक्ति भणी जाय छे.
४, . हे देव ! तारा दीलमां, वात्सल्यना झरणा भर्या,
हे नाथ ! तारा नयनमां, करुणा तणा अमृत भर्या, वीतराग ! तारी मीठी मीठी वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज तारा चरणमां, बालक बनी आवी चडया.
५, प्रभु आज तारा बिंबने जोता, नयण सफलां थया,
पापो बधा दूरे गयां, तेम भाव निर्मळ नीपज्या, संसार रूप समुद्रभासे, चूलुक सरखो निश्चये, आनंद रंग तरंग उछळे, पद कमलना आश्रये.
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याचक थईने हुं मागुं छु, हे वीतरागी ! तारी कने, महाविदेह क्षेत्रमा जावू मारे, श्री सीमंधर स्वामी कने, आठ वरसनी वयमां मारे, संयम लेवें स्वामी कने, घाती-अघाती कर्मो खपावी, आवी पहोंचु तारी कने.
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७, क्यारे प्रभु ! निज द्वार ऊभा बाळने निहाळशो?
नितनित मागे भीख गुणनी, एक गुण क्यारे आपशो? श्रद्धा-दिपकनी ज्योत झांखी, ज्वलंत क्यारे बनावशो ? सूना सूना अम जीवन गृहमां, आप क्यारे पधारशो?
८,
क्यारे प्रभु ! तुज स्मरणथी, आंखो थकी आंसु सरे? क्यारे प्रभु ! तुज नाम वदतां वाणी मुज गद् गद् बने ? क्यारे प्रभु ! तुज नाम श्रवणे, देह रोमांचित बने ? क्यारे प्रभु ! मुज श्वासे श्वासे, नाम तारुं सांभरे ?
९, दर्शनं देवदेवस्य, दर्शन पापनाशम् ।
दर्शन स्वर्गसोपानं, दर्शन मोक्षसाधनम् ।।
१०, तुभ्यं नमस्त्रिभुवनातिहराय नाथ ।
तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय ।। तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय । तुभ्यं नमो जिन भवोदधिशोषणाय ॥
११, यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं
निर्मापित त्रिभुवनैकललामभूत ! तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां, यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति ॥
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नेत्रानन्दकरी, भवोदधितरी, श्रेयस्तरोर्मञ्जरी, श्रीमद्धर्म महानरेन्द्रनगरी, व्यापल्लता घूमरी, हर्षोत्कर्ष शुभप्रभावलहरी, रागद्विषां जित्वरी, मूर्ति : श्री जिनपुंगवस्य भवतु, श्रेयस्करी देहिनाम् ।
१३, अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्व सिद्धिस्थिताः
आचार्या जिन शासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः श्री सिद्धान्तसु पाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधकाः, पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलम्॥
अरिहंत ! तुज सौन्दर्य लीला...
जाणे करे छे नृत्य फरफरतां सरस पर्णो अहीं जाणे करे छे गान रणझणतां भ्रमर-वृन्दो अहीं आपे अशोकतलं जगतने प्रेमभीनो आशरो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ ऊंचा गगनना गोखथी आ पुष्प रिमझिम वरसतां ! फे लावतां वातावरणमां स्निग्ध सुंदर सरसता ! रेलावतां सुरभिभर्या रंगोभरेलां सरवरो ! · अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमा अवतरो !
★ आवो पधारो परमपद पामो महाशय मानवो ! ने त्यां तमे शास्वत समय शाश्वत सुखोने अनुभवो ! जाणे कहे छे आम आ दिव्यध्वनिना सुस्वरो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमा अवतरो !
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★ खेले अहो ! आ हंस जाणे मुखकमल पासे अहीं ! मुखकांति लेवा चांदसूरज सेवता पासे रही ! इन्द्रो स्वयं ढाळी रह्या आ श्वेत उज्जवल चामरो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ त्रैलोक्य महासाम्राज्यना स्वामी हवे छो प्रभु ! तमे देवो कहे : आ सूचववा सिंहासनम् निम्युं अमे सिंहासने बेसो प्रभु ! आ सृष्टिनुं मंगल करो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ आ दिव्यभामंडल अहो ! सूर्यप्रभा मंडल समुं भीतर-बहार बधे ज अजवाळां अजब फेलावतुं सौना हृदयमां आ वहावे हर्षनो अमृतझरो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ जे दिव्य दुंदुभिनाद देवोए कर्यो ते सांभळी, सौए विचार्य, शुं अषाढी गरजती आ वादळी शुं खळभळ्या आजे अचानक सामटा सौ. सागरो अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ रत्नो थकी झळहळ अने झगमग सुवर्ण रजत थकी आ उत्तरोत्तर पुण्यवृद्धि सूचवता त्रण छत्रथी त्रण लोकने प्रभु ! आप आपो छो मजानो छांयडो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ दूरे गया सौ दोष, केवलज्ञान तुज हृदये रमे नरनाथ ने सुरनाथ सौ तुज चरणमां प्रेमे नमे झरणुं वहे तुज वाणीनुं ने पाप संतापो शमे ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो !
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एवो प्रभु अरिहंतने पंचाग....
(च्यवन कल्याणक)
जे चौद महास्वप्नो थकी, निजमातने हरखावता, वळी गर्भमांही ज्ञानत्रयने, गोपवी अवधारता, ने जन्मता पहेलां ज चोसठ इन्द्र जेने वंदता, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचाग भावे हुं नमुं. (१)
(जन्म कल्याणक)
महायोगना साम्राज्यमां जे, गर्भमां उल्लासता,
ने जम्नतां त्रण लोकमां महासूर्य सम प्रकाशता,
जे जन्मकल्याणक वडे सहु जीवने सुख अर्पता, ओवा (२)
(जन्मोत्सव)
छप्पन दिक्कुमरी तणी, सेवा सुभावे पामता,
देवेन्द्र करसंपुट महीं, धारी जगत हरखावता, मेरुशिखर सिंहासने जे नाथ, जगना शोभता, एवा (३)
'कुसुमांजलिथी सुरअसुर, जे भव्य जिनने पूजता, क्षीरोदधिना न्हवणजलथी, देव जेने सिंचता, वळी देवदुंदुभि नाद गजवी, देवताओ रीझता, एवा (४)
मघमघ थता गोशीर्ष चंदनथी विलेपन पामता, देवेन्द्र दैवी पुष्पनी माळा गळे आरोपता, कुंडल कडां मणिमय चमकतां हार मुकुटे शोभता, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचाग भावे हुं नमुं. (५)
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ने श्रेष्ठवेणु मोरली, वीणा मृदंग तणां ध्वनि, वाजिंत्र ताले नृत्य करती, किन्नरीओ स्वर्गनी, . हर्षे भरी देवांगनाओ नमन करती लळी लळी, एवा (६)
जयनाद करता देवताओ, हर्षना अतिरेकमां, पधरामणी करता जनेताना महाप्रसादमां, जे इन्द्रपूरित वरसुधाने, चूसता अंगुष्ठमां, एवा (७)
-
(अतिशयवंत) आहारने निहार जेना, छे अगोचर चक्षुथी, प्रस्वेद व्याधि मेल जेना अंगने स्पर्शे नहि, स्वर्धेनु दुग्ध समा रुधिर ने मांस जेना तन महीं, एवा (८)
मंदार पारिजात सौरभ, श्वास ने उच्छवासमां, ने छत्र चामर जयपताका स्तंभ जव करपादमां, पूरा सहस्र विशेष अष्टक, लक्षणो ज्यां शोभता, एवा (९)
देवांगनाओ पांच आज्ञा, इन्द्रनी सन्मानती, पांचे बनी धात्री दिले, कृतकृत्यता अनुभवाती, वळी बालक्रिडा देवगणना, कुंवरो संगे थती, एवा (१०)
जे बाल्य-वयमां प्रोढज्ञाने, मुग्ध करता लोकने, सोळे कळा विज्ञान केरा, सारने अवधारीने, त्रण लोकमां विस्मयसमा गुणरूप यौवनयुक्त जे, एवा (११)
४
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मैथुन परिषहथी रहित जे, नंदता निजभावमां, ने भोगकर्म निवारवा विवाह कंकण धारता, ने ब्रह्मचर्य तणो जगाव्यो, नाद जेणे विश्वमां, एवा (१२)
(राज्यावस्था) . मूर्छा नथी पाम्या मनुजना, पांच भेदे भोगमां, उत्कृष्ट जेनी राज्यनीतिथी प्रजा सुखचेनमां, वळी शुद्ध अध्यवसायथी, जे लीन छ निजभावमां, एवा (१३)
पाम्या स्वयंसंबुद्ध पद जे, सहज वर विरागवंत,
ने देवलोकांतिक घणी, भक्ति थकी करता नमन, . जेने नमी कृतार्थ बनता चार गतिना जीवगण, एवा (१४)
आवो पधारो इष्टवस्तु, पामवा नरनारीओ, ए धोषणाथी अर्पता सांवत्सरिक महादानने, ने छेदता दारिद्रय सहुनु, दानना महाकल्पथी, एवा (१५)
दीक्षा तणो अभिषेक जेनो, योजता इन्द्रो मळी, शिबिका स्वरूप विमानमां, बिराजता भगवंतश्री,
अशोक पुनाग तिलक चंपा वृक्ष शोभित वनमहीं, .. एवा प्रभु अरिहंतने पंचाग भावे हुं नमुं (१६)
श्री वज्रधर इन्द्रे रचेला, भव्य आसन उपरे, बेसी अलंकारो त्यजे, दीक्षा समय भगवंत जे, जे पंचमुष्टि लोच करता, केश विभु निज कर वडे, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग भावे हुं नमुं. (१७)
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(दीक्षा कल्याणक)
लोकाग्रगत भगवंत सर्वे, सिद्धने वंदन करे,
सावद्य सघळा पाप योगोनां करे पच्चक्खाणने, जे ज्ञान - दर्शनने महाचारित्र रत्नत्रयी ग्रहे, एवा (१८)
निर्मलविपुलमति मनः पर्यव - ज्ञाने सहेजे दीपता, ने पंचसमिति गुप्तित्रयनी रयणमाळा धारता, दश भदथी जे श्रमण सुंदर धर्मनुं पालन करे, एवा (१९)
पुष्कर कमलना पत्रनी, भ्रांति नहि लेपाय जे, ने जीवनी माफक अप्रतिहत, वरगतिए विचरे, आकाशनी जेम निरालंबन गुण तकी जे ओपता, एवा (२०)
अस्खलित वायु समूहनी जेन जे निर्बंध छे, संगोपितांगोपांग जेना, गुप्त इन्द्रिय देह छे,
निस्संगता य विहंगशी, जेनो अमुलख गुण छे, एवा (२१)
खड्गीतणा वरशृंग जेवा, भावथी एकाकी जे, भारंडपंखी सारीखा गुणवान ने अप्रमत्त छे, व्रतभार वहेता वरवृषभनी, जेम जेह समर्थ छे, एवा (२२)
कुंजरसमा शूरवीर जे छे, सिंहसम निर्भय वळी, गंभीरता सागर समी, जेना हृदयने छे वरी, जेना स्वभावे सौम्यता छे, पूर्णिमाना चंद्रनी, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचाग भावे हुं नमुं. (२३)
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आकाश भूषण सूर्य जेवा, दीपता तपतेजथी, . वळी पूरता दिगंतने, करुणा उपेक्षा मैत्रीथी, हरखावता जे विश्वने, मुदिता तणा संदेशथी, एवा (२४) ।
जे शरद ऋतुना जळसमा निर्मळ मनोभावो वडे, उपकार काज विहार करता, जे विभिन्न स्थळो विषे, जेनी सहनशक्ति समीपे, पृथ्वी पण झांखी पडे, एवा (२५)
बहुपुण्यनो ज्यां उदय छे एवा भविकना द्वारने, पावन करे भगवंत निज तप, छठ अठ्ठम पारणे, स्वीकारता आहार बेंतालीस दोष विहीन जे, एवा (२६)
उपवास मासक्षमण समा, तप आकरा तपता विभु, वीरासनादि आसने, स्थिरता धरे जगना प्रभु, बावीस परिषहने सहता खुब जे अद्भुत विभु, एवा (२७)
ने बाह्य अभ्यंतर बधा, परिग्रह थकी जे मुक्त छे, प्रतिमा वहन वळी शुक्लध्याने, जे सदाय निमग्न छे, जे क्षपकश्रेणी प्राप्त करता मोहमल्ल विदारीने, एवा (२८)
(केवणज्ञान कल्याणक) जे पूर्ण केवलज्ञान, लोकालोकने अजवाळतुं, जेना महासामर्थ्य केरो, पार को नव पामतुं, ए प्राप्त जेणे चारघाती कर्मने छेदी कयुं, एवा (२९)
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जे रजत सोना ने अनुपम, रत्नना त्रण गढमहीं, सुवर्णना नवपद्ममां पदकमलने स्थापन करी, चारे दिशा मुख चार चार, सिंहसने जे शोभता, एवा (३०)
ज्यां छत्र सुंदर उज्जवळा, शोभी रह्या शिर उपरे, ने देवदेवी रत्न चामर वींझता करद्वय वडे, द्वादश गुणा वर देववृक्ष, अशोकथी य पूजाय छे, एवा (३१)
-
महासूर्य सम तेजस्वी शोभे, धर्मचक्र समीपमां, भामंडले प्रभुपीठथी, आभा प्रसारी दिगंतमां, चोमेर जानु प्रमाण पुष्पो, अर्ध्य जिनने अर्पता, एवा (३२)
ज्या देवदुंदुभि घोष गजवे, घोषणा त्रणलोकमां, त्रिभुवन तणा स्वामी तणी, सौए सुणो शुभदेशना, प्रतिबोध करता देव, मानव ने वळी तिर्यंचने, एवा (३३)
. .
ज्यां भव्य जीवनो अविकसित खीलतां प्रज्ञाकमळ, भगवंतवाणी दिव्यस्पर्श, दूर थतां मिथ्यां वमळ, ने देव दानव भव्य मानव, झंखता जेनुं शरण, एवा (३४)
जे बीजभूत गणाय छे, त्रण पद चतुर्दश पूर्वना, उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा महातत्त्वना, ए दान सुश्रुतज्ञान देनार त्रण जगनाथ जे, एवा (३५)
जे चौदपूर्वोनां रचे छे, सूत्रसुंदर सार्थ जे, ते शिष्यगणने स्थापता, गणधर पदे जगनाथ जे, खोले खजानो गूढ मानव जातना हित कारणे, एवा (३६)
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(भाव अरिहंत) जे धर्म तीर्थंकर चतुर्विध संध संस्थापन करे, महातीर्थ सम ए संघने, सुर असुर वंदन करे, ने सर्व जीवो, भूत, प्राणी, सत्त्वशुं करुणा धरे, एवा (३७)
जेने नमे छे इन्द्र, वासुदेव ने बलभद्र सहु, जेना चरणने चक्रवर्ती, पूजतां भावे बहु, जेणे अनुत्तर विमानवासी देवना संशय हण्या, एवा (३८)
जे छे प्रकाशक सह पदार्थो, जड तथा चैतन्यना, वरशुक्ल लेश्या तेरमे, गुणस्थानके परमातमा, जे अंत आयुकर्मनो, करता परम उपकारथी, एवा (३९)
लोकाग्रभागे पहोंचवाने, योग्यक्षेत्री जे बने, ... ने सिद्धनां सुख अर्पती अंतिम तपस्या जे करे,
जे चौदमा गुणस्थानके, स्थिर प्राप्त शैलेशीकरण, एवा (४०)
हर्षे भरेला देवनिर्मित, अंतिमे समवसरणे, जे शोभता अरिहंत परमात्मा जगतघर आंगणे, जे नामना संस्मरणथी, विखराय वादळ दुःखनां, एवा (४१)
जे कर्मनो संयोग वळगेलो अनादि काळथी तेथी थया जे मुक्त पूरण, सर्वथा सद्भावथी, रममाण जे निजरुपमां ने सर्वजगर्नु हित करे, एवा (४२)
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जे नाथ औदारिक वळी, तैजस तथा कार्मण तनु, ए सर्वने छोडी अहीं, पाम्या परमपद शाश्वतु, जे रागद्वेष जळे भर्या, संसार सागरने तर्या, एवा (४३)
(निर्वाण कल्याणक) शैलेशी करणे भाग त्रीजे, शरीरना ओछा करी, प्रदेश जीवना घन करी, वळी पूर्वध्यान प्रयोगथी, धनुष्यथी छूटेल बाण तणी परे शिवगति लही, एवा (४४)
निर्विघ्न स्थिरने अचल, अक्षय, सिद्धिगति ए नामर्नु, छे स्थान अव्याबाध ज्यांथी नहि पुनः फरवापर्यु, ए स्थानने पाम्या अनंता, ने वळी जे पामशे, एवा (४५)
आ स्तोत्रने प्राकृतगिरामां वर्णव्युं भक्तिबळे, . अज्ञातने प्राचीन महामना, को मुनीश्वर बहुश्रुते, पदपद महीं जेना महासामार्थ्यनो महिमा मळे, एवा (४६)
जे नमस्कार स्वाध्यायमां, प्रेक्षी हृदय गद्गद बन्युं, श्री चंद्र नाच्यो ग्रंथ लई, महाभागनुं शरणुं मण्यु, कीधी करावी अल्पभक्ति, होंशनुं तरणुं फळ्युं, एवा (४७)
जेना गुणोना सिंधुना, बे बिंदु पण जाणुं नहि, पण एक श्रद्धा दिलमहि के नाथ सम को छे नहि, जेना सहारे क्रोड तरीया मुक्ति मुज निश्चय सहि. एवा (४८)
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जे नाथ छे त्रण भुवनना करुणा जगे जेनी वहे, जेना प्रभावे विश्वमां सद्भावनानी सरणी वहे, आपे वचन श्रीचंद्र जगने, ए ज निश्चय तारशे, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग भावे हुं नमुं. (४९)
रत्नाकर पच्चीशी
मंदिर छो मुक्तितणा मांगल्यक्रीडाना प्रभु, ने इन्द्र नर ने देवता, सेवा करे तारी विभु, सर्वज्ञ छो स्वामी वळी, शिरदार अतिशय सर्वना, घणुं जीव तुं, घणुं जीवतुं, भंडार ज्ञान कळा तणा (१)
त्रण जगतना आधार ने, अवतार हे करुणातणा, वळी वैद्य हे दुर्वार आ संसारनां दुःखो तणा, वीतराग वल्लभ विश्वना तुज पास अरजी उच्चरुं, जाणो छतां पण कही अने, आ हृदय हुं खाली करूं (२)
शुं बाळकोमा बाप पासे बाळक्रीडा नव करे ने मुखमांथी जेम आवे, तेम शुं नव उच्चरे तेमज तमारी पास तारक, आज भोळा भावथी, . जेवुं बन्युं तेवुं कहुं तेमां कशुं खोटं नथी (३)
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में दान तो दीधुं नहिने, शीयळ पण पाळ्युं नहि, तपथी दमी काया नहि,· शुभभाव पण भाव्यो नहि, ए चार भेदे धर्ममांथी कांइ पण प्रभु ! नव कर्यु, मारुं भ्रमण भवसागरे निष्फळ गयुं, निष्फळ गयुं. (४)
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हुँ क्रोध अग्निथी बळ्यो, वळी लोभ सर्प डस्यो मने, गळ्यो मानरूपी अजगरे, हुं केम करी ध्यावं तने ? मन मारुं मायाजाळमां, मोहन ! महा मुंझाय छे, चडी चार चोरो हाथमां, चेतन घणो चगदाय छे. (५)
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में परभवे के आ भवे पण हित कांइ कर्यु नहि, तेथी करी संसारमा सुख, अल्प पण पाम्यो नहि, जन्मो अमारा जिनजी! भव पूर्ण करवाने थया, आवेल बाजी हाथमां अज्ञानथी हारी. गया. (६),
अमृत झरे तुज मुखरूपी, चंद्रथी तो पण प्रभु, .. भीजाय नहि मुज मन अरेरे ! शुं करुं हुं तो विभु, पथ्थर थकी पण कठण माझं मन खरे क्यांथी द्रवे, मरकट समा आ मन थकी, हुं तो प्रभु हार्यो हवे. (७)
भमतां महा भवसागरे पाम्यो पसाये आपना, जे ज्ञान दर्शन चरणरूपी रत्नत्रय दुष्कर घणां, ते पण गया प्रमादना वशथी प्रभु कहुं छु खरु, कोनी कने किरतार आ पोकार हुं जइने करूं (८)
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ठगवा विभु आ विश्वने, वैराग्यना रंगो घर्या, ने धर्मना उपदेश रंजन, लोकने करवा कर्या, विद्या भण्यो हुं वाद माटे केटली कथनी कहुं ? साधु थइने बहारथी दांभिक अंदरथी रहुं. (९)
પક
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में मुखने मेलुं कयु, दोषो पराया गाइने, ने नेत्रने निंदित कर्या परनारीमां लपटाइने, वळी चित्तने दोषित कर्यु चिंती नठारं परतणुं, हे नाथ ! मारुं शुं थशे, चालाक थइ चूक्यो घणुं. (१०)
करे काळजाने कतल पीडा कामनी बिहामणी, ए विषयमां बनी अंध हुँ, विडंबना पाम्यो घणी, ते पण प्रकाश्युं आज लावी, लाज आप तंणी कने, जाणो सहु तेथी कहुं, कर माफ मारा वांकने (११)
नवकार मंत्र विनाश कीधो, अन्य मंत्रो जाणीने, कुशास्त्रनां वाक्यो वडे, हणी आगमोनी वाणीने, कुदेवनी संगत थकी कर्मो नकामा आचर्या, मतिभ्रमथकी रत्नो गुमावी काच कटका में ग्रहा. (१२)
आवेल दृष्टिमार्गमां मूकी महावीर आपने, में मूढधीए हृदयमां ध्याया मदनना चापने, नेत्रबाणो ने पयोधर, नाभि ने सुंदर कटी, शणगार सुंदरीओ तणा, छटकेल थइ जोया अति. (१३)
मृगनयनी सम नारीतणां मुखचंद्र नीरखवा वली, मुज मन विषे जे रंग लाग्यो, अल्प पण गाढो अति, ते श्रुतरूप समुद्रमां, धोया छतां जातो नथी, तेनुं कहो कारण तमे बचु कम हुं आ पापथी. (१४)
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सुंदर नथी आ शरीर के समुदाय गुण तणो नथी, उत्तम विलास कला तणो देदीप्यमान प्रभा नथी, प्रभुता नथी तो पण प्रभु अभिमानथी अक्कड फरुं, चोपाट चार गति तणी, संसारमा खेल्या करूं. (१५)
आयुष्य घटतुं जाय तो पण पापबुद्धि नव घटे, आशा जीवननी जाय पण, विषयाभिलाषा नव मटे, औषध विषे करुं यत्न पण, हुं धर्मने तो नव गणुं, बनी मोहमां मस्तान हुं, पाया विनानां घर चगुं. (१६)
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आत्मा नथी परभव नथी, वळी पुण्य पाप कशुं नथी, मिथ्यात्वीनी कटु वाणी में, धरी कान पीधी स्वादथी, रवि सम हता ज्ञाने करी, प्रभु आपश्री तो पण अरे! दीवो लइ कूवे पड्यो, धिक्कार छे मुजने खरे. (१७)
में चित्तथी नहिं देवनी, के पात्रनी पूजा चही, ने श्रावको के साधुओनो धर्म पण पाळ्यो नही, पाम्यो प्रभु नरभव छतां रणमा रड्या जेवू थयुं, धोबी तणा कुत्ता समुं, मम जीवन सहु एळे गयु. (१८)
- हुंकामधेनुं कल्पतरूं, चिंतामणिना प्यारमां,
खोटा छतां झंख्यो घणुं, बनी लुब्ध आ संसारमां, जे प्रगट सुख देनार तारो, धर्म ते सेव्यो नहि, . मुज मुर्ख भावोने निहाळी नथा, कर करुणा कंइ. (१९)
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में भोग सारा चिंतव्या, ते रोग सम चिंत्या नहि,
आगमन इच्छयुं घनतj, पण मृत्युने प्रीछ्युं नहि, नहीं चिंतव्युं में नरक कारागृह समी छे नारीओ, मधुबिंदुनी आशा महीं भयमात्र हुँ भूली गयो. (२०)
हुं शुद्ध आचारो वडे साधु हृदयमां नव रह्यो, करी काम पर उपकारनां, यश पण उपार्जन नव कर्यो,
वळी तीर्थना उद्धार आदि कोइ कार्यो नव कर्या, . फोगट अरे आ लक्ष चोराशी तणा फेरा फर्या. (२१)
गुरुवाणीमां वैराग्य केरो, रंग लाग्यो नहि अने, दुर्जनतणा वाक्यो महीं शांति मळे क्यांथी मने ? तरूं केम हुं संसार आ अध्यात्म तो छ नहि जरी, तूटेल तळियानो घडो, जळथी भराये केम करी? (२२)
में परभवे नथी पुण्य कीg, ने नथी करतो हजी, तो आवता भवमां, कहो क्याथी थशे हे नाथजी भूत भावि ने सांप्रत त्रणे भव नाथ हुं हारी गयो, स्वामी त्रिशंकु जेम हुँ, आकाशमां लटकी रह्यो. (२३)
अथवा नकामुं आप पासे, नाथ ! शुंबकवू घj, हे देवताना पूज्य ! आ चारित्र मुज पोता तणुं, जाणो स्वरूप त्रण लोकनुं, तो माहरु शुं मात्र आ, ज्यां क्रोडनो हिसाब नहीं त्यां पाइनी तो वात क्यां (२४) .
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(राग-स्नातस्या...) ताराथी न समर्थ अन्य दीननो, उद्धारनारो प्रभु, माराथी नहि अन्य पात्र जगमां, जोतां जडे हे विभु, मुक्ति मंगळ स्थान तोय मुजने इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यग्रन श्याम जीवने, तो तृप्ति थाये घणी. (२५).
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मंवेदना पच्चीशी (राग-मंदिर के मुक्तितणा)
हुं मोहमदिरामा डुबी, भूली स्वरूप निज आत्मानु, भवभ्रमणमां बस काम कीधुं पारकी पंचातर्नु, चोरासीना चौटे कर्या, में नट बनी नाटक घणा, कहुं बाळभावे प्रभु तने, मुज आत्मानी संवेदना. (१)
भव सागरे भमता कदी, तुम नाम श्रवणे ना पड्यु, आजे अनंता काळथी, दर्शन तमारू सांपड्यु, तारा विरहने विस्मरणथी भोगवी में आपदा, रहेजे स्मरणमां तुं सदा, जेथी लहुं शिवसंपदा. (२)
संसारथी सिद्धि सुधीना पंथनो तुंसारथि, मुज कर्मवनने बाळनारो, एक छे तुं महारथि, भवचक्रने तुं भेदतो, तारी कृपाना चक्रथी, छे केवी मुज विडंबना, हजु ओळख्यो तुजने नथी. (३)
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निगोदना कारागृहेथी नीसर्यो तारी कृपा, व्यवहारराशि, त्रसपणुं, पाम्यो प्रभु तारी कृपा, शुभ मनुजभव ने जैनकुळ, लाध्यो प्रभु तारी कृपा, जो मोक्ष पण आपो तमे, तो मानुं खरी तारी कृपा. (४)
चोरासीना चक्करमहीं भमता अनादिकाळथी, तन धन स्वजन विषयो कषायोनुं कर्तुं पोषण अति, मानव जनम, श्रध्धा, श्रवण पाम्यो अति दुर्लभ छतां, क्यारे करीश भवचक्रमां, हुं मुक्तिनी पुरुषार्थता. (५)
पुद्गल परावर्तो अनंता में कीधा संसारमा, भटक्यो अनंती वार वळी योनि चोरासी लाखमां, पाम्यो महापुण्योदये शासन तमारुं आ भवे, पामी तने आ भववने, भमवुं नथी मारे हवे. (६)
पाम्यो तने परख्यो नहिं, जाण्यो तने माण्यो नहि, होठे सदा तुज वात पण, हैये कदी आण्यो नहि, शिवनगरनी करूं झंखना, शिवमार्गथी डरतो सदा,
समं सामर्थ्य प्रभु, जेथी हरुं कर्मों बधा (७).
हे नाथ ! भारेकर्मी छं ? अथवा नथी मुज पात्रता, जिम बळद घाणीनो भमे, तिम हुं भमुं समजु छतां, जिम भुंडे म्हाले विष्ठामां, तिम हुं खुच्यो धुं विषयमां, क्यारे प्रभु, मुजने थशे ? वैराग्य आ संसारमां (८)
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नश्वर छतां संसारना, सुखो मने ललचावता. शाश्वत सुखोनी साधनाना स्वप्न पण कंपावता, फरी ना मळे संयोग काळ अनंतमां जाणुं छतां, हुं मस्त छु संसारमां, मुज केवी छे मोहांधता. (९)
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हुं साधनोमां मस्त बनीने साधना भूली गयो, बनवा अजन्मा जनम जे ते पण प्रमादे हारीयो, क्यारे थशे ! निस्तार जन्म-मरण थकी विभु माहरो ? कोने कहुं ने क्या ज़रूं? नथी अन्य माहरो आशरो (१०)
हुं पाप रसीयो तीव्र भावे पाप करता ना डरूं, ने आपनी आज्ञा प्रमाणे धर्म करता थरथरूं, थाशे शुं मारूं? जइश क्या हुं ? कर्म नवि छोडे कदा, एक ज सहारो ताहरो, तुं आपजे शरणुं सदा. (१५)
भोगोमही में वेडफ्यो मानव जनम अति दोहिलो, ना साधना करी मनथकी, शिवराज जेथी सोहिलो, तुज आण हैये ना घरी, करी मोहराजनी चाकरी, थाक्यो प्रभु माहरो हवे, उद्धार कर करूणा करी. (१२)
हुं ओरडो अवगुण तणो, भंडार चार कषायनो, वळी पंच इन्द्रिय विषय केरी वासना लंपट घणो, नथी पुण्य पण उद्यम करूं, भोगोतणी भूख भांगवा, दुर्बुद्धि मारी दूर करवा, आप तुं मुजने दवा (१३)
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में नरक-निगोदे सह्यां, दुःखो घणा समजण विना, समजण मळी मुजने हवे, सिद्धि नथी शुद्धि विना, पण शुद्धिकर बावीस परिषह लागे अतिशय आकरा, सुखथी डरूं, दुःखने वरूं, दे सन्मति मुजने जरा. (१४)
नाह!
तुं सर्वशक्तिमान तो, मुज कर्म शें कापे नहिं ? तुं सर्वइच्छापूरणो, तो मोक्ष शें आपे नहिं ?. भले मुक्ति हमणा ना दियो, पण एक इच्छा पूरजो, भववन दहन दावानलो, सम्यक्त्व मुजने आपजो (१५)
क्यारे प्रभु ! सम्यक्त्वनी ज्योति हृदयमां थिर थशे? क्यारे प्रभु ! वैराग्यवासित माहरी हर पळ थशे ? क्यारे प्रभु ! सुविशुद्ध भावे सर्वविरति स्पर्शशे ? क्यारे प्रभु! संसारमां, पण मुक्तिनी झांखी थशे ? (१६)
विषयोतणा वळगाडने क्यारे प्रभु छोडीश हुं ? जिनआगमे, जिनबिंबमां मुज मन कदा जोडीश हुं ? अणगारना वस्त्रो सजी कर्मो कदा तोडीश हुँ? मुक्तिनगरना मार्ग पर क्यारे प्रभु दोडीश हुँ ? (१७)
भवितव्यता, कर्मो, स्वभावने काळ हो विपरीत भले ने मुक्ति माटे माहरो, पुरुषार्थ हो नबळो भले तुज भक्तिए अनुकूळ थाये, ए बधा तुज दास छे तुं मुख्य हेतु मोक्षनो, मुजने सबल विश्वास छे. (१८)
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में प्रीत पुद्गलथी करी, तेथी भम्यो संसारमां, जो प्रीत तुज संगे करूं, तो मुक्ति पण पलवारमां तारो अचित्यप्रभाव जाणी प्रीत करतो हुं तने, जो कर्मवश भूलुं तने, तो पण समरजे तुं मने. (१९)
प्रियतम तमे मारा प्रभु निशदिन तमोने झंखतो, तारा विरहनी वेदनामां रात - दिन हुं झुरतो,
तारा मिलननी प्यासमां निजदेहने पण भूलतो, छे आशा के मळशो तमे, तेथी तने नित समरतो. (२०)
प्रियतम स्वीकार्या में तने, प्रीति अनादिकाळनी, तरछोडी किम चाल्या तमे, निष्ठुर ने निर्दय बनी, भमता अनादिकाळमां शोध्यो तने आ भववने, थाक्यो हवे बोलावजे, जल्दी मने तारी कने. (२१)
तारुं स्मरण, तारुं रटण, तारा सुपन जोया करूं, तारुं श्रवण, तारुं मनन, तारु ज ध्यान कर्याकरूं, क्यारे तरीश आ भवथकी, चिंता नथी मुजने जरा, सुक्या बधा भवसागरो, तारा प्रभावे माहरा (२२)
शरणुं हुं वरूं,
अरिहंत - सिद्ध – सुसाधु ने, भवोभवतणा सवि पापनुं मिच्छामि दुक्कडम् हुं करूं,
सवि जीवकृत सत्कृत्यनी करूं शुभ मने अनुमोदना,
"सवि जीव करूं शासनरसी" नी, भावुं नित शुभ भावना. (२३)
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वैराग्य भवनो हो सदा, नित मोक्षनी हो झंखना,
निज आत्ममां नित थिर रहुं, आवे भले सुख दुःख घणा, मुज सप्तधातुमां हो अविहड राग जिनशासन तणो, मां सदा मळजो मने, संगाथ आ जिनधर्मनो. (२४)
नाथ अंतरथी कहुं, मुज विनती स्वीकारजे मुज जीवन संध्यानी क्षणे, मारा ह्यदयमां आवजे, वळी आवता भवमां प्रभु जिनधर्म हैये थापजे, मुक्ति सुधी मुज आत्मगुण रश्मिनुं हीर वधारजे (२५)
हे नाथ निर्मळता तणुं वरदान....
आ जगतना कैं भूपना पण रूप ज्यां पाछा पडे, देवो तणा अधिराजना तनुतेज ज्यां झांखा पडे, रूपयुक्त रागे मुक्त प्रभुवर ! एक विनती सांभळो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (१)
सौंदर्यने प्रसरांवता परमाणुओ छे आ जगे, जाणे जगतमां तेटला प्रभुदेशमां जे झगमगे, प्रभु ! आप सम को रूप नहीं मुज रूपरतिने टाळजो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (२)
तीर्थो तणी पर्वो तणी लज्जा प्रभु में धरी नथी, शुभयोगने स्पशर्या छतां शुभताने मनमां भरी नथी, केवळक्रियाओं करी रह्यो हवे तेहनुं फळ आपजो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (३)
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तवदर्श केरुं स्पर्श केरुं निमित्त लई अतिनिर्मळु, नथी छूटती आ पापग्रंथि केम करी पाछो वळं ? आ जीव केरी अवदशाने कृपाळु देव ! निवारजो, हे नाथ ! निर्मळता तणु वरदान मुजने आपजो. (४)
उपसर्ग करनारा जीवोने पण क्षमा प्रभु ! दई दीधी, आसक्तने वैराग्य केरी स्पर्शना प्रभु ! दई दीधी, स्तवना करीने याचता आ बाळनुं मन राखजो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (५)
भले रूपने महाभाग्य आप तनुं अवरने आपजो, विश्वातिशायी प्रभाव जे ते पण अवरने आपजो, करजोडी करगरता गरीबने पण कंईक प्रभु ! आपजो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (६)
जो मोहपीडा उपशमे प्रभु ! आप त्यारे पधारशो, उपकारफळ दीसे नहीं करुणा किमर्थ वहावशो, कल्याण केरो काळ जाणी नाथ ! हाथ पसारजो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (७)
मनना मलिन विचारनो कोइ अंत देखातो नथी, काया तणी शुभकरणीनो कोइ अर्थ लेखातो नथी, हवे एक औषध आप तारक प्राथना अवधारजो, हे नाथ ! निर्मलता तणुं वरदान मुजने आपजो. (८)
तव नयनमांथी निखरता निर्मळ किरण झील्या करूं, ने निर्विकारदशा तणो हरपळ प्रभु अनुभव करूं, मुजने करावी शुद्धिनुं महास्नान पछी शणगारजो, हे नाथ ! निर्मळता तणुं वरदान मुजने आपजो. (९)
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चारित्र्यमां मुज मन वसो ... |
★ चारित्र जो ना होय तो सुज्ञान पण निष्फळ रहे ! चारित्र जो ना होय तो सद्दर्शनम् निर्बळ रहे ! सुज्ञान दर्शन पण सदा चारित्रयुक्त सफळ रहे ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! १ ★ चूमे निरंतर देवता चारित्रधरना चरणने ! झंखे निरंतर इन्द्र पण चारित्रना आचरणने ! चाहे निरंतर चित्त मुज चारित्रधरना शरणने ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! २ ★ षखंड महासाम्राज्यमां पण जे महादुःख देखता ! ते चक्रवर्तीओ सदा चारित्रमा सुख देखता ! सिंहासने बेसे छतां चारित्र सन्मुख देखता ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! ३ ★ विश्वे अनंता काळथी चारित्रनो छे पथंडो ! आ पंथ पर चाल्या अनंता जिनवरो ने गणधरो ! आत्मा अनंता शिव वर्या चारित्रनो लई आशरो ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! ४ ★ समता-वरसती साधना, करुणा-छलकती दृष्टि छे ! चारित्रधरनी चोतरफ आनंदनी अमी वृष्टि छे ! संयम अने संतोषमय चारित्रधरनी सृष्टि छे ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! ५ ★ भिक्षुक जुओ एक ज दिवस चारित्र पाळीने थयो ! सम्राट संप्रति-शास्त्रमा जे धर्म उद्धारक कह्यो ! चारित्र जेने सांपड्यु, आखो जनम उत्सव भयो ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो! ६
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★ चारित्र स्वीकार्या पछी चारित्रपालनथी लहे ! अहमिन्द्र करतां पण अधिक सुख - एम तीर्थंकर कहे ! चारित्रमां आनंदना अनुपम अमृतझरणां वहे ! चारित्रमां मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमां वसो ! ★ चारित्रधरना जीवनमां अगवड नथी आफत नथी ! चारित्र धरना जीवनमां नथी चाह के चाहत नथी ! चारित्र जेवी जगतमां कोइ शहनशाहत नथी ! चारित्रमां मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमां वसो !
बाळक बने चारित्रधर तो तेय सुरवंदित बने ! देवो अने देवेन्द्र तेने वंदी आनंदित बने ! चारित्रधर्म स्वीकारवा मारुं हृदय स्पंदित बने ! चारित्रमां मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमां वसो ! ९
आ पापमय संसार छोडी ....
डले अने पगले सतत हिंसा मने करवी पडे, ते धन्य छे जेने अहिंसापूर्ण जीवन सांपडे, क्यारे थशे करुणाझरणथी आर्द्र मारुं आंगणुं, आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं (१) क्यारेक भय क्यारेक लालच चित्तने एवां नडे, व्यवहारमां व्यापारमां जूठ्ठे तरत कहेवुं पडे, छे सत्यमहाव्रतधर श्रमणनुं जीवनघर रळियामणुं
आ पापमय... (२)
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जे मालिके आप्या वगरनुं तणखलुं पण ले नहि, वंदन हजारो वार हो ते श्रमणने पळपळ महीं, हुं तो अदत्तादान माटे गाम परगामे भमुं,
- आ पापमय... (३) जे इन्द्रियोने जीवननी क्षण एक पण सोंपाय ना, मुज आयऱ्या आखू वित्युं ते इन्द्रियोना साथमां, लागे हवे श्री स्थूलभद्रतणुं स्मरण सोहामj,
... आ पापमय... (४) नवविध परिग्रह जिंदगीभर हुं जमा करतो रह्यो, धनलालसामां सर्वभक्षी मरणने भूली गयो, मूर्छारहित संतोषमां सुख छे खलं जीवननु,
आ पापमय... (५) अबजो वरसनी साधनानो क्षय करे जे क्षणमहीं, जे नरकनो अनुभव करावे स्व परने अहि ने अहीं, ते क्रोधथी बनी मुक्त समतायुक्त हुं क्यारे बर्नु,
आ पापमय... (६) जिनधर्मतरुना मूल जेवा विनयगुणने जे हणे, जे भलभला ऊंचे चडेलाने य तरणा सम गणे, ते दुष्ट मानसुभटनी सामे बळ बने मुज वामj,
आ पापमय... (७) श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्रने जेणे बनाव्या स्त्री अने, संक्लेशनी.जालिम अगनमां जे धखावे जगतने, ते दंभ छोडी सरळताने पामवा हुं थनगर्नु,
___ आ पापमय...(८)
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जेनुं महासाम्राज्य एकेन्द्रिय सुधी विलसी रह्युं, जेने बनी परवश जगत आ दुःखमां कणसी रह्यं, जे पापनो छे बाप ते धनलोभ में पोष्यो घणुं, आ पापमय... (९)
तन धन स्वजन उपर में खूब राख्यो राग पण, ते रागथी 'करवुं पडे मारे घणा भवमां भ्रमण, मारे हवे करवुं हृदयमां स्थान शासनरागनुं, आ पापमंय... (१०)
में द्वेष राख्यो दुःख पर तो सुख मने छोडी गयुं, सुख दुःख पर समभाव राख्यो, तो हृदयने सुख थयुं, समजाय छे मुजने हवे, छे द्वेष कारण दुःखनुं,
आ पापमय... (११)
जे स्वजन तन धन उपरनी ममता तजी समता धरे, बस, बारमो होय चन्द्रमा तेने कलह साथे खरे, जिनवचनथी मघमघ थजो मुज आत्मना अणुए अणु,
आ पापमय... (१२)
जो पूर्वभवमां एक जूटुं आळ आप्युं श्रमणने, सीता समी उत्तमसतीने रखडपट्टी थई वने, इर्ष्या तनुं, बनुं विश्ववत्सल, एक वांछित मनतणुं,
आ पापमय... (१३)
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मारी करे चाडीचुगली ए मने न गमे जरी, तेथी ज में, आजीवनमां नथी कोइ पण खटपट करी, भवोभव मने नडजो कदी ना पाप आ पैशुन्यनु,
आ पापमय... (१४) क्षणमां रति क्षणमां अरति आ छे स्वभाव अनादिनो, दुःखमां रति सुखमां अरति लावी बनुं समताभीनो, संपूर्ण रति बस, मोक्षमा हुं स्थापवाने रणझj,
_____आ पापमय... (१५) अत्यंत निंदापात्र जे आ लोकमां य गणाय छे, ते पाप निंदा नाम, तजनार बहु वखणाय छे, तनुं काम नक्कामु हवे आ पारकी पंचातर्नु,
आ पापमय... (१६) मायामृषावादे भरेली छे प्रभु मुज जिंदगी,
ते छोडवानुं बळ मने दे, हुं करुं तुज बंदगी, ____बर्नु साचादिल आ एक मारुं स्वप्न छे आ जीवननु,
आ पापमय... (१७) सहु पाप, सहु कर्मन, सहु दुःख, जे मूल छे मिथ्यात्व भूईं शूल छे, सम्यक्त्व रूईं फूल छे निष्पाप बनवा हे प्रभुजी ! शरण चाहुं आपर्नु,
__ आ पापमय... (१८) ज्यां पाप ज्यारे एक पण तजवं अति मुश्केल छे, ते धन्य छे, जेओ अढारे पापथी विरमेल छे ! क्यां पापमय मुज जिंदगी, कयां पापशून्य मुनिजीवन!
आ पापमय... (१९)
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आजथी मारा तमे ...
संतप्त आ संसारमा, करुणानी जलधारा तमे, चंदा तमे सूरज तमे, तपतेजधरं तारा तमे, सहु जीवथी न्यारा तमे, सहु जीवना प्यारा तमे, हे नाण । हैयुं दई दी , हवे आजथी मारा. तमे. . (१) मुज पुण्यनी पुष्टि तमे, संकल्पनी मुष्टि तमे, भव ग्रीष्मतापे तप्त जीवो पर अमीवृष्टि तमे, आ विश्वनी हस्ती तमे, मुज मनतणी मस्ती तमे, मुज नेत्रनी दृष्टि तमे, मुज स्वप्ननी सृष्टि तमे. (२) हर्षे भर्या हैया तमे, गुणप्रीतना सैया तमे, मुज जीवन केरी साधनाना रथतणा पैया तमे, दोषोतणा वनमां भमंताना छो रखवैया तमे, . भवसागरे नैया तमे, अम बाळनी मैया तमे. (३) निष्कारणे भ्राता तमे, संकट थकी त्राता तमे, महापंथना दाता तमे, महारोगमां साता तमे, जेर्नु न थातु कोई जगमां, तेहना थाता तमे, शुं कहुं संपूर्ण षट्कायो तणी माता तमे. औचित्य केलं कद तमे, जीवो प्रति गद्गद् तमे, सर्वोच्च धरियुं पद तमे, वळी तेहमां निर्मद तमे, करुणामहीं बेहद तमे शुभता तणी सरहद तमे, आतमतणा दुःसाध्य आ, भवरोगर्नु औषध तमे... (५) ज्यां कार्य कोई अटकी पडे, त्यां कार्यसाधक कळ तमे, छो निर्बळोनुं बळ तमे, संकट समय सांकळ तमे, बनी वृक्ष लीलाछम तमारा, आंगणे ऊभा अमे, बस दर्शने भी बने मन, एहवं झाकळ तमे. (६)
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करुणा महादेवी तणा सोहामणा नंदन तमे, संसार केरा रण मही आनंदनी छो क्षण तमे, कषाय केरी उग्रताए प्रज्वळता चैतन्यने, बस नाम लेता ठारतुं प्रभु, एहवुं चंदन तमे. मार्गस्थ जीवो काज भवनिस्तारनुं तरणुं तमे, अध्यात्मना गुण बागमां मन मोहतुं हरणुं तमे, मुज पुण्यनुं भरणुं तमे, मुज प्रेमनुं झरणुं तमे, आ विश्वना चोगानमां छो शाश्वतुं शरणं तमे.
मळजो मने जन्मो जनम
मळजो मने जन्मो जनम बस आपनी संगत प्रभु ! रेलाय मारा जीवनमां भक्ति तणी रंगत प्रभु !
. तुज स्मरणभीनो वायरो मुज आसपास वहो सदा मुज़ अंगे अंगे नाथ ! तुज गुणमय सुवास वहो सदा (१) ना तेज हो नयने परंतु निर्विकार रहो सदा हैये रहो ना हर्ष किंतु सद्विचार रहो सदा सौंदर्य देहे ना रहो पण शीलभार रहो सदा मुज स्मरणमां हे नाथ ! तुज परमोपकार रहो सदा. छे एक विनती नाथ ! माहरी कानमां अवधारजे प्रत्येक अक्षर प्रार्थनाना ह्यदयमां कंडारजे साक्षात् के स्वप्ने दई दर्शन प्रभु ! मने ठारजे हैये जे उछळी भावधारा सतत तेने वधारजे.
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ना जोईए धन वैभवो संतोष मुजने आपजे ना जोईए सुख साधनो मन संयमे मुज स्थापजे ना जोईए अनुकूळता सुखराग मारो कापजे मुज जीवनघरमां हे प्रभु ! तुज प्रेम सौरभ आपजे. करी कल्पना उदयंकरी करी प्रार्थना क्षेमंकरी मनमां उतारी सोंसरी छबी आपनी नयने भरी नेत्रो तणा सघळा प्रदेशे आप एवा वसी रह्या के नेत्रोमां नहीं स्थान मळतां आंसुओ मुज रडी रह्या. (५) रोगो भले मुज जाय ना, मुज रागने, प्रभु ! टाळजो दुःखो भले मुज जायना, मुज दोषने प्रभु ! टाळजो कर्मो भले मुज जाय ना, अंतर कषायने टाळजो भले दुर्गति मुज ना टळे पण दुर्मति प्रभु ! टाळजो. क्यारे प्रभु ! षट्काय जीवना वध थकी हुं विरमुं ? क्यारे प्रभु ! रत्नत्रयी आराधवा उज्जवळ बर्नु ? क्यारे प्रभु ! मदमान मूकी समता रसमां लीन बर्नु क्यारे प्रभु ! तुज भक्ति पामी मुक्तिगामी हुं बर्नु __ (७) प्रश्नो पूर्छ छु केटला उत्तर मने मळतां नथी दीधेल कोल भूली गया जाणे जूनी ओळख नथी दादा थई बेसी गया हवे दाद पण देता नथी आवी ऊभो तारे द्वार पण आवकार मुज देता नथी. शुं कर्मो केरो दोष छे अथवा शुं मारो दोष छे ? शुं भव्यता नथी माहरी हतकाळनो शुं दोष छे ? अथवा शुं मारी भक्ति निश्चे आपमां प्रगटी नथी ? जेथी परमपद मांगता पण दासने देता नथी ? (९)
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संसार घोर अपार छे एमां डूबेला भव्यने हे तारनारा नाथ ! शं भूली गया निज भक्तने मारे शरण छे आपर्नु नवि चाहतो हुं अन्यने तो पण प्रभु ! मने तारवामां ढील करो शा कारणे ? (१०) हे त्रण भुवनना नाथ ! मारी कथनी जई कोने कहुं ? कागळ लख्यो पहोंचे नहीं फरियाद जई कोने करूं? तुं मोक्षनी मोझारमा हुं दुःखभर्या संसारमा जरा सामु पण जुओ नहीं तो कयां जई कोने कहुं ? (११) शब्दो तणो वैभव नथी भावोनो वैभव आपजे शक्ति तणो वैभव नथी भक्तिनो वैभव आपजे बुद्धि तणो वैभव नथी श्रद्धानो वैभव आपजे विज्ञाननो वैभव नथी वैराग्य वैभव आपजे. (१२) सुख दुःख सकल वीसरं प्रभु ! एवी मळे भक्ति मने
सौने करूं शासन रसी एवी मळो शक्ति मने 'संकलेश अगन बुझावती मळजो अभिव्यक्ति मने मनने प्रसन्न बनावती मळजो अनासक्ति मने. (१३) छे शक्यता तुजमां घणी पण योग्यता मुजमां नथी छे दिव्यता तुजमां घणी पण भव्यता मुजमां नथी छे धैर्यता तुजमां घणी पण नम्रता मुजमां नथी तेथी करी संसारसागर भटकी रह्यो छु नाथजी ! (१४) हुं कदी भूली जाउं तो प्रभु ! तुं मने संभारजे हुं कदी डूबी जाउं तो प्रभु ! तुं मने उगारजे हुं वस्यो छु रागमां ने तुं वसे वैराग्यमां आ रागमां डूबेलने भवपार तुं उतारजे. (१५)
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(१६)
दुःखो तणा डुंगर भले ने त्राटके मुज उपरे आपत्तिना वादळ भले वरसी पडो मुज उपरे रोगो तणी फोजो भले ने त्राटके मुज उपरे पण सर्व काळे नाथ ! तारो हाथ रहों मुज उपरे. आराधनानी गांठ सरकी जाय ना जोजे प्रभु ! मुज भावनानो स्त्रोत फसकी जाय ना जोजे प्रभु ! .. आ श्वासनी क्यारी महीं तुज नामने रोप्युं प्रभु ! ए मोक्षगामी बीज बगडी जाय ना जोजे प्रभु ! (१७) पावन करजो हे प्रभु ! भव जल थकी उगारजो रत्नत्रयीनी वरसुधार्नु पान मुजने करावजो में हाथ झाल्यो आपनो जिम बाळ झाले मातनो मुक्ति मळे ना ज्यां सुधी आ बाळने संभाळजो. .(१८) सागर दयाना छो तमे करुणा तणा भंडार छो अम पतितोने तारनारा विश्वना आधार छो तारा भरोसे जीवन नैया आज में तरती मकी कोटि कोटि वंदन करूं जिनराज ! तुज चरणे झूकी. (१९) निःसीम करुणाधार छो त्रण जगतना आधार छो ओ दयासिंधु ! शुं कहुं मारा हृदयना हार छो सहु जीवने उगारवा करुणा तणा अवतार छो मुज भक्तिनी आ सितारना तमे तेजस्वी तार छो. (२०) भले कांई मुजने ना मळे पण तुं मळे तो चालशे भले आश मुज को नवि फळे बस तुं मळे तो चालशे विश्वास कीधो विश्वमां व्हाला जिनेश्वर आपथी छूटवा मथु छ अंतरे भवोभव केरा संतापथी. (२१) वैराग्यनां रंगो सजी क्यारे प्रभु ! संयम ग्रहुं ? सद्गुरु तणां शरणे रही स्वाध्याय गुंजन करुं ? सवि जीवने दई देशना हुं धर्मनु सिंचन करूं? कर्मो थकी निर्लेप थईने क्यारे हुँ मुक्ति वरूं? (२२)
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क्यारे प्रभु ! तुज स्मरणथी आंखो थकी अश्रु झरे ? क्यारे प्रभु ! तुज नाम वदतां वाणी मुज गद्गद बने ? क्यारे प्रभु ! तुज नाम श्रवणे देह रोमांचित बने ? क्यारे प्रभु ! मुज श्वासे श्वासे नाम तारुं सांभरे ? ( २३ ) क्यारे प्रभु ! निज द्वार ऊभा बाळने निहाळशो ? नित नित मांगे भीख गुणनी एक गुण क्यारे आपशो ? श्रद्धा दिपकनी ज्योत झांखी ज्वलंत क्यारे बनावशो ? सूना सूना मुज जीवन गृहमां आप क्यारे पधारशो ? (२४) आ सृष्टिनो शृंगार तुं आ अवनिनो आधार तुं ! आनंदनो अवतार तुं परमार्थ पारावार तुं ! अंधारघेर्या अखिल विश्वे एक अजब उजास तुं ! सुगुणो तणो आवास तुं मारा हृदयनो श्वास तुं ! (२५) मुज हृदयना धबकारमां तारुं रटण चाली रहो मुज श्वासने उच्छ्वासमां तारुं स्मरण चाली रहो मुज नेत्रनी हर पलकमां तारुं ज तेज रमी रहो ने जिंदगीनी हर पळोमां प्राण तुं मुज बनी रहो. (२६) आ बाळनो जो वाळ वांको थाय तुं होवा छतां
तो आळ मूकीने कहुं मुजने नथी संभाळतां ओ स्वामी ! उमटी लागणी छे, मांगणी करूं 'मा' गणी आ छोरुंने बाळक कही बोलावजे तारो गणी. (२७) भवोभव तमारा चरण पामी शरणमां बेसी रहुं भवोभव तमारी आण पाळी कर्मनो कांटो दहुं भवोभव तमारो साथ मळजो एक छे मुज प्रार्थना भवोभव तमारुं पामुं शासन एक छे अभ्यर्थना. (२८)
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वात्सल्य सागर तुं प्रभु ! वात्सल्यनो अभिलाषी हुं करुणाझरण तुजमां वहे करुणा अमृतनो प्यासी हुं हुँ सुमतिने शोधुं सदा तुं सुमतिनो भंडार छे आ विश्वमा हे नाथ ! मारो एक तुं आधार छे. (२९) जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे ते दृष्टिने पण धन्य छे .. जे जीभ जिनवरने स्तवे ते जीभने पण धन्य छे पीए मुदा वाणी सुधा ते कर्मयुगलने धन्य छे तुज नाम मंत्र विशद धरे ते हृदयने पण धन्य छे. (३०) शत कोटि कोटि वार वंदन नाथ मारा हे तने तरण तारण हे विभु ! स्वीकार मारा नमनने हे नाथ ! शुं जादु भर्यो 'अरिहंत' शब्दोच्चारमां आफत बधी आशिष बने तुज नाम लेतां वारमां. (३१)
याचना
संसारनी निःसारता निर्वाणनी रमणीयता, क्षणक्षण रहे मारा स्मरणमां धर्मनी करणीयता, सम्यक्त्वनी ज्योति हृदयमा झळहळे श्रेयस्करी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. (१) सवि जीव करुं शासनरसी आ भावना हैये वहुं, करुणा झरणमा रातदिन हुं जीवनभर वहेतो रहुं, शणगार संयमनो सजु झंखु सदा शिवसुंदरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. (२)
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गुणीजन विशे प्रीति धरूं, निर्गुण विशे मध्यस्थता, आपत्ति हो, संपत्ति हो, राखुं हृदयमां स्वस्थता, सुखमां रहुं वैराग्यथी, दुःखमां रहुं समता धरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. संकट भले घेराय ने वेराय कंटक पंथमां, श्रद्धा रहो मारी सदा जिनराज ! आगमग्रन्थमां, प्रत्येक पल प्रत्येक स्थळ हैये रहो तुज हाजरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी.
स्तवन गावा हंमेशा वचन मुज उल्लसित हो, तारां वचन सुणवा हंमेशा श्रवण मुज उल्लसित हो, तुजने निरखवा आंख मारी रहे हंमेशा बहावरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. संसारसुखनां साधनोथी सतत हुं डरतो रहुं, धरतो रहु तुज ध्यानने आंतर व्यथा हरतो रहुं, करतो रहुं दिनरात बस तारा चरणनी चाकरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. धर्मे दीधेलां धन स्वजन हुं धर्मने चरणे धरूं, श्री धर्मनो उपकार हुं क्यारेय पण ना वीसरूं, हो धर्ममय मुज जिंदगी, हो धर्ममय पळ आखरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. मनमां स्मृति, मूर्ति नयनमां, वचनमां स्तवना रहे, मुज रक्तना हर बुंदमां जिनराज ! तुज आज्ञा वहे, पहोंचाडशे मोक्षे मने जिनधर्म एवी खातरी, प्रभु ! आटलुं जनमजनम देजे मने करुणा करी.
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प्रभु जेवो गणो तेवो
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(१) प्रभु! जेवो गणो तेवो... तथापि बाळ तारो छु...
तने मारा जेवा लाखो... परंतु एक मारे तुं... नथी शक्ति नीरखवानी... नथी शक्ति परखवानी... नथी तुज ध्याननी लगनी... तथापि बाळ तारो छु... नथी तप जप में कीधा... नथी कांई दान पण दीधा अधम रस्ता सदा लीधा... तथापि बाळ तारो छु.... अरिहंत देव ओ प्यारा... गुना कर मार्फ सौ मारा...
भूल्यो उपकार हुं तारा... तथापि बाळ तारो छु.... ★ . दया कर दुःख सौ कापी... अभय ने शांतिपद आपी...
प्रभु हुं छु पूरो पापी... तथापि बाळ तारो छु... दया कर हुं मुंझाउ छु... सदा हैये रिबाउं छु... प्रभु तुज ध्यान उर ध्या... तथापि बाळ तारो छु... .....
*
आजे पाम्यो परमपदनो, पंथ तारी कृपाथी, मिट्या आजे भ्रमणभवना, दिव्य तारी कृपाथी, दुःखो सर्वे क्षय थई गयां, देव तारी कृपाथी, खुल्या खुल्यां सकळ सुखना, द्वार तारी कृपाथी.
असत्यो मांहेथी प्रभु परम सत्ये तुं लई जा, उंडा अंधारेथी प्रभु, परम तेजे तुं लई जा, महा मतृत्युमांथी, अमृत समीपे नाथ लइ जा, तुं हीणो हुं छु तो, तुज दरिशनना दान दइ जा,
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(४) जावू नथी जोवू नथी, जिनराज विना जीवq नथी,
तारा गुणोना गीतडां, गाया विना गमतुं नथी; उपकार तारो शें भूलं ? ते शरण दीधुं प्रेमथी, प्रेमल निश्चय माहरो, ताहरी बंदगी मारी जींदगी.
(५) जोq होय तो जोइ लेजो, जोवा जेवू बीजे नथी,
ठारी लेजो आंखडी, ठरवा जेवू बीजे नथी; शिरताजना शरण विना, साचुं शरण बीजे नथी, मांगी लेजो मन मूकी, आवो दातार पण बीजे नथी.
(६) दयासिंधु ! दयासिंधु ! दया करजे दया करजे,
मने आ जंजीरोमांथी, हवे जलदी छूटो करजे, नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाळा, वरसावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे.
बधी शक्ति विरामी छे, तुं ही आशे भ्रमण करता, प्रभुताना कटोराथी, भीतरनी आग बुझवजे, घवायो मोहनी साथे, हृदयथी आंसुडा सारु,
रूझावी घा कलेजाना, मधुरी वासना भरजे, पुरायो हंस पिंजरमां, उडीने कयां हवे जाशे भले सारो अगर बूरो, निभाव्यो तेम निभावजे, करुं पोकार हुं तारा, जपुंछु रातदिन प्यारा, विनंती ध्यानसां लइने, दुःखी आ बाळ रीझवजे.
झुलावी भक्तिना झुले, भवोना बंधनो कापो, कहे किंकर प्रभु योगी, अमर करजे अमर करजे.
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(७) देव मारा आजथी तारो बनीने जाउं छु,
दिलडाना देव मारा दिल दइने जाउं छु; मनडा केरी भक्तिनी महेंक, मूकतो जाउं छं, अंतरना आपेल आशिष, अंतरमां लइ जाउं छं.
(८) फरी फरी मळवानो तमने कोल दइने जाउं छु, निभाववानो भार तारे, माथे मूकतो जाउं छु; श्वासे श्वासे नाम जपीश हुं, सोगंदथी कही जाउं छं, जुग जुग जीवो झाझी खम्मा, चरणो चूमतो जाउं छु,
(९)
आव्यो शरणे तमारा जिनवर, करजो आश पूरी अमारी, नाव्यो भवपार मारो तुम विण, जगमां सार ले कोण अमारी; गायो जिनराज आजे हरख, अधिकथी परम आनंदकारी पायो तुम दर्शनाशे भवोभव भ्रमणा नाथ सर्वे अमारी.
(१०) जिने भक्ति जिने भक्ति जिने भक्ति दिने दिने, सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु भवे भवे.
(११) उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लय; मन: प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे.
(१२) सर्वमंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणम्; प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम्.
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श्री नेमिनाथ स्तुति जोडा विभाग
(१)
राजुल वर नारी, तेहना परिहारी,
पशुआं उगारी, हुआ केवलसिरी सारी, पामीया घातीवारी. १ त्रण ज्ञान संयुता, मातानी कुखे हुंता, जन्मे पुरहंता, आवी सेवा करंता; अनुक्रमे व्रत लहंता, पंच समिति घरंता; महियल विचरंता, केवलश्री वरंता. २ सवि सुरवर आवे, भावना चित्त लावे,
त्रिगडुं सोहावे, देवछंदो बनावे; सिंहासन ठावे, ठावे, स्वामिना गुण गावे, तिहां जिनवर आवे, तत्त्ववाणी सुणावे. ३ शासनसुरी सारी, अंबिका नाम धारी, जे समकिती नर नारी, पाप संताप वारी; प्रभु सेवा कारी, जाप जपीए सवारी, संघ दुरित निवारी, पद्मने जेह प्यारी. ४ (२) सुर असुर वंदित पायपंकज मयणमल्लमक्षोभितं, घन सुंघन श्याम शरीरसुंदर शंखलंछनशोभितं; शिवादेवीनंदन त्रिजगवंदन भविककमलदिनेश्वरं, गिरनार गिरिवरशिखर वंदो श्रीनेमिनाथजिनेश्वरं. १ अष्टापदे श्रीआदिजिनिवर वीर पावापुरी वरं, वासुपूज्य चंपानयर सिध्या नेम रैवतगिरिवरं;
रूपथी रति हारी, ब्रह्मचारी;
बालथी
चारित्रघारी,
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समेतशिखरे वीश जिनवर मुक्ति पहोंच्या मुनिवरं, चोविश जिनवर नित्य वंदु सयल संघ सुहंकरं. २ अग्यार अंग उपांग बारे दश पयन्ना जाणीए, छ छेदग्रंथ प्रशस्त अत्था चार मूल वखाणीए; अनुयोगद्वार उदार नंदी सूत्र जिनमत गाइए,
-
वृत्ति टीका भाष्य चूर्णी पीस्तालीश आगम ध्याइए. ३ दोय दिशी दोय बालक सदा भवियण सुखकरू, दुःखहरी अंबा लुंब सुंदर दुरित दोहग अपहरू, गिरनारमंडन नेमि जिनवर चरणपंकजसे वीए, श्री संघ सुप्रसन्नमंगल करो ते अंबादेवीए . ४
श्री गिरनार शिखर शणगार,
पुरण करुणा रसभंडार,
मोर करे मधुरो किंकार,
(३)
राजीमती हैडानो हार, जिनवर नेमिकुमार,
उगार्या पशुआं ए वार, समुद्रविजय मल्हार;
विचे विचे कोयलना टहुकार, सहस गमे सहकार,
सहसावनमां हुआ अणगार,
प्रभुजी पाम्या केवलसार, पहोता मुक्ति मोझार. १ सिद्धिगिरिए तीरथ सार,
आबु अष्टापद सुखकार, चित्रकूट वैभार,
सुवर्णगिरि सम्मेत श्रीकार,
नंदीश्वर वर द्वीप उदार, जिहां बावन विहार;
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रूचक कुंडलने इषुकार,
शाश्वता अशाश्वता चैत्यविहार, अवर अनेक प्रकार, कुमति वयणे म भूल गमार,
तीरथ भेटे लाभ अपार, भवियण भावे जुहार. २ प्रगट छठे अंगे वखाणी,
द्रोपदी पांडवनी पटराणी, पूजा जिनप्रतिमानी, विधिशुं कीधी उलट आणी,.
नारद मिथ्यादृष्टि अन्नाणी, छडी अविरति जाणी;
श्रावककुलनी ए सहिनाणी,
. समकित आलावे आख्याणी, सातमे अंगे वखाणी, पूजनिकनी ए प्रतिमा पंकाणी,
इम अनेक आगमनी वाणी, ते सुणजो भवि प्राणी. ३ केडे कटिमेखला घुघरीयाळी,
पाये नेउर रमझम चाली, उज्जयंतगिरि रखवाली, अघर लाल जीस्या परवाळी,
कंचनवान काया सुकुमाली, कर लहके अंबडाळी, वैरीने लागे विकराळी,
संघनां विघन हरे उजमाली, अंबादेवी मयाली, महिमाए दश दिशी अजुवाळी, . श्री संघविजय बुध आनंदकारी, नित्य नित्य घेर दिवाळी. ४
नेमिनाथं, वन्दे बाढम्. १. सर्वे सार्वा, सिद्धिं दद्युः. २ जैनी वाणी, सिद्धयै भूयात्. ३ वाणी विद्यां, दद्याद् हृद्याम्. ४
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(4)
श्री गिनरनारे जे गुण नीलो, ते तरण तारणत्रिभुवन तिलो, नेमीश्वर नमीए ते सदा, सेव्यो आपे सुख संपदा. १ इन्द्रादिक देव जेहने नमे, दर्शन दीठे दुःख उपशमे, जे अतीत अनागत वर्तमान, ते जिनवर वंदु वर प्रधान. २ अरिहंते वाणी उच्चारी, गणघरे ते रचना करी, पीस्तालीश आगम जाणीए, अर्थ तेना चित्त आणीए ३ गढ गिरनारनी अधिष्ठायिका जिन शासननी रखवाळीका, समरू सा देवी अंबिका, कवि उदयरत्न सुखदायिका. ४
(६) नेमिनाथ निरंजन निरख्यो, निज नयने मे आजजी, पाप संताप टळे तुम नामे, हुवे वांछित काजजी, सेव सुवाळी खांड जलेबी, लापसी तलधारीजी, सवैया मोतैया मोदक, तुम नामे लहे नरनारीजी. १ खाजा ताजा फेणी मगदाळ, मेसुर मोतीचुरजी, द्राख दाडम अखोड खलेला, खारेक खुरमा खजुरजी, नाळीयेर नारंगी दाडिम, मीठा फणस उदारजी, ए फळ फुल लइ जिन पूजो, चोविशे जिनराजजी. २ दूधपाक मालपुआ पेंडा, पतासाने पुरीजी, गुंदपाक गोळधाणी गलेफा, गोळ पापडी गुण भुरीजी, आंबा रायण साकर घेबर, मरकीणी सम मीठीजी, ए सुखडीथी जिनजीनी वाणी, अति मीठी में दीठीजी. ३ साली दाली पंचामृत भोजन, खीर खांडनी पोलीजी, सरस सलुणा उना तीखा, नित जमीए घीशुं झबोळीजी,
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पान सोपारी काथा चुनो, एलची वासित थाणीजी, वीर कहे अंबाइ तुसे, तो सुख लहे सवि प्राणीजी. ४
गिरनारे नेमनाथ गाजे रे, राणी राजुल ध्रुसके रूवे रे, मारो शामळीयो गिरधारी रे, एणे हरणो ने हरणी उगारी रे. १ एक चडता चडती दीसे रे, अष्टापद जिन चोविसे रे, शत्रुजय जुहारो रे, आबुजी जइ दुःख वारो रे. २ ज्यां चोत्रीस अतिशय छाजे रे, त्यां बेठां धींगडमल गाजे रे, धींगडमलनी वाणी मीठी रे, सह सुणजो समकित प्राणी रे. ३ ज्यां अंबिका देवी भारी रे, तेने नाके सोनानी वाळी रे, सहु संघना संकट चूरे रे, नय विमलना वांछित पूरे रे. ४
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जादवकुलश्री नंद समो ए, नेमिसर ए देव तो, कृष्ण आदेशे चालीया ए, वरवा राजुल नार तो, अनुक्रमे त्यां आवीया ए, उग्रसेन दरबार तो, इन्द्र इन्द्राणी नाचता ए, नाटक थाय तेणी वार तो. १ तोरण पासे आवीया ए, पशुओनो पोकार तो, सांभळीने मुख मरडीयुं ए, राजुल मन उच्चाट तो, आदिनाथ आदि तीर्थंकर ए, परण्या छे बहु नार तो, तेणे कारण तुमे कांइ डरो ए, परणो राजुल नार तो. २ रथ फेरी संजम लीओ ए, चढ्या गढ गिरनार तो, नेमीश्वर काउस्सग्ग रह्या ए पाम्या केवल सार तो, सोल पहोर दीए देशना ए, आपी अखंडाधार तो, भविक जीव प्रतिबोधीआ ए, बुझी राजुल नार तो. ३
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अथिर जाणी संयम लीओ ए, अंबा जय जयकार तो, पाये झांझर झम झमे ए, नाचे नेम दरबार तो, श्याम वर्णना नेमजी ए, शंख लंछन श्रीकार तो, कवि नमि कहे रायने ए, परण्या शिवसुंदरी नार तो. ४
(९)
(चार वखत बोलाय)
गिरनारे गीरूओ वहालो नेमि जिणंद, अष्टापद
उपर, पूजी धरो आनंद, सिद्धांतनी रचना, गणधर करे अनेक, दिवाळी दिवसे द्यो अंबा विवेक. १
खाण,
(१०) हरिवंश वखाणुं, जिम वयरागर जिहां रतन अमूलख, नेमिनाथ जगभाण, लघुवय ब्रह्मचारी, जग राखे अखियात, पहोंता पंचम गति, कर्म हणी घनघात. १ क्रोधादिक सोलस, छे कषाय अति दुष्ट, हास्यादिक नव जे, नोकषाय बल पुष्ट, ए प्रकृति खपावी, पाम्या शुद्ध चारित्र, ते जिनपति सघळां, वंदो पुण्य पवित्र. २ प्रवचननी रचना, गणघर करे करे गुणवंत,
जीवा - जीवादिक
विरचंत,
जेहमांहि लोक स्थिति अद्भूत, अष्ट प्रकार कहाय, भणतां सुणतां, सकल संशय पलाय. ३
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जस दोय कर सोहे, आंबा लुंबी उदार, दोय कर निज अंगज, सुंदरने श्रीकार, अंबाइ देवी, अकल रूप अविकार, श्री विजयराजसूरि, शिष्यने जय जयकार. ४
(११) (राग - जिनशासन वंछित, पुरण देव रसाल) गया शस्त्रागारे, शंख निज हाथ धारे, कीधो शब्द प्रचारे, विश्व कंप्या. तिवारे; हरि संशय धारे, एहनी कोइ सारे, ज्यो नेमकुमारे, बालथी ब्रह्मचारी. चार जंबुद्वीपे, विचरंता जिनदेव, • अड घातकीखंडे, सुरनर सारे सेव; अड पुष्कर अरधे, इणीपरे वीश जिनेश, संप्रति ए सोहे, पंचविदेह निवेश. २ प्रवचन प्रवहण सम, भवजलनिधिने 'तारे, कोहादिक म्होटा, मच्छतणा भय वारे; जीहां जीवदया रस, सरस सुधारस दाख्यो, . भवि. भाव धरीने, चित्त करीने चाख्यो. ३ जिनशासन सान्निध्यकारी, विघन विदारे, समकितदष्टि सुर, महिमा जास वधारे; शत्रुजयगिरि सेवो, जिम पामो भवपार, . कवि धीरविमलनो, शिष्य कहे सुखकार. ४
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(१२) ___(राग - मनोहर मूर्ति महावीरतणी) नमो नेम नगीनो नभमणि, आव्यो पदवी भोगवी सुरतणी, मोक्ष पाम्यो अष्ट करम हणी, लही अक्षय ऋद्धि अनंत गुणी. १ इम वीस चार जिन जनमीया, दिग्कुमारीए हुलरावीआ, मीली मीली इन्द्राणीए गाइआ, धनधन माता जिणे जाइआ. २ नेमि जिनवर दिये देशना, भवि पंचमी करो आराधना, पंच पोथी ठवणी वीटांगणा, दाबडी जपमाला थापना. ३ जिन उत्तम पद पद्मने प्रणमे, करे सेवा दुःख हरे तस खिणमे, गोमेध जक्षने अंबादेवी, विध्न हरे नित समरेवी. ४
(१३) (आ स्तुतिओ चार वखत बोली शकाय) श्री नेमिजिन प्रणमी, सवि दुःख टाळु, सविजिन वंदी, अघ संचित गाळु, जिन आगमथी, जगमांहे अजवाळु, देवी अंबाइ, करे रखवाळु,
(१४)
(गिरनार-नेमिनाथ थोयना जोडा विभाग...)
नेमिनाथ गुणना भंडार, चोवीश जिन बिंब जुहार;
जेनी वाणी अमृत धार, अंबिकादेवी विन निवार.
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(१५) गढ गिरनारे नमुं, नेमिजिनेश्वर स्वाम,
चोवीशे जिनवर, जगतजीव विश्राम; अमृत सम आगम, सुणीये शुभ परिणाम, ___ अंबिकादेवी, सारे काज तमाम.
(१६) दुरित भय निवारं, मोह विध्वंसकारं, गुणवंतमविकार, प्राप्त सिद्धि मुदारूं, जिनवर जयकारं, कर्म संक्लेशहारं, भवजलनिधितारं, नौमि नेमिकुमारं. १ अड जिनवर माता, सिद्धि सौधे प्रयाता, अड जिनवर माता, स्वर्ग त्रीजे विख्याता, अड जिनवर माता, प्राप्त माहेन्द्र साता, भव भय जिन त्राता, संतने सिद्धि दाता. २ ऋषभ जनक जावे, नागसुर भाव पावे, इशान सग कहावे, शेष कान्ता स्वभावे, पद्मासन सुहावे, नेम आद्यन्त पावे, शेष काउस्सग्ग भावे, सिद्धि सूत्र पठावे. ३ वाहन पुरूष जाणी, कृष्ण वर्णे प्रमाणी, गोमेद्य ने षट् पाणि, सिंह बेठी वराणी, सजी कनक समाणी, अंबिका चार पाणि, नेम भक्ति भराणी, वीरविजये वखाणी. ४
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यादव कुलमंडण, नेमिनाथ जगनाथ, त्रिभुवन जगमोहन, शोभन शिवपुर साथ; गिरनार शिखर शिर, दीक्षा-नाण-निर्वाण, शौरिपुरि नगरे च्यवन जनम सुखकार. १ इम भरते पंचे, ऐरवते बलसार, . चोवीसे जिननां, थाये जिन आधार, तस पंच कल्याणक वंदे पूजे जेह, निरूपम सुख संपत्ति, निश्चे पामे तेह, .२ जिनमुखे लही त्रिपदी, वली आगम गुंथ्या जेह, वर अंग अग्यार. दृष्टिवाद गुणगेह; त्रण काले जिनवर, कल्याणक विधि तेह, समकित थीर कारण, सेवो धरिय सनेह. ३ श्री नेमिजिनेश्वर, शासन विनये रत्त, जिनवर कल्याणक, आराधक भविचित्त देवचंद्रने शासन, सानिध्य करे नित मेव, समरीजे अहनिश, सा अंबाइ देव. ४
__ (१८) अमर किन्नर ज्योतिषधर, नर अभिवंदित पायाजी, समुद्रविजय कुल कानन जलघर, श्यामल वर्णजस कायाजी, जय यदुनंदन मदन विगंजन, चंदन वचन सुहायाजी, नेम निरंजन नयन नलीनदल, पावन शिव सुख दायाजी, १. जय राजुलवर करूणासागर, पुन्यपवित्रं तुज कायाजी, राजुल रढीयाली लटकाली, छोडी चाल्यो तजी मायाजी,
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सत्यभामा वर लइ हलधर, तोरण किणही पठायाजी, ऋषभादिक जिनथी तुं अधिको, कहत शिवा सुण जायाजी, चारित्र लेइ चोपनमें दिन, केवलज्ञान उपायाजी, चउविह देव मली मन रंगे, समवसरण विरचायाजी, बारह पर्षदामांही बेसी, बहुजन धर्म बतायाजी, शासन पामी त्रिभुवन स्वामी, आपे मुगते संधायाजी, ३. यदुनायक श्री नेमि जिनेश्वर यादववंश दिपायाजी, राजुलनारी पियुने प्यारी, लेइ मुगति राखी मायाजी, जगदंबा अंबा रखवाली, शासन देवी ठायाजी, माय मया करी संध विघनहर, भाणविजय गुणगायाजी. ४
(१९) राग : नेत्रानंदकरी भवोदधि - तरी
चिक्षेपोजितराजकं रणमुखे यो लक्षसंख्यं क्षणा, दक्षामं जन भासमानम हसं राजीमतीतापदम्, तं नेमीं नम नम्र निर्वृतिकरं चक्रे यदूनां च यो, दक्षामंजनभासमानमहसं राजीमतीता पदम् (१)
....
प्रावाजीज्जितराजका रजइव ज्यायोऽपि राज्यं जवाद, या संसारमहोद्रधावपि हिता शास्त्री विहायोदितम् यस्याः सर्वत एव सा हरतु नो राजी जिनानां भवा, यासंसारमहो दधाव पिहिता शास्त्री विहायोदितम् ....(२)
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कुर्वाणाणुपदार्थ दर्शन वशाद् भास्वत्प्रभाया स्त्रपा मानत्या जनकृत्तं - मोहरत मे शस्तादरिद्रोहिका, अक्षोभ्या तव भारती जिनपत्ते प्रोन्मादिनां वादिनां, मानत्याजन कृत्तमोहरतमेश स्तादऽरिद्रोहिका (३)
हस्ता लम्बितचूतलुम्बिलतिका यस्या जनोडभ्यागमद्, विश्वासेवित ताम्रपादपरतां वाचा रिपुत्रासकृत् सा भुर्ति वितनोतु नोऽर्जुनरुचि, सिंहेऽधिरूढोल्लसद् विश्वासे वितता म्रपादपरताऽम्बा चारिपुत्राऽसकृत् ....(४)
(२०)
राग : नेत्रानंदकरी भवोदधि - तरी
त्वं येनाक्षतधीरिमा गुणनिधिः प्रेम्णा वितन्वन् सदा, नेमेकान्तमहामना विलसतां राजीमतीरागतः; कुर्यास्तस्य शिवं शिवांगज ! भवाम्भोधौ न सौभाग्यभाग्, नेमे ! कान्तमहामनाविल ! सतां राजीमती रामतः ... (१)
जीयासुर्जिन पुंगवा जयति ते राज्यर्द्धिषु प्रोल्लस द्वामानेक परा जितासु विभया सन्नाभिरा मोदिताः ; यो धालीभिरूदित्वरा न गणिता यैः स्फातयः प्रस्फुर द्वामानेक परा जितासु विभया सन्नाभिरा मोदिताः ... (२)
या गंगेव जनस्य पंकमखिलं पूता हरत्यंजसा, भारत्याऽऽगम संगता नयतताऽमायाचिता साधुना; अध्येतुं गुरुसन्निद्यौ मतिमता कर्तु सतां जन्मभी, भारत्यागम संगता न यतता माऽऽया चिता साऽधुना ... (३)
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व्योम स्फारविमानतूरनिनदै: श्री नेमिभक्तं जनं, प्रत्यक्षामर साल पादपरतां वाचालयन्ती हितम् ; दध्यान्नित्यमिताऽऽम्र लुम्बिलतिका विभ्राजिहस्ताऽहितं, प्रत्यक्षामर सालपादरतां ऽम्बा चालयन्ती हितम् ... (४)
(२१) कमलवल्लपंन तव राजते, जिनपते ! भुवनेश शिवात्मज, मुकुरवद् विमलं क्षणदावशाद्, हृदयनायकवत् सुमनोहरम् ... (१)
सकलपारगतः प्रभवन्तु मे, शिवसुखाय कुकर्म विदारकाः; रूचिरमंगलं वल्लिवने घना, दशतुरंगम गौर यशोधराः (२)
मदनमानजरानिघनोजिझता, जिनपते ! तववाग मृतोपमा, भवभतां भवता वशर्मणेच्छि, पयोधिपत ज्जनतारका (३)
...
जिनपपादपयोरूहहंसिका, दिशतु शासन निर्जर कामिनी, सकलदेह भृताममलं सुखं, मुखविभाभर निर्जित भाधिपा ....
(४)
(२२)
जित मद नम नेमे, तानि सन्नाथ नेमे, निरूपम शम नेमे, येन तुभ्यं विनेमे; निकृत जलधि नेमे, सीर मोह द्रु नेमे, प्रणिदधति न नेमे, तं परा आप्य नेमे... . (१)
विगलित व्रजिनानां, नौमिराजीं जिनानाम्, सरसज नयनानां, पूर्ण चंद्राननानाम्;
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गजवर गमनानां, वारिवाह स्वनानाम्,
हत मद मदनानां, मुक्तजीवासनानाम् ... (२) अविकल कल तारा, प्राणनाथं सु तारा, भवजलधि तारा, सर्वदा विप्र ताराः; सुरनर विन तारा, त्वार्हति गीर्बतारा, दनवर तमि तारा, ज्ञानलक्ष्मी सुतारा ... (३)
नयन जीत कुरंगि, कांशु धारो चिरंगि, मिह किल मुहु रंगि, कृत्य चित्तां तरंगि; स्मृतिः सुचिरंगि, देवतां य स्तुरंगि, कुरूत इम मुरंगि, त्यादि कृत् बंधुरंगी ... (४)|
(२३) यदुवंशाकाशे उडुपतिसमा नेमिजिनजी !, शरीरे रंभा भारती मदहरी राजुल तजी; ग्रही दीक्षा भारी भविजन विबोधे दिनकरी !, करो दृष्टि सवामी हरिणपशु जैसे हितकारी ...(१)
गया मुक्ति स्वामी गिरिशिखर उज्जंत शिरसी !, अपापामां वीर शिवसुख अनंत विफरसी; ज्याभू चंपामां धवलगिरि श्री आदिजिनजी !,
समेता आनंदामृत रस कर्या वीस जिनजी ... (२) अनेकांत स्याद्वादनयगम भंगा विविधसु !, यजे आहीं तीर्थांतर सवबुधै कीट स प्रसु; निहारी वाणी जो जिननी सय पंचासय विहा, सुधा धारा सारा जिन मुख थकी निर्गत सुहा...(३) .
अधिष्ठात्री अंबा प्रवचन नमे नेमिजिनजी, कुरोगो ने धोई सतत सुख शांति अति घणी;
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विजय आनंदे श्री तपगणगणि वल्लभ सदा, नमो भावे शुध्धे मनवचन काया फळ तदा ... (४)
(२४)
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गिरनार गिरिवर, नेमि जिनवर विश्वसुखकर देवरे, ज्योतिष व्यंतर, भुवनवासी नाकि सारे सेव रे, यदुवंश दिपक मदनज़ीपक बावीसमो नेमिनाथ रे, भावे भजो भवि भुवन हितकर मुक्ति केरो साथ रे ... १. प्रथम जिनेश्वर सिध्धि पाम्या अष्टापद गुणंवत रे, बासुपूज्य चंपा रैवताचल नेमि राजीमति कंत रे, नयरी अपापा वीर स्वामी समेतशिखर गिरि राय रे; तिहां वीश जिनवर मुक्ति पाम्या तास प्रणमु पाय रे २. अरिहंत वाणी सुणो प्राणी चित्ते जाणी सार रे, सिद्धांत दरियो रयण भरीयो भविकजन सुखकार रे; आगम आराधि भाव साधी नरनारी वली जेह रे, स्वर्गना सुख भोगवी पछी परम पद लहे तेह रे ३. अंबिका देवी यक्षगोमेध नेमि सेवा सारता, जिन धर्म वासिंत भविकजनना दुरित दूर निवारता, श्रीपुन्यविजय उवज्झाय सेवक भक्ते नामी शीश रे, गुणविजय करजोडी जंपे पुरो संघ जगीश रे ... (४)
(२५)
यदु कुलाम्बर भासन भास्करो, जनि शिवानि शिवातनयः सृजन्; नयतु नेमिजिनो जिन सम्पदं, सुजन मंजन मंजु तनुत्विषः
(१)
...
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सकल भव्य तमोभर भास्करा, जन चकोर मुदेक निशाकराः; तनुमतां नमतां ददतां श्रियं,
जिनवरा नवराग विदारिणः ...(२) नय वितानमणी रमणीयतां, विदधतं गमभंग समाकुलम्; भगवतां सकलांग भृतांदया, रसमयं समयं जलधि श्रये ... (३)
जिन पदाब्ज पराग मधुव्रता, कवि कलाम्र विलास वनप्रिया; शमयतामशिवं शिवकारिणी, श्रुत सुरित सुरीजन मुख्यता ... (४)
(२६) नेमि जिनेसर समरीए, शिवादेवी माय, समुद्रविजय कुल उपन्या, शंखलंछन पाय; दश धनुष प्रभु देहमान, श्यामवरणी तस काय, . अष्टकर्म हेले हणी, मुक्तिपुरीमा जाय ... (१)
नवणविलेपन वासनी, धूप दीप निवेद, फुल अक्षते पूजीए, जेहथी जाय भव खेद; जिन चोवीसे पूजतां, दुर्गति नवि थाय,
महानिशिथे भाख्यु, बारमे देवलोके जाय ... (२) नेमिनाथ केवल लघु, उज्जयंतगिरि आय, भविकजीवने कारणे, देशना दीये जिनराय; सुणी चारीत्र केइ लहे, केइ श्रावक धर्म, एम अनेक जीव भवतर्या, पाम्या शिवशर्म ...(३)
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गोमेध जक्षने अंबिका, शासन रखवाल, जिननी सेवा जे करे, तेनी करे सारसंभाल;
आभव परभव सुख घणुं, जे ध्यावे चित्त, मुनि हूकम जिन सेवीए, शिव पामवानी रीत ... (४)
श्री गिरनार महातीर्थना खमासमणाना दुहा
अनंत;
रेवतगिरि समरूं सदा, सोरठ देश मोझार; मानवभव पामी करी, ध्यावुं वारंवार (१) सोरठदेशमां संचर्यो, न चढ्यो गढ गिरनार; सहसावन फरश्यो नही, एनो एळे गयो अवतार (२) दीक्षा - केवल सहसावने, पंचमे गढ निर्वाण; पावनभूमिने फरशता, जनम सफळ थयो जाण (३) जगमां तीरथ दो वडा. शत्रुंजय गिरनार; एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेमकुमार (४) कैलास गिरिवरे शिववर्या, तीर्थंकरो आगे अनंता पामशे, तीरथकल्प वदंत गजपद कुंडे नाहीने, मुखबांधी मुखकोश; देव नेमिजिन पूजतां, नाशे सघळा दोष एके कुं पगलुं चढे, स्वर्णगिरिनुं जेह; हेम वदे भवोभवतणां, पातिक थाये छेह ... (७) उज्जयंत गिरिवर मंडणो, शिवादेवीनो नंद; यदकुळवंश उजाळीयो, नमो नमो नेमिजिणंद ... (८) आधि व्याधि उपाधि सौ, जाये तत्काळ दूर; भावथी नंदभद्र वंदता, पामे शिवसुख नूर (९)
(4)
(६)
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(अवसर्पिणीना छ आरामां आ तीर्थना अनुक्रमे ६ नामः (१) कैलास (२) उज्जयंत (३) रैवत (४) स्वर्णगिरि (५) गिरनार (६) नंदभद्र) ★ एक खमासमण आपीने श्री रैवतगिरि महातीर्थ आराधनार्थं काउस्सग्ग करूं? इच्छं. रैवतगिरि महातीर्थ आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए, पूअणवत्तिआए, सक्कारवत्तिआए, सम्माणवत्तिआए, बोहिलाभवत्तिआए, |निरूवसग्गवत्तिआए, सद्धाए, मेहाए, धीइए धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्डमाणीए, ठामि काउस्सग्गं. अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए. १. सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि सुहुमेहिं दिठ्ठिसंचालेहिं. २. एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओहुज्ज मे काउस्सग्गो. ३ जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोरिसामि ४ (९ लोगस्सनो काउस्सग्ग न आवडे तो ३६ नवकारनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स बोलवो.)
चैत्यवंदन
नेमिनाथ बावीशमा, अपराजीतथी आय; सौरीपुरमा अवतर्या, कन्या राशि सुहाय... १ . योनि वाघ विवेकीने, राक्षस गण अद्भुत; रिख चित्रा चोपन दिन, मौनवता मनपूर... २ वेतस हेठे के वलीए, पंचसया छत्रीश; वाचंयमशु शिव वर्या, वीर नमे नशिदीश... ३
(२) नेमिनाथ बावीशमा, शिवादेवी माय; समुद्रविजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय... १ दस धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार; शंखलंछनधर स्वामीजी, तजी राजुल नार... २ शौरीपुरीनयरी भलीए, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अवचिल ठाम... ३
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(३) विशुद्धविज्ञान भृतां वरेण, शिवात्मजेन प्रशमाकरेण; येन प्रयासेन विनैव कामं, विजित्य विक्रान्तवरं प्रकामम्. १ विहायराज्यं चपल स्वभावं, राजिमतिं राजकुमारिकां च; गत्वा सलीलं गिरनारशैलं, भेजे व्रतं केवल मुक्तियुक्तम्. २ निःशैषयोगीश्वरमौलिरनं जितेन्द्रियत्वे विहितप्रयत्नम्; तमुत्तमानन्द निधानमेकं नमामि नेमिं विलसद्विवेकम् ३
(४) बाल ब्रह्मचारी नेमनाथ, समुद्रविजय विस्तार; शिवादे वीनो लाडको, राजुल वर भरथार. १ तोरण आव्या नेमजी, पशुडे मांड्यो पोकार; मोटो कोलाहल थयो, नेमजी करे विचार. २ जो परशुं राजुलने, जाय पशुना प्राण; जीवदया मनमां वसी, त्यांथी कीधुं प्रयाण. ३ तोरणथी रथ फेरव्यो, राजुल मूर्छित थाय; आंखे आंसुडां वहे, लागे नेमजीने पाय, ४ सोगन आपुं माहरा, पाछा वळो एक वार; . निर्दय थई शुं वालमा, कीधो मारो परिहार . ५ झीणी झबुके विजळी, झरमर वरसे मेह; राजुल चाल्यं साथमां, वैराग्य भींजी देह. ६ संजम लइ केवळ वर्या ए, मुक्तिपुरीमां जाय; नेम राजुलनी जोडने ज्ञान नमे सुखदाय ७
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(4) नेमि जिनेसर नियमथी, नमता नव निधि, सकल पदारथ पूरवे, सेव्यो दीए सिद्धि. १ निरागीमां लीह दीह, रयणी दिल मोरे, रसीओ मन अली माहरो पदकमले तोरे २ तुं त्राता त्रिभुवन घणी, निज सेवक संभाण, राम विजय जिन नामथी, लहीए सुख रसाळ,
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प्रचार;
समुद्र विजय कुल चंद, नंद शिवादेवी जाया; जादव वंश नभोमणि, शौरिपुर ठाया (१) बालथकी ब्रह्मचर्यघर, गत मारने भक्ति निज आत्मिक गुण, त्यागी संसार (२) निष्कारण जगजीवनो ए, आशानो विश्राम; दीन दयाल शिरोमणी, पूरण सुरतरु काम पशु पोकार सुणी करी, छांडी गृहवास; तत्क्षण संजम आदरी, करी कर्मनो नाश (४) केवल श्री पामी करी ए, पहोंच्या मुक्ति मोझार; जन्म मरण भय टाळवा, ज्ञान सदा सुखकार (५)
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...
...
...
(७). जयवंत महंत निरंजन छो, भवनां दुःख दोहग भंजन छो; भविनेत्र विकासज अंजन छो, प्रभु काम विकार विगंजन छो. (१) जगनाथ अनाथ सनाथ करो, मम पाप अमाप समूल हरो; अरजी उर नेमि जिणंद धरो, तुम सेवक छं प्रभु ना विसरो. (२) अर्चित वांछित दायक छो, सहु संघतणा प्रभु नायक छो; गिरनार तणा गुण गायक छो, कलहंसतणी गति लायक छो. (३)
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नायक त्रिभुवन नाथजी, श्री नेमिजिनसार, प्रभुपद प्रेमे पूजीए, गिरूओ गढ गिरनार (१) ए गिरि उपर एहना, तीन कल्याणक तास, अरिहंत भक्ति अनुसरो, आणी मन उल्लास (२) जादव कुल दिनकर जीस्यो, ब्रह्मचारी, शिरदार, सतीओ मांहे शिरोमणि, रूडी राजुलनार, (३) सहसावन संयम लीयो, गिरि उपर केवलज्ञान, कृपानाथ सरखी करी, भामीनीने भगवान (४) सातकूट सोहामणी, ए तीरथ अहिठाण, पंचम टुंके श्री प्रभु, पाम्यापद निर्वाण (५) गुणी अढारे गणधरा, गिरूआ बहु गुणवंत, सहस अढारे श्रमणने, सेवो भविजन संत (६) आठ भवोनी अंबिका ए तीरथ रखवाल, सेवो भविशुद्ध मने, जावे भवदुःख जाल (७) भविजन भावे भेटीए, आणी मन आणंद, हंस विजय — नमे हरखशु, पामे परमानंद (८)
गिरि गिरनार जई वसे, जेसे नेमकुमार कनक भूमी करी देवता, भक्ति करे मनोहार (१) एक प्रतिमा वज्रनी, एक कंचनकेरी, एक प्रतिमा रत्न मणिमय भलेरी (२) काले सज्जन बहुमिल्याए, जेणे कीधो उद्धार नेमनाथ बेठां तिहा, कंठे रयण मनोहार (३)
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बालपणे श्रीनेमिनाथ, वंदु ब्रह्मचारी; आठ भवोनी प्रीतडी, तारी राजुलनारी. १ समुद्रविजयसुत जाणीये, शंख शीवादेवीना जाया; जादवकुल सोहामणो, शंख लंछन गुण गाया. २ बत्रीस सहस बंधव तणी, जाणो पटराणी; पिचकारी सोवनतणी, नीर जले भरी आणी. ३ दडो उछाले फुलनो, दीयरने बोलावे; नेमको विवाह मांडियो, भोजाइओ मनावे. ४ . परणो राजुल नार तिहां, उग्रसेननी बेटी; सत्यभामानी बेनडी, समकित गुणनी पेटी. ५ नारी विनानुं घर नहीं, वांढो पुरुषविख्यात; . भोजाइ मेणां मारशे, परणो नेम कुमार. . ६ एक नारी विना इश्यो, घर स्मशान कहेवाशे; उना अन्न कोण आपशे, सुणो बांधव वात. ७ मंडप चौराशी स्तंभनो, रचीयो मन रंगे; चौदिशी गौरी गावती, सांजने प्रभाते. ८ भात भातना धान तिहां, जुवारा ववरावे; भोजाइ पासे सींचाववा, गंगा नीर मंगावे. ९ पीठी चोले पीतराणी मली, उने जल नवरावे; पीठी घउंला भेळवी, मग पीठी मंगावे. १० आभूषण अंगे धरी, शेष भरावे; वरधोडे श्री नेमनाथ, परणे राजुलनार. पंचजातना वाजींत्र वागे, भेरी वजडावे; थैइ थैइ नाच पताका, तोरण नेमकुमार. १२
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पशुडां करे पोकार, तिहां साळाने बोलावे; सारथवाहने पूछता, जीव बंधने केम बांध्या. १३ जादवकुल एने परे, परभाते गौरव दइशुं; विषयारसने कारणे, जीव संहार करीशुं. १४ अंग फरके जमणुं तिहां, नवला नेमकुमार; राजुल कहे सुणो साहेलीओ, रथ वाळ्यो तत्काळ. १५ वरसीदान देई करी, एक कोडी साठ लाख; सहसावन जइ संयम लीधो, सहस पुरुष संगाथ. १६ राजुल धरणी ढळी पड्या, उज्जयंत गढ चाल्या; गुफामां श्री रहनेमी, राजुल प्रतिबोधे. १७ स्वामी हाथे संजम लीधो, संलेखणा एक मास; केवलज्ञाने झळहळे, पाम्या शिवपुर वास. १८ पीयु पहेलां मुगते गया, धनधन नेमकुमार; परणे शिवनी नार तिहां, सहस पुरुष संगाथ. १९ भणतां शिवसुख उपजे, गुणतां मंगलकार; विनयविजय वाचक जस, तस घर कोडी कल्याण. २०
(११) बावीशमा श्री नेमिनाथ, घोर ब्रह्मव्रत धारी; शक्ति अनंती जेहनी, त्रण भुवन सुखकारी ... (१) इन्द्र चन्द्र नागेन्द्र ने वासुदेवो सर्वे; चक्रवर्तिओ नेमिने, सेवे रही अगर्वे... (२) कृष्णादिक भक्तो घणाए, जेनी सेवा सारे; एवा परमेश्वर विभु, सेवंता सुख भारे... (३)
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चैत्यवंदन विधि विभाग
(नीचे मुजब प्रथम इरियावहि करवी)
इच्छामि खमासमण सूत्र इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआओ मत्थएण वंदामि,
(भावार्थ : आ सूत्र द्वारा देवाधिदेव परमात्माने तथा पंचमहाव्रतधारी साधु भगवंतोने वंदन थाय छे.)
. . इरियावहियं सूत्र . इच्छाकारेण संदिसह भगवन् । इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं १. इरियावहियाए विराहणाए २. गमणागमणे ३. पाणाक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे, ओसाउत्तिंग पणग दग, मट्टी मक्कडा संताणा संकमणे ४. जे मे जीवा विराहिया, ५. एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया ६. अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, . परियाविया, किलामिया, उद्विया, ठाणाओठाणं, संकामिया, जिवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ७.
(भावार्थ : आ सूत्रथी हालता - चालता जीवोनी जाणता अजाणता विराधना थइ होय के पाप लाग्या होय ते दूर थाय छे.)
तस्स उत्तरी सूत्र तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहिकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्धायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं. (भावार्थ : आ सूत्र द्वारा इरियावहियं सूत्रथी बाकी रहेला
पापोनी विशेष शुद्धि थाय छे.)
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अन्नत्थ सूत्र
अन्नत्थ उससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए १ सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं २. एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३. जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ४. ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ५.
( भावार्थ : आ सूत्रमां काउस्सग्गना सोळ आगारनुं वर्णन तथा केम ऊभा रहेवुं ते बतावेल छे.)
(पछी एक लोगस्सनो चंदेसु निम्मलयरा सुधीनो अने न आवडे तो चार नवकारनो काउसग करवो, पछी प्रगट लोगस्स कहेवो)
लोगस्स सूत्र
लोगस्स उज्जो अगरे, धम्मतित्थयरे जिणे, अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवलि १. उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे २. सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च; विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ३. कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च वंदामि रिट्ठनेमिं पासं तह वद्धमाणं च ४. एवं, म अभिथुआ, विहुय रयमला पहीण जरमरणा, चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ५. कित्तिय-वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा, आरुग्गबोगिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु, चंदे सुनिम्मलयरा, आइच्चे सु अहियं पयासयरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु. ७. ( भावार्थ : आ सूत्रमां चोवीस तीर्थंकरोनी नामपूर्वक स्तुति करवामां आवी छे.)
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(पछी त्रण खमासमण दइ, डाबो ढींचण ऊभो करी हाथ जोडी) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं? इच्छं कही
चैत्यवंदन करवू. सकल कुशल वल्ली – पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्पवृक्षोपमानः भव जल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतुः, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः श्रेयसे पार्श्वनाथः.
श्री सामान्यजिन चैत्यवंदन तुज मुरतिने निरखवा, मुज नयणां तलसे; . तुज गुण गणने बोलवा, रसना मुज हरखे .....१ काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे; तो सेवक तार्या विना, कहो किम हवे सरसे .....२ एम जाणीने साहिबा ए, नेहनजर मोहे जोय; ज्ञानविमल प्रभु सुनजरथी, ते शुं? जे नवि होय .....३
- जंकिंचि सूत्र जंकिंचि नामतित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए;
जाइं जिणबिंबाइं, ताइं सव्वाइं वंदामि.
(भावार्थ : आ सूत्र द्वारा त्रणे लोकमां विद्यमान नाम रूपी तीर्थों अने जिन प्रतिमाओने नमस्कार करवामां आवेल छे.)
नमुत्थुणं सूत्र . नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं. १. आइगराणं तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं, २. पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरिआणं,
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पुरिसवरगंधहत्थीणं. ३. लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपइवाणं, लोगपज्जोअगराणं, ४. अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, ५. धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंत - चक्कवट्टिणं. ६. अप्पडिहयवरनाण - दंसणधराणं, विअट्ट - छउमाणं. ७. जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं; बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं, ८. सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिव - मयल मरूअ - मणंत मक्खय मव्वाबाह - मपुणरावित्ति - सिद्धि गइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं ९.
जे अ अइया सिध्धा, जे अ भविस्संति णागए काले; | संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि. १०.
(भावार्थ : आ सूत्रमा अरिहंत परमात्माना गुणोनुं वर्णन छे. इन्द्र महाराजा स्तुति करती वखते आ सूत्र बोले छे.)
जावंति चेइआइ सूत्र
(पुरुषोए बे हाथ ऊंचा करीने बोलवू) जावंति चेइआई, उड्डे अ अहे अ तिरिअलोए अ; सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताई.
• (भावार्थ : आ सुत्र द्वारा त्रणे लोकमां रहेली जिन
प्रतिमाजीओने नमस्कार करवामां आवे छे.)
इच्छामि खामासमणो, वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए. मत्थएण वंदामि.
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जावंत केवि साहू सूत्र जावंत केवि साहू, भरहेरवयमहाविदेहे अ; सव्वेसि तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं.
(भावार्थ : आ सूत्रमा भरत, ऐरावत अने माहविदेह त्रणेय श्रेत्रमा विचरतां सर्वे साधु साध्वीजीओने नमस्कार करवामां आवे छे.)
(नीचेनुं सूत्र फक्त पुरूषोए बोलवू) नमोऽर्हत्सिध्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः) . (भावार्थ : आ सूत्रमा पंचपरमेष्ठि भगवंतने
नमस्कार करवामां आव्यो छे.) (आ पछी आ पुस्तकमांथी सुंदर अने भाववाही . स्तवनोना संग्रहमांथी कोईपण एक स्तवन
गावं अथवा नीचेनुं स्तवन गावं)
(श्री सामान्य जिन स्तवन) आज मारा प्रभुजी, सामु जुओने, सेवक कहीने बोलावो रे; एटले हुं मनगमतुं पाम्यो, रूठडां बाळ मनावो, . .
मारा सांइ रे .....१ पतितपावन शरणागतवत्सल, एं जश जगमां चावो रे; मन रे मनाव्या विण नहीं मूकुं, ए ही ज माहरो दावो
मारा सांइ रे .....२ कबजे आव्या हवे नहि मूकुं, जिहां लगे तुम सम थावो रे; जो तुम ध्यान विना शिव लहिए, तो ते दाव बतावो.
. .. ... मारा सांइ रे.....३
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महागोपने महानिर्यामक, इणि परे बिरुद धरावो रे; तो शुं आश्रितने उद्धरतां, बहु बहु शुं रे कहावो.
मारा सांइ रे .....४ ज्ञान विमल गुरूनो निधि महिमा, मंगलं एहि वधावो रे; अचल - अभेदपणे अवलंबी, अहोनिश एहि दिल ध्यावो.
. मारा सांइ रे .....५
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जय वीयराय सूत्र । जयवीयराय ! जगगुरू होउ ममं तुह पभावओ भयवं भवनिव्वेओ मग्गा-णुसारिया इठ्ठफलसिद्धि ..... १ लोगविरूद्धच्चाओ, गुरूजणपूआ, परत्थकरणं च; सुहगुरूजोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा ..... २
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- (बे हाथ नीचे करीने) वारिज्जइ जइवि निआण-बंधणं वीयराय ! तुह समए; तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं. ..... ३ दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहिमरणं च बोहिलाभो अ; संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणामकरणेणं. ..... ४ सर्व-मंगल-मांगल्यं, सर्व-कल्याणकारणम् प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैनं जयति शासनम्. ..... ५
अनत्थ, ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए,.१ सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहि दिठ्ठिसंचालेहिं. २. एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ
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हज्ज मे काउस्सग्गो. ३ जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ४
(कहीने एक नवकारनो काउस्सरग पारीने) नमोऽर्हत्सिध्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः
(बोली ने थोय बोलवी) राजुल वर नारी, रूपथी रति हारी, तेहना परीहारी, बालथी ब्रह्मचारी; पशुआ उगारी, हुआ चारित्रधारी, केवल सिरी सारी, पामीया घाती वारी.
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| श्री नेमिनाथ प्राचीन स्तवन विभाग |
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. । (१) निरख्यो नेमि जिणंदने । निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजिमती कर्यो त्याग; भगवंताजी. ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरि., अनुक्रमे थया वीतराग - भ. १ चामर चक्र सिंहासन अरि., पादपीठ संयुक्त - भ. छत्र चाले आकाशमां अरि., देवदुंदुभि वर उत्त - भ. २ . सहस जोयण ध्वज सोहतो अरि., प्रभु आगल चालंत - भ.. कनक कमल नव उपरे अरि., विचरे पाय ठवंत - भ. ३ चार मुखे दीये देशना अरि., त्रण गढ झाकझमाल - भ.. केश रोम श्मश्रु नखा अरि., वाधे नहि कोइ काल - भ. ४ कांटा पण उंधा होये अरि., पंच विषय अनुकूल - भ. षट्ऋतु समकाले फळे अरि., वायु नहि प्रतिकूल - भ. ५ पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरि. वृष्टि होय सुरसाल - भ. पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरि., वृक्ष नमे असराल - भ. ६ . जिन उत्तम पद पद्मनी अरि., सेवा करे सुरकोडी - भ. चार निकायना जघन्यथी अरि, चैत्यवृक्ष तेम जोडी - भ. ७
(२) तोरण आवी रथ |
__राग : एक दिन पुंडरीक...... तोरण आवी रथ फेरी गया रे हां, पशुआं शिर देइ दोष मेरे वालमा; नव भव नेह निवारियो रे हां, शो जोइ आव्या जोष. मेरे. तो.१ चंद्र कलंकी जेहथी रे हां, रामने सीता वियोग; मेरे. .तेह कुरंगने वयणडे हां, पति आवे कुण लोग. मेरे. तो. २ उतारी हुँ चित्तथी रे हां, मुक्ति धुतारी हेत; मेरे. सिद्ध अनंते भोगवी रे हां, तेहशुं कवण संकेत. मेरे.तो ३ .
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प्रीत करंता सोहीली रे हां, निर्वहेतां जंजाल; मेरे, जेहवो व्याल खेलाववो रे हां, जेहवी अगननी झाल. मेरे. तो. ४ जो विवाह अवसर दीयो रे हां, हाथ उपर नवि हाथ; मेरे. दीक्षा अवसर दीजीए रे हां, शिर उपर जगनाथ. मेरे. तो. ५. इम वलवलती राजुल गइ रे हां, नेमि कने व्रत लीघ; मेरे. वाचक यश करे प्रणमीए रे हां, ए दंपति दोय सिद्ध. मेरे. तो. ६
(३) परमातम पूरण |
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परमातम पूरण कला, पूरण गुण हो पूरण जन आश; पूरण दृष्टि निहाळीए, चित्त धरीये हो अमची अरदास, परमातम.१ सर्व देश घाती सहु, अघाती हो करी घात दयाल; वास कीयो शिवमंदिरे, मोहे वीसरी हो भमतो जगजाल, परमातम:२ जगतारक पदवी लही तार्या सही हो अपराधी अपार; तात कहो मोहे तारतां, किम कीनी हो इण अवसर वार, परमातम.३ मोह महामद छाकथी, हुं छकीयो हो नहि शुद्धि लगार; उचित सही इणे अवसरे, सेवकनी हो करवी संभाळ, परमातम. ४ मोह गये जो तारशो, तिण वेळा हो कीहां तुम उपगार; सुख वेळा सज्जन घणा, दुःख वेळा हो विरला संसार, परमातम. ५ पण तुम दरिशन जोगथी, थयो हृदये हो अनुभव प्रकाश; अनुभव अभ्यासी करे, दुःखदायी हो सह कर्म विनाश, परमातम.६ कर्म कलंक निवारीने, निज रूपे हो रमे रमता राम; लहत अपूरव भावथी, इण रीते हो तुम पद विसराम, परमातम. ७ त्रिकरण जोगे हुँ विनवू, सुखदायी हो शिवादेवीना नंद; चिदानंद मनमें सदा, तुमे आवो हो प्रभु नाणदिणंद, परमातम. ८
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(४) रहो रहो । . रगा : बोलो बोलो रे शालीभद्र... रहो रहो रे यादवजी दो घडीयां. रहो..
दो. घडीयां, दो चार घडीयां, रहो रहो रे यादवजी दो घडीयां; शिवा मात. मल्हार नगीनो, क्युं चलीए हम विछडीयां; यादव वंश विभूषण स्वामी, तुमे आधार छो अडवडीयां. रहो रहो. १ तो बिन ओरसें नेह न किनो, ओर करनकी आंखडीयां; इतने बिच हम छोड न जइए, होत बुराइ लाजडीया. रहो रहो. २
प्रीतम प्यारे कहकर जानां, जे होत हम शिर बांकडीयां; - हाथसे हाथ मिलादे सांइ, फुल बिछाउं सेजडीयां. रहो रहो. ३
प्रेमके प्याले बहुत मसाले, पीवत मधुरे सेलडीया; समुद्रविजय कुलतिलक नेमकुं, राजुल झरती आंखडीयां. रहो रहो. ४ राजुल छोड चले गिरनारे, नेम युगल केवल वरीयां; राजमिती पण दीक्षा लीनी, भावना रंग रसे चडीयां. रहो रहो. ५ केवल लइ करी मुगति सिधाये, दंपति मोहन वेलडीयां; श्री शुभवीर अचल भइ जोडी, मोहराय शिर लाकडीयां. रहो रहो. ६
(५) अब मोरी अरज अह मोरी अरज सुनो महाराज, हो गिरनार के जानेवाले; गिरनार के जानेवाले, हो मुगति के पानेवाले (अंचली) अब, मुक्ति भोग जोग लीया धार, अब कया सोचो नेमकुमार; करती राजुल सोच विचार, वेरण मुक्तिने घर घाला. अ. १ तोरण आय रथ दीया फेर, प्रभु तुम सुनी पशुअनकी टेर; तुमने जरा न कीनी डेर, नव भव प्रीत निभानेवाले. अ. २
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डूबी भवसागरमां नेया, मेरे तुम बीन कौन खेवैया; तुम हो अरजी के सुनवैया, बेडा पार लगानेवाले. अ. ३ दिल मेरा गुलाम, हरदम लेता तेरा नाम;
मुझे भक्ति सिवा नही काम, मेरे दिलमें समानेवाले. अ. ४ तुम तो नेमनाथ भगवान, लीना सहसावनमें ध्यान; कीना अति उत्तम ए काम, आतम पार लगानेवाले. अ. ५.
(६) में आज दरिसण
में आज दरिसण पाया, श्री नेमिनाथ जिनराया. प्रभु शिवादेवीना जाया, प्रभु समुद्रविजय कुल आया, कर्मो के फंद छुडाया, ब्रह्मचारी नाम धराया; जीने तो जगतकी माया (२) में. १ रैवतगिरि मंडनराया, कल्याणक तीन सोहाया, दीक्षा केवल शिवराया, जगतारक बिरुद धराया; तुम बैठे ध्यान लगाया. (२) में. २ अब सुनो त्रिभुवनराया, में कर्मों के वश आया, मैं चतुर्गति भटकाया, में दुःख अनंतां पाया; ते गीनती नाही गिनाया. (२) में. ३ में गर्भावासमें आया, उंधे मस्तक लटकाया, आहार अरसविरस भुगताया, एम अशुभ करम फल पाया; इण दुःखसे नाहि मुकाया (२) में. ४ नरभव चिंतामणि पाया, तब चार चोर मील आया, मुजे चौटेमें लूंट खाया, अब सार करो जिनराया; किस कारण देर लगाया (२) में. ५
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जिणे अंतरगतमें लाया, प्रभु नेमि निरंजन ध्याया, दुःख संकट विघन हटाया, ते परमानंद पद पाया; फिर संसारे नहि आया (२) में. ६ में दूर देशसें आया, प्रभु चरणे शीष नमाया, में अरज करी सुखदाया, तुमे अवधारो महाराया; एम विरविजय गुण गाया (२) में.
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(७) तुज दरिशन दीठं
तुज दरीशन दीठं अमृत मीढुं लागे रे यादवजी, खिणखिण मुज तुजशुं धर्म सनेहो जागे रे यादवजी; तुं दाता त्राता भ्राता माता तात रे यादवजी, तुज गुणना मोटा जगमां छे अवदात रे यादवजी. १. काचे रति मांडे सूरमणी छांडे कुण रे यादवजी, लइ साकर मुकी कुण वळी चुकी लुण रे, यादवजी; मुज- मन न सुहाये तुज विण बीजो देव रे, यादवजी, हुं अहर्निश चाहुं तुज पद पंकज सेव रे यादवजी. २ सुरनंदन हेवा गज जिम रेवा संग रे यादवजी, जिम पंकज भुंगा शंकर गंगा रंग रे, यादवजी; जिम चंद चकोरा मेहा मोरा प्रीति रे यादवजी, तुज़मां हुं चाहु तुज गुणने जोगे छती, यादवजी. ३ में तुमने धार्या विसार्या नहि जाय रे. यादवजी, दिन राते भाते ध्याउं तो सुख थाय रे, यादवजी; दिल करूणा आणो जो तुम जाणो राग रे यादवजी, दाखो एक वेळा भवजल केरा ताग रे यादवजी. ४
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दुःख टळीयो मीलीयो आपे मुज जगनाथ रे यादवजी, समता रस भरीयो गुण दरियो शिव साथ रे यादवजी; तुज मुखडुं दीठे दुःख नाठे सुख होइ रे यादवजी, वाचकजस बोले नहि तुज तोले कोइ रे यादवजी. ५
(८) हारे मारे नेमि
राग : हारे मारे धर्म जिनेश्वर
हांरे मारे नेमि जिनेसर, अलवेसर आधार जो, साहिबरे सोभागी गुणमणी आगरूं रे लो; हांरे मारे परम पुरुष परमातम देव पवित्रजो, आज महोदय दरिसण पाम्यो ताहरु रे लो. १ हांरे मारे तोरण आवी, पशु छोडावी नाथजो, रथ फेरीने वळीया, नायक नेमजीरे लो; हांरे मारे दैव अटारें, ओ शुं कीधु आज जो, रढीयाळी वर राजुल छोडी नेमजी रे लो २ हांरे मारे सयोगी भाव, वियोगी जाणी स्वामी जो, ए संसारे भमता को केहनुं नहि रे लो; हांरे मारे लोकांतिकने, वयणे प्रभुजी तामजो, वरसीदान दीये तिण अवसर जिन सहीरे लो ३ हांरे मारे सहसावनमां सहस पुरूषनी साथजो, भवदुःख छेदन कारण चारित्र आदरे लो, हांरे मारे वस्तु तत्त्वने रमण करंता सार जो; चोपनमें दिन केवळज्ञान दशा वरे रे लो. ४ हांरे मारे लोकालोक प्रकाशक त्रिभुवन भाणजो, त्रिगडे बेसी धरम कहे श्री जिनवरू रे लो; हांरे मारे शिवानंदन वरसे सुखकर वाणीजो, आस्वादे भवि भाव धरीने सुंदरू रे लो. ५
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हांरे मारे देशना निसुणी, बुज्या राजुल नारजो, निज स्वामीने हाथे संयम आदरे रे लो; हांरे मारे अष्ट भवोनी, पाळी पूरण प्रीतजो, पियु पहेला शिव लक्ष्मी राजमती वरे रे लो ६ हांरे मारे विचरी वसुधा, पावन कीधी सारजो, जग चिंतामणी जग उपगारी, गुणनिधिरे लो; हांरे मारे जिन उत्तम पद पंकज केरी सेवजो, करता रतन विजयनी कीरति अति वधीरे लो. ७
(९) द्वारापुरीनो नेम
द्वारापुरीनो नेम राजीयो; तजी छे जेणे राजुल जेवी नार रे, गिरनारी नेंम संयम लीधो छे बाळा वेशमां १ मंडप रच्यो छे मध्यचोकमां, जोवा मळीया छे द्वारापुरीना लोक रे. २ भाभीए मेणामार्या नेमने, परणे व्हालो श्री कृष्णनोवीर रे. ३ गोखे बेसीने राजुल जोइ रह्या, क्यारे आवे जादवकुळनो दीप रे ४ नेमजी ते तोरण आवीया, सुणी कंइ पशुनो पोकार रे ५ सासुए नेमजीने पोंखीया, व्हालो मारो तोरण चढवा जाय रे ६ नेमजीने साळाने बोलावीया, शाने करे छे पशुडा पोकार रे ७ राते राजुल बहेन परणशे, सवारे देशुं गौरवना भोजन रे ८ पशु पोका कर्यो नेमने, उगारो व्हाला राजीमती केरां कंत रे ९ नेमजीओ रथ पाछो वाळीओ, जई चढ्या गढ गिरनार रे. १० राजुल बेनी रूवे धुसके, रूवे कांइ द्वारापुरीना लोक रे ११ वीरा बेनीने समजावीया, अवर देशुं नेम सरीखो भरथार रे १२ पीयुं ते नेम एक धारीया, अवर देखु भाईने बीजा बाप रे १३
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जमणी आंखे श्रावण सरवरे, डाबी आंखे भादरवो भरपुर रे १४ चीर भीजाय राजुल नारीना, वागे छे काइ कंटको अपार रे. १५ नेम तीर्थंकर बावीसमा, सखीयो कहे ना मळे एनी जोड रे. १६ हीर विजय गुरू हीरलो, लब्धि विजय कहे करजोड रे. १७
(१०) सहसावन जई सहसावन जई वसीये, चालोने सखी सहसावन जइ वसीये; घरनो धंधो कबही न पुरो, जो करीए अहो निशिए; पीयरमां सुख घडीय न दीर्छ, भय कारण चउदिशिये, १ नाथ विहुणा सयल कुटुंबी, लज्जा कमियी न पसीए; भेगा जमीए ने नजर न हिंसे, रहेवू घोर तमसीए. २ पीयर पाछळ छल करी मेल्युं, सासरीये सुख वसीये; सासुडी ते घर घर भटके, लोकने चटके डसीए. ३ कहेता साचुं आवे हासुं, भुंशीये मुख लइ मशीए; ... कंत अमारो बाळो भोळो, जाणे न असि मसि कसिए, ४ . जुठा बोली कलहण शीला, घर घर शूनि ज्युं भसीये; ए. दुःख देखी हइडं मुंझे, दुर्जनथी दूर खसीये. ५ रैवत गिरि ध्यान न धरीयुं, काल गयो हसमसीए; श्री गिरनारे त्रण कल्याणक, नेमि नमन उल्लसीए. ६ शिव वरसे चोविश जिनेश्वर, अनागत चउवीशीए; कैलास उज्जवंत रैवत कहीए, शरण गिरिने फरशीये. ७ गिरनार नंद भद्र ए नामे, आरे आरे छवीसीये; देखी महितल महिमा मोटो, प्रभुगुण ज्ञान वरसीए. ८ अनुभव रंग वधे तेम पूजो, केशर घसी ओरशीये; भावस्तव सुत केवल प्रगटे, श्री शुभवीर विलशीये. ९
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(११) नेमि जिनेश्वर
राग : सिध्धारथना रे नंदन नेमि जिनेश्वर नमीए नेहशुं, ब्रह्मचारी भगवान; पांच लाख वरस- आंतरू, श्याम वरण तनुवान.१ कारतिक वदि बारस चविया प्रभु, माता शिवादे मल्हार; जनम्या श्रावण सुदिपांचम दिने, दश धनुष काया उदार.२ श्रावण सुदि छठे दीक्षा ग्रही, आसो अमासे रे नाण; अषाढ सुदि आठमे सिध्धि वर्या, वरस सहस आयु प्रमाण.३ हारि पटराणी शांब प्रद्युम्न वली तिम वसुदेवनी नार; गजसुकुमाल प्रमुख मुनिराजीया, पहोंचाड्या भवपार. ४ राजीमती प्रमुख परिवारने, तार्यो करूणा रे आण; पद्मविजय कहे निज पर मत करो, मुज तारो तो प्रमाण. ५
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(१२) अरजी सुनलो .
रागः मेरा जीवन कोरा अरजी सुनलो हो नेम नगीना, राजुलना भरथार, भजलो भजलो हो जगना प्राणी, भजो सदा किरतार... अरजी १ जान लइने आव्या त्यारे, हर्ष तणो नहि पार, पशुतणो पोकार सुणीने, पाछा वळ्या तत्काळ... अरजी २ राजुल गोखे राह नीरखती, रडती आंसुधार, पियुजी मारा केम रिसायां, मुज हैयाना हार... अरजी ३ नेम बन्यां तीर्थंकर स्वामी, बावीशमा जिनराज, माया छोडी मनईं साध्युं, नमो नमो शिरताज... अरजी ४
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नेम निरंजन नाथ हमारा, अम नयनोना तारा, बाळक तुम भक्तिने माटे, रडतो आंसुधार... अरजी ५ परदुःख भंजन नाथ निरंजन, जगपालक किरतार, ज्ञानविमल कहे, भवसिन्धुथी, मुजने पार उतार... अरजी ६
(१३) नेम प्रभुना
लागी;
सगः अमी भरेली नजरू राखो... नेम प्रभुना चरण कमळनी लगनी अमने भर जोबनमां राजुल जेवी रमणी जेणे त्यागी... नेम... १ कृष्णदेवनी सघळी नारी, मनहरनारी कामणगारी; विवाहनी वातो उच्चारी, मन डोलावा लागी... नेम... २ पशुओनी सुणीने वाणी, दया अतिशय दिलमां आणी; गिरनारे जइ संयमधारी, माया ममता त्यागी...३ पाछळ आवी राजुल नारी, पूर्व जन्मथी छे संस्कारी; तेने पण आपे त्यां तारी, भवनी भावठ भागी... ४ रोमरोममां निर्विकारी, अमने आपो बुद्धि सारी; श्याम जीवनमां झळहळकारी, निर्मळ ज्योति जागी... ५
(१४) नेमजी कागल
रागः मेरा जीवन कोरा कागझ नेमजी कागल मोकले, निशदिन राजुल हाथ, हवे अमे संयम लेइशुं तमे चालो अमारी साथ ॥१॥ अमे छीए गढ गिरनारमां सुंदर सहेसारे वन तिहां तमे व्हेला पधारजो, जो होय संयमनो मन || २ ||
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कहेशो अमने कह्युं नही, आठ भवनी हो प्रीत, वलतुं वालम वालमां, ए छे उत्तम रीत ||३|| लेख वांचीने राजीमति, चढियां गढ गिरनार, स्वामी हाथे संयम लीधो, पाळे पंच आचार ||४|| धन्य राजुल धन्य नेमजी, धन्य धन्य बेहुनी प्रीत, संयम पाळी मुक्ते गयां, रूप वंदे निशदिन ||५||
(१५) राग: सोनामां सुगंध भळे...
सुणोसखी सज्जन ना विसरे, सुणो सखी०... आंकणी० आठ भवांतर नेह निवाही, नवमें कयुं विसरे; नेह विलुघा आ दुनियामें, झंपापात करे सु०. ॥१॥ घर छंडी परदेशमें भमता, पूरण प्रेम ठरे; जान सजी करी जादव आये, नयने नयन मिले सु० ॥२॥ तोरण देख गये गिरनारे, चारित्र लेइ विचरे; दूषण भरिया दुर्जन लोको, दयिता दोष भरे सु० ||३|| मात शिवासुत सांभल सज्जन, साचा इम ठरे; तोरण आइ मुज समजाइ, संयम शान करे सु० ||४|| राजुल राग विरागे रहेती, ज्ञान वधाइ वरे; प्रीतम पासे संयम वासे, पातिक दूर करे सु०॥५॥ सहसावनकी कुंज गलनमें ज्ञान से ध्यान धरे; केवल पामी शिवगति गामी, आ संसार तरे सु०॥६॥ नेमिजिणेसर सुख सय्याएं, पोढ्या शिवनगरे; श्री शुभवीर अखंड सनेही, कीर्ति जग प्रसरे सु० ॥७॥
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(१६) आव्या उग्रसेन
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रागः मारा शामळा छो नाथ आव्या उग्रसेन दरबार, नेम परणवा राजुलनार, नवभवनी नारीने बुजववा. ॥१॥ जान तोरण पासे आवे, सखीयो मंगल गीतो गावे, सजी सोल शणगार, राजुल उभा गोख मोजार, पति शामलीया नेमने निहाळवा. ॥२॥ सुणी नेमनुं हैयुं दुभाय छे, रथडो पाछो वाळीने जाय छे, देवा मांडयुं वरसीदान, त्यांतो रूवे राजुलनार ॥३॥ पति विरह सुणी धरणी ढळे, राजुल कोटी कोटी विलाप करे, मुजने छोडी न जाओ नाथ, हुं तो आवु तमारी साथ ॥४॥ सहसावनमां जइ संयम लीये, राजुल पण संसार तजे, बुजवी स्नेहे राजुलनी जोडी शोभे छे ॥५॥ बन्ने मुक्तिनी मोज माणे छे, पहेला तारी राजुल नार पछी पहेरे मुक्तिमाळ, पति० ॥६॥.. गुरू उदय रत्न वीनवे छे, भवोभवनां दर्शन इच्छे छे, . जेम तारी राजुलनार, तेम तारी ल्यो आ बाळ, पति शामलीया नेमने निहाळवा. ॥७॥
(१७) नेमि जिनेसर
रागः सिद्धारथना रे नंदन नेमि जिनेसर निज कारज कर्यो, छांड्यो सर्व विभावोजी; आतम शक्ति सकळ प्रगट करी, आस्वाद्यो निज भावोजी... (१) . . राजुल नारी रे सारी मति धरी, अवलंब्या अरिहंतोजी; उत्तम संगे रे उत्तमता वधे, साधे आनंद अनंतोजी... (२)
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धर्म अधर्म आकाश अचेतना, ते विजाती अग्राह्योजी; पुद्गल ग्रहवे रे कर्म कलंकता, वाधे बाधक बाह्योजी... (३) रागी संगे के राग दशा वधे, थाए तिणे संसारोजी; निरागीथी रे रागने जोडवो, लहीये भवने पारोजी... (४) अप्रशस्तता रे टाळी प्रशस्तता, करवा आश्रव नाशोजी; संवर वाधे रे साथे निर्जरा, आतम भाव प्रकाशोजी... (५) नेमि प्रभु ध्याने एकत्वता, निज तत्त्वे इक तानोजी; शुकल ध्याने रे साधी सुसिध्धता, लहिये मुक्ति निदानोजी... (६) अगम अरूपी रे अलख अगोचरू, परमातम परमीशोजी; देवचंद जिनवरनी सेवना, करतां वाधे जगीशोजी... (७)
(१८) नेमि जिणंद निरंजणो नेमि जिणंद निरंजणो, जइ मोह थळे जळ केळ रे, मोहना उद्भट गोपी, एकलमल्ले नांख्या ठेलरे; स्वामी सलूणा साहिबा, अतुली बण तुं वडवीर रे... (१) कोइक ताकी मुक्ति, अतितीखां कटाक्षनां बाण रे; वेधक वयण बंदुक,गोळी, जे लागे जाये प्राण रे... (२) अंगुली कटारी घोचती, उछाळती वेणी कृपाण रे; सिंथो बाला उगामती, सिंग जण भरे कोक बाणरे... (३) फुल दडा गोळी नाखे, जे सत्त्व गढे करे चोटरे; कुचं युग करि कुंभ स्थणे, प्रहरती हृदय कपाटरे... (४) शील सन्नाह उन्नत सबे, आरि शस्त्रने गोळा न लाग्या रे; सोर करी मिथ्या सवे, मोह सुभट दहो दिशें भाग्या रे... (५) तव नव भव योध्धो मंड्यो, सजी विवाह मंडप कोट रे; प्रभु पण तस सम्मुखे गयो, नीसाणे देतो चोटरे... (६)
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चाकरी मोहनी छोडवी, राजुलने शिवपुर दीध रे; आपे रैवतगिरि सजी, भीतर संयमघट लीघ रे... (७) श्रवण घरम योध्धा लडे, संवेग खडग धृति ढाल रे; भाला केस उपाडतो, शुभ भावना गडगडे नाळ रे... (८) ध्यान धारा शर वरसतो, हणी मोह थयो जगनाथ रे; मान विजय वाचक वदे, में ग्रह्यो ताहरो साथ रे... (९)
(१९) सुणो सैयर मोरी सुणो सैयर मोरी, जुओ अटारी आवे छे नेम कुमार; शिवा देवीनो ‘नंद छे वालो, समुद्र विजय छे तात, कृष्ण मोरारीनो बांधव वखाj, यादव कुळ मोझार रे, प्रभु नेम विहारी, बाळ ब्रह्मचारी, जुओ अटारी... १ अंग फरके छे जमणुं बेनी, अपशुकन मने थाय; जरूर व्हालो पाछो ज वळशे, नहि ग्रहे मुज हाथ रे, मने थया दुःख भारी, कहुं छु आभारी, जुओ अटारी रे... २ परणुं तो बेनी तेनेज परj, अवर पुरूष भाइ बाप; हाथ न ग्रहो मारो तो तेमने मुकावु मस्तके हाथ, हुं थावं व्रत धारी, बाळ ब्रह्मचारी, जुओ अटारी... ३ संयमधारी राजुल नारी, चाल्या छे गढ गिरनार; मारगे जाता मेघजी वरस्या, भी जाय सतीना चीररे, गया गुफा मोझारी, मनमां विचारी, जुओ अटारी... ४ चीर सुकवे छे सती राजुला , नग्न पणे तेणी वार; रहने मि तिहां काउस्सग्गे उभा, रूपे मोह्या तेणीवार, सुणो भाभी अमारी, थाव घरबारी, जुओ अटारी... ५
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वमेला आहारने शुं करवो छे, सुणो दियर मोरी वात; मुजने वमेली जाणो देवरजी, शाने खोवो व्रत धीररे, संयम सुखकारी, पाळो आवारी, जुओ अटारी... ६ रहने मि मुनिवर राजमतिने, उपन्यु केवळ ज्ञान; चरम शरीरी मोक्षे पधार्या, साधवा आतम काजरे, वीर विजय आवारी, गाउं गुण भारी, जुओ अटारी... ७
(२०) थारों काम सुभट गयो ___ (राग - चांदीकी दिवार ना तोडी...) थाशुं काम सुभट गयो हारी, थारों काम सुभट गयो हारी; रतिपति आण वहे सौ सुरनर, हरि हर ब्रह्म मुरारि रे... थारुं... १ गोपीनाथ विगोपीत कीनो, हर अर्धांगित नारी रे; तेह अनंग कीयो चकचूरण, ए अतिशय तुज भारी... थारुं... २ ए साचुं जिन नीर-प्रभावे, अग्नि होत सवि छारी रे; ते वडवानल प्रबल जब प्रगटे, तब पीवत सवि वारि रे... थाशुं... ३ तेणी परे दहवट अति कीनी, विषय रति अरति नारी रे; .. नय विजय प्रभु तुहीं निरागी, तुं ही मोटा ब्रह्मचारी... थाशुं... ४
(२१) नेमि निरंजन नाथ
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. राग - आज मारा प्रभुजी नेमि निरंजन नाथ हमारो, अंजन वर्ण शरीर; पण अज्ञान तिमिरने टाळे, जीत्यो मनमथ वीर... प्रणमो प्रेम धरीने पाय, पामो परमानंदा; यदुकुलचंदा राय ! मात शिवादेवी नंदा... प्रणमो प्रेम...१ . .
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राजीमती शुं पूरव भवनी, प्रीत भली परे पाळी, . पाणिग्रहण संकेते आवी, तोरणथी रथ वाळी... प्रणमो प्रेम...२ अबळा साथे नेह न जोड्यो, ते पण घन्य कहाणी, एक रसे बहु प्रीत थइ तो, कीर्ति कोड गवाणी... प्रणमो प्रेम...३ चंदन परिमल जिम, जिम खीरे धृत एकरूप नवि अलगा, इम जे प्रीत निवासहे अहनिश, ते धन गुण सुविलगा... प्रणमो प्रेम...४ इम एकंगी जे नर करशे, ते भव सायर तरशे, ज्ञानविमल लीला ते धरशे, शिवसुंदरी तस वरशे... प्रणमो प्रेम...५
(२२) नेमिसरजिन बावीसमोजी
(राग - मारो मुजरो ल्योने राज... आज मारा प्रभुजी) नेमिसरजिन बावीसमोजी, वीसमो मुज मनमाहि; श्री हरिवंश मेरूगिरिमंडन, नंदनवन यदुवंश; .. . तिहां जे जिनवर सुरतरूउदयो, सुरनर रचित प्रशंस... नेमी... १ समुद्रविजयनृप शिवादेवीसुत, शौरीपुर अवतार; अंग तुंग दश धनुष मनोहर, अंजन वरण उदार... नेमी... २ एक सहस संवत्सर जीवित, लंछन शंख सुहाय; सुर गोमेध अंबिकादेवी, सेवती जस नित पाय... नेमी... ३ केशवनो बळ मद जेळे गाळ्यो, जिम हिम गाळे भाण; जेणे प्रतिबोधि भविअण कोडि, मोडी मनमथ बाण... नेमी... ४ राजीमती मन कमल दिवाकर, करूणारस भंडार; . ते जिनजी मनवंछित देजो, भाव कहे अणगार... नेमी... ५ ।।
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२३) देखो माइ ! अजब
(राग - जिन तेरे चरण की शरण ... )
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देखो माइ ! अजब रूप जिनजी को ....
इनके आगे और सब को, रूप लागे मोंहे फिको... देखो...
नयन करूणा अमृत कचोले, मुख सोहे अति निको... देखो.... कवि जशविजय कहे ए नेमजी, प्रभु त्रिभुवन टीको... देखो....
(२४) महेर करो मनमोहन
(राग - निरख्यो नेमि जिणंदने... )
महेर करो मनमोहन दुःखवारणजी, आवो आणे गेह चित्तठारणजी; रोष न कीजे राजीया दुःखवारणजी, आणो हइडे नेह चित्तठारणजी... १ काल जशे कहाणी चहेरो दुःखवारणजी, जग विस्तरशे वात चित्तठारणजी; कोइ मुजने नरती कहशें दुःखवारणजी, कोइ वली तुम्हने कुभात चित्तठारणजी... २ पहिलि वात विमासीये दुःखवारणजी, तो न होय उपहास चित्तठारणजी; जो होयें घर आपणो दुःखवारणजी, तोहिज दीजें आश चित्तठारणजी...३ विण तरूअर वनवेलीने दुःखवारणजी, कुण राखे ? निज छांहि चित्तठारणजी; कंत विना तेम नारीने दुःखवारणजी, कुण अवलंबे ? बांहि चित्तठारणजी...४ नेह नथी मुज कारमो दुःख वारणजी, निश्वे जाणो नाथ चित्तठारणजी; देह तणी जिमछांहडी दुःखवारणजी, नहीं छांडु तिम साथ चित्तठारणजी...५ दुःखीयाना दुःख टाळवा दुःखवाराणजी, शुं शुं न करे संत ? चित्तठारणजी; तो मुज आप उत्तम थइ दुःखवारणजी, कां उवेखो कंत चित्तठारणजी... ६ इम कहती राजिमती दुःखवारणजी, पोहती गढ गिरनार चित्तठारणजी; विनय कहे जइ मुगतिमां दुःखवारणजी, भेट्यो निज भरतार चित्तठारणजी...७
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(२५) शौरीपुर सोहामणु रे
(राग-एक दिन पुंडरिक गणधरूं रे लाल...) शौरीपुर सोहामणुं रे लाल, समुद्रविजय नृप नंद रे सोभागी, शिवादेवी माता जमनमीयो रे लाल, दरिसण परमानंद रे सोभागी...१ नेमि जिनेसर वंदिये रे लाल... जोबन वय जब जिन हुआ रे लाल, आयुधशाळा आय रे सोभागी, शंख शब्द पूर्यो जदा रे लाल, भय भ्रांत सहु तिहा थाय रे सोभागी...२ हरि हइडे एम चिंतवे रे लाल, ए बलियो निरधार रे सोभागी, देव वाणी तब इम हुए रे लाल, ब्रह्मचारी व्रतधार रे सोभागी...३ अंते उरी सहु भेली थइ रे लाल, जल श्रृंगी कर लीधरे सोभागी, मौन पणे जब जिन रह्या रे लाल, मान्यु - मान्यु एम कीध रे सोभागी...४ उग्रसेन राय तणी सुता रे लाल, जेहनु राजुल नाम रे सोभागी, जान लेइ जिनवर गया रे लाल, फल्यो मनोरथ ताम रे सोभागी...५ पशुय पोकार सुणी करे रे लाल, चित्त चिंते जिनराय रे सोभागी, धिग् ! विषया सुख कारणे रे लाल, बहु जीवनो वध थाय रे सोभागी...६ तोरणथी रथ फेरीयो रे लाल, देइ वरसी दान रे सोभागी, संजम मारग आदर्यो रे लाल, पाम्या केवळ ज्ञान रे सोभागी...७ अवर न इच्छु इण भवे रे लाल, राजुले अभिग्रह लीघ रे सोभागी, प्रभु पासे व्रत आदरी रे लाल, पामी अविचळ रिद्ध रे सोभागी...८ गिरनार गिरिवर उपरे रे लाल, त्रण कल्याणक जोय रे सोभागी, श्री गुरु खिमाविजय तणो रे लाल, जश जग अधिको होय रे सोभागी...९
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(२६) नेमि जिनेसर वाल्हो रे... .
(राग - सरस्वती स्वामिने विनवू रे मनना रसीया...) नेमि जिनेसर वाल्हो रे, राजुल कहे इम वाण रे... मनवसीया एहज में निश्चय कीयो रे, सुखदायक गुण खाण रे... शिवरसीया... १
कृपावंत शिरोमणि रे, में सुण्यो भगवंत रे... मनवसीया
हरिण-शशादिक जीवने रे, जीवित आप्युं संत रे... शिवरसीया... २ मुज कृपा ते नवि करी रे, जाणुं सहि वीतराग रे... मनवसीया याचक दुःखीया-दीनने रे, दीधुं दान महाभाग्य रे... शिवरसीया... ३
मागुं हुं प्रभु एटलुं रे, हाथ उपर द्यो हाथ रे... मनवसीया - ते आपी तुम नवि शको रे, आपो चारित्र हाथ रे... शिवरसीया... ४ चारित्र ओथ आपी करी रे, राजुल निज सम कीध रे... मनवसिया ऋद्धि कीर्ति पामी करी रे, अमृत पदवी लीध रे... शिवरसीया... ५
(२७) नेमिजिन सांभळो
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(राग - तार मुज तार - ऋषभ जिनराज...) नेमिजन सांभळो विनति मुज तणी, आश निजदासनी सफळ कीजे,
ब्रह्मचारी शिरसेहरो तुं प्रभो, तात मुज वात तुं चित्त धरीजे... १ नगर शैरीपुर नाम रळीयामगुं, समुद्रविजयाभिधे भूप दीपे, श्री शिवादेवी नंदन करूं वंदना, अंजनवान रतिनाथ जीपे... २
शंख उज्जवल गुणा शंख लांछन थकी, सार इग्यार गणधर सोहावे,
आउ एक सहस वरस माने का, अंग दशधनुष माने कहावे... ३ . यक्ष गोमेधने अंबिका यक्षिणी, जैनशासन सदा सौख्यकारी, अढार हजार अणगार श्रुतसागरा, सहस चालीश अज्जाविचारी... ४
कांचनादिक बहु वस्तु जगकारमी, सार संसारमा तुं ही दीठो, प्रमोद सागर प्रभुहरखथी निरखतां, पातिकपूर सविदूरनीठो...५
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( २८ ) बावीसमा नेमि जिणंद
(राग - यह है पावनभूमि... )
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बावीसमा नेमि जिणंद, मुख दीठे परम आणंद,
भवि कुमुद चकोरी चंद, सेवे वृंदारक वृंद... बावीसमां... १ परमातम पूरण आनंद, पुरुषोत्तम परम मुणिंद,
जय जय जिनजगत जिणंद, गुणगावे त्रिभुवन वृंद... बावीसमां...२
धीरीम जित मेरूगिरींद, गंभीरम शयन मुकुंद,
सदा सुप्रसन्न मुख अरविंद, दंत छबि चित्त मसि कुंद... बावीसमां... ३ श्री समुद्रविजय नींद, माता शिवादेवीना नंद,
वारंता प्रभु भवभय फंद, दूरे कर्या दुःख कंद... बावीसमां...४ जेणे जीत्या मोह मृगेंद, शिवसुख भोगी चिदानंद,
वाघजी मुनि शिष्य भाणचंद्र, इम विनवे हर्ष अमंद... बावीसमां...५
२९) नेमिजिन जादवकुळ
(राग - चांदी की दिवार ना तोडी ...)
नेमिजिन जादवकुळ तार्यो, नेमिजिन जादवकुळ तार्यो, एकही एक अनेक उपरे, कृपा धरम मन धार्यो... नेमि ... १
विषय विषोपम दुःख के कारण, जाणी सबी सुख छायो, जमीन पशुहित कारन, मदन सुभट मद गार्यो... नेमि .. २ आप तरी राजुलकुं तारी, पूरव प्रेम समार्यो,
हे जिनहर्ष हमारी किरपा, क्या मनमांही विचार्यो... नेमि .. ३
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(३०) सांभळ स्वामी चित्तसुखकारी !
(राग - इतनी शक्ति हमे देना ... ) सांभळ स्वामी ! चित्त सुखकारी ! नवभव केरी हुं तुज नारी ! प्रीति विसारी कां प्रभु मोरी, कयुं रथ फेरी जाओ छोरी १
...
तोरण आवी शुं मन जाणी ? परिहरी माहरी प्रीति पुराणी,
किम वन साधे ? व्रत लीये आधे विण अपराधे श्ये प्रतिबंध ?... २ प्रीति करीने किम तोडीजे, जेणे जस लीजे ते प्रभु कीजे,
जाण सुजाण ज ते जाणीजे, वात जे कीजे ते निवहीजे ... ३ उत्तमही जो आदरी छंडे, मेरू महीधर तो किम मंडे ?
जो तुम सरीखा सयण ज चूके, तो किम जलघर धारा मूके... ४ निगुणा भूले ते तो त्यागे, गुण विण निवही प्रीति न जाये,
पण सुगुणा जो भूली जाये, तो जगमां कुणने कहेवाये ?... ५ एक पंखी पण प्रीति निवाहे, धन धन ते अवतार आराहे, इम कही नेमशुं मली एकतारे, राजुल नारी जड़ गिरनारे... ६ पूरण मनमां भाव धरेइ, संयमी होइ शिवसुख लेइ,
म शुं मलीया रंगे रलीया, केशर जंपे वंछित फलीयां... ७
( ३१ ) एह अथिर संसार - स्वरूप
(राग - आंखडी मारी प्रभु )
एह अथिर संसार - स्वरूप छे इस्यो, क्षण पलटाए रंगपतंग तणो जिस्यो ! बाजीगरनी बाजी जेम जूठी सही, तिम संसारनी माया ए साची नही... १
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गगने जिम हरिचाप पलक एक पेखिये खिणमांहे विसराल थाये नवि देखिये, तिम एह यौवन-रूप सकल चंचल छे,
चटाको छे दिन चार विरंग हुए पछे... २|| जिम कोइक नर राज्य लहे सुपना विशे, हय-हाथी-मढ-मंदिर देखी उल्लसे; जब जागे तव आप रहे तिम एकलो, तेहवो ऋद्विनो गारव तिल पण नहि भलो...३
देखीतां किपाकतणां फल फूटरां, खातां सरस स्वाद अंते जीवितहरां; तिम तरूणी तनुभोग तुरत सुख उपजे,
आखर तास विपाक कटुक रस निपजे... ४ ए संसार शिवासुत एहवो ओळखी, राज रमणी ऋद्धिछोडी थया पोते रिखी; कर्म खपावी आप गया शिवमंदिरे, दानविजय प्रभु नामथी भवसागर तरे... ५
(३२) नेमजी रे तोरण
(राग - बेना रे...) नेमजी रे तोरण आवीने पाछा न जवाय, कुंवारी कन्या राणी राजुल कहेवाय, भावना प्रभु गुण गाय, सामे ज थाय... कुंवारी... १ आठ भवोनी प्रितलडीने, नवमे भवे ना तोडाय (२) बाल ब्रह्मचारी राजुलबाळा, विनवे नेमजीने पाय (२).. नेमजी रे पाछा वळीने, अमारो पकडोने हाथ... कुंवारी... २
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पशुतणो पोकार सुणीने, रथ पाछो वाळ्यो (२) ध्रुसके रुवे राजुलबाला, धरणी पर छे धराणी (२) नेमजी रे पाछा वळीने, तिहा दीधुंवरसीदान... कुंवारी...३ पंचावन में दिन प्रभुजी, पाम्या केवल ज्ञान (२) सुणी वधामणी राजुलबाला, प्रभुजीने चरणे जाय (२) नेमजी रे दीक्षा आपी कर्म खपावी, मुक्तिपुरीमा जाय... कुंवारी... ४ केवल कल्याणक जे कोइ गाशे, लेशे मुक्तिनु राज (२) नेमजी पहेला पहोंची राजुल, मुक्तिने गोतवा जाय (२) नेमजी रे हीर विजय गुरु, हीरलोने वीर विजय गुणगाय... कुंवारी... ५
| गिरनार नेमिनाथ अर्वाचीन स्तवन विभाग
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(राग - सौ चालो सिध्धगिरि जइए...)
सौ चालो गिरनार जइए, प्रभु भेटी भवजल तरीये;
. सोरठ देशे तरवार्नु मोटु जहाज छे... सौ.१, ज्यां सन्यासीओ बहु होवे, धर्मभावथी गिरिवर जोवे;
' एवं सुंदर जूनागढ गाम छे... सौ.२, ज्यां गिरनार द्वार आवे, विविध भावना सौ भावे;
एवं मोहक रणीयामणुं आ स्थान छे... सौ,३, ज्यां तणेटी समीपे जातां, आदेश्वरना दर्शन थाता;
धर्मशाळा ने बगीचो अभिराम छे... सौ.४, ज्यां गिरि चढतां जमणे, अंबा सन्मुख उगमणे;
सस्तके पगलां प्रभु नेमिकुमारना छे... सौ.५, ज्यां गिरि चढंता भावे, भव्यात्मा कर्म खपावे;
एवो मारग मुक्तिपुरी जाय छे... सौ.६,
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ज्यां चडाण आकरा आवे, दादानी याद सतावे; जपतां हैये हाश मोटी थाय छे... सौ.७, ज्यां पहेली टूके जातां दहेराना दर्शन थातां; प्रभुने जोवा हैयुं घेलूं थाय छे... सौ.८, चोवीसी मांहे, सागरप्रभुना काळे;
ज्यां अतीत
इन्द्रे भरावेल मूरतना दर्शन थाय छे... सौ . ९, ज्यां शत त्रणं पगला चडतां, गौमुखी ए पाद धरतां; चोवीस प्रभुनां पगलां पावनकार छे... सौ . १०, ज्यां अंबा- गोरख जातां, शांबप्रद्युमनना पगला देखातां; नमन करतां सौ आगळ चाली जाय छे... सौ . ११, ज्यां पांचमी टूंके पहोतां, मोक्षकल्याणक प्रभुनुं जोतां; रोमेरो आनंद अपार छे... सौ . १२, ज्यां सहसावने जातां दीक्षा-नाण प्रभुना थातां; पगले पगले कोयलना टहूकार छे... सौ . १३, ज्यां जिनशासनना पाने, प्रथमचोमासुं तळेटी थावे; छत्रछाया हिमाशुं सूरि राय छे... सौ . १४, ज्यां वीर छव्वीससो वरसे, हेम नव्वाणुं वार फरशें ; प्रेम-चंद्र-धर्म नी पसाय छे... सौ.१५,
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वंदो गिरनारने रे..
(राग - पूजो गिरिराजने रे ... )
वंदो गिरनारने रे... पूजो गिरनार ने रे...
ए गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेता नावे पार... रे... वंदो... अवसर्पिणीना छ आरे रे, विधविध नाम घरे... वंदो... छव्वीस योजन पहेले आरे, कैलासगिरि जे कहे... वंदो...
उज्जयंत नामे वीस योजननो, बीजे ते आरे रहे... वंदो ....
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रैवतगिरिवर बीजे आरे, षट्दस मान धरे... वंदो...
स्वर्णगिरि अभिधा चोथे आरे, योजन दसनो बने... वंदो... प्रभु शासन तिहा प्रवर्ते, धर्मनी हेली वहे... वंदो...
बे योजन मान गिरनारनुं रे, नेमि भजो पंचमे... वंदो... छठे आरे नंदभद्र नामे, शतधनु ते रहे रे....
विविध अभिधा एम धरे रे गिरिगुण हेम करे... वंदो... रूडा रूडा गिरनारना शिखरो...]
(राग - ऊंचा ऊंचा शत्रुज्यना शिखरो..) . (मेरा जीवन कोरा कागझ) रुडा रुडा गिरनारना शिखरो सोहाय (२)
वच्चे मारा दादा केरा, देराओ देखाय... रुडा रुडा... ||. . आदिश्वरना दरशन करी,
तलेटीए लागुंपाय (२) नेमजीना चरण नमीने,
मनई मारुं धाय (२) ए गिरिवरखें ध्यान धरतां, भवचोथे शिव थाय... | एक एक पगले प्रभु समरतां,
नाचे मननो मोर (२) : श्वासेवासेजपुंजिनने
पगमां आवे जोर (२) तीर्थकरो सिध्या अनंता व्रतनाण पामी दोय... पहेली ढूंके देवकोट मांहे,
नेम प्रभु देखाय (२) नयां मारा धन्य बनेने,
हैये हर्ष न माय (२) मानवभवनो ल्हावो लइने फेरो सफलो थाय...
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चौदे चैत्यना दर्शन पामी,
लळी लळी लागुं पाय (२)
गजपदकुंडनुं जल फरसता,
अंतर भीनुं थाय (२) जिनवर केरी भक्ति करता, पापो दूर पलाय...
चोवीसजिनना पावन पगलां,
गौमुख गंगामांय (२)
रहनेमिना दर्शन करीने,
अंबाटूक जवाय (२) अंबाजीमां शांबजीना, चरण बे सोहाय...
चोथी टूंके गोरख जाता,
प्रद्युम्न पाद देखाय (२)
चोतरफ अवलोकन करतां,
आनंद अति उभराय (२) पांचमी ट्रंके नेमप्रभुजी, मुक्तिगामी थाय... ६. नेमीश्वर ज्यां व्रत ग्रहीने,
पाम्या केवल सार (२)
राजीमतीजी शिववर्या ते,
. सहसावन मनोहर (२)
घाती-अघाती कर्मों खपावी, पहोंता मुक्ति मोजार... अनंतजिन कल्याणक जाणो,
पावन गढ गिरनार (२)
गुणला ए रैवतगिरिना
कहेता न आवे पार (२)
वदे त भावे भजीलो, दादा छे उदार...
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पल पल तारं स्मरण.... __. (राग : अक घडी प्रभु उर अकांते) पल पल तारुं स्मरण हो जीवनमां, निशिदिन दर्शन मले, माएं जीवन धन्य बने, मारा भवनुं भ्रमण टळे... माएं... गिरनारतीर्थनो वासी व्हालो, महिमा अपरंपार,
तीर्थंकरो सिध्या अनंता, पाम्युं सिद्धपद सार... माउं... २ तारा दर्शन काजे दादा, नित्य संवारे दोडु,
ओक वेळा मनमंदिर पधारो, अंतर द्वार खोलुं... माएं... __आंखडी तारी कमळ पांखडी, अद्भुत रुप सोहे,
तारुं मुखडं जोतां माएं, हैयुं गद्गद् बने... माएं... ४ खाली हाथे आव्या सौने, खाली हाथे जावं,
- आ जीवनमां तुजने पामी, तारा गुणला गा... माएं... ५ आ भव परभव अटलुं मांगु, तारुं शरण मळे, __ना रहे कोई द्वेष जीवनमां, ना क्यांय राग रहे... माएं... ६ तारे द्वारे आव्यो छु हुं, संचित कर्मो लईने,
तपानलना तापे आतम, हेम सुशुद्ध बने... माई...
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माता शिवादेवीना नंद...
(राग : माता मरुदेवीना नंद) • माता शिवादेवीना नंद, सती राजीमतीना कंत; निरखी ताहरु मुखडु, माएं हैयुं भीजाणुं रे
के मारुं चित्तडं चोराणुं रे... १ अंतानी अंतर्दशी, काया श्यामल वान; शंखलंछनधर स्वामिजीरे, दास धनु काय प्रमाण... २
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राजुल आंगणे आव्या स्वामि, सुण्यां पशुपोकार; दीलडं दाझ्यु मनडुं साध्यु, संयम लेवा सार... ३ व्रत ग्रां सहसावनमां ने, पाम्या केवळज्ञान; पांचमी ढूंके सिद्धिवर्या प्रभु, आयु सहस प्रमाण... ४ जगहितकारी जगना बांधव, जगना तारणहार; भक्त वत्सल प्रभु नाम धरावो, आपो निजपद सार...५ . गांधर्वो सौ नृत्य करंता, गुणला गावन काज; सुरवर कोडी सेवा करंता, लेवा मुक्तिनुं राज...६ श्री गिरनारजी तीरथकेरा, योगी नेमिजिणंद; वल्लभ छो भविजनो केरा, हेम वदे मुणिंद...७
| में भेट्या युदकुळमंडन...
(राग : में भेट्या नाभिकुमार) में भेट्या युदुकुळमंडन, में भेट्या शिवादेवीनंदन; दरशन तारुं सफळ बन्यु, मारो सफळ थयो अवतार...१ जगमा तीरथ बे वडां रे, शत्रुज्य गिरनार; अक गढ ऋषभ समोसर्या रे, अक गढ नेमकुमार...२ यदुकुलवंश उजाळीयो रे, ब्रह्मचारी कीरतार; श्यामलंवरणी देहडी रे, शंखलंछन मनोहार...३ सोरठमंडन तुं धणी रे, निरखतां हरखनां पूर; श्रद्धा केरा पुष्पे वधावतां, थाय मिथ्यात्व दूर...४ पशुतणो पोकार सुणीने, आवी करुणा अपार; राह निरखती राजीमतीने, त्यजतां लागी ना वार...५ दीक्षा लीधी सहसारे वनमां, पाम्या केवलसार; शिवरमणीने ते तो वर्या, पांचमी ढूंक मोजार...६
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काश्मीर देशथी संघ पधारे, करवा भक्ति खास; मूरतितणो लेप गळंता, थाय रतनने त्रास...७ नवल पडिमा पामवा काजे, आदरे ते उपवास; स्वर्णगुफाथी अंबा आपे, बिंब रतनने खास...८ अतित चोवीशी सागर काळे, इन्द्रे भरावी तास; कृष्णादिके पूजी जाणतां, थाय तेने उल्लास...९ पोष मास सोहामणो ने, सुद सातम सोमवार; वीर छव्वीस शताब्धि वरसे, नव्वाणुं थई सुखकार... १० भव अनंता भमतां भमतां, क्यांये ना आव्या हाथ; प्रचंड पुण्यनो उदय थातां, आप्यो हेमने साथ ... ११
बाल ब्रह्मचारी नेमजी...
( राग : जगजीवन जगवालहो..., नेमिजिन पंचकल्याण स्तवन ) बाल ब्रह्मचारी नेमजी, शिवादेवीनो नंद लाल रे,
निर्विकारी निरमल, धरिया गुण अनेक लाल रे... १
आसो वद बारसे प्रभु, अवतर्या मातनी कूखे लाल रे, श्रावण सुद पंचमी वळी, जन्म्या शौरीपुरी गाम लाल रे... २
दस धनुषनी देहडी, श्यामल वर्ण अंग लाल रे, श्रावण सुद छठे विभु, व्रत गहे सहसावन लाल रे... ३
भादरवा वदि अमास दिने, पाम्या ज्ञानप्रकाश लाल रे, अषाढ सुदि आठमे जिन, वरिया शिवपुरवास लाल रे... ४
आयुवरस हजार रही, जगमां वल्लभ थाय लाल रे, हेम स्तवे भावे भजो, कल्याणक ते पंच लाल रे....५
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जगवत्सल जगबांधव रे...
(राग : बालुडो निःस्नेही थई गयो रे ... ) जगवत्सल जगबांधव रे, दयासागर अपार (२) भोळा पशु उगारवा, छोडी चाल्या घरबार (२) मेरो चित्त चोरी गयो साहिबो ... १
स्वामीनी प्रीत नित सांभरे रे, साले विरह अपार (२) नवभव नेह विसारियो, सूण्यो पशुडानो साद (२) मेरो चित्त.... २ मजी वैरागी थई गया रे, छोड्यो राजुलनो हाथ (२)
संयम रमणी आराधवा, लेवा शिवपुरनो साथ (२) मेरो चित्त... ३ राजुलने मेली ओकली रे, जाय दिन नवि रात (२)
हृदय सिंहासन बेसवा, झूरे हैयुं अपार (२) मेरो चित्त... ४ सहसावने संयम वरे, पामे केवळज्ञान (२)
हेमपरे कर्मशोधतां, वरे वल्लभ स्थान (२) मेरो चित्त... ५
मेरा आतम तेरे हवाले...
( राग : मेरा जीवन तेरे हवाले... )
मेरा आतम तेरे हवाले, प्रभु इसे हरपल तुंही संभाले,
ये आतमधन तुजसे पाया, कर्मोंने तो डेरा डाला (२) मेरे दोषोको तुं ही मीटा दे... प्रभु... १
भवसागरमें मेरा आतम, डूब रहा है ओ तरवैया (२)
इसे आकर तुंही बचावे.... प्रभु... २
रागद्वेषने डंश लीया आकर, कैसे बचुं में झहर को खाकर (२)
इस विषको तुंही उतारे...
प्रभु... ३
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जनममरण की भूल भूलैया में, मेरा आतम भटक रहा है (२)
तुं ही आकर राह दिखा दै... प्रभु...४ मोहमाया के बंधन तोडो, हे प्रभु अपने चरणो में ले लो इस पापी को तुं ही अपना ले... प्रभु...५ मिथ्यामतमें दरदर भागा, विषय कषायको कभी नहीं त्यागा (२)
____ ज्ञानज्योतिको तुं ही जला दे... प्रभु...६ स्वर्णगिरि की गोदमें आकर, बिनती करे हेम चरणोका चाकर (२)
इस आतमको सिद्ध बना दे... प्रभु...७
आतमजीने आ खोळीयु....
- (राग : पंखीडाने आ पीज...) आतमजीने आ खोळीयुं, बंधन बंधन लागे, धणुंय मथे पण आतम, मुक्ति पद न पामे... आतमजी....१
मनोरथ कीधां अणे, आतम अजवाळवा, भगीरथ कर्या प्रयासो, सिद्धे सिधावा,
मुक्ति पुरीओ जावा, तलप अने लागी...२ नरक तिर्यंचनी, गतिमां पटकायो, देव-मनुज भवे, मोहमायामां सपडायो,
जागृत थइने हवे, धर्मना रंगे म्हाले...३ राग अने द्वेषना, पाशमा फसायो, क्रोधने माननी, ज्वाळामां झडपायो,
__ तपना तापे तपीने, हेम सम मारे थावं....४
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यात्रा नव्वाणुं करीओ...
(राग : यात्रा नव्वाणुं करीओ...) यात्रा नव्वाणुं करीओ रैवतगिरि... यात्रा नव्वाणुं तीर्थंकरो अनंता सिध्या, दीक्षा-केवल धरीने... रैवतगिरि...१
__ घेर बेठां तस ध्यान धरंता, चोथे भवे शिव लहीओ..२' अरिहंतपदनो जाप जपतां, कर्म मल सवि हरीओ...३
त्रण-त्रण कल्याणक नेमिजिनना, आराधी भव तरीओ...४ गजपदकुंडना जलने फरसतां, आधि-व्याधि दूर करीओ...५
____ अतीत चोवीसी माहे घडेला, पडिमा पूजी हरखीओ...६ सहसावने व्रत-ज्ञान वरंता, चरण नमी अघ हरीओ...७ .. ___ नव्वाणुं वार ओ गिरि चढंता, भवरण नवि भमीओ...८ हेम वदे ओ तीरथ सेवतां, वल्लभपदने वरीओ...९
| तारी कीकी कामणगारी रे..
(राग : तारी अजब शी योगनी मुद्रा रे...) तारी कीकी कामणगारी रे, लागे मने मीठी रे, .. ते तो करुणारसनी प्याली रे, घट घट पीधी रे...१
शांत सुधारस नयन कचोळे, नेण ठर्या तत क्षिण रे,
पुनमचंद जिम वदन सोहे, पेखी पीगळ्युं मन मीण रे...२ मेघ सम तुम देह लताओ, चमके विद्युत जिम कांति रे मेघनाद जिम गंभीर गाजे, वाणी भांजे मोह भ्रांति रे...३
निर्मळ आतम पेखण काजे, तुम दरिसणे रढ लागी रे, सोहम् पदनुं ध्यान ध्यावत, शुद्धि मति तिहां जागी रे...४
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स्नेह तुमारो मीठो मधुरो, आस्वादे मन भमरो रे, गुणपराग जिम जिम चाखे, पुद्गल राग लागे खारो रे...५
नेमि निरंजन नयणे निरख्यो, रैवतगिरि मोझार रे, निर्वाणपद मने देजो प्रभुजी, सहजानंद दातार रे...६
जगतिमिरने मिटावन
(राग : संयम जीवननो लीयो मारगडो..) जगतिमिरने मिटावन काजे, विचरे योगी सहसावन रे, क्यारेक करीने ऊंचा हाथ, ऊभा रहे छे आतम ध्यान रे (२) जग तिमिरने १ परिषह-उपसर्ग सहेता सहेता, ते तो महालता निजानंदमां, अद्भूत अहनुं रुप खील्युं छे, वनराजी पण साख पूरे छे (२) जय तिमिर २ गिरनारगिरिओ योगी वसे छे, साधनाना शिखरे नित घसे छे, पूरण थाता चोप्पन दिवसे, काळी अमासना भाद्रमासे (२) जग तिमिरने ३ अपूरव ओवी घटना घटे, वनवगडामां तेज वहे रे, भेदन थाले मोह अंधकार, देव-दुंदुभिनो थाये रणकार (२) जग तिमिरने ४ समुद्रविजयसुत त्रिजगवंदन, अरिहापद लहे शिवानंदन, हर्षे भरेला सुरपति आवे, विविध देवगण साथे लावे (२) जग तिमिरने ५ विश्व विभुने वंदे भावे, परमानंद सौ निजमन पावे, धन्यधराओ मुगति जावे, हेम तिहा रही गिरिगुण गावे (२) जग तिमिरने ६
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नेमिवर निराला...
(राग : सावन का महिना). नेमिवर निराला, निरंजन निर्विकार पूजे वंदो भावे, थाये बेडो पार...१
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पशुतणा पोकार सूणीने, दया अतिशय दिलमां आणी; करुणाना छे स्वामी, आतमना हितकार... पूजो २
राजीमतिने साथ ना आप्यो, मस्तके तेना हाथने थाप्यो; कर्मकलंक निवारे, मुगतिना दातार... पूजो ३ कृष्णरायने मारग आपे, भक्ति करतां जिनपद थापे; निजपदना दातारी, करुणाना करनार ... पूजो ४
जे कोइ नेमि जिनने ध्यावे, कामज्वर तेना पलमां शमावे; ब्रह्मचारी शिरनामी, अविचल अविकार... पूजो ५ रैवतगिरि से दीक्षा लेवे, नाणने निर्वाण तिहां ते पावे; गिरनार गिरिने ध्यावे, हेम होवे सुखाकार... पूजो ६
गिरनार गिरिवर...
( राग : नगरी नगरी द्वारे द्वारे )
गिरनार गिरिवर समता आपे, काम क्रोधने कापे; तेनी भक्ति करतां जे कोइ, शिव सुख सौने आपे... पातकी-घातकी जे कोई आवे, सौने तिहा समावे कर्ममलं सौ दूर निवारी, परमपदने आपे... सूक्ष्म - बादर जे जीव आवे, शिवसुख संबल पावे चउगति केरा फेरा विरामी, मुगतिपुरीओ जावे...
कामविकारी भोगसुखकारी, ओ गिरिने जे फरशे, मोहरायने दूर हटावी, अविचल सुखडां वरशे...
घेर बेठां से गिरिने ध्यावे, भवचोथे शिव पावे; हेम संगे सौ जगना प्राणी, गिरिवर गुणलां गावे....
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गिरनार ... १
गिरनार ... २
गिरनार... ३
गिरनार ... ४
गिरनार...५
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घडियां धन्यतापाइ...
( राग : अखियां हरखन लागी हमारी )
घडियां धन्यता पाइ हमारी...
गिरि गिरनार निरंजन सांई, देखत हरखन न माइ... दूर देशमें फिरत फिरत में, तुज भक्ति मन लाइ...
बावीसमां जिन नेम नगीना, निरखत पाप धोवाइ... मूरत सुरत लागे मजानी, करत है भवकी जुदाइ... भव आवट में बहु पलटाइ, आतम गुण खुंदाइ... मोह महिपति केरी खाइ, दिन दिन मोटी खोदाइ ...
जनम जनम में ममता करके, तुम आणा नहि ध्याइ... वरदत्तादिक कैकने तारी, दीधी निज प्रभुताई.... राजुलराणीने पण तारी, दीधी शिव पधराइ... श्रेयपदनी लगन लगाइ, द्यो दर्शन गुण सांई...
श्री रे गिरनार भेटीने...
( राग : श्री रे सिद्धाचल भेटवा... )
श्री रे गिरनार भेटीने, हैये हरख न मायो; नेमिजिन भक्ति करी गिरिवर गुणमें गायो... श्री रे.... श्यामवरण तनु मनुं, देखी आनंद पायो;
ब्रह्मेन्द्रे पडिमा भरी, लीधो अनुपम लाहो... श्री रे... तस पुण्यपसायेलीये, संयम नेमनी पास;
वरदत्त गणधर थया, साधे सिद्धपद खास... श्री रे...
दीक्षा नाण प्रभु नेमना, सहसावन मोझार; पंचमे गढ लहे तेह, शिवपदवी उदार... श्री रे....
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॥२॥
अनंता जिनवर वरे, व्रत केवल निर्वाण; भवविश्राम अनंता लहे, जिनवचनथी जाण... श्री रे...
पावन ओ गिरि भोमका, कण कण हेम समाया; स्वर्णगिरि नामे जेह, वल्लभ पदने पाया... श्री रे...
गिरनारकं सदा...
(राग : जिनराजकुं सदा मोरी वंदना) गिरनारकुंसदा मोरी वंदना रे, गिरनारकुंसदा मोरी वंदना रे;
यात्रा नव्वाणुं करतां होवे, भवोभव पाप निकंदना रे... ॥१॥ छोरी पाळी रैवतगिरि आवी, नेमिनाथ जुहार रे;
लाख नवकार गणणुं गणीजे, पूजा नव्वाणुं प्रकार रे.... केवल दीक्षा कल्याणकभूमि, नेमिजिन चैत्य उदार रे;
प्रदक्षिणा काउस्सग्ग करीजे, अष्टोत्तर शतवार रे... चोविहार छठ्ठ करी सात यात्रा, गजपदना जले स्नान रे;
चौद चैत्य नववार नमीजे, देववंदन गुणगान रे... छओ आरे इण गिरिना, विध विध नाम वखाणो रे;
योजन छव्वीस वीस षोडश दस बे, छठेचशत हस्त मानोरे... ॥५॥ नव्वाणुं गिरि नाम भलेरा, तेहमां षट् छे मुख्य रे;
इण पावन तीर्थे आवीने, अनंत तीर्थंकर सिद्ध रे... पांचमे आरे 'गिरनार' सोहे छठे 'नंदभद्र' जणाय रे; - 'पारसगिरि' 'योगेन्द्र' 'सनातन', गिरिवर नाम कहाय रे... ॥७॥ गिरनार भक्ति रंग थकी रे, उपन्यो नेह अपार रे; __हेम वदे ओ तीरथ सेवंता, भवजल पार उतार रे... ॥८॥
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४
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॥६॥
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गिरनार गिरिवर नयणे...
॥२
॥
(राग : गिरिवर दरिशन विरला पावे) गिरनार गिरिवर नयणे निरखे, पूरव भव केरा पूण्य पसाये; । परिक्रम्मा सात ट्रॅक करे जे, दुःख दोहग तस दूर पलाये. ॥१॥ देवकोट नामे पहेले शिखरे, अनुपम चउद जिनालय सोहे;
बीजे अंबाजी गोरख त्रीजे, चोथे ओघड मुज मन मोहे.. परमपददायक पंचम शिखरे, नेम प्रभुजी मोक्षे सिधावे;
छठे अनसुया सातमे कालिका, सप्त शिखर इम गिरि सुहावे. ॥३॥ आवत इन्द्र इणगिरि उपरे, गजपद ठावीने कुंड बनावे;
नेमि जिणंदनी पूजा काजे, त्रिभुवन पावक जल तिहा लावे. ॥४॥ द्विजकुल पामी पूरव भवमां, साधु दुर्गछा करे तीव्र भावे; | कर्मवशे भवरणमा भमीने, दुर्गधा दुरभिपणुं पावे. गजपद कुंडनो महिमा सुणीने, रैवतगिरिवर यात्राओ आवे;
सात दिवस तस पावन जलथी, स्नान करी सुगंधित थावे. ॥६॥ पावन मे जलपानथी भविना, सघळां रोगो पलमा जावे;
निरमलनीरथी जिनने अर्ची, सर्व तीरथ पूजन फळ पावे. 'सुरभि' 'उदय' 'तापस' 'आलंबन', 'परमगिरि' 'श्रीगिरि' कहावे; ___ 'सप्तशिखर' 'चैतन्यगिरिवर', 'अव्ययगिरि ना सुरगुण गावे. ॥८॥ ध्येय रुपे गिरिवर ध्यावंता, आनंदघन आतम आराधे;
हेम परे तप तापे तपीने, त्रिभुवन वल्लभ शिवसुख साधे. ॥९॥
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५
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७
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गिरनारे चितडं चौर्यु....
(राग : सिद्धाचल शिखरे दीवो रे...) || गिरनारे चित्तडं चोर्यु रे, नेमीश्वरे मन मोह्यु रे ।
____विण दरिसण आयखं खोयु रे, नेमीश्वरे मन मोह्यं रे; आतमउद्वारने करवा रे, नेमीश्वरे मन मोह्यं रे; कीधा उद्धार गिरि गरवा रे, नेमीश्वरे मन मोह्यं रे .
गिरनारे चित्तईं... भरतेसर पहेला आवे रे, नेमी... नमे चोथे आरे भावे रे, नेमी... तीन कल्याणक नेमना जाणे रे, नेमी.... सुरसुंदर चैत्य रचावे रे, नेमी...
गिरनारे चित्तईं... ॥१॥ दंडवीर्य अष्टम पाटे रे, नेमी... करी उद्धार नेमनाथ भेटे रे, नेमी... हरि अजितनाथने आंतरे रे, नेमी... चउ उद्धार गिरि शणगारे रे नेमी...
. गिरनारे चित्तईं... ॥२॥ कोडी सागर लाख अग्यार रे, नेमी... सप्तम सगर उद्धार रे, नेमी... . चंद्रयश चंद्रप्रभ शासने रे, नेमी... करे तीर्थोद्वार बहुमाने रे, नेमी... .
. गिरनारे चित्तढुं... · ॥३॥ चक्रधर शांतिनाथ सुत रे, नेमी... तस नवमो उद्धार हुंत रे, नेमी.... रामचंद्रनो दसमो उद्धार रे, नेमी... अग्यारमो पांडव सार रे, नेमी...
गिरनारे चित्तद्दु... ॥४॥ रत्नश्रावके बारमो कीधो रे, नेमी... प्रभु थापी दर्शनामृत पीधुं रे, नेमी.... प्रभु बेठा पश्चिमा मुख रे, नेमी... भांगे भविजनना दुःख रे, नेमी...
. गिरनारे चित्तदु... ॥५॥ 'ध्रुव' 'परमोदय' 'निस्तार' रे, नेमी.. 'पापहर' 'कल्याणक' सार रे, नेमी... 'वैराग्यगिरि' 'पुण्यदायक' रे, नेमी... 'सिद्धपदगिरि 'दृष्टिदायक रे, नेमी....
गिरनारे चित्तढुं... ॥६॥ नामे निर्मल होवे काया रे, नेमी... प्रभु ध्याने नाशे जगमाया रे, नेमी... गिरि दरिसण फरशन योगे रे, नेमी... हेम सुखियो कर्म वियोगे रे, नेमी...
गिरनारे चित्तईं... ॥७॥
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जे गिरनारने ध्याया...
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(राग : हे त्रिशलाना जाया...) जे गिरनारने ध्याया, दोषो दूर पलाया; गिरिवर केरा उद्धार कराया, जीवो सद्गति पाया...
जे गिरनार.., ॥१॥ अनार्यदेश बेबीलोनना, नेबुचंद्र महाराया (२) पुत्रमुनि आद्रकुमारने, शोधन काजे आया (२) नेमिजिनालय जीरण देखी, जिर्णोद्वार कराया...
जे गिरनार... ॥२॥ बप्पभट्टसूरीश्वर साथे, आमराज गिरि आया (२) निजसंपत्ति व्यय करीने, शासनशान बढाया (२) . ओक ओक मंदिर सार करीने, हर्षोल्लास धराया...
जे गिरनार... ॥३॥ सिद्धराजनृप सज्जनमंत्री, रैवतगिरिवर आया (२) गामेगामथी उद्धार काजे, शिल्पीओ बुलाया (२) __ कर्णविहार प्रासाद करावी, जगमां कीर्ति पाया...
जे गिरनार... ॥४॥ वस्तुपाळने तेजपाळ वळी, कुमारपाळ तिहा आया (२) समरसिंह हरपति श्रीमाळी, चौदमां सैके आया (२) जयतिलक सूरि आणा लइने, नेमिभवन समराया...
.. जे गिरनार... ॥५॥ मालवदेव पंदरमे सैके, कल्याणकत्रय रचाया (२) लक्ष्मीतिलक नरपाल सजावे, पूर्णसिंह मनभाया (२) चतुर्मुख लक्षोबा करावे, वर्षमान पद्म आया...
जे गिरनार... ॥६॥
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शाणराज भुंभव तिहा आया, इन्द्रनील बनाया (२) प्रेमा संग्रामसोनी उद्धरिया, मानसिंह अपर बनाया (२) नरशी केशव वीसमी सदीमां, नीतिसूरि महाराया...
जे गिरनार... ॥७॥ नेमप्रभुओ दीक्षा-केवल, सहसावन में पाया (२) . पावन वह भूमिका महिमा, जबसे ध्यानमें आया (२)
हिमांशुसूरिरायने उसका, तीर्थोद्धार कराया....
__ , जे गिरनार... ॥८॥ आंबडमंत्री मानसिंह मेघजी, पाजगिरि समराया (२) पेथड-झांजण ओ गिरि आया, तीरथ ध्वज लहराया (२) - नामी अनामी केइ पुण्यवान, गिरिवर भक्ति पाया..."
जे गिरनार... ॥९॥ गिरिभक्तिनो महिमा मोटो, कहेता नावे पारा (२) जिनवयणने सूणतां सूणतां, कर दे भवनिस्तारा (२) आतम अनुभव तत्त्व प्रकाशी, पंचमगति दातारा...
. जे गिरनार... ॥१०॥ 'इन्द्र' 'निरंजन' 'विश्रामगिरिवर', 'पंचमगिरि गुणगाया (२) 'भवच्छेदक ने 'आश्रयगिरिवर', 'स्वर्ग', 'समत्व' सुखमाया (२) 'अमलगिरि' के जाप ने हेमको, आतमराम बनाया...
. जे गिरनार... ॥ ११ ॥
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नेमि निरंजन किमही ...
( राग : कयुं कर भक्ति करुं प्रभु तेरी... )
म निरंजन किमही न विसरे,
मनमोहनकी मोहनगारी, मूरत देखी हियडुं हरखे... गतचोवीसी त्रीजाप्रभु मुखे, ब्रह्मेन्द्र निज मुक्ति जाणी;
अंजनरत्न नेमप्रभुनी, भरे प्रतिमा भक्ति आणी... असंख्यकाळ ते प्रभुने पूजी, हरि ते प्रतिमा हरिने आपे;
द्वारिका नाश थतां जिनबिंबने, अंबिका निज भवने स्थापे... ॥ ३ ॥ नेम निर्वाण सहसदोय वर्षे, रत्नाशा छ 'रीपालित आवे;
गजपद जलना कळशा भरीने, वेळुबिंब भविजन नवरावे... गलत प्रतिमा प्रभुनी पेखी, आहार चार रत्न तिहा त्यागे;
उपवास करी अकमासने अंते, शासनदेवी अंबिका जागे... ॥ ५ ॥ वज्र अभेद्य रत्ननी पडिमा कलिकाल जाणी आपे रतनने; नेमिनाथ मूरत पधरावी, शोभावे गिरनारगिरिने... 'ज्ञानोद्योतगिरि' 'गुणनिधि' 'स्वयंप्रभ' नामे पाप पलाये;
'अपूर्वगिरि' 'पूर्णानंदगिरिवर', 'अनुपमगिरि' परेमुगते जाये... ॥ ७ ॥ ‘प्रभंजनगिरि' 'प्रभवगिरिवर', शोभे महितल अद्भुत काये;
॥ १ ॥
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॥ २ ॥
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॥ ६॥
'अक्षयगिरि' ओ सोरठदेशनी, पृथ्वी सघळी पावन थाये... 11 2 11 रोमे रोमे गिरनार गुंजे, श्वांसे श्वासे नेमिनाथ बिराजे,
हेमवल्लभ कहे नाम प्रभुनुं, जपीओ भवजल तरवा काजे... ॥ ९ ॥
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साथ गिरनारनो हाथ...
( राग : ऋषभ जिनराज मुज... ) ( जागने जादवा... ) साथ गिरनारनो हाथ नेमनाथनो, होय जो मस्तके तो शो तोटो;
11211 अन्य स्थाने रही ध्यावे रैवतगिरि, चोथे भव पामतो मोक्ष मोटो... मात तात घातकी पातकी अति घणो, राय भीमसेन गिरनार आवे, ॥२॥
मुनि बनी मौनधरी अष्टदिन तप तपी, उज्जयंतगिरिओ मुगति पावे... वस्तुपाल तेजपाल मंत्री साजनने, धार, पेथड श्रावक भीमो;
तीर्थभक्ति करी तन मन धन थकी, मनुज अवतार तस सफल कीनो ...॥३॥ छाया पण पक्षीनी आवी पडे गिरिवरे, भ्रमण दुर्गति तणा नाश थावे;
जल थल खेचरा इण गिरि पर रही, त्रीजे भव मोक्ष मोझार जावे ...॥ ४ ॥ | व्यक्त चेतन रहित पृथ्वी अप् तेजसा, वायु पादप गिरनार पामी;
तीर्थ महिमा थकी कर्म हळवा करी, सवि थया तेहथी मुगति गामी...॥५॥ 'रत्न', 'प्रमोद', 'प्रशांत', 'पद्मगिरि', 'सिद्धशेखर' भवि पाप जावे;
'चंद्र- सूरज गिरि', 'इन्द्रपर्वतगिरि', 'आत्मानंद' गिरिवर कहावे...॥ ६ ॥ कथीर कांचन हूवे पारसना योगथी, हेम परे शुद्ध निज गुण पांवे;
तिम रैवतगिरि योगथी आतमा, पदवी वल्लभ लही मोक्ष जावे... ॥७॥
मेरो
प्रभु...
( राग : मेरो प्रभु पारसनाथ आधार )
मेरो प्रभु, नेम तुं प्राण आधार,
विसरूं जो प्रभु ओक घडी तो, प्राण रहे ना हमार. भोग त्यजीने जोग लेवाने, नीकळ्या नेमकुमार,
गढ गिरनारने घाटे वसिया, ब्रह्मचारी शिरदार. तुज तीरथनी भक्ति करतां, थाय हरि ओक तार;
पद तीर्थंकर करे निकाचित, अकल तुज उपगार.
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·
॥ १॥
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|| 3 ||
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समतारस भरियो गुण दरियो, नेमनाथ गिरनार;
सुता जागता ध्यावं निशदिन, श्वासमांहि सो वार. ॥४॥ मन माणिककुं सोंप्यु में तो, मनमोहनने उधार;
प्रेम व्याज चूढ्यो छे इतनो, किम छूटशे किरतार. ॥५॥ हाएं नहि तुज बल थकीजी, सिद्धसुख दातार;
श्रद्धा भरी छे अंक हृदयमां, तुजथी पामीश पार. ॥६॥ 'आनंदधरगिरि', 'सुखदायी', 'भव्यानंद' मनोहार;
'परमानंदगिरि', 'इष्टसिद्धगिरि', 'रामानंद जयकार.॥ ७ ॥ 'भव्याकर्षणगिरि', 'दुःखहरगिरि', 'शिवानंद' सुखकार;
जगनायक नेमिनाथ कहावे, गिरिनायक शणगार. ॥८॥ शामळियाकुं अखियन जाणे, करुणारस भंडार; . हेमवदे प्रभु तुज अखियनकुंदीयो छबी अवतार. ॥९॥
तारो तारो नेमिनाथ...
(राग : बापलडां रे पातिकडां...) तारो तारो नेमिनाथ मने तारो, भवना दुःखडां वारो रे;
माहरे मन गिरनार गिरिवर, जाणो ओक सहारो रे... ॥१॥ जैनधर्मी अंबिका परणी, ब्राह्मण कुले जावे रे;
साधुने पडिलाभी हरखे, पुण्य पोटलियां पावे रे... ॥२॥ कटु वचन सासुना सूणीने, सुतदोय लेइ घर छोडी रे; __ गिरनार-नेमिनाथ रटतां-रटतां, पडे कूवे करजोडी रे...॥३॥ अम शुभध्यानथी उपनी भवने, गिरिओ नेम जूहारे रे;
थाये शक्र प्रभु परभाविका, शासन विध्न निवारे रे... ॥ ४ ॥ ब्राह्मण अतिहिंसक मिथ्यात्वी, अति व्याधि व्यापतो रे;
गिरनारगिरिनुं शरणुं पामी, यक्ष गोमेध ओ थातो रे... ॥ ५ ॥
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॥१॥
अशोकचंद्र दुःखी दारिद्री, गिरनारे तप तपतो रे; ।
आपे अंबिका पारसमणि, राजरिद्धिमां से रमतो रे... ॥ ६ ॥ संघसहित रैवतगिरि आवे, लेइ दीक्षा प्रभु ध्यावे रे;
घातीअघाती कर्मो खपावे, शिवसुंदरीने पावे रे... ॥७॥ 'उज्जवळ', 'आनंद', 'तीर्थोत्तमगिरि', 'महेश्वर', 'रम्य' जाणो रे;
'बोधिदाय', 'महोद्योत', 'अनुत्तर' 'प्रशमगिरि ने वखाणो रे...॥ ८ ॥ अमृतथी अतिमीठो प्रभुनो, प्रेमनो प्यालो पीधो रे; हेमवल्लभ प्रभु पादपद्ये, भ्रमर परे रस लीधो रे... ॥९॥
| तुम सरीखो दीठो...
(राग : निरख्यो नेमि जिणांदने..) तुम सरीखो दीठो नहि मन मोहन मेरे, जगमां देव दयाळरे सुण शामळ प्यारे, ____ पशु तणो पोकार सुणी मन मोहन मेरे, छोड चले राजुलनार रे सुण शामण प्यारे दीन दुखिःया सुखीया कीधा मन मोहन मेरे, धन दोलत वरसीदान रे सुण शामळ प्यारे, __रैवतगिरि सहसावने मन मोहन मेरे, सहस पुरुष संगाथरे सुण शामळ प्यारे । अजुआली श्रावण छठे मन मोहन मरे, सजे संजम शणगार के सुण शामळ प्यारे,
दिन चोपन करी साधना मन मोनह मेरे, करे पावनगढगिरनार रे सुण शामळ प्यारे ॥३॥ भाद्रवदी अमासना मन मोहन मेरे, बाळे धाती तमाम रे सुण शामळ प्यारे,
समवसरण सुरवर रचे मन मोहन मेरे, चोत्रीस अतिशय ताम रे सुण शामळ प्यारे ॥४॥ त्रिभुवन तारक पद लही मन मोहन मेरे. करे जगत उपकार रे सुण शामळ प्यारे,
मधुरगिरा जिनवर सुणी मन मोहन मेरे, भवतरिया नरनार रे सुण शामळ प्यारे पंचशिखर गिरनारे मन मोहन मेरे, पांचशो छत्रीस साथ रे सुण शामळ प्यारे,
___ अषाढ सुद आठम दिने मन मोहन मेरे, सोहे शिववधू संगाथ रे सुण शामळ प्यारे ॥६॥ 'मोहभंजक', 'परमार्थगिरि' मन मोहन मेरे, 'शिव स्वरुप' वखाण करे सुण शामळ प्यारे
'ललितगिरि', 'अमृतगिरि' मन मोहन मेरे, 'दुर्गतिवारण' जाण रे सुण शामळ प्यारे ॥७॥
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॥८
॥
-
'कर्मक्षायक', 'अजेयगिरि मन मोहन मेरे, 'सत्त्वदायक गिरि' जोय रे सुण शामळ प्यारे
गुण अनंत अगिरितणा मन मोहन मेरे, पार न पामे कोय रे सुण शामळ प्यारे नेमिनिरंजन साहिबो मन मोहन मेरे, बीजा न आवे दायरे सुण शामळ प्यारे,
कृपा नजर प्रभु ताहरी मन मोहन मेरे, हेमने शिवसुख थायरे सुण शामळ प्यारे
॥९॥
धन धन श्री गिरनारने...
॥
२॥
(राग : धन धन श्री अरिहंतने रे...). धन धन श्री गरिनारने रे, तार्या अरिहा अनंत सलूणा; .. ओ गिरिवरने फरसता रे, आतम निर्मल थाय सलूणा ॥१॥ जिम जिम ओ गिरि सेवीओ रे, तिम तिम कर्म खपाय सलूणा; .. त्रस थावर तस वासथी रे, पामे शिवपद पंथ सलूणा विकल्याणक भूतकाळमां रे, अनंता जिन गिरनार सलूणा;
वळी अनंता प्रभु पामिया रे, निर्वाणपद गिरनार सलूणा ॥३॥ गत चोवीसीमांत्रण थया रे, नेमीश्वर आदि अडना सलूणा;
अन्य बे जिनवर लहे रे, मोक्षगमन गिरनार सलूणा अनंतवीर्य भद्रकृतना रे, दीक्षा-नाण-निर्वाण सलूणा;
शेष बावीस जिन पामशे रे, मुक्तिपद बहुमान सलूणा ॥५॥ सहसावनमां राजीमती रे, रथनेमि वरे ज्ञान सलूणा;
कृष्णकेरा सप्त बांधवा रे, रुकमणी सह अणगार सलूणा ॥६॥ गजसुकुमाल मुणिंद, रे, व्रत-नाण ने निर्वाण सलूणा;
सुमुखादि पंदर ग्रहे रे, संसार छेदक व्रत सलूणा समुद्रविजय शिवामातने रे, विरति केरुं वरदान सलूणाः
निषध सारणादि कुमारने रे, चारित्र मळे गिरनार सलूणा ॥८॥ ||
॥
४
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७
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दीक्षा ज्ञान शिवदानथी रे, तार्या अनंत भवपार सलूणा;
'विरती', 'व्रत', 'संयम' गिरिरे, 'सर्वज्ञ', 'केवल', 'ज्ञान' सलूणा ॥९॥ 'निर्वाण' 'तारक 'शिवगिरि' रे, सेवतां हेम होवे पार सलूणा;
इण कारण भविप्राणिया रे, नित्य ध्यावो गिरनार सलूणा ॥१०॥
| शत्रुज्य समो रैवत...
॥१
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॥२
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॥ ५ ॥
(राग : जिणंदा प्यारा मुणिंदा प्यारा...) रैवत प्यारो, उज्जयंत प्यारो, देखो रे गढ गिरनार;
देखो रे नेमिनाथ प्यारो; शत्रुज्य समो रैवत महिमा, शास्त्र वयण प्रमाण...
ओ गिरि पंचम नाणनो दाता, पंचम शिखर वखाण... घोर पाप कुष्ठादिक रोगो, रैवत फरशे पलाय...
इण तीरथ आराधन करतां, गणु क्रोड फळ थाय.. ॥४॥ महिमा मोटो ओ गिरिवरनो, पार कदि न पमाय..
बुद्धिनो लवलेश न मुजमां, भावथी नमुं गिरिराय... ॥६॥ आज लगी शाश्वतगिरिवरना, जाण्या न गुण अपार... ॥७॥
पूरव पुण्य पसाये पाम्यो, हाथ न छोडं लगार... नेमि निरंजन गिरि प्रीते, आतमराम रंगाय...
॥९॥ निरखी निरखी नेम नगीनो, नयणा कदि न धराय... ॥१०॥ 'हंसगिरि 'विवेकगिरिवर', सुणतां चित्त हराय...
॥११॥ 'मुक्तिराज' 'मणिकान्त' 'महाशय', 'अव्याबाध' सुहाय...॥ १२ ॥ 'जगतारण' 'विलास' 'अगम्य', नामथी परम निधान... ॥१३॥
हेम वदे गिरिभक्ति काजे, तन मन मुज कुरबान... ॥१४॥
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श्री भावप्रभसूरिविरचितं । श्री नेमिभक्तामर स्तोत्रम् |
भक्तामर ! त्वदुपसेवन एव राजीमत्या ममोत्कमनसो दृढतापनुत् त्वम्; पद्माकरो वसुकलो वसुखोऽसुखार्ता; वालंबनं भव जले पततां जनानाम्... १
भावार्थ
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देवो पण जेना भक्तो छे ओवा हे देवाधिदेव ! स्वस्छ निर्मल जलपान द्वारा जेम पद्माकर तृषा श्री पीडितजनो माटे आधार छे, अमृतपान द्वारा जेम सुकलायुक्त चंद्र चकोर ने माटे आधार छे, विरह वेदनाथी पिडाता चक्रवाक मिथुनने माटे सूर्य आधार छे, वळी उन्मार्गे चाली भवसमुद्रमां पडता जीवोनो तुं जेम आधार छे तेम तारी सेवना माटे सदा उत्कंठित चित्तवाळी (राजीमती) नो तुं आधार था !
पित्रोर्मुदे सह मयोपयमं यदीन्द्र नोरीकरिष्यसि तदा तव काऽत्र कीर्तिः ? जग्राह यो हि गृहिकर्म विधाय वृत्तं, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ...२
भावार्थ
हे नाथ ! जो तुं माता- पिताना हर्षनी खातर मारी साथे लग्न करीश नहि तो आ जगतमां तारी शी आबरु ? प्रथम गृहस्थधर्मनो स्वीकार करीने दीक्षा लीधी छे ओवा प्रथम जिनेश्वर ऋषभदेवनी हुं स्तुति करीश. (परंतु गृहस्थ धर्मनो स्वीकार कर्या विना दीक्षा ग्रहण करवानुं अनुचित कार्य करनार तारी स्तुति हुं नहीं करूं.
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रम्यं गृहं च रमणी रमणीयराढां, भोगान् समं प्रवरबंधुजनैरपास्य; तारुण्ययुग् यदुपते ! त्वदतेग दीक्षां मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ? ...३ .
भावार्थ हे यदुनाथ ! मनोहर मंदिर तथा चित्ताकर्षक सौंदर्यवाळी सुंदरीने तेमज उत्तम बंधुजनोनी साथेना भोगोने अकदम त्यजी दइने तारा सिवाय कयो अन्य युवक अकदम दीक्षा लेवाने इच्छे ?
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रोद्धं क्षमो जिन ! करोऽपि ममाबलाया स्त्वामुबलं हि भवदागमजातीयः; न स्यान्मुनीश ! लवणेशगृहीतशक्तिः, को वा तरीतुमलमंबुनिधि भुजाभ्याम् ? ...४
भावार्थ हे वीतराग ! लवण समुद्रना स्वामी पासे पराक्रम करनार कोण बे भुजाओ वडे समुद्रने तरी जवामां समर्थ न बने ? तेम आपना आगमनथी बळ प्राप्त करनार अबळा ओवी मारो हाथ आपने रोकवा माटे शुं समर्थ न बने?
भद्रं चकर्थ पशवेऽपि यथा तथा त्वं, तूर्णं कृपापर ! ममै ह्यसुरक्षणार्थम्; रिष्टाश्रीतां खलु धवो महिला समन्तुं, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ? ...५
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भावार्थ
हे दयानिधि ! जेम ते पशुओना प्राणनी रक्षा काजे तेना उपर दया आणी तेनुं कल्याण कयुं तेम मारा प्राण पण रक्षण करनार थाओ ! बाळकना बचाव अर्थे कष्टमां सपडायेली ओवी अपराधी पत्नी सन्मुख शुं तेनो पति उगारवा जतो नथी?
तीक्ष्णं वचोऽप्यभिहितं मयका हितं यत्, तत् ते भविष्यतितरां फलवृद्धिसिद्धयें; यद्हेलीधाम तपतीश ! भृशं निदाघे, तच्चारुचूत कलिका निकरैक हेतु ...६
. भावार्थ
हे नाथ ! मारा कठोर पण हितकारी वचनो आपना राज्यादिक । समृद्धिना सुख रुपी फळनी वृद्धि माटे ज थशे कारण के शुं ग्रीष्म ऋतुना अत्यंत तपतां सूर्यकिरणोने कारणे ज आंबाने मनोहर मंजरीनी प्राप्ति नथी थती?
आगच्छ कृच्छहर ! हच्छयचित्रपुंखलक्ष्मीकृतां कृशतनुं क्षम ! रक्ष मां त्वम् त्वत्संगमे क्षयमुपैष्यति मेऽतिदुःखं, सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमंधकारम् ...७
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भावार्थ
हे कष्ट निवारक! तुं आव! हे जिन ! जेम रात्रि संबंधी अंधकारनो नाश सूर्यना किरणोना प्रवेश मात्रथी थाय'छे तेम तारा विरहथी थतां मारां अतिशय दुःखनो नाश पण तारा आगमनथी थशे. कंदर्प (काम)ना बाणो वडे विधायेली तेमज दुर्बळ देहवाळी अवी मारी रक्षा कर!
उद्यत्तडिद् घनघनाघन गजितेऽहि, भुगभाविते नभसि नौ नभसीन ! देहे, घोत्कटादिरिव दंतुरतां विषण्णो, मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननू दबिंदुः
भावार्थ
ज्यारे श्रावण मासमां आकाश मयूरना टहुकाओथी मिश्रित थयेला, स्फुरायमान सौदामिनीथी अलंकृत बनेला तेमज गाढ अवा मेघराजनी गर्जनाथी युक्त बने छे, त्यारे उष्णताना उत्कर्षने कारणे जेम खिन्न थयेलो कामदेव मुक्ता फळना जेवी प्रभावाळी दन्तुरताने प्राप्त करे छे तेम आपणा बनेना देह उपर- जलबिंदु मुक्ता फळनी प्रभाने पामशे.
पश्येदशीति सखिता मदनादरः किं ? नृत्यन् मयूरनिकरोऽब्दघटां समीक्ष्य; मैत्र्या भवन्ति भगवन् । प्रभया प्रकर्ष, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभांजि ...९
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भावार्थ
हे ज्ञानी पुरुष ! मेघमालाने निरखी मयूरोनो समुदाय नृत्य करे छे अने सूर्यनी प्रभाना प्रभावे सरोवरोमां कमळो अत्यंत विकसीत थाय छे. खरेखर मैत्री तो आवी होय परंतु तुं मारा प्रत्ये केम अनासक्त रहे छे? ते समजातुं नथी.
किं त्वं स नैव चल ! काऽऽगतिका तवैषा, जन्यां प्रसूर्जनयिता सहजाश्च जामिः, श्यामाऽप्यहं च इति वर्गमिमं विवाहभूत्याऽऽश्रितं य ईह नात्मसमं करोति ...१०
भावार्थ
हे चपळचित्त स्वामी ! जानैया, जननी, जनक, बंधु अने भगिनी तेमज युवान मेवी हुं अमे सौ तारा पोताना समान होवा छतां विवाहना बंधन वडे मने स्वीकारतो नथी अवा तारा आगमनथी शुं ?
दृष्ट्वा भवंतमनिमेषविलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुपयाति मदियचक्षुः; पीत्वा पयः शशिकरद्युति दुग्धसिन्धोः; क्षारं जलं जलनिघेरशितुं क इच्छेत् ? ...११
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१3
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भावार्थ
हे मारा नाथ ! निर्निमेष नयने तमने निहाळ्या पछी मारा नेत्रो बीजे क्यांय संतोष पामतां नथी. शुं चंद्रकिरणनी प्रभाळवाळा क्षीर समुद्रना जळनुं पान कर्या बाद लवण समुद्रना खारा जळनो आस्वाद लेवा कोइ इच्छे ?
राज्ञो
महामृगमदाकुलमंडलस्य, दैत्यारिमार्गगमनस्य तमोऽदितस्य;
चक्षुष्य ! चारुचतुराक्षिगतस्य किञ्च, यत् ते समानमपरं न हि रुपमस्ति ...१२
भावार्थ
हे सोभागी ! लांछनरुप हरणना कस्तूरी आदि सुगंधी द्रव्योथी व्याप्त मंडळवाळा, देवोना मार्गमां गमनवाळा, अंधकारथी खंडित नहीं थयेला तथा चतुरोनी आंख माटे मनोहर ओवा चंद्रनी समान जेम अन्य कोई रुप नथी तेम कुंजरोना मद वडे व्याप्त देशवाळा, कृष्ण तथा देवो जेना मार्गमां आगळं गमन करे, पाप वडे मुक्त तेमज मनोहर तथा चतुर ओवा जनोना दुश्मन स्वरुप तारा समान खरेखर अन्य कोईनुं रुप नथी.
त्वत् सद्धियोग वनमेवगता तथापि, तीव्रातपोध्धत् पराभवभाविताऽहम्; 'शैवेय' ! देव ! जलजांकित ! जातमेतद् यद्वासरे भवति पांडु पलाशकल्पम् ...१३
૧૪
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भावार्थ
तारा सुंदर योगरुपी वनने ज पामेली तोपण तीव्र वियोगरुपी पराभवथी पीडित थयेली हुं छु. हे शिवासुत ! हे देव ! हे शंखलंछन ! प्रकाशमान अवो दिवस होवा छतां आ वन क्षुधाथी पीडित फिक्का पडी गयेला राक्षस समान थयु.
व्याहारमेड इव मे यदि नो शृणोषि, शब्दादिकं सुखमिदं व्रज हारि हित्वा; नेतर्नरा भुवि भवन्ति गतांकुशा ये, कस्तान् निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ? ...१४
भावार्थ हे नायक ! जो बहेरानी माफक तुं मारुं वचन सांभळतो नथी तो पछी आ शब्दिक मनोहर सुखोने छोडीने तुं जा ! जे मनुष्यो जगतमां निरंकुश होय छे, तेवा इच्छा मुजब फरता जनोने कोण अटकावे?
ध्यानं विधेहि कुरु रैवतके तपांसि, विद्धीति मां हरिसुतोऽस्थिरमाशु कर्ता; यज्जन्ममात्रलघुगात्रजिनांहितो नो, किं मंदरादिशिखरं चलितं कदाचित् ? ...१५
भावार्थ हे नेमिनाथ ! भले तुं योगी बनीने ध्यान धर अने रैवतगिरि उपर तपश्चर्याओ कर परंतु कामदेव तने जरुर चलायमान करशे. तरतना जन्मेला जिनेश्वर परमात्माना चरण अंगुष्ठथी . ॥ मेरुपर्वत, शिखर शुं कदापि चलायमान नथी थयुं ?
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तत्रोषितं निधुवनाय समागतास्त्वां, देव्यः समं सहचरैः सुतनुं समीक्ष्य; वक्ष्यन्ति मोहिततरा इति कामरुपो, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ...१६
भावार्थ रतिक्रिडा माटे सखीओ साथे आवेली देवांगनाओ रैवतगिरि उपर वसेला सुतनुवाला तने जोइने अत्यंत मोहित थयेली आ प्रमाणे कहेशे के हे नाथ ! कामदेव समान रुपवाळो अवो तुं . जगतमां प्रकाश पाथरनारो अपूर्व दीपक छै.
त्वद्ध्यानभाज्यपि पुनर्मयि नो गतायामिष्टार्थ बाधक बृहद्विरहांधकारम्; . सध्धर्मधाम्नि सहजोद्यमधौतदोष; सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोके ...१७ .
भावार्थ
हे जिन ! भले तुं योगिजनोनी कर्मरुपी रात्रिनो अंत लावनार होवाथी सूर्यथी पण विशेष प्रभावशाली हो परंतु ज्यां सुधी तुं मारा विरहरुपी अंधकारनो नाश करवा समर्थ नथी त्यां सुधी तने सूर्यथी चडियातो केम मार्नु ?
वक्त्रं जिनात्र वसतः प्रणिधानभाजो, विश्वासतो मृगशिशुव्रजचुंबितं सत्; संदृश्यते बहुललक्षणभावितं ते, विद्योतयज्जगदपूर्व शशांकबिंबम् ...१८
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भावार्थ
हे नाथ ! हरणनां बाळको वडे चुंबित थतुं चंद्र ना मुखनी समान अनेक लक्षणोथी लक्षित तथा विश्व ने प्रकाशमय करनारुं अवुं तारुं चंद्ररुपी मुख रैवतगिरि उपर वसनारा अनेक समाधियोगथी युक्त ओवा आत्माओ वडे जोवाय छे.
उद्योग भेष भवता क्रियतां किमर्थ ? किं वाऽथ ते नु वरवस्तुन ऊनमस्ति ? . त्वामेव वीक्ष्य शितिभं समुदो मयुर्यः, कार्य कियज्जलधरैर्जलभारनम्रै : ? १९
भावार्थ
. हे परमात्मा ! श्याम वर्ण वाळा ओवा तारा मनोहर रुपने जोइने ज मयूरीओ हर्षित बनी जाय छे, तो पछी जळना भार वडे नम्र बनेला ओवा मेघोनुं कांई काम रहेतुं नथी तेम उत्तम राज्यादिक भोग सामग्री पाम्या बाद तारे शानी खोट छे के तुं तपश्चर्या, ध्यान, समाधि आदि योगोनो उद्यम करे छे ?
इच्छावरं वरमिति स्वजनेन नुन्ना, वच्मीत्यहं द्रुतकराब्जनिरुद्धकर्णा; रत्ने यथा जनतया क्रियतेऽभिलाषो, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ...२० भावार्थ
हे मारा नाथ ! ज्यारे मारा स्वजनो तने छोडीने अन्यने वरवानी प्रेरणा करे छे त्यारे हुं करकमल वडे मारा कानोने शीघ्र ढांकी दईने लोकोने कहुं हुं के लोको रत्ननी अभिलाषा राखे छे परंतु अनेक किरणोथी युक्त ओवा काचना कटकानी अभिलाषा राखता नथी.
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भव्ये ! मनोहरवरो भविता भवत्यां किं नेमिनाऽसहशुचा च किमित्थमाल्या ? वाच्यं किमत्र यदि मे न भबानिवान्यः; कश्चिन्मनो हरति नाथ ! भवांतरेऽपि ....२१
भावार्थ
हे मारा प्राण ! आ भव के परभवमां आपना सिवाय अन्य कोई पुरुषोत्तम मारुं मन हरनार नथी तेवो मने विश्वास छे तो पछी तने अन्य मनोहर वरनी प्राप्ति थशे अq कहेनार मारी सखीओना वचनथी शुं?
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अस्या न दूषणमतो हि भवानसह्यो,ऽबाधः कृतान्तजनको भवतीश ! सोऽपि साताय सर्वजगतां च शिवा यमर्क, प्राच्येव दिग् जनयति स्फूरदंशु जालम् ...२२
भावार्थ
हे जगनाथ ! शिवामातारुपी पूर्व दिशा द्वारा सर्व जगतने सुख आपनारा अवा आप (नेमिप्रभु) रुपी सूर्यने जन्म अपायो होवा छतां आपना विरहथी पीडित ओवी मारा माटे तो आप मरणान्त कष्टदायी बन्या छो.
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चेतश्चमच्चरिकरीष दरीश्रितानां,. तीवैवतै विषम रैवतशृंगसंगी, आदर्शधाम्नि धृतके वलचक्रिवत् किं, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः ? ...२३
भावार्थ
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हे योगीश्वर ! विषम रैवताचलना शिखर उपर रहेलो अवो तुं तीव्रतपश्वर्यादि व्रतो वडे गुफामां वसनारा लोकोना चित्तने अतिशय आश्चर्यांकित करे छे परंतु आवा कष्टकारी मार्ग सिवाय आरीसाभुवनमा केवळज्ञान प्राप्त करनारा ओवा भरत चक्रवर्तीनी जेम शुं मुक्तिपदनो कोई अन्य कल्याणकारी मार्ग नथी?
पूर्ण व्रतेन भवतु क्रियया गतैः किं ? कष्टैः कृतं च तपसाऽस्त्वलमन्यकृत्यैः; चेत् केवलं शिवसुखाब्जविकाशहेतुं, ज्ञानस्वरुपममलं प्रवदन्ति संतः ...२४
भावार्थ
हे देवाधिदेव ! जो संतो ज्ञानना स्वरुपने निःसहाय तथा निर्मल तेमज मुक्ति ना सुखरुपी कमळना विकासना कारणरुप माने छे, तो पछी व्रत तेमज क्रिया पण शुं ? विहारादि गमनागमनथी पण शुं ? अने लोच वगेरे कष्टो पण शुं कामना ? तपश्चर्यानी पण शुं सार्थकता? अने अन्य धर्माभास स्वरुपी क्रियाकांडथी पण हवे बस थयुं.
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बालश्चिखेलिथ सुरैः कृतनर्मकमैंधीरो भवंश्च समितौ भुवनेषु जिष्णुः; सत्त्वात् पुनः स च गृहीति किमत्र गण्यो, व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ...२५
भावार्थ हे भगवान ! क्रीडा करनार देवो साथे बाळक बनी तें जे क्रीडा करी छे, इर्या समिति आदिमां धीरपणा वडे तुं दुनियामां जयनशील छे तेथी तने अत्र पुरुषोत्तम गणी शकाय के नहीं !
पूर्व प्रभो ! प्रबलपूरितपांचजन्यः, के प्रैखिताच्युतभुजो हसितोऽस्य दारैः, . मौनं श्रितः परिणये विमुखोऽधुनैवं, तुभ्यं नमो जिनभवोदधिशोषणाय ! ..२६
भावार्थ
हे दीनबंधु ! पहेलां तो ते पांचजन्य नामनो शंख फुक्यो पछी अखाडामां कृष्णनो हाथ वाळी दीधो त्यारबाद जलाशयमां कृष्णराणीओ द्वारा तुं हांसीपात्र बन्यो वळी अंते लग्न करवा बाबतना वार्तालापमां तें मौन धारण कयुं ओवा सकलजन अने मारा संसार सागरनुं शोषण करनारा है मारा वीर ! तने नमस्कार थाओ!
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त्वं चेच्छिवात्मज इतीश ! शिवाय में किं, ? . नारिष्टनेमिरिति चेदशुभच्छिदेऽपि; स्वैर्या निरुक्तवशतो मयि सानुकूलः, स्वप्नांतरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ...२७
भावार्थ हे जगवल्लभ ! जो तुं शिवादेवी (कल्याणकारी)नो नंदन होय तो माएं आत्मकल्याण करनार केम थतो नथी ? जो तुं अरिष्टनेमि होय तो मारा अशुभनुं छेदन करनार केम बनतो नथी ? तारा नामना विशेषणो मुजब आ बाबत तुं अनुकूळ होवो जोइओ छतां मारा प्रत्ये कदापि केम अनुकूळ बन्यो नथी.
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वेत्थेति नाद्रिवसते ! विशदं ध्रवं त्वां, सौवं मतं प्रतिविभातमिदं ब्रवीति; रागीभवद् विकचकोकनदश्रियाऽरं, बिम्ब रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ...२८
.
भावार्थ
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हे वीतरागी ! रैवताचल उपर जेम सूर्यनुं बिंब सर्वदा विकसित कमळनी माफक रकतता (रागी बने) धारण करे छे वळी निर्मळ अq पर्वत पासे वहेतुं झरणानुं बिंदु पण नित्य प्रभाते पोते रक्त (रागी) थवानो संदेश आपे छे, तो तुं मारा प्रत्ये केम राग करतो नथी? ..
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Awareneurs
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स्वामिन्! 'समुद्र विजया' वनिपालसूनो !, स्तादीश्वरोऽत्र यदहार्यगतिं तवेमाम् ! कान्ति निवारयति विष्णुपदोदितां कस्तुं गोदयाद्रि शिरसीव सहस्ररश्मेः ...२९
भावार्थ
हे स्वामी ! हे समुद्रविजय राजना नंदन ! गिरनार गिरिवर उपर तुं ईश्वर छे ! तुं महादेव छे ! तेथी जेम उदयाचलनी हारमाळा उपरथी आवती सूर्यनी कांतिने जीतवा कोई समर्थ नथी तेवी तारी शोभाने जीतवानी कोइनी समर्थता नथी.
सारेच्छुदुर्लभमतो ऽफलमेव मन्ये;, मुख्यं महेश ! महतोऽप्यपरोपकृत् ते;
स्वरुप
सिद्धागमार्थ वरमुच्चदशं मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ... ३०
भावार्थ
हे महाप्रभु ! जेम उत्तुंग ओवा सुवर्णमय मेरु पर्वत उपर रहेल वृक्षो तथा त्यां रहेल अन्य उत्तम वस्तुओ वळी तेनुं उंचुं अवुं शिखर लोकोना कांइ उपकार माटे बनतुं नथी, वळी धननी वांछा राखनार माटे पण ते दुर्लभ होवाथी निरर्थक बने छे तेम रैवत गिरिवरना तारा उच्च स्थानना उत्तम अने अनोखा अवा अगम्य स्वरुपने कोई पामी शकतुं न होवाथी सर्वजनो माटे कोई पण उपकार न करनारी ओवी तारी श्रेष्ठताना दर्शननी दुर्लभताना कारणे ते पण निरर्थक बने छे.
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उच्चोपलासन मशीतकरातपत्रं, . वातोच्चलत् वितत निर्जर चामरं च; देवाचित ! त्रिकमिहास्तु तवैवमेव, प्रख्यातयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ...३१
भावार्थ
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हे देवाधिदेव ! गिरनार गिरिवर उपर (१) उच्च पाषाण (पथ्थर) रुपी आसन, (२) सूर्यरूपी शिरछत्र अने (३) पवनना वेग वडे ऊंचा जता तेम ज विस्तीर्ण अवा झरारुपी चामर, आ त्रणे तारी विशिष्टतानो संगम तारा त्रिभुवनना परमेश्वरपणानी · साक्षी पूरे छे.
उक्तेष्वमीषु वचनेषु मयाऽमृतानि, जानीध्वमादृत रुषाऽप्यनुरागयुक्त्या ; नेत्रादिषु प्रथितसाम्यगुणेन मे हि, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ...३२
भावार्थ
AND
हे जगविभू ! जेम पंडित पुरुषो मारां नेत्रयुगल तेमज मुखचंद्रने जोई कमळनी कल्पना करे छे तेम (आपना) विरहनी वेदनाथी पीडित ओवी मारा वडे आ कठोर छतां प्रीतिपूर्वक उच्चारायेला कटु वचनोमां आप अमृतनी ज कल्पना करजो.
R
Remention
OItinentatihika
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मत्स्वाम्यहं च मुखनेत्रजितावमुष्या;, नीतोष्णतामिति मदेन मृगेण मन्ये; दाहाय मे प्रकृतिरीश ! विधोर्यथाऽस्ति, तादक् कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि ? ...३३
भावार्थ
हे विश्व वत्सल ! मारा स्वामी तेमज हुँ (राजीमती) मारा आ नेत्र अने मुख वडे जिताया होवाथी कोपायमान थयेल चंद्र पण तेनामां रहेल हरणनी डूंटीमा रहेली कस्तूरीनी उष्णताने लीधे पोतानी शीतळ स्वभावनी प्रकृतिने बदली नाखतां ते प्रकृति मारा परिताप माटे बने छे तेवी प्रकृति प्रकाशमान अवा ग्रहोना समुदायने क्याथी होय?
अत्रैव पश्य परमां पर ! कैरविण्यां, ज्योत्स्नाप्रिये च वितनोति रति शशांकः; स्नेहान्वितः परिवृढो विमुखोऽयनं हि, दृष्टवाऽभयं भवति नोभवदाश्रितानाम् ...३४
भावार्थ हे उत्कृष्ट ! तुं जो ! चंद्र कुमुदिनी प्रत्ये तथा चकोर पक्षी प्रत्ये पोतानी उत्कृष्ट प्रीति विस्तारे छे तेमा मुख्य कारण जणाय छे के प्रीतियुक्त कुमुदिनी अने चकोर जेवा आश्रितजनोनो मार्ग निर्भय जोइने तेनाथी विमुख थया विना तेने पणं साथ आपे छे.
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माकन्दवृंदवनराजिपदे निरेनो- . ऽसह्योऽप्यहो ! सकलकेवलसंपदाप्तेः; सालत्रयं भविभृतं भुवि मोहभूपो नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ...३५
भावार्थ हे निःपापी प्राणनाथ! आम्रवृक्षोनी वनराजी ओवा सहसावनमां संपूर्ण केवळज्ञानरुपी आत्मलक्ष्मी प्राप्त करवाने कारणे देवो द्वारा रचना करायेल अनेकविध भव्यताओथी भरपूर ओवा त्रण गढोने तथा आपना चरणयुगल रुपी पर्वतो तरफ अत्यंत पराक्रमी अवो मोहराजा पण आक्रमण करतो नथी ओ आश्चर्य ज छे!
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इत्युत्सुका गतिविनिर्जितराजहंसी, 'राजीमती' दृढमतिः सुसती यतीशम्; इन्द्रेः स्तुतं ह्युपययाविति नोऽसुखाग्नि, त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ...३६
भावार्थ
मारा स्वामी पासे मोहराजा पण मीण जेवो बनी जाय छे अम जाणीने आतुर बनेली वळी, 'हे नाथ ! तारा नामना कीर्तन रुपी जळ अमारा समस्त दुःखाग्निने नक्की शांत करे छे', ओ रीते इन्द्रो वडे स्तुति करायेला, नेमीश्वर प्रभु प्रति निश्चल प्रीतिवाळी ओवी उत्तम साध्वी राजीमती राजहंसीनी गतिनो पण पराभव करे तेवी गतिथी गमन करे छे.
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मत्तालिपाटल मलीमस कामभोगी; योगीश ! दुर्धरकषायफटोत्कटाक्षः; जय्यो जवेन जठराप्तजनोऽपि तेन, त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ...३७
भावार्थ
अहो ! हे जगतारक ! जे मनुष्यना हृदय कमळमां तारा नाम रुपी नाग दमनी छे, तेनाथी दुर्घरकषायरुपी फणा वडे तीव्र कामोत्तेजित नेत्रोवाळा, वळी अनेक मनुष्यना भक्षण करनार भ्रमरोना समूहथी पण विशेष काळां अवां कामदेवरुपी सर्पने वेगपूर्वक जीती शकाय छे.
कालोपमं विशददर्शनकृत्यशून्यं,. पक्षद्वयात् सदसतो धृततर्कजालम्, मिथ्यात्विशासनमिदं मिहिरांशुविद्धं, . त्वत्कीर्तनात् तम इवाशु भिदामुपैति ...३८
भावार्थ
जेम सूर्यना किरणोथी भेदायेलु अंधारु सत्वर नाश पामे छे, तेम तारा कीर्तनथी कालकूट झेरनी उपमावाळु, निर्मळ श्रद्धाथी रहित वळी सत्-असत् अम बे पक्षनी तर्कजाळ पाथरनारा मिथ्यात्वीओ- शासन शीघ्र नाश पामे छे.
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रत्नत्रयं
नरराजहंसा;
संवित्तिदर्शन चरित्रमयप्रकाशम्; क्षित्याप्त संसृति परिश्रमदुःखदाहं, त्वत्पादपंकजवनाश्रणियो लभन्ते ...३६
निरुपमं
भावार्थ
हे जग सारथवाह ! सम्यग् ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररुप प्रकाशवाळा, वळी जेनो सांसारिक परिश्रम अंगेनो दुःखनो संताप नाश पाम्यो छे ओवा तारां चरणकमळरुपी वननो आश्रय लेनारां उपमारहित मनुष्यरूपी राजहंसो ज्ञान दर्शन - चारित्ररुपी त्रण रत्नोनां समुदायने पामे छे.
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वित्तेन साधकतमेन सुनद्धभावात् कैवल्यनार्युरसिजैक रसाभिलाषाः; सम्यक् प्रमादसुभृतोऽव्ययतां त्वदीयात् त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ४०
भावार्थ
प्रसिद्ध उत्तम करण वडे प्रसिद्ध हेय-ज्ञेयादि पदार्थोंना जाणकार तथा शुभ ज्ञानना स्वामी सेवा आपना स्मरणथी मुक्ति रुपी शिववधूना स्तनोना मर्दननी तीव्र अभिलाषावाळा प्राणीओ भवसंसारना त्रासथी पार पामी अक्षयपणाने पामे छे.
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पीत्वा वचो जिनपतेरधिगम्य दीक्षा, साऽ थार केवलमनंतसुखं च मोक्षम; आश्रित्य सिद्धवरवस्त्वगदा हि के नो, मा भवन्ति मकरध्वजतुल्यरुपाः ? ...४१
भावार्थ
प्राणनाथ अॅवा नेमिनाथ जिनेश्वरना वचनामृतनुं पान करीने दीक्षा ग्रहण करी राजीमती केवलज्ञान अने अनंत सुखात्मक मोक्षने प्राप्त करे छे. कारण के सिद्ध वैद्यनी उत्तम औषधिओना सेवन बाद कया मानवो रोगरहित बनी मदन (कामदेव) समान रुप वाळा थता नथी?
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काँस्कान् नवानि हसिताब्जशुचीन् गुणांस्ते, येऽनादितो विषमबाणभटेन नद्धाः, राशि त्वयीश ! मनुजाः सति सार्वभौमे, सद्यः स्वयं विगतबंधभया भवन्ति ...४२
भावार्थ
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हे गुणभंडार ! पूर्ण विकास पामेला अवा मनोहर कमळ समान पवित्र अवा तारा कया कया गुणोनी स्तुति करुं ? तारा चक्रवर्तीपणाने (मोक्षपद) प्राप्त करवाथी जे मानवो अनादि काळथी मदनरुपी सुभटो वडे संसाररुपी बंदीखानामां बंधायेला हता तेओ संसारभयथी सर्वथा मुक्त बनी मुक्तिरमणीने वरे छे.
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सद्ब्रह्मचार ! जिन ! 'यादव' वंशरत्न! . 'राजीमती' नयनकोक विरोकितुल्य ! जुष्टः श्रिया सकलयैकपदे भवेत् स, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ...४३
भावार्थ हे सद्ब्रह्मचारी अवा नेमिजिनेश्वर ! हे यादववंशना अणमोल रत्न ! हे राजीमतीना नेत्ररुपी चक्रवाकने अत्यंत आनंदित करनारा सूर्य ! जे बुद्धिमान जनो तारा आ स्तवन- अध्ययन करे छे ते झडपभेर सकललोकने वल्लभ अवी शुद्ध हेमस्वरुप 'मोक्षलक्ष्मीना स्वामी बने छे.
हारावली नुतिमिमां द्युतिसंततीद्धां, कंठे दधाति महिमाप्रभसूरिराजः; यस्ते सदैव रुचिराश्रितभावरत्नां तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ...४४
भावार्थ
हे देवाधिदेव ! जे सर्वत्र प्रसरेली महिमानी प्रभावाळा पंडितराज कांतीनी श्रेणी वडे प्रकाशित, भावरुपी रत्नो वडे परोवेली मनोहर हारावली रुपी स्तुति कंठमां धारण करे छे, मानथी उन्नत अवा ते मनुष्यनी समीप लक्ष्मी सर्वदा जाय छे.
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गिरनार भक्तिधारा
गिरनार-नेमिभक्ति गीत...
चालो रे... सौ चालो...
(राग : बेना रे..) चालो रे... सौ चालो चालो रे... गिरनारे जई आतम निर्मल थाय,
भवोभवना पापो दूरे पलाय (२)
जे कोई जाय फेरा टळी जाय, भवोभवना पापो दूर पलाय चौद चौद चैत्यो चमकी रह्या छे, गिरनार गिरि शिखरे (२) नेमिवरनी मूरत जोतां, हैयुं पल पल हरखे (२) चालो रे...
___ दर्शन करतां करतां अंतर भी थाय... भवोभवना...१ चालो रे... सौ चालो... दीक्षा-केवल सहसावने रे, पंचमे गढ निर्वाण (२) अनंत जिनना विकल्याणक, शास्त्र वचन प्रमाण (२) चालो रे...
घेर बेठां तस ध्यान धरतां, भवचोथे शिवसुख थाय... भवोभव...२ चालो रे... सौ चालो... पापी-अधम अहीं जे कोई आवे, दुर्गति दूर हटावे (२) त्रस-थावर जे गिरिने फरशे, दुष्कर्मोने खपावे (२) चालो रे...
ओ गिरिवरनो महिमा मोटो कहेता नावे पार... भवोभव...३
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चालो आपणे साथे मळी... राग : आओ बचो तुम्हे दीखाये
चालो आपणे साथे मळी सौ, गिरनार गिरि जईओ
अ तीरथनी यात्रा करतां,
कर्ममल संवि दहिओ
जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ
जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ... १ ओ गिरिवरे तार्या अनंता,
अनंता जिन तिहा तरसे,
पापोनुं प्रक्षालन करीने (२)
पुण्यकर्म तिहा भरशे,
जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ; जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ... २ दीक्षा नाण प्रभु नेमना थाये,
शिवसुखने ते तो फरशे,
जे अन्नाणी वेगळा वसशे (२) ते तो भवमां भमशे,
जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ; जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ... ३
त्रस-थावर जे ओ गिरि फरसे,
शिवरमणीने वरशे,
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घेर बेठां तस ध्यान धरे जे, (२) ।
भवचोथे सिद्धपद धरशे. जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ; जय जय गिरनार जय जय नेमिनाथ...४
जिनशासनना इतिहास... (राग : जिनधर्मना जैनबंधु गाई रह्या...) जिनशासनना इतिहासना, बोली रह्या सुवर्ण पाना,
शाश्वतगिरि शत्रुज्य अने गिरनार गिरि लेखाणा. जय गिरनार जय नेमिनाथ जय बोलो अनंताजिननी गिरिवरना गुण गाता गाता वरसे सुखनी हेली,
जय जय बोलो गिरनारनी... जय जय बोलो गिरनारनी...१ वस्तुपाळने तेजपाळना भव्य जिनालय गिरनारे, कुमारपाळने संप्रति केरा दिव्य देवालय गिरनारे, जय सिद्धराज जय साजनजी जय बोलो गिरिवर भक्तनी.
गिरिवरना गुण गाता गाता...२ पेथड झांझण धारे रेडी, रक्तधारा आ गिरनारे, शासन केरी शान वधारी, भेखधरी आ गिरनारे, . जय आमराज जय रत्नाशा जय बोलो भरतचक्रीनी.
गिरिवरना गुण गाता गाता...३ आचारज बप्पभट्टजी आवे, युद्धवारे श्री गिरनारे, हेमचंद्र मानदेव सुरिजी, कलेश निवारे श्री गिरनारे, जय आनंदसूरि जय भद्देश्वरसूरि जय बोलो'श्री वरदत्तनी.
गिरिवरना गुण गाता गाता...४
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मळे तारं शरणं... ( राग : बहुत प्यार करते )
मळे तारुं शरणुं, जनमो जनम... करूं तारी सेवा, करुं हुं नमन... अंजनवरणी, मूरति निहाळी, दोष अंतरना, देजे पखाळी,
धन धन थाये (२) मारुं जीवन... १
शांति मळे ना, मारा हृदयमां, भवोमां भटक्यो, तारा विरहमां,
स्वीकारो तमे जो (२) शमे सौ भ्रमण... २
तारी भक्ति तारी, सेवाना शमणां, तारा दरशने, तलशे छे नयणां
करूं तारी पूजा (२) करुं हुं भजन... ३
तारी सेवानो, महिमा छे भारे, कामी- अधमने, पण तुं छे तारे,
तारोतारो मुजने (२) नेमिनाथ स्वामि... ४
गिरनार गिरि तो, जगमां छे मोटो, चौद राजमांतो, मळे नहि जोटो,
भजो भजो सौ प्राणी (२) अवसर ना चूक...५
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तारा विना नेम मने...
- (राग : तारा विना श्याम मने) तारा विना नेम मने अकलडं लागे, जान जोडीनै वहेलो आवजे... रोज रोज तारी याद आवे, तारा विरहनी वेदना सतावे (२) . आव्यो हुं तारे द्वार, मांगु छु तारी पास (२) दरशन देवाने वहेलो आव आव आव नेम... तारा...१ चोरी बांधी छे चोकमां, दीवडा मूक्या छे गोखमां (२) तुं ना आवे तो नेम, परणुं हुं बीजे केम ? (२) जान जोडीने वहेलो आव आव आव नेम... तारा...२ ... नव नव भवनी आ प्रितडी, राजुलनी साथे छे नेमनी (२) सतावे तुं मने केम ? तरछेडो तुंशाने नेम? नव भवनो राख नेह नेह नेह नेम... तारा...३
गिरनारजीका नाथ है...।
(राग : जनम जनम का साथ...) . गिरनारजीका नाथ है, हमारा तुम्हारा... हमारा तुम्हारा कानमें कुंडल डोले, मस्तके मुकुट सोहे, अंजन वरणी काया, भक्तो के मन मोहे,
भवकी यात्रा पूरण होवे, आये द्वार तीहारा... गिरनार...१ आप भये ब्रह्मचारी, निर्मळ निर्विकारी, विषयवासना भारी, दूर करे गिरनारी,
मोहकी निद्रा दूर करे ये, शरण की बलिहारी... गिरनार...२
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कल्याणक है जिनके, दीक्षा-नाण-निर्वाणी, हर चोवीसीमें तीनतीन, कहे आगम वाणी,
- अनंतजिन शिवगामी हुओ, औसा ये दातारी... गिरनार...३
झलक दिखा...
(राग : आ लौट के आजा मेरे मीत) ' झलक दिखा... झलक दिखा... झलक दिखा... ओक झलक दिखा तुं नेमिनाथ (२) तुझे तेरे लाल बुलाते है, तेरे दर्शन को तरसे ये नैन (२) तुझे तेरे बाल बुलाते है, .
. ओक झलक दिखा तुं नेमिनाथ... ॥१॥ भक्तो का प्यारा, देवो का दूलारा कितने की आंखो का तारा (२) दुनिया में चमका नेमिनाथ तुं, जैसे शासन का सितारा तेरी आंखे अविकारी नेमिनाथ (२) तुझे तेरे लाल बुलाते है,
ओक झलक दिखा तुं नेमिनाथ ॥२॥ बीच भवर में नैया फंसी है, आकर तुं पार लगा दे (२) तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है, आकर गले से लगा दे (२) अब देर ना लगा तुं नेमिनार्थ (२) तुझे तेरे लाल बुलाते है, तेरे दर्शन को तरसे ये नयन (२) तुझे तेरे बाल बुलाते है,
ओक झलक दिखा तुं नेमिनाथ ॥३॥ वैसे तो तुम हो दिलमें हमारे पर आंखे नही मानती (२) अक पल तेरे से इस भव में बिछडकर रहेना नही चाहती (२) घडी घडी तरसाओ ना मित (२) तुझे तेरे लाल बुलाते है, तेरे दर्शन को तरसे ये नयन (२) तुझे तेरे बाल बुलाते है,
ओक झलक दिखा तुं नेमिनाथ ॥४॥
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डूब रहा है सुखका ये सूरज, गमकी बदरिया है छायी (२) उजड गई है बगिया जीवन की, मन की कली है मुरझाई (२) करे विनंती तुजे तेरे भक्त (२) तुझे तेरे लाल बुलाते है, तेरे दर्शन को तरसे ये नयन (२) तुझे तेरे बाल बुलाते है,
ओक झलक दिखा तुं नेमिनाथ ॥५॥
ओ नेमि तेरे भक्त... ।
(राग : ओ मालिक तेरे बंदे हम...) ओ नेमि तेरे भक्त हम आये है तुम्हारे चरण, . गुण तेरे गाओ, और धर्म बढावे, ताकि भव-भटकें नहीं हम... मैं कबसे भटकता रहा, मोहमाया से झकडा रहा, अब द्वार खडा, डर है लगता, अब तो लेलो हमें तुम शरण, हो दुःखिया के साथ प्रभु, मुझको छिपाओ हृदयमें तुम... गुण तेरे गाओ...१ सारी दुनिया है दुःखी अभी, पुण्य की है ईसमें कमी, . पर तूं जो खडा, है दयाळु बडा, भक्त करे अरजी, तेरी कृपाकी इसमें कमी, सुनले भक्तो की विनंती, गुण तेरे गाओ...२
। अक राजकुमारी रे...
(राग : पीजरे के पंछी रे... - नागमणि) अक राजकुमारी रे, अनो प्रितम पाछो जाय, आशाभरी अनी आंखडीमाथी, आंसु चाल्यां जाय रे,
अनो प्रीतम पाछो जाय...
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रोवे राजुल नारी रे, अनो प्रितम पाछो जाय
अक राजकुमारी रे...१ मनने मांडवे तोरण बांध्या, महेलो झरुखा शुं शणगार्यां रे, सूना छे शणगारो सघळा, मंडप खावा धाय,
- अनो प्रीतम पाछो जाय...२ ।। नेम सुणे पशुओनी वाणी, अने करुणा दिल उभराणी रे, मारे काजे कैंक जीवोना, जीवन सळगी जाय,
अनो प्रीतम पाछो जाय...३ दुःखियारी कहे राजुल नारी, जनमोजनमनी प्रीत विसारी रे, कोडभरीना कोड अधूरा, हैयुं बळी बळी जाय,
. अनो प्रीतम पाछो जाय...४ मारे जीवन मुंजने प्याएं, अq सहुने जीवन प्याएं रे, राजुल चालो संयम पंथे, जन्म सफळ बनी जाय,
फेरा फरवाना टळी जाय...५ . दुःखदायी सहु पातक छूट्या, संसारना ज्यां बंधन तूट्या रे, केवल पामी मुक्तिनगरना मंगल पंथे जाय,
ओनो प्रीतम पाछो जाय... ओक राजकुमारी रे...६
आ नेम प्रभु के चरणों में... (राग : जहाँ डाल डाल पर सोने की..)
यदुवंश समुद्रेन्दु कर्मकक्ष हुताशनः;
अरिष्टनेमि भगवान्, भूयाद् वो रिष्टनाशन. आ नेम प्रभु के चरणों में तुं, झुकले ओ अभिमानी, तेरी दो दिनकी जिन्दगानी (२)
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क्यों माया की दुनिया में फंसकर, जीवन खो रहा प्राणी, तेरी दो दिनकी जिन्दगानी (२) ...१
कौडी कौडी माया जोडी, दान दिया ना कोइ (२) दुःखियो का खून चूसके तूने, करली अपनी कमानी (२) सब धरा रहेंगा माल खजाना, जाये हाथ खाली,
तेरी दो दिनकी जिन्दगानी (२) ...२ . . मात-पिता बहन बंधु नारी, ये मतलब के साथी (२) अंत में तुजको जाना अकेला, संग चले ना कोई (२) अब चेत चेत तुं तो ओ बंदे, जीवन बहना पानी, तेरी दो दिनकी जिन्दगानी (२) ...३
आज नेम के चरणों में तुं आके, अपना शीश झुकाले-(२) भक्तजन जिसको भावे, तुं उसको अपनाले (२) वो है मालिक कोई उनके दरसे, गया कभी ना खाली, तेरी दो दिनकी जिन्दगानी (२) .....
कभी प्यासे को...।
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं, बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा; कभी गिरते हुओ को उठाया नहीं, बाद आंसु बहाने से क्या फायदा...१
मैं मंदिर गया पूजा आरती की, पूजा करते हुओ ये खयाल आ गया; कभी मा बाप की सेवा की ही नहीं, फिर पूजा ही करने से क्या फायदा...२
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मैं उपाश्रय गया, गुरुवाणी सुनी, गुरुवाणी को सुनकर ये खयाल आ गया; जैन कुलको पाया जैनी बन ना शका, फिर जैनी कहलाने से क्या फायदा... ३
मैंने दान किया, मैंने तप जप किया, दान करते हुओ ये खयाल आ गया; कभी भूखे को भोजन कराया नहीं, दान लाखों का करदुं तो क्या फायदा... ४
जीवन लडाई जीती जनारा...
(राग : तुम्हीं हो माता )
जीवन लडाई जीती जनारा, नेमि ! तमोने नमन अमारा.
पराक्रमोनी तमे प्रतिमा, चढाण कीधां रैवतगिरिमां गगनभूमिना अमरमिनारा,
तमे दिवाकर, तमे सुधाकर, तमे ज धरती, तमे ज सागर, अणुअणुमा बिराजनारा,
वो दुःखी तो तमे दुःखी हो, तमे सुखी जो जीवो सुखी हो, तमे सहुना, सहु तमारा,
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प्रभु ! तमोने... १
प्रभु ! तमोने... २
प्रभु ! तमोने... ३
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अमे तमारा गुणो ग्रहीशुं, तमे कह्यो ते धरम करीशुं, अमे प्रवासी तमे सितारा,
प्रभु ! तमोने...४
ये नेमप्रभु अलबेले (राग : ये देश है वीर जवानो का, अलबेलो का...) हो हो... ये नेमप्रभु अलबेले है, शासनमें अक अकेले है, ईनकी शक्तिका, इनकी शक्तिका क्या कहना? ये नाथ है हम सब का गहना...१ हो हो... जो इनके दर पर आता, मनवांछित फलको वो पाता. यहाँ खाली कोई, यहाँ खाली कोई नहीं जाता... नहीं असा कोई जगमें दाता...२ हो हो मूर्ति है प्रभु की मतवाली, अखिया में प्रभु के है लाली, ये प्रभु हमारे, ये प्रभु हमारे अविकारी... है जिनशासन के हितकारी...३ हो हो पशुओ को प्रभुने प्यार दिया, उनका फिर बेडा पार किया, जो इनको ध्याये, जो इनको ध्याये तन-मन से... मिलती है महिमा जन-जन से....४
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देवाधिदेव तणा...
(राग - होठोंसे छु लो तुम - प्रेमगीत) देवाधिदेवतणा, नेमना दर्शन करीओ, अना गरवा गुणोनु, चालो गुंजन करीओ, देवाधिदेव तणा...१ ओ भौतिक सुखोमां, अणे केवळ दुःख जोयुं, दुःखिया पशुओ देखी, अनु कोमळ दिल रोयु, करुणाना धारकने, चालो वंदन करीओ,
देवाधिदेव तणा...२ लखचोरासी भवमां, जीव शाने भटके छ ? अणे जाण्यु के जीवनी, प्रगति क्यां अटके छे? ओ पावन ज्ञानीनुं चालो पूजन करीओ. देवाधिदेव तणा...३ दुःखमांथी छूटवानो, अणे मारग अपनाव्यो, सृष्टिना सौ जीवने, निःस्वार्थे बतलाव्यो, ओवा परमार्थी नेमने, हैयुं अर्पण करीओ. देवाधिदेव तणा...४ आ त्यागी परमात्मा, ते तो अविकारी छे ऊंचा सन्मानतणा, पूरा अधिकारी छे, अना गुणो अपनावी, साचुं तर्पण करीओ. देवाधिदेव तणा...५
| तेरे द्वार खडा भगवान...
(राग - तेरे द्वार खडा भगवान...) तेरे द्वार खडा भगवान, आज मेरी भर दो रे झोळी, तेरे चरण पडा हुं आज, कि दे दो मुक्ति पुरी का दान...१
डोल रही है नैया मेरी, नहीं है कोई सहारा, भीख मांगने आया चरणमें, तार लो तारणहारा रे, देखो आया है तूफान, कर दो रे नैया मेरी सुकान...२
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करुणासागर करुणा कीजे, मैं हं सवेक तेरा, छोडके दुनिया आया हूं, चरण में, मिटा दो भवका फेरा रे, कर दिया कर्मो ने हैरान, प्रभुजी भटक रहा भवरान...३
ओ वितरागी नेमि.जिणंदा, आया तोरे द्वारे, शिवानंदन भव भय भंजन, लगा दो नैया किनारे रे, प्रभु दे विनती मान, बना दे रे मुक्ति का महेमान...४
जोगी बनीने चाल्या नेमकुमार...
दुहो : वादळथी वातो करे ऊंचो गढ गिरनार,
पावन थई डोली रह्यो, ज्यारे आव्या नेमकुमार... १ राजुल आवी साथमा छोडी सकल संसार,
अमर कहानी प्रेमनी गाई रह्यो गिरनार.... जोगी बनीने चाल्या नेमकुमार, धन्य बन्यो रे पेलो गढ गिरनार । विचरे ज्यां विश्वना तारणहार, धन्य बन्यो रे पेलो गढ गरिनार
जेने जग कल्याणनी लागी लगन, जीवननी साधनामां मनडुं मगन अंतरमा प्रगटे छे प्रीतनी अगन, आतम उडे छे ओनो ऊंचे गगन (२)
वायरमां वहेती वसंती बहार...१ ओना प्राणमांथी प्रसरे छे अवो प्रकाश, उजाळी दीधा छे धरती आकाश, भवोभवनी प्रीतडीनो बांध्यो छे पाश, पूरी छे राजुलना अंतरनी आश (२) ___ मोक्षे सिधाव्या राजुल नेमकुमार...२
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hit
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आप क्या जाने....
आप क्या जाने नेमि जिनेश्वर, यहां हम कैसे जीओ जा रहै है, तुजको मीलने की उम्मिद रख कर, गम के आंसु पीओ जा रहै है... आप १ __तुं सागर है मे ओस बिंदु, मैं एक सूर ओर तुं सूर सिंधु,
सप्तसूरो की सरगम बनाकर, तेरे गीतो को हम गा रहै है... आप २ मुखडे पे तेरे ममता जो मलके, नैनो से तेरे प्यार जो छलके, करुणा और समताकी बहती, धारा में हम न्हा रहै है... आप
तुं समुद्र विजय शिवादेवी नंदा, तेरे चरणो में चोसठ इंदा, मीटा दे मेरे भवोभव का फंदा, यही अरज हम सुना जा रहे है... आप ३
वो काला सहसावन...
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|वो काला सहसावन वाला (२) सुध बिसरा गया मोरी रे (२) शिवादेवी नंदकीशोर जो (२) कर गयो रे, कर गयो रे, कर गयो मनकी चोरी रे...
...सुध बिसरा... कालो काजल अखियन सोहे, काले बादल में ज्युं जल होवे (२) । |सुरभि सुहागन सुंदर सोहे (२) काली भयी कस्तूरी रे... सुध बिसरा.
काली कीकी काला तील है, कालोदधि का काला जल रे (२) वैसी ही काली सुरत तोरी (२) में तो गया बलिहारी रे...
___...सुध बिसरा... कनक कसोटी पथ्थर कालो, कालो कनैयो जशोदा को लालो (२) जो काले ने राजुल तारी (२) जय जय जय गिरनारी रे...
सुध बिसरा...
mannaamaanaamaan
4
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ओ मारा नेमजी तोरणथी
ओ मारा नेमजी तोरणथी रथ क्युं मोडो, ओ मारा नेमजी हथलेवो अब जोडो... मारा नेमजी...
ओ मारा नेमजी महेन्दी लगाई मारा हाथो में,
ओ मारा नेमजी महेन्दी रो रंग रातो... मारा नेमजी... ओ मारा नेमजी आठ भवों री प्रीतलडी, ओ मारा नेमजी नवमें भव क्युं तोडो... मारा नेमजी...
ओ मारा नेमजी सोलह शृंगार में कीना,
ओ मारा नेमजी मनडा री वातो जाणो... मारा नेमजी... ओ मारा नेमजी बेनड जूठी काया ने माया, ओ मारी बेनड जूठो है झंझाल मोरी बेनण... तोरणथी... ___ओ मारी बेनड पशुओं रोवे इण वाडा में,
ओ मारी बेनड पाप से वाडो छेडो मारी बेनड... तोरणथी... ओ मारी बेनड पशुओं री पुकार सुनी, ओ मारी बेनड नेनो नेनो कालजो कपीजे... मारी बेनड तोरण...
ओ मारी बेनड कर्म कपावा में जावु,
ओ मारी बेनड गढ गिरनार जावू मारी बेनड तोरणथी.... ओ मारा नेमजी थोरे साथे में चालुं; ओ मारा नेमजी संयम लईने चालो नेमजी... तोरण...
ओ मारा नेमजी भक्तो तोरा गावे हैं, ओ मारा नेमजी भव भव पार उतारो मारा नेमजी... तोरण...
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मेरे सर पर रख दो |
मेरे सर पर रख दो दादा अपने ये दोनो हाथ नेम प्रभुजी दीजीओ जनम जनम का साथ
तेरा अहेसान होगा, तेरा उपकार होगा. सुना है हमने तुम भक्तो की चाहत पूरी करते हो जैसा हमने क्यां मांगा जो देने से डर जाते हो,
मेरा रस्ता रोशन करदो, आयी अंधयारी रात... जनम जनम से भटक भटक कर तेरे द्वार पे आया हूं, भक्तिगीतो के थाल को लेकर तुम चरणोंमें आया हुं, .
. चाहे सुख में हो या दुःख में बस थामे रहेना हाथ...
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आवो आवोने नेमकुमार (राग : तने साचवे पार्वती अखंड सौभाग्यवती...) आवो आवोने नेमकुमार,
आवोने अम आंगणीओ. विनवे रडती राजुलनार, :
आवोने अम आंगणीए. बांध्या बांध्या तोरण बारणे, वागे वागे शरणाई ढोल आंगणीओ,
सज्या राजुल सोळे शणगार... आपणी आठ आठ भवनी प्रीतलडी, नवमे भव केम विसारी दीधी,
ओछु आव्युं शुं राजकुमार....
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सुणी पोकार पशुडा पाडता, प्रभु रथने पाछो वाळता,
वसिया जई गढ गिरनार...
धुं संयम केवळ मोक्षे गया, दीक्षा लीधी राजुल संगे गया,
माणेक वंदन वारंवार ....
भावना जागी छे
( राग : लगनी लागी छे अगनी जागी छे.)
भावना जागी छे यात्रा करवी छे
नेमिनाथ दरशन काज...
शाश्वत गिरनार स्पर्शी क्यारे हुं पावन थाउं, नेमिनिरंजन भेटी पापोने मारा पखाळं, अंतरनी आशने... आशने पूरजो प्रभु तमे... मुक्ति थकी पण भक्ति लागे छे मुजने व्हाली, नेमीश्वरना चरणे पामुं छं हुं प्रेमनी प्याली, सुमीरनना श्वासथी... श्वासथी समर्या करु तने... छूटे भले आ जीवन पण तारी भक्ति ना मूकुं, तारा पावन खोळे हुं पुष्प बनीने महेकुं, आतमनी हर आश छे... आश छे अर्पण प्रभु तने...
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दर्शन करवाने अमे
(राग : महेंदी रंग लाग्यो..) दर्शन करवाने अमे आवियाने, कांई आंगीनो रुडो बन्यो ठाठ रे... आव्या दर्शन करवा... समुद्रविजयना नंदजी रे, काई नेमकुमार रुडा नाम रे... आव्या दर्शन करवा... शिवादेवी कूखे अवतर्या ने, कांई शोभे रतन समान रे... आव्या दर्शन करवा... उत्तमकुलमा अवतर्याने, . वाले नवखंड राख्या नाम रे... आव्या दर्शन करवा... माथे मुगट मोती जड्याने, कांई काने कुंडल सार रे... आव्या दर्शन करवा... बांहे बाजुबंध बेरखाने, कांई कंठे नवशेरो हाथ रे... आव्या दर्शन करवा.... हाथनी ते कल्ली हीरे जडीने, काई सफल बीजोरु हाथ रे... आव्या दर्शन करवा... केडे कंदोरो हेमनो रे, कांई घुघरी घमकार... आव्या दर्शन करवा.... दांत सोहे दाडमकळी रे, कांई अधर प्रवाळानो रंग रे... आव्या दर्शन करवा... पाये ते मोजडी मोती जडी रे, कांई रेशमीओ सुरवाल रे... आव्या दर्शन करवा... लीली घोडीने पीळो चाबखो रे, कांई पातळियो असवार रे... आव्या दर्शन करवा...
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में अणसारे ओळख्या रे,
कांई राजीमतीनो भरथार रे... आव्या दर्शन करवा.... शरद पूनमनी शोभा घणी रे,
कांई चांदनी खीली भली भात रे... आव्या दर्शन करवा... सोना समु देरासर भलु ने,
कांई रुपासमी तेनी कोर रे... आव्या दर्शन करवा... मिथ्या तामस दूर थयुं रे,
दरशने समकित प्रकाश रे... आव्या दर्शन करवा... भव भ्रमणना फेरा टळ्या रे,
दीठा आज नेमिनाथ रे... आव्यां दर्शन करवा...
वरसे भले वादळी...
वरसे भले वादळी ने वायु भले वाय,
दादा तारो दीवडो कदि न बुझाय,
आवे भले ने आंधी तोफानो, भले ने झंझावात झींकाय दरियामां उछळे मोजां तोफानी, पर्वत शिलाओ गबडी जाय. ओने बुझववा आवे असुरो, अ पण हारीने चाल्या जाय. | आवे भलेने राहु ने केतु, ओनो प्रभाव पण पाणी पाणी थाय अलबेला नेमिनाथ डुंगरे बिराजे, यात्रा करवाने सहु दोडी दोडी जाय
दादा
थाळ भरी चोखाने...
थाळ भरी चोखाने... घीनो छे दीवडो,
श्रीफळनी जोड लईने,
हालो... हालो गिरनार जईओ रे .
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...
वरसे भले
दादा
दादा
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गिरनार तीर्थमां नेमिनाथ शोभता,
मुखडं पूनम केरो चंद रे... हालो हालोने. गिरनार तीर्थना ऊंचा रे शिखरो,
- जोईने मन हरखाय रे... हालो हालोने. दादाना चोकमां नाचे पारेवडां,
मोरला करे टहुकार रे... हालो हालोने. दादानी यात्रा करी हैयुं हरखाय छे,
सेवकनो केरों उद्धार. रे... हालो हालोने..
घोर अंधारी रे...।
...घोर अंधारी रे...
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|घोर अंधारी रे... रातलडीमां, सपनां दीठां चार, |पहेले सपने रे दीठा में तो, गिरनारजीना धाम, जात्रा करशुं रे साथे मळी सह, गिरनारजीना धाम, भेटवा आवजो रे... गिरनारजीमां, नेमिनाथ भगवान बीजे सपने रे... दीठा में तो... सिद्धाचळजी धाम, आवजो आवजो रे साथे मळी सहु... सिद्धाचळजी धाम, नव्वाणुं करशुं रे... साथे मळी सहुं.... सिद्धाचळजी धाम, भेटवा आवजो रे सिद्धाचलमां... आदेश्वर भगवान त्रीजे सपने रे दीठा में तो, शंखेश्वरजी धाम, आवजो आवजो रे साथे मळी सहु, शंखेश्वरजी धाम, अठ्ठम करशुं रे साथे मळी सहु. शंखेश्वरजी धाम, भेटवा आवजो रे शंखेश्वरमां, पार्श्वनाथ भगवान
...घोर अंधारी रे...
...घोर अंधारी रे...
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mins
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हेलो मारो सांभळो....
(दुहो) सोरठ देशमा संचर्यो, न चढ्यो गढ गिरनार; . सहसावन फरश्यो नहिं, अनो ओळे गयो अवतार... हेलो मारो सांभळो गिरनारना राजा, समुद्र विजयना बेटडा ने शिवादेवीना नंद,
मारो हेलो सांभळो... हो. हुकम करो तो दादा जात्राओ आवं, भवोभवना कर्म खपावी मोक्षे चाल्या जावं,
... मारो हेलो. ऊंचा ऊंचा डुंगराने वसमी छे वाट, केम करीने आq दादा पकडो मारो हाथ,
... मारो हेलो. नर अने नारी तारी जात्राए आवे, चरणकमळ तारा सेवीने,
___ भवसागर तरी जावे... मारो. नेमिनाथ दादानी अद्भूत लीला न्यारी, आ सेवकनो हाथ पकडी,
लई ल्योने उगारी... मारो हे श्रावको मळी सौ यात्राओ आवे,
धनवैभव लूटावी तेतो पुण्यकर्म पावे... मारो
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झनन झनन जनकारो रे... झनन झनन जनकारो रे, बोले आतमनो एकतारो रे,
हवे प्रभुजी पार उतारो. तारलियाना तोटा नहि पणं सूरज चंदा ओक छे. देव अनेरा दुनियामां पण मारे मन तुं ओक छे. झनन झनन जनकारो रे, बोले घूघरीनो घमकारो रे... हवे... अवनी पर आकाश रहे तेम करजो अम पर छाया, निशदिन अंतर रमती रहेजो नेमिवर तारी माया, चमक चमक चमकारो रे, तारो मुखडानो मलकारो रे... हवे... उषा संध्याना रेशम दोरे, सूरज चंदा झूले, चडती ने पडतीना झूले मानव सघळा झूले, सनन सनन सनकारो रे, तारी वाणीनो रणकारो रे... हवे...' तुं छे माता, तुं छे पिता, तुं छे जगनो दीवो, शिवादेवीना नानकडा नंदन, जगमां जुग जुग जीवो, झनन झनन झनकारो रे, मुज प्राण थकी तुं प्यारो रे... हवे...
दीनानाथजी... ओक बार मुखडो बताओ दीनानाथजी थारी मोहनी मूरत लागे प्यारी, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार रैवताचलना राजा थे, तो गिरनारना राजा, शिवादेवी रा लाडका लाल, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार निर्दोष पशुअनकी थे तो, करुणा कीधी अपार रे, मारा वालजी राजीमती रा कंत, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार
PRIMARITERMIRE
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रहनेमि तार्या दादा, गजसुकुमालने तार्या हो, . नहीं थोने मालूम होवे, थोरे शरणे आया हो, नहीं भुलेगा थारो उपकार, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार कोयल बोले मीठा मीठा, मोरियाजी बोले हो, थोरा बाल करे रे पुकार, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार
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नेम राजुल छे
(राग : दिल लगा दिया) नेम राजुल छे अमोला रतन,
जैन धर्मना बागना छे सुवासित सुमन... नेम जाणे हो त्यागनी मूर्ति, नेम विना राजुल केटली झूरती, - लग्न मंडप छोडी चाल्या,
नेम बंधन छोडी चाल्या, .
धर्मना करवा जतन... .. नेमना संयमने श्रद्धाना बळथी, झूरती राजुलनी वेदना फळती,
काजे नेम त्यागे, तपना बळथी विश्वत्यागे,
... धर्मना खिल्या सुमन...
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D
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सामान्य भक्तिगीत विभाग
भगवाननी कृपानो भगवाननी कृपानो भरपूर छे खजानो, खुटे नहीं कदापि, अनी प्रीतनो खजानो...
लेनार होय अने, आपे हजार हाथे, खाली न जाय कोई, दातार छे मजानो... ओनी नजरमां, कोई ऊंचुं नथी के नीचुं सहुओ छे ओक सरीखा, नानो न कोई मोटो... देखी शकाय तुजने, दृष्टि नथी अमारी घट घट मांही बिराजे, आवी ने छानोमानो... दुःखियानो तुं दिलासो, डूबतानो तुं सहारो श्रद्धाभरी छे हैये, आखर'तुं तारवानो....
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आशरा इस जहां का आशरा इस जहां का मिले ना मिले, मुज को तेरा सहारा सदा चाहिये... यहां खुशियां है कम, और ज्यादा है गम, जहाँ देखो वहां है, भरम ही भरम मेरी महफिल मे शमा जले ना जले, मुज को तेरा उजाला सदा चाहीओ... मेरी धीमी है चाल, और पथ है विशाल, हर कदम पे मुसीबत है, अब तो संभाल, पैर मेरे थके है चले ना चले, मुजको तेरा इशारा सदा चाहीये...
Immisamaaaaaan
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meenaReseamsung
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कभी वैराग है, कभी अनुराग है, . बदलते है माली, वही बाग है, मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे, मेरे दिल में बसेरा तेरा चाहिये...
तुज करुणाधारमा
तुज करुणाधारमा हुं, नित्य भीजातो रहूं, पार्श्व शंखेश्वर प्रभुजी, शरण हुं ताएं लहुं... ,
तुं ज छे मारुं जीवन तारा विना चित्त ना ठरे, नाम तारुं हरपल, मारा उरमां धबक्या करे; .
वियोगनी वसमी अवस्था, कीम हुं जीवीत रहुं... तुं वसे छे अटले दूर, हुं अहीं सबड्या करुं, तुं मजेथी म्हालतो, हुं अहीं तहीं भटक्या करुं। प्राण प्यारा नहीं मळे तो, आयखं पूरं का...
.प्रीतडी तारी ने मारी, केटली उमदा हशे; ..
हरघडी तुजने ना भुलुं, केवा ऋणाबंधन हशे; __ मन मनायूँ क्यां सुधी, वियोगमा झुर्या करुं... आंसुओ ओक दिवस मारा, तुजने पीगळावशे, आश छे अवी हृदयमां, अक दि मळवा आवशे; तुज भरोसे छे बाळक, मेथी वधारे शुं कहुं...
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तारे द्वारे आवीने
तारे द्वारे आवीने कोई, खाली हाथे जाय ना, करुणा निधान, करुणा निधान...
आ दुनियामां, कोई नथी रे, तुज सरीखो दातार, अपरंपार दया छे ताहरी, तारा हाथ हजार,
तारी ज्योति पामीने कोई, अंधारे अटवाय ना... शरणे आवेलानो साचो, तुं छे रक्षणहार, डगमगती जीवन नैयानो, तुं छे तारणहार, तारे पंथे जनारो कदीये, भवरणमां भटकाय ना...
...खूटे नहीं कदापि अवो, तारो प्रेम खजानो,
मुक्तिनो मारग बतलावे, अवो पंथ मजानो, तारे शरणे जे कोई आवे, रंक पण रही जाय ना...
करुणाना सिंधु प्रभुजी |
(राग : तुं जहां जहां रहेगा मेरा शाया साथ...) करुणाना सिंधु प्रभुजी, दुःख दूर कर अमारा, विनवीओ तने विभुजी, पापो कर दूर अमारा...
तने याद करी प्रभुजी, जे वहे छे मारा आंसु, वसमा विरहनी वातो तने कहे छे मारा आंसु, श्रद्धा छे क्यारेक तुं मळशे लूछवाने मारा आंसु, वीती गया छे प्रभुजी, ओ आशाना जन्म मारा...
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दर्शनथी तारा अमने, जीववानुं जोम मळतुं, हैयामां शांति थाती, जे रहे छे सदाय बळतुं, तुं साथे छे अमारी, तेथी भक्तिमां मनडुं भळतुं, कहेवी छे बधी हकीकत, सुख दुःखना साथी मारा...
दुखियाना ओ दिलासा, अक ज छे आश तारी, रीझववा प्रभुजी तमने, वर्णवीओ कथा अमारी, हवे जीवन नावडीने, करो पार प्रभुजी प्यारा...
सूरज की गरमी से। सूरज की गरमी से जलते हुओ तन को,
मिल जाये तरुवर की छाया जैसा ही सुख मेरे मनको मिला है मैं,
जब से शरण तेरी आया... मेरे नाथ... . भटका हुआ मेरो मनथी कोई मिला ना रहा हो सहारा, लहेरो से लटी हुइ नाव को जैसे, मिल ना रहा हो किनारा, उस लडखडाती हुई नाव को जो कीसी ने किनारा दिखाया... शीतल बनी आग चंदन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी, उजयारी पूनम की हो जाये राते, जो थी अमावश अंधेरी, युग युग से प्यासी मुरुभूमिने जैसे, सावन का संदेश पाया... जिस राहो की मंजिल तेरा मिलन हो, उस पर कदम में बढाउं; फूलो में खारो में पतझड बहारो में, मैं ना कभी डगमगाउं पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे, जि भरके अमृत पिलाया...
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ओक घडी प्रभु अक घडी प्रभु उर अकांते, आवीने स्नेहे मळे ...सोनामां खोयुं होय जीवनमा जे जे, पाछु आवी मळे ज्यां ज्यां हार थई जीवनमां, त्यां त्यां जीत मळे ____...सोनामां सुगंध भळे. || ना कांई लेवु... ना काई देवू, चिंता ओनी टळे . ना होय मृत्यु... ना होय जीवन, फेरा जगतना टळे ...सोनामां सुगंध भळे. कर्म कीधां होय जे जीवनमां, सघळा साथे. बळे, करुणासागर वीर प्रभुनो साचो संबंध मळे ....सोनामां सुगंध भळे.
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आंखडी मारी प्रभु ' आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे
ज्यां तमारा मुखना दर्शन थाय छे ...आंखडी मारी प्रभु. पग अधीरा दोडतां देरासरे द्वारे पहोंचुं त्यां अजंपो थाय छे ...आंखडी मारी प्रभु. देवनुं विमान जाणे ऊतयु एवं मंदिर आपनुं सोहाय छे ...आंखडी मारी प्रभु. चांदनी जेवी प्रतिमा आपनी तेज अनुं चोतरफ फेलाय छे ...आंखडी मारी प्रभु. मुखडं जाणे पूनमनो चंद्रमा चित्तमां ठंडक अनेरी थाय छे ...आंखडी मारी प्रभु. बस ! तमारा रुपने निरख्या करं लागणी अवी हृदयमां थाय छे ...आंखडी मारी प्रभु.
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अमी भरेली नजरं अमी भरेली नजरं राखो... महावीर श्री भगवान रे दर्शन आपो दुःखडां कापो... महावीर श्री भगवान रे चरण कमळमां शीश नमा... वंदन करुं महावीर रे दया करीने भक्ति देजो... महावीर श्री भगवान रे हुं दुःखियारो तारो द्वारे... आवी ऊभो महावीर रे आशिष देजो उरमां लेजो... महावीर श्री भगवान रे तारा भरोसे जीवन नैया... हांकी रह्यो महावीर रे बनी सुकानी पार उतारो... महावीर श्री भगवान रे भक्तो तमारा करे विनंती... सांभळजो महावीर रे मुज आंगणमां वास तमारो... महावीर श्री भगवान रे
गमे ते स्वरुपे गमे ते स्वरुपे गमे त्यां, बिराजो प्रभु मारा वंदन... प्रभु मारा वंदन भले . ना निहाळु... नजरथी तमोने मळ्या गुण तमारा... सफळ मारुं जीवन...गमे ते स्वरुपे जन्म असंख्य मल्या ते गुमाव्या न कर्यो धर्म के... न तमोने संभार्या हवे आ जीवनमां... करुं हुं विनंती स्वीकारो तमे तो... तूटे मारां बंधन...गमे ते स्वरुपे मने होंश अवी... ऊजाळु जगतने मळे जो किरण मारा... मनना दीपकने तमे तेज आपो... जलातुं हुं ज्योति अमरपंथे सहुने... करावे तुं दर्शन...गमे ते स्वरुपे
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जगमगता तारलान... ।
जगमगता तारलानुं देरासर होजो अमां मारा प्रभुजीनी प्रतिमा होजो सुंदर सोहामणी आंगी होजो
...जगमगता अमे अमारा प्रभुजीने... फूलोथी वधावीशुं फूलो नहीं मळे तो अमे... कळीओथी वधावीशुं कळीओथी सुंदर डमरो होशे... अमां मारा. अमे अमारा प्रभुजीने... सोनाथी सजावीशुं सोनुं ना मळे तो अमे... रुपाथी सजावीशुं रुपाथी सुंदर हिरला होशे... अमां मारा० अमे अमारा प्रभुजीने... मंदिरमां पधरावीशं मंदिरमां पधरावी अमे... हृदयमां पधरावीशं हृदयसिंहासने बेसणां होजो... अमां मारा.
_तमे मन मूकीने...। तमे मन मूकीने वरस्या... अमे जनमजनमना तरस्या तमे मुशळधारे वरस्या... अमे जनमजनमना तरस्या हजार हाथे तमे दीधुं पण जोळी अंमारी खाली ज्ञान खजानो तमे लूटाव्यो तोये अमे अज्ञानी
तमे अमृत रूपे वरस्या... अमे. स्नेहनी गंगा तमे वहाली जीवन निर्मळ करवा प्रेमनी ज्योति तमे जलावी आतम उज्जवळ करवा
तमे सूरज थईने चमक्या ... अमे
mammHg
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शब्दे शब्दे शाता आपे ओवी तमारी वाणी ए वाणीनी पावनताने अमे कदि न जाणी तमे महेरामण थई उमट्या अमे कांठे आवी तरस्या...
नाम हे तेरा तारणहारा... नाम है तेरा तारणहारा... कब तेरा दर्शन होगा ? जिनकी प्रतिमा ईतनी सुंदर,
वो कीतना सुंदर होगा... नाम है... तुमने · तारे लाखो प्राणी... ये संतोकी वाणी है, तेरी छबी पर मेरे भगवंत... ये दुनिया दीवानी है, भावसे तेरी पूजा रचाउं... जीवन में मंगल होगा
. ...जिनकी प्रतिमा... सुरवर मुनिवर जिनके चरणे निशदिन शीश झुकाते है, जो गाते है प्रभु की महिमा... वो सबकुछ पा जाते है, अपने कष्ट मिटाने को तेरे चरणो में वंदन होगा
. ...जिनकी... मनकी मुरादें लेकर स्वामी तेरे चरण में आये है, हम है बालक तेरे चरण में तेरे ही गुण गाते है, भवसे पार ऊतरने को तेरे गीतों का सरगम होगा
...जिनकी...
| बंधन बंधन झंखे मारे मन बंधन बंधन झंखे मारुं मन, पण आतम झंखे छुटकारो, मने दहेशत छे आ झघडामां, थई जाय पूरो ना जन्मारो
...बंधन बंधन.
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मधुरां मीठां ने मनगमतां, पण बंधन अंते बंधन छे, लई जाय जनमना चकरावे, अवुं दुःखदायी आलंबन छे, हुं लाख मनावुं मनडाने, पण ओक ज अनो 'उहकारो' ....बंधन बंधन. अकळायेलो आतम के' छे, मने मुक्त भूमिमां भमवा दो, ना राग रहे, ना द्वेष रहे, अवी कक्षामां मने रमवा दो, मित्राचारी आ तनडानी, बे चार घडीनो चमकारो, ... बंधन बंधन. वरसो वीत्यां, वीते दिवसो, आ बे शक्तिना घर्षणमां,
शुं मळ, विष के अमृत, आ भवसागरना मंथनमां ? क्यारे पंखी आ पिंजरानुं, करशे मुक्तिनो टहुकारो ?
...बंधन बंधन.
मुक्ति मळे के ना मळे...
मुक्ति मळे के ना मळे... मारे भक्ति तमारी करवी छे; मेवा मळे के ना मळे... मारे सेवा तमारी करवी छे. मुक्ति मळे के... मारो कंठ मधुरो ना होय भले, मारो सूर बेसूरो होय भले; शब्दो मळे के ना मळे, मारे स्तवना तमारी करवी छे. मुक्ति मळे के... आवे जीवनमां तडका ने छाया, सुख दुःखना पडे त्यां पडछाया; काया रहे के ना रहे, मारे माया तमारी करवी छे मुक्ति मळे के... हुं पंथ तमारो छोडुं नहि, ने दूर दूर क्यांये दोडुं नहि; पुण्य मळे के ना मळे, मारे पूजा तमारी करवी छे. मुक्ति मळे के...
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ओ वीर तारा चरणकमळमां
(राग : अमी भरेली...) ओ वीर तारा चरणकमळमां आ जीवन कुरबान छ, .. मारा जीवननी नौकानुं तुज हाथ सुकान छे. सुख आवे के दुःख आवे मने तेनुं कई नहीं भान रे, .. तारी भक्तिमां मस्त बनीने आ काया कुरबान छे ... ओ वीर ! भवसागरमां आवी छे आंधी अमांथी मने तारजे, मने तो तारी ओक ज आशा तुं मारो आधार छे ... ओ वीर ! तारी सेवामां मस्त बनुं ने बीजुं मारे नहीं काम रे, तारी पूजामां मस्त बनीने तारा गुणला गावा छे ... ओ वीर ! तारी भक्तिमां आंच न आवे अटलुं मारुं ध्यान छे, आ दुनियानी मोहमायामां तुं अक तारणहार छे. ... ओ वीर ! | भवना मुसाफर प्रेमे विनवे, भक्तोने तमे तारजो, भक्त अंतरथी आग्रह करतो प्रेमे वहेला आवजो ... ओ वीर !
मारो धन्य बन्यो...
मारो धन्य बन्यो आजे अवतार
के मळ्या मने परमात्मा, करें मोंघो ने मीठो सत्कार
के मळ्या मने परमात्मा... श्रद्धाना लीलुडां तोरण बंधावू, __भक्तिना रंगोथी आंगण सजावू, हो... सजे हैयुं सोनेरी शणगार...
के मळ्या मने परमात्मा...
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प्रीतिनां मघमघतां फूलडे वधाएँ,
संस्कारे जळहळता दीवडा प्रगटावं, · हो... करे मननो मोरलियो टहुकार...
के मळ्या मने परमात्मा... उरना आसनीओ हुं तो प्रभुने पधरावं,
जीवन आखें तारा चरणे बिछाएँ, हो... हवे थाशे आतमनो उद्धार...
- के मळ्या मने परमात्मा...
मारा व्हाला प्रभु
मारा व्हाला प्रभु क्यारे मळशो मने, मारी आशा पूरी क्यारे करशो तमे. करुणा सागर छे बिरुद तमाएं प्रभु, करुणा करशो मे आशा धरुं हुं प्रभु, रात दिवस प्रभु तुजने याद करे... मारी आशा. मारी कबूलात छे के पतित हतो हुँ, पण पतितोने तारनारो अक ज छे तुं, तारी मायाने छायामां रहेQ गमे... मारी आशा. तुजने ओळखी शकुं ओवी दृष्टि तुं दे, तुजने नीरखी शकुं ओवी शक्ति तुं दे, रात दिवस प्रभु समरं तुजने... मारी आशा. .
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यह है पावन भूमि...
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यह है पावन भूमि, यहां बार बार आना... प्रभु वीर के चरणो में, आकर के झूक जाना... यह है.
तेरे मस्तक पे मुगट है, तेरे कानो में कुंडल है, तुं तो करुणा सागर है मुज पर करुणा करना... यह है.
तुं जीवन स्वामी है, तुं अंतर्यामी है, मेरी बिनती सुन लेना, भव पार करा देना... यह है.
तेरी सावली सूरत है, मेरे मनको लुभाती है, मेरे प्यारे प्यारे जिनराज, युग-युग में अमर रहना है... यह है.
तेरा शासन सुंदर है, सभी जीवो का तारक है, मेरी डूब रही नैया, नैया पार लगा देना... यह है.
॥
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जात छ,
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हुँ कर छु प्रार्थना... हुं करुं छु प्रार्थना... मने प्रेम तारो आपजे, . कांई खोटुं काम करतो होउं... त्यारे तुं मने वारजे... जीवन छे संग्राम... कोईनी हार कोईनी जीत छे, जाणुं छु संसार आ तो... सुखदुःखनो सार छे, हारथी हारी न जाउं... अवी हिंमत आपजे ...काई खोटुं. धन मळे के न मळे पण,.. धर्म ने हुं जाळवं, तारो पंथ चूकी न जाउं... अटलुं संभाळवं, ते छतां भूलो पर्दू तो... साचे रस्ते वाळजे ...कांई खोटुं. मोक्षनी चिंता नथी... हुं रात-दिन भक्ति कएं, ताएं नाम भुलाय नहि... भावना अवी भावं, डगुमगु नहि हुं कदापि... श्रद्धा ओवी आपजे ...काई खोटुं.
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चार दिवसनां चादरडां पछी... चार दिवसनां चांदरडां पर जुठी माया शा माटे ? जे ना आवे संगाथे... तेनी ममता शा माटे ? आ वैभव साथे न आवे... प्यारा स्नेहीओ साथे ना'वे, तुं खूब मथे जेने जाळववा ते यौवन साथे न आवे, अहीं- अहींयां रहेवा ने... अनी चिंता शा माटे ? में बांधेली महेलातोने.... धनदोलतनुं काले शुं थाशे, जो जावू पडशे अणधार्यु... तारा परिवार- त्यारे शुं थाशे, सौनुं भावी सौनी साथे... तेनी चिंता शा माटे ? सुंवाळी दोरीनां बंधन... सहु आजे प्रेम थकी बांधे, पण तूटे तंतु आयुष्यनु... त्यारे कोई न सांधे, भीड पडे त्यारे तड-तड तूटे... एवा बंधन शा माटे ?
__मारुं आयखं खूटे... । माएं आयखं खूटे जे घडीओ, त्यारे मारा हृदयमां पधारजो छे अरजी तमोने बस अटली, मारा मृत्युने स्वामी सुधारजो. जीवननो ना कोई भरोसो... दोडादोडीना आ युगमां, अंतरियाळे जईने पहुं जो... ओचिंता मृत्युना मुखमां, त्यारे मारा स्वजन बनीने आवजो,
थोडा शब्दो धरमना सुणावजो... छे अरजी..... दर्द वध्या छे आ दुनियामां... मारे रिबावी रिबावीने, ओवी बिमारी जो मुजने सतावे... छेल्ली पळोमां रडावीने, त्यारे मारी मददमां पधारजो, पीडा सहेवानी शक्ति वधारजो... छे अरजी... जीवq थोडं ने झंझाळ झाझी, ओवी स्थिति छे आ संसारनी, छूटवा दे ना मरती वेळाओ... चिंता मने जो परिवारनी, ज्ञान दीपक तमे प्रगटावजो... मारा मोह तिमिरने हटावजो.... छे अरजी....
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भक्ति करतां छूटे मारा...
...प्रभु...
भक्ति करतां छूटे मारा प्राण, प्रभु अर्बु मांगुं छु रहे हृदय कमळमां तारुं ध्यान, प्रभु एव॒मार्नु छु... ताएं मुखड़े प्रभुजी हुं जोया कएं, रात दिवस गुणो तारा गाया करुं, अंत समये रहे तारुं ध्यान... मारी आशा निराशा करशो नहि, मारा अवगुण हैये धरशो नहि, श्वासेश्वासे रहे तारुं ध्यान · . मारा पाप ने ताप समावी देजो, आ सेवकने चरणोमां राखी लेजो, आवी देजो दर्शन दान तारी आशाओ प्रभु हुं तो जीवी रह्यो, तमने मळवाने प्रभु हुं तो तलसी रह्यो, मारी कोमळ काया करमाय मारा भवोभवना पापो दूर करो, मारी अरजी प्रभुजी हैये धरो, मने राखजो तुम्हारी पास तमे रहेजो भवोभव साथ
...प्रभु...
...प्रभु... ...प्रभु...
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प्रभु ओ विनंती...
प्रभु ! ओ विनंती, हवे तो स्वीकारो; नथी गमतुं भवमां, हवे तो उगारो... प्रभु कदि क्रोधना तो, वादळ चडे छे; समजना सूरजने ते आवरे छे.
समीर थई क्षमाना हवे तो पधारो... कदि मान हाथी, आवी चडे छे; विनयना शिखरेथी गबडावी दे छे,
समर्पणनी सरगम, बनीने पधारो... कदि मोहना तो, सर्पो दंशे छे; संयमनी साधनाने, सळगावी दे छे,
मयूर बनीने, हवे तो पधारो... कदि तो कपटना, कांटा उगे छे; निखालस विचारोना, फूलोने विधे छे,
माळी बनीने, हवे तो पधारो... लालसानो सागर, तोफाने चडे छे; तप अने त्यागना, वहाणो डूबे छे,
सुकानी बनीने, हवे तो पधारो... हृदय कमलमां, जो तुं पधारे; जीवननी नैया तो, पहोंचे किनारे,
राहबर बनीने, हवे तो पधारो.. छेल्ली आ विनंती करुं छु तमोने; विसारी ना देशो, प्रभुजी अमोने,
श्वासोनी धडकन, बनीने पधारो...
आटलुं तो आपजे... आटलुं तो आपजे भगवान ! मने छेल्ली घडी, ना रहे मायातणां बंधन मने छेल्ली घडी. आ जिंदगी मोंधी मळी... पण जीवनमा जाग्यो नहि, अंत समये मुजने रहे... साची समज छेल्ली घडी... ज्यारे मरण शय्या परे... मींचाय छेल्ली आंखडी तुं आपजे त्यारे प्रभुमय... मन मने छेल्ली घडी..
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हाथ-पग निर्बळं बने ने... श्वास छेल्लो संचरे, ओ दयाळु ! आपजे... दर्शन मने छेल्ली घडी... हुं जीवनभर सळगी रह्यो ... संसारना संतापमां, तुं आपजे शांतिभरी निद्रा मने छेल्ली घडी... अंत समये आवी मुजने, ना दमे घट दुश्मनो, जाग्रत पण मनमां रहे... तारुं स्मरण छेल्ली घडी...
मैत्री भावनुं पवित्र झरणुं
मैत्रीभावनुं पवित्र झरणुं, मुज हैयामां वह्या करे, शुभ थाओ आ सकल विश्वनुं, ओवी भावना नित्य रहे; गुणथी भरेलां गुणीजन देखी, हैयुं मारुं नृत्य करे, ए संतोना चरणकमलमां, मुज जीवननुं अर्ध्य रहे... मैत्री दीन, क्रूर ने धर्म विहोणां, देखी दिलमां दर्द रहे, करुणा भीनी आंखोमांथी, अश्रुनो शुभस्रोत वहे... मैत्री मार्ग भूलेला जीवन पथिक ने मार्ग चींघवा ऊभो रहूं, करे उपेक्षा ए मारगनी तो ये समता चित्त धरुं; चंद्र - प्रभुनी धर्म भावना, हैये सौ मानव लावे, वेरझेरना पाप तजीने, मंगल गीतो अ गावे ... मैत्री
समताथी दर्द सहु
( राग : ओघो छे अणमूलो... )
समताथी दर्द सहुं प्रभु अवुं बळ देजो, मारी विनंती मानीने मने आटलं बळ देजो... कोई भवमां बांधेला मारां कर्मों जाग्या छे,
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कायाना दर्दरुपे मने पीडवा लाग्या छे,
.. समताथी...
आ ज्ञान रहे ताजु, अवुं सिंचन जळ देजो... समताथी ... दर्दोनी आ पीडा रडवाथी मटशे नहि, हुं कल्पांत करूं तो पण आ दुःख तो घटशे नर्हि, दुर्ध्यान नथी करवुं अवुं निश्चय बळ देजो... आ काया अटकी छे नथी थातां तुज दर्शन, ना जई शकुं सुणवाने गुरुनी वाणी पावन, जिनमंदिर जावानुं फरीने अंजळ देजो... समताथी... नथी थाती धर्मक्रिया अनो रंज घणो मनमां,
दिलडुं तो दोडे छे पण शक्ति नथी तनमां, मांरी होंश पूरी था छोने आ दर्द वधे, हुं मोत नही मागुं
ओवो शुभ अवसर देजो ... समताथी...
वळी, छेल्ला श्वास सुधी हुं धर्म नहीं त्यागुं, रहे भाव समाधिनो ओवी अंतिम पळ देजो ... समताथी...
व्हाला मारा हैयामां...
( राग : आंधळी मानो कागळ)
व्हाला मारा हैयामां रहेजे.... भूलुं हुं त्यां तुं टोकतो रहेजे
व्हाला मारा.
मायानो छे कादव ओवो, पग तो खूंची जाय हिमत मारी काम ना आवे, तुं ज पकडजे बांय
...
व्हाला मारा.
मरकट जेवुं मन आ मारुं, ज्यां त्यां कूदका खाय मोह मदिरा उपर पीधो ने.... पापे प्रवृत्ति थाय
व्हाला मारा.
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...
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देवुं पताववा आव्यो जगमां, देवुं वधतुं जाय, छूटवानो एक आरो हवे तो, तुं छोडे तो छुटाय
व्हाला मारा.
भक्त हृदयनुं दर्द हवे तो... मुखे कह्युं ना जाय सोंप्युं में तो तारा चरणमां... थवानुं होय ते थाय
व्हाला मारा.
...
अब सौंप दिया...
अब सोंप दिया ईस जीवन को भगवान तुम्हारे चरणो में, में हुं शरणागत प्रभु तेरा रहो ध्यान तुम्हारे चरणो में... मेरा निश्चय बस एक वही मैं तुम चरणों का पूजारी बनुं; अर्पण करूं दूं दुनियाभर का सब प्यार तुम्हारे चरणों में... अब. मैं जग में रहुं तो जैसे रहुं... ज्युं जल में कमल का फूल रहे; है मन वच काय हृदय अर्पण भगवान तुम्हारे चरणों में... अब जहां तक संसार में भ्रमण करूं तुज चरणों में जीवन को धरं; तुम स्वामी मैं सेवक तेरा धरूं ध्यान तुम्हारे चरणों में... अब. मैं निर्भय हुं तुज चरणों में आनंद मंगल है जीवन में; रिद्धि सिद्धि और संपत्ति मिल गई है प्रभु तुज चरणमों में... अब. मेरी इच्छा बस ओक प्रभु ओक बार तुजे मिल जाउं मैं; इस सेवक की हर रगरग का हो तार तुम्हारे हाथों में... अब.
बधी मिलकत तने धरं तो पण
बधी मिलकत तने धरूं तो पण, तारी करुणानी तोले ना आवे ... तें मने प्यार जे कर्यो भगवंत, माराथी अनुं मूल ना थाये...
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जिंदगी भर तने भगँ तो पण, तारी ममतानी तोले न आवे... तें मने प्रेम जे कीधो भगवंत, माराथी अनुं मूल्य न थाये...१ अनादि काळथी भटकवामां, कोई स्थाने मिलन थयुं तारे, या तो उपदेश में सुण्यो तारो, जेणे बदली दीधुं जीवन माएं, भोमिया तो घणा मळ्या मुजने, कोई प्रभु तारी तोले ना आवे... तें मने राह जे बताव्यो छे, माराथी अनुं मूल्य ना थाये...२ मने साची सलाह तें दीधी, मेथी आचरण में कयुं अनु, साची करणी करी कोई भवमां, आ भवे फळ मल्युं मने अनु, मारा उपकारी छे घणां जगमां, कोई प्रभु तारी तोले ना आवे... तें मने धर्म जे पमाड्यो छे, माराथी अनुं मूल ना थाये...३
मल्यां छे जे सुखो मने आजे, ओ बधा धर्मना प्रभावे छे, · तारा चरणे बधुं धरी देतां, मने आनंद अति आवे छे, ताएं आ ऋण क्यारे चूकवाशे, मने अंदाज ओनो ना आवे... भवोभव सेवा करुं तारी, तोये संतोष मुजने ना थाये...४
। दादा तार मंदिर दादा ताएं मंदिर तो आ जगनो सहारो छे, सुखिया के दुःखियानो मारो वहालो सहारो छे...१ मोहने मायाना जुओ वादळ छवाया छे (२) तेमां प्रभुनी प्रतिमा, सौने शाता पमाडे छे...२ माराने तारामां, सौ जीवन वितावे छे (२) माएं कहे ते मरे, दादा ताएं कहे ते तरे...३ दो रंगी दुनिया, प्रभु आम तेम बोले छे (२) प्रभु साचो सहारो छे, जे अंतर खोले छे...४ .
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चलो बुलावा आया है । चलो बुलावा आया है... मेरे दादाने बुलाया है ऊंचे ऊंचे डुंगर उपर... दादा का ठीकाना है (२)...चलो तेरे द्वार पे जो भी आये... खाली हाथ कभी न जाओ ९२)...चलो रोते रोते आते है... हसते हसते जाते है (२) ... चलो
दर्शन देजो नाथ
दरशन देजो नाथ... दरशन देजो नाथ... अंतरनी तमे आशा पूरजो... दुखडा सौना हरजो, दीनदयाळ दादा मारा... रक्षा सौनी करजो, भूलुं ना तने नाथ... छूटे ना तारो साथ... भक्तो.... प्रभु तारा चरणोमां हुं... मांगु तारी सेवा, शंखेश्वरना पार्श्वप्रभुजी... हो देवाधिदेवा, लईओ तारुं नाम.... धरीओ तारुं ध्यान.... भक्तो... अमी भरेली आंखडी तारी वरसे अमृतधारा, कृपानिधि करुणासागर.... जगना पालनहारा, देजो मोक्षनुं धाम... हैये पूरजो हाम... भक्तो...
जब कोई नहि आता जब कोई नहि आता... मेरे दादा आते है... मेरे दुःखके दिनोमें वो बडे याद आते है... मेरी नैया चलती है... पतवार नहीं चलती, कीसी ओरकी अब मुजको... दरकार नहि होती, में डरता नहि जगसे... प्रभु साथ होते है ... मेरे दुख.
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कोई याद करे उनको... दुःख हलका हो जाये, जो भक्ति करे उनकी... वे उनके हो जाये, वो बीन बोले कुछ भी... सब जान जाते है वे इतने बड़े होकर... भक्तो से प्यार करें, भक्तो के सब दुःख को .... पलमें ये दूर करे, भक्तो की विनती को... ये मान जाते है मेरे मनमंदिरमें वो... दादा का वास रहे, कोई खास रहे ना रहे... दादा मेरे साथ रहे, सब भक्तो का कहना... दादा जान जाते है ...
...
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अमने अमारा प्रभुजी
अमने अमारा प्रभुजी व्हाला छे... करुणाना सागर छे... तारणहारा छे... जीवोना प्यारा छे... अमने अमारा... १ द्वारे तारे हुं तो दोडीने आव्यो छु, मोह मायाने हुं तो छोडीने आव्यो छु, गुणो तमारा सौ गाईने हरखे छे, आनंदे हैयुं आ नाचे छे... अमने अमारा... २ तुज चरणमां हुं तो शीश नमावुं छु, भाव भरेला हैये शरणुं स्वीकारुं छु, मुजने तुं तारी ले मुजने उगारी ले,
अरज अमारी आ छे... अमने अमारा... ३
मेरे दुख.
मेरे दुख.
मेरे दुख.
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आ भव मळिया।
आ भव मळिया ने परबव मळजो सेवा तमारी भवोभव मळजो...१ डगमग डोले आ नैया हमारी सुकानी थईने तारजो स्वामी...२ आशा नथी करी अन्य कने में श्रद्धा न राखी अन्य कने में...३ कुमकुम पगले आप पधारो हृदय मंदिरमां नाथ बिराजो...४ हुँ छु अनाथ ने तमे मारा नाथ हाथ झालो ने हवे दिनानाथ...५ हुँ छ रागी ने तमे वीतरागी सेवकना ल्योने कार्य संभाळी...६ सफळ थयो नरजन्म अमारो अंतरथी गुण गाया तमारा...७ शरणुं तमाएं भवभव मळजो दर्शन तमारा अहोनिश फळजो...८ आ भव मळिया ने परभव मळजो सेवा तमारी भवोभव मळजो.
दादा तारां पगलां
दादा तारां पगलां पड्याने आनंद छायो, उत्सव अनेरो आज आंगणे आव्यो,
पगलां पड्याने आनंद छायो... दादा अणधार्या आवीने अमोने मल्या छ, पूर्व जन्मनां पुण्यो फल्या छे,
भक्तिना रंगे आखो संघ रंगायो... पगलां... मनना मंदिरिये आसन बिछाव्यां, मारग मारगडे मोतीडा वेराव्या,
रोमे रोमे राजीपो केवो रे छवायो... पगला.
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मारा मनमां ओक ज तुं ( राग : तारामां प्रभु अवं शुं ? )
मारा मनमां अक ज तुं, तारा मनमां छे शुं शुं ? हैयुं खोली कही दे तुं आज, तारी भीतर भर्या जे राज... क्यां सुधी मारे कहेवानुं, क्यां सुधी मारे सहेवानुं, मारे बोली बोलीने, तारे मुंगा रहेवानुं,
शोभे ना पण कहेवुं शुं... तारा मनमां
आंखो बरसे तरसे प्यास, हैयुं राखे ओक ज आश, तमे उलेचो अंतरने तो, बेसे मारा मननो श्वास,
हवे झाझुं कहेवुं शुं.... तारा मनमां...
तुजने जोया करूं
तुजने जोया करूं, तारी सन्मुख रहूं... तारा होठ फडफडे, अनी राह जोउं छं... तने मनथी हुं अहर्निश समरतो रहुं हुं, तारी आशामां जुगजुगथी वाट जोउं छं,
तारी अमिदृष्टि माटे हुं तो तरस्या करूं...
ज्यारे भाव भरीने तारी भक्ति करूं, त्यारे उन्मादे हैयुं न साचवी शकुं,
तारी आंख पटपटे अनी राह जोउं छं...
कोई परभवनी प्रीत मारी जागी गई, तारी भक्तिथी भीती बधी भांगी गई,
ओवी दिव्यदृष्टि दे के मोक्षमार्ग शोधी लउं...
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मारा आतमने मार्ग चींध, ओ ज मांगु छु, ताएं हैयुं मने ओळखी ले, ओ ज मांगुं छु,
तुं बांहो पसारे तो हुं समाइ जाउं,.. तारा विरहे अश्रु मारा नयणे वहे, क्यारे आवी दादा मारा आंसु लूछे,
तुं केम ना सुणे हुं तने रोज विनb...
तारी प्रीतिनी केवी असर ?
तारी प्रीतिनी केवी असर? मळती मुजने साची डगर । करुणासागर करुणा तुं कर ! थाक्यो करीने भवनी सफर...
कहो प्रभुजी हुं शुं करुं, सहेवाती ना वेदना, .
कृपा नजर तारी मळे, दूर थाये आ यातना,
. मुज पर करजे तुं अमी नजर, भूली शकुंना जीवनभर... प्रभु तारी छबी ताएं स्मरण, चित्तमां सदा रमतुं रहे, प्रभु तारी यादने तारुंज नाम, ओ सघळु सदा गमतुं रहे, भव अटवीना विध्नो तुं हर, थातुं छे तुज सम ओ अजरामर...
प्रभुजी तुजने वंदता, आत्माने शांति थती, प्रभुजी तारा दर्शने, मनडानी भ्रांति जती, भक्त हृदय पर पगलां तुं कर, तुं छे अमाएं जीवन धन....
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समजुने शुं कहेवाय ? समजुने शुं कहेवाय? ओ नाथ ! तारा मिलन विना मारे जीवन केम जीवाय ? ओ नाथ ! मारा नाथ... प्यारा नाथा.. व्हाला नाथ...
ક
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तुं सोळे कलाए पूरो, तारी सामे साव अधूरो, .
.. माराथी क्यां पहोंचाय?... ओ नाथ ! रंगराग जगतना जोया, नयनोना नूर खोया, बळतामां घी होमाया... ओ नाथ !
मारा नाथ सदाये हसता, मारा हृदयकमळमां वसता, छोडीने क्या जवाय?... ओ नाथ
आ भवना सागरमां
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• आ भवना सागरमां, सहारो ओक ज मारो तुंः
मझधारमा छे नैया, हवे तो अक किनारो तुं... मृगजळने में सरोवर मान्युं, बुझी न मननी प्यास, (२) अन्यतणी उपासना कीधी, ना पूज्या भगवान (२) आव्यो तुज चरणोमां, हवे तो तारणहारो तुं...
___ मुक्तिमारगनो हुँ अभिलाषी, ना कोईनो संगाथ, (२) - आकुळव्याकुळ मनडुं माएं, वांछे तारो साथ (२)
अंधकार भर्या पंथे, प्रवासीनो सथवारो तुं... तुं निर्मोही सद्गुणसागर, हुं अवगुण भंडार (२) कर्मना बंधन चूर कर्या तें, में रच्यो संसार (२) अंधारा मुज दिलमां, चमकतो तेज सितारो...
RANKER
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करुं छं पहाडने जंगल
(राग : युगोथी हुं पुकारं छं... (सुहानी चांदनी राते ) ) फरुं छं पहाडने जंगल, कहोने क्यां छुपाया छो, मनोहर मीठडा मोहन, कहोने क्यां छुपाया छो,
तृषातुर आंखडी मारी, तलसती रातदिन व्हाणे, नयननी दिलगिरि खातर कहोने क्यां छुपाया छो...
करुं हुं क्यां सुधी वन वन, प्रतिक्षा आपनी पलपल, अव्हा कधा में तन मन कहोने क्यां छुपाया छो...
निहाल्या पाणी झाकळनां, तमारा जाणी ने मोती, पकडतामां वह्युं पाणी, कहोने क्यां छुपाया छो...
लागी मुजने लगन तुजथी, प्रबळ बंधन विभेदीने, चाहुं छु झलक तारी, कहोने क्यां छुपाया छो...
कहो घरमां अगर बाहिर, समवसरणे के मुक्तिमां, रमो छो शुं आ ब्रह्मांडे, कहोने क्यां छुपाया छो...
मनोहर मूर्ति ओ जिनवर, हटावी द्यो हवे अंतर, करी करुणा हवे मुज पर, कहोने क्यां छुपाया छो...
सदा हुं तुं सदा तुं हुं....
( राग : युगोथी हुं पुकारूं... )
परस्पर प्रेमना रंगे, खरेखर चित्त रंगाया, उछळतां चित्त देख्याथी, सदा हुं तुं सदा तुं हुं...
मल्युं छे चित्तथी चित्तज नथी ज्यां मृत्युनी परवा, विशुद्ध प्रेमसागरमां, सदा हुं तुं सदा तुं हुं...
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परस्पर चित्त रेडायां, थता संयम परस्परमां, उठे छे तारामां तारो, सदा हुं तुं सदा तुं हुं....
समाज सौ मुमां, समातुं तुजमां मुज सौ, सदा अवुं बन्युं रहेतुं, सदा हुं तुं सदा तुं हुं...
सदा संबंध ओवो ज्यां, विशुद्ध ज्ञानप्रीति त्यां, बुध्यब्धि दिव्य संबंध, सदा हुं तुं सदा तुं हुं...
मोहे लागी लगन
मोहे लागी लगन, प्रभु चरनन की...
चरन बीना मोंहे कछु नहीं भावे (२) जगमाया है, सपनन की,
भवसागर अब सुक गयो है (२)
फीकर नहीं महे तरनन की ... मोहे लागी....
चरण में जाने से आनंद परगट (२) चिंता गई अब मरनन की,
आनंद रस में झीलत झीलत, (२) प्यास लगी प्रभु रटनन की ... मोहे लागी...
अंग अंग में ज्वाला उपजी (२) प्रभु विरह के अगनन की, तीनही कारन भान नहीं तनु (२)
ग्रीष्म ऋतु के तपनन की ... मोहे लागी...
अमर भये हम चरन की छांव में (२) भांगी चिंता जनननकी,
સલ
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रसना मोरी रत बनजो (२) आश करे तो भजनन की... मोहे लागी...
कान में गुंज रही है अहोनिश (२) वाणी प्रभु मुख झरनन की, लगन लागी प्रभु तोरे चरन की (२) ओर उनके शरनन की... मोहे लागी...
समयने साचवी लेशो । .
(राग युगोथी हुं पुकारं छु...) समयने साचवी लेशो, समयनुं काम छे सरवानु, समयने दोष ना देशो, समयनुं काम छे सरवानु...
बहु कष्टो सह्या त्यारे, मल्युं आ मानवीनुं तन, . बहु पुन्यो फल्या त्यारे, मल्युं आ भाव भी मन,.
आ मनना फूल खीलवशो, सुगंधी सृष्टि करवाने... समयने... दीपक ज्योति करे जगमां, ने वरसे वादळ नभमां,. आ चंदन जातने घसतां, शीतळता अर्पता जगमां,
कईक आqजीवन माही, कयु के नहीं निरखवानु... समयने...
मंदिर पधारो स्वामी
मंदिर पधारो स्वामी सलुणा (२) । तमारा विना नाथ क्यांये गमे ना... मंदिर...
अंतरनी वातो आंसु कहे छे, तुंही तुंही तुंही आ मनई रटे छे, ... हवे नाथ झाझु तलसावशो ना... मंदिर...
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स्मरण जन्म जुना, स्मृति मांहे आवे, नयन शोधतां तमने, प्रभु आर्त भावे,
के मुख परथी दृष्टि हटावी हटे ना... मंदिर... हरखाता पळपळ, प्रभु तमने जोई, हवे दिन विरहना, वीते रोई रोई,
वियोगर्नु दुःख आq हशे ना... मंदिर... तमे जई वस्या स्वामी, स्वरुप महेलमां, रझळतो रह्यो हुँ, संसार वनमां,
हवे नाथ अंतरथी अळगा थशो ना... मंदिर... प्रभु अमने तारो, उगारो बचावो, मूकी मस्तके हाथ, पार उतारो,
कृपावंत ने झाझु कहेवू घटे ना... मंदिर... अंतरनी ज्योति प्रगटावी जाओ, अमी आतमना छलकावी जाओ,
क्षमावंत ने झाझं कहेवू घटे ना... मंदिर...
मुझे मेरी मस्ती ।
(रागः बहोत चाहने वाले..) मुझे मेरी मस्ती कहां लेके आयी, जहां मेरे अपने सिवा कुछ नाही... मुझे . पता जब चला मेरी, हस्ती का मुझको,
सिवा मेरे अपने, कही कुछ नाही... मुझे न दुःख है न सुख है, ना है शोक कुछ भी, अजब है ये मस्ती, और कुछ नाही... मुझे
मैं हुं आनंद, और आनंद है मेरा, सिर्फ मस्ती है मस्ती, और कुछ नाही... मुझे
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तमारे इशारे तमारी कपाथी
(राग : तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो..) तमारे इशारे तमारी कृपाथी, जगतमां बधुंये बने छे बने छ तमारी झलक तो खलकना अणुओ, अणुमां गजबनी झगे छे झगे छे... पेला चांद सूरज सितारा गगनमां, तमारा ज तेजे चमकतां गगनमां, तडकती तडितने भभकता अगनमां, बधे ज्योति तारी जले छे जले छे.
वसमी हवामां खीलेलां चमनमां, पहाडो खीणोने वृक्ष कुंज वनमां,
सरोवर कूवाओ ने नदी झरणामां, बधे व्हाल तारुं झरे छे झरे छे... प्रभु तारी पाछळ बन्यो हुं दीवानो, तने छोडीने हुंक्यांय ना जवानो, मने मूकीने तुं क्यां रे जवानो, नजर तारी पाछळ फरे छे फरे छे.
जगतना अणुओ अणुओना राजा, पुकाएं तने मारी भीतर आजा,
मने छोडीने नाथ तुंक्यांय ना जा, मिलनमां विघन शुं नडे छे नडे छे.... बनी मात तुं गोद मांही रमाडे, बनी तात तुं शिखरो ओ चढावे, बनी नाथ तुं प्रीत पथ पर चलावे, तमाएं चलाव्युं चले छे चले छे...
फूल नहि तो पांखडी
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(राग : फूल तुम्हे भेजा है...) फूल नहि तो पांखडी प्रभु, तारा चरणे धरवी, जनमो जनमनी तन मन धननी, मोह वासना हरवी...
तारी कृपाथी जे मल्यु छे, ते छे सघळु ताई, स्वार्थने अभिमानथी हुँ करतो मा माएं, आ जगनी सौ माया ममता, तारा चरणे धरवी...
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नरक निगोदना महा दुःखोथी, ते प्रभु अमने तार्या, क्षण क्षण समरे तुं प्रभु अमने, भले अमे तो विसार्या,
ऋण अनंतु छे प्रभु तारुं, शानी याचना करवी... आरे संसारे सुख मेळववा पापर्नु पाणी वलोव्यु, स्वामी तारा दर्शन जेवू, सुख क्यांये ना जोयु, आई हृदये हुं करुं समर्पण, तारे करुणा करवी...
जैसा मिलता रहे
(राग : जिंदगी की न तूटे...) जैसा मिलता रहे हर जनम, कभी आपसे बिछडे न हम, मिले. हरदम तुम्हारी शरण, कभी आपसे बिछडे न हम... . तुज से पाई है जब जब जुदाई, मैंने दर दर पे ठोकर खाई, . थोडी दे दे जगह तेरे दरपे, तेरे पास खलककी खुदाई,
मेरे रुझा दे दिलके जखम... कभी... | मेरे मन की मुरादे ओ सांई, आज खुलके है तुजको बताई, हजारो की कश्ती बचाई, मेरी बारी अभी क्यों न आई,
भीतर में भरा इनका गम... कभी... जिंदगी की है ये बेबसी, कीतनी झंझालो में वो फसी, मेरे होठो की गई है हसी, तुं करदे उनकी वापसी,
कुछ अजमा दे अपना इलम... कभी... झोली खाली है मालिक हमारी, क्या खीजमत करे हम तुम्हारी, : बस दिलकी है जैसी तैयारी, तुम पे लग जाओ जिंदगी हमारी,
अब करदे तुं इतनी रहम... कभी... मेरे आतकमल को संभालो, मुरझाते ये फूल को बचालो, बरसा के करुणा की बारीस, मेरे हृदय की बगियां खीलादो,
फिर आई बसो तुम ही तुम... कभी...
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MARIA
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आंसु भरेली आंखे
( राग : अमी भरेली नज़रं राखो ) आंसु भरेली आंखे प्रभुजी, निशदिन तारुं करूं स्मरण, तोय न जाणे केम प्रभुजी, पामी शकुं ना तुज दर्शन...
झेर भर्या आ जीवतर मांही, शांति क्यांथी पामुं हुं ? नित नित नवा गीत रचीने, तारे द्वारे आवुं छं... सप्तसूरोनी सूरावलीमां, छेडु हुं जीवन सरगम ... दर्द भरेलुं गीत छेडीने, जीवन व्यथा सुणावुं धुं
कोई न सुणे आक्रंद मारुं, जीवन बीन बजावुं छं. अंते कर्यो निश्चय अवो, जीवन अर्पण तारे शरण ...
प्रेम भरेलुं हैयुं
( राग : अमी भरेली नजरं राखो... )
प्रेम भरेलुं हैयुं लईने, तारे द्वारे आव्यो छं. तुं जो मुजने तरछोडे तो, दुनियामां क्यां जाउं हुं ? ...
जाणुं ना हुं पूजा तारी, जाणुं ना भक्तिनी रीत, काली घेली वाणीमां हुं, गाउं तारा निशदिन गीत. बाल बनीने खोळे तारा, रमवाने हुं आव्यो छु...
संसारना सुखडां केरी, वात विसारे मेली छे, दिन दयाळा ! हे जगत्राता ! एक हवे तुं बेली छे,
कंईक जनमनां पापो मारां धोवाने हुं आव्यो छु... नाथ तमारा दर्शन काजे, मनडुं मारुं तलसे छे, भक्तजनोनी आंखलडीमां, आंसु धारा वरसे छें,
चाकर थईने चरणे तारा, रहेवाने हुं आव्यो छु...
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क्यारे बनीश...
क्यारे बनीश हुं साचो रे संत ! क्यारे थशे मारा भवनो रे अंत ! लाख चोराशीना चौटे चौटे, भटकी रह्यो धुं मारग खोटे, क्यारे मळशे मुजने मुक्तिना पंथ... क्यारे थशे... काळ अनादिनी भूलो छूटेना, घणुंये मथुं पण पापो खूटे ना, क्यारे तोडीश ते पापोनो तंत... क्यारे थशे... छ काय जीवनी हुं हिंसा रे करतो, पापो अढारे हुं जरीना विसरतो मोह मायानो हुं रटतो रे मंत... क्यारे थशे. पतित पावन प्रभुजी ! उगारो, रत्नत्रयीनो हुं याचके तारो, भक्त बनी मारे थावुं महंत... क्यारे थशे...
स्वामि तारा स्नेहथी
स्वामि तारा स्नेहथी मने धरव नथी, प्यास छीपती नथी, थाय छे के बस घूंट पीधा करुं... स्वामि... स्नेह तो मल्यो मने घणानो, पण बधा स्वार्थना सगानो, आतमनो ओक तुं स्वजन छे, तारो मारो साथ छे सदानो, भाव जेमां स्वार्थनो लगीर पण नथी, ओवा आ संबंधनी, थाय छे के बस गांठ बांध्या करूं... स्वामि... सूर्यना किरण वघे घटे छे, मेघराजा कदि रुठे छे, धान्य आपनारी धरती माता, कोई दिन धान्य चोरी ले छे, रात दिन वहे छे तारा प्रेमनी नदी, कदि ओटती नथी,
थाय छे के बस डूबकी मार्या करूं... स्वामि..... तारो प्रेम पापथी बचावे, पुण्यनी प्रवृत्तिओ करावे, द्वार दुर्गति तणा भीडीने, सद्गति तणी सफर करावे, दीपजे जले छे मुजने मार्ग चींधवा, मंजिले लई जवां,
थाय छे के बस तेज झील्यां करुं... स्वामि...
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मने ज्यां जवानुं मन
(राग : अक प्यार का नगमा...) मने ज्यां जवानुं मन, त्यां मुजने जवा दे नहीं, मारो कर्मो केवा भारे, मारी मुक्ति थवा दे नहीं...
मने थाय घणुं मनमां, के आ मोको संभाळी लङ, मंजिल छे नजर सामे, अने छोडीने झाली लडं,
पण काया बनी दुश्मन, अक डगलु उपाडे नहीं... आ कुमळा हृदय माथे, बहु बोज लीधा छे में, कडवा घुटडा जगनां, ना छूटके पीधा छे में, हवे लागी तरस जेनी, ते अमृत पीवा दे नहीं... .
हुं आगळ जवा मांगु, मने पाछळ हटावे छे, हुं पावन थवा मागुं, मने पापी बनावे छे, हने शुं करवू मारे, कोई मारग सुझाडे नहीं...
तुं मने भगवान... तुं मने भगवान, अक वरदान आपी दे, ज्यां वसे छे तुं, मने त्यां स्थान आपी दे,
हुं जीवं छु ओ जगतमां, ज्यां नथी जीवन, जिंदगीनुं नाम छे बस, बोज ने बंधन,
आखरी अवतारनुं मंडाण बांधी दे... ज्यां... आ भूमिमां खूब गाजे, पापनां पडघम, बेसूरी थई जाय मारी, पुण्यनी सरगम, दिलरुबाना तारनु, भंगाण सांधी दे... ज्यां,..
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जोम तनमां ज्यां लगी छे, सहु करे शोषण, जोम जाता कोई अहींया, ना करे पोषण, मतलबी संसारनुं जोडाण कापी दे... ज्यां...
संसार के सागर में
(राग : अक प्यार का नगमा है...) संसार के सागर में, जीवन की नैया है, सुख दुःख और कुछ भी नहीं, कर्मो की कहानी है... कोई दुःख नहीं देता है, सुख ले नहीं शकता है, पुण्यो का मतलब तो पापों को खपाना है, मझधार में नैया है अब तु ही खेवैया है... सुख दुःख और कुछ... ___कोई चैन से सोता है, कोई भूखा प्यासा है, - ये दोष नहिं किसका, कर्मो का ये पासा है,
पुण्यों का ये भाता है, भवो भवकी कमाई है... सुख दुःख और कुछ... कोई दया धर्म करता, कोई रागद्वेष करता, करनी जैसी करता फूल वैसा ही मिलता है, बबुल जो बोया है, अमरुद ना मिलता है... सुख दुःख और कुछ...
जिंदगी बेकार चाली
(राग : आंखडी मारी..) जिंदगी बेकार चाली जाय छे, दर्द अनुं दिलमां उंडु थाय छे... मूल्य समजातुं नथी आ जन्मनु, जानवर जेवू जीवन जीवाय छे....।
AMANADIARRARIANIMAL
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जे बीजा अवतारमा मळता नथी, ते रतन अहीं धूळमां रोळाय छे... राख जेवा मामूली व्यापारमां, आ महामूलीमूडी खरचाय छे... कर्मनो केवो प्रभु मारे उदय, धर्मनी मोसम नकामी जाय छे. आ फरीथी भव मळे के ना मळे, जीव- भावि बुरु देखाय छे..
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मेरे दोनों हाथों में |
मेरे दोनों हाथों में, जैसी लकीर है । दादा से मिलन होगा, मेरी तकदीर है लिखा है जैसा लेख, दादा (२) लिखता है लिखने वाला, सोच समजकर, मिलना बिछडना दादा होता समय पर, इसमें मीन ना मेख दादा... (२) किस्मत का लेख, कोई मिटा नहीं पायेगा, कैसे मिलन होगा, समय ही बतायेगा, . मिटती नहीं है रेख दादा... (२) ना वो दिन रहे, ना यह दिन रहेंगे, दादा तुम देख लेना जल्दी मिलेंगे, इन हाथों को देख दादा... गिरनारी दादा तेरी शरण में आया, आकर के चरणों में, शीश नमाया, इन भक्तों को देख दादा... लिखा है जैसा लेख दादा... ..
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ओवी लागी लगन
ओवी लागी लगन... बन्यो ध्यानमां मगन...
हुं तो घडी घडी... वीर वीर गाया करूं... ओवी लागी. हैये तारुं स्मरण... होठे तारुं रटण...
हुं तो पळे पळे... प्रभु तने याद करुं... ओवी लागी. आंख मीचुं स्वप्नमां तुं आव्या करे,
माउं रोम रोम सदा तने गाया करे,
हुं तो वीर, वीर, वीर वीर गाया करूं... ओवी लागी. मारा जीवननो प्राण... मारा मननो तुं मित,
तने पामीने कर्मोथी करवी छे जीत,
हुं तो फरी फरी तारी पासे आव्या करूं !... ओवी लागी.
ओक पंखी...
एक पंखी आवीने उडी गयुं... एक वात सरस समजावी गयुं, आ दुनिया ओक पंखीनो मेळो... कायम क्यां रहेवानुं छे, खाली हाथे आव्या ओवा... खाली हाथे जवानुं छे. जेने तें तारुं मान्युं ते तो... अहींनुं अहीं सहु रही गयुं ... ओक जीवन प्रभाते जनम थयोने... सांज पडे ऊडी गयुं, सगा संबंधी माया मूकी... सहु छौडी अलग थातुं, अकलवायुं आतम पंखी... साथै कांई न लई गयुं ... अक पांखोवाळु पंखी ऊंचे... ऊडी गयुं आ आकाशे, भानभूली भटके भवरणमां... माया मृगजळथी नाशे, जगतनी आंखो जोती रहीने... पांख विना अ ऊडी गयुं ... ओक
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धर्म पुण्यनी लक्ष्मीनी गांठे... सत्कर्मोनो सथवारो, भवसागर तरवाने माटे... अन्य नथी कोई आरो, जतां जतां पंखी जीवननो... साचो मर्म समजावी गयुं ...अक
| तारी जो हांक सुणी कोई ना आवे
तारो जो हांक सुणी कोई ना आवे, तो एकलो जाने रे,
___अकलो जाने, ओकलो जाने, ओकलो जाने रे... जो सौनां मों सिवाय, ओरे ओरे ओ अभागी ! सौनां मों सिवाय, ज्यारे सौओ बेसे मों फेरवी, सौओ फरी जाय, त्यारे हैयुं खोली, अरे तुं मों मूकी, तारा मननुं गाणुं ओकलो गाने रे... (१) । जो सौओ पाछा जाय, ओरे ओरे ओ अभागी ! सौओ पाछा जाय. ज्यारे रणवगडे नीसरवा टाणे सौ खूणे संताय, त्यारे कांटाराने तारे लोही नीगळते चरणे भाई ! ओकलो धाने रे... (२) ज्यारे दीवा ना धरे कोई ओरे ओरे ओ अभागी ! दीवो ना धरे कोई. ज्यारे घनघोर तूफानीरात, बार वासे तने जोई, त्यारे आभनी वीजे सळगी जई सौनो दीवो थाने रे ओकलो जाने रे... (३)
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पंखीडाने आ पिंजरं
पंखीडाने आ पिंजरे, जूनुं जूनुं लागे, बहुओ समजाव्युं तोये पंखी नवं पिंजरुं मांगे.. ऊमट्यो अजंपो अने पंडना रे प्राणनो, अणधार्यो कर्यो मनोरथ दूरना प्रयाणनो, अणदीठे देश जावा लगन अने लागी... पंखीडाने०
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सोने मढेल बाजठियो ने सोने मढेल झूलो, हीरे जडेल वींझणो मोतीनो मोंघो अणमूलो. पागलना थई र कोईना रंग लागे... पंखीडाने०
ओक ज अरमान छे मने...
अक ज़ अरमान छे मने, मारुं जीवन सुगंधी बने (२) फूलडां बनुं के चाहे धूपसळी थाउं, आशा छे सामग्री पूजानी थाउं,
भले काया आ राख थई शमे... मारुं जीवन तडका छाया के वा' या वर्षाना वायरा, तो ये आ पुष्पो कदी न करमाया,
प्रभु चरणोमां रहेवुं गमे.... मारुं जीवन घा खीलता खीलता से खमे.... मारुं जीवन
वातावरणमां सुगंध न समाती, जेम जेम चंदन ओरसीये घसाती,
प्रभु काजे घसावुं गमे... मारुं जीवन
जळनी खाराश बधी उरमां शमावे, तो सागर मीठी वर्षा वरसावे,
सदा भरती ने ओटमां रमे... मारुं जीवन
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प्रभु ! तें मने जे... प्रभु ! तें मने जे आप्युं छे,
ओनो बदलो हुं शें वाळु ! बस तारी भक्ति करी करीने,
___ मारा मनडाने वाळू... प्रभु तें. प्रभु ! नरक निगोदथी तें तार्यो, मने अनंत दुःखोथी उगार्यो,
तारा उपकार अनंता छे... अनो बदलो. अहीं लगी पहोंच्यो प्रभु तारी कृपा, तुज शासन पाम्यो प्रभु तारी कृपा,
जैनधर्मतणी बलिहारी छे... अनो बंदलो. प्रभु ! मोक्ष नगरनो सथवारो, हुं मोह नगरमा वसनारो,
तुं भवोभवनो उपकारी छे... अनो बदलो. .
प्रभु ! मारा कंठमां देजो..... प्रभु ! मारा कंठमां देजो ओवो राग,
जेथी हुं गई शकुंवीतराग, प्रभु मारा सूरमां तुं पूरजे अवो राग.
... जेथी हुँ गाई शकुं... जगने रिझावी रिझावी हुं थाकुं,
ना समजाये संगीत साचुं, भरजे तुं अंतरमां ओवी कंई आग,
... जेथी हुँ गाई शकुं...
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वेने झेरनी वांसळी वगाडी, गीतो घमंडना गाया, बेसूरो बोले आ तननो तंबुरो, सूरो बधा विखराया,
प्रगटावजे तुं प्रीतनी पराग,
जेथी हुं गाई शकुं....
दुनियानी माया छे दुःखडानी छाया, तोये कदी ना मुकाती,
ज्ञानी घणाये देखाडी गया पण, दिशा हजी ना देखाती,
चमकावजेतुं ओवो विराग,
... जेथी हुं गाई शकुं...
रंगाई जाने रंगमां...
रंगाई जाने रंगमां... तुं रंगाई जाने रंगमां... प्रभुवीर तणा रंगमां.... गुरुजीतणा सत्संगमां... तुं रंगाई जाने रंगमां... भजशुं महावीर नाम (२) लई जशे ओना संगमां,
तुं रंगाई जाने रंगमां...
आजे भजशुं, काले भजशुं, भजशुं आदिनाथ (२)
श्वास खूटशे, नाडी तूटशे,
आजे भजशुं, काले भजशुं, जमनुं ज्यारे तेडुं आवशे....
प्राण नहि रहे तारा तनमां... तुं
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जीव जाणतो, झाझुं जीवशुं, मारुं छे आ तमाम, पहेला अमर करी लउं नाम,
तेडु आवशे जमनुं जाणजे.... जावुं पडशे संगमां... तुं घडपण आवशे, त्यारे भजशुं,
पहेला घरना काम, पछी जाशुं तीरथधाम,
आतम एक दिन ऊडी जाशे...
तारुं शरीर रहेशे पलंगमां... तुं....
शब्दमां समाय नहीं...
शब्दमां समाय नहि ओवो तुं महान
केमकरी गावा मारे तारां गुणगान;
गजुं नथी मारुं अवुं कहे आ जबान,
केम करी गावा प्रभु तारां गुणगान;
हो फूलडाना बगीचामां खीले घणां फूलो, संघवा आवेल पेलो भ्रमर पडे भूलो. ओम तारी सुरभि भूलावे मने भान... केम करी... हो अंबरमां चमके असंख्य सितारा,
पार कदी पामे नहि ओने गणनारा,
गुण तारा झाझा ने थोडुं मारुं ज्ञान... केम करी... हो वणथंभ्या मोजां आवे सरोवरने तीरे,
जोतां धराये नहीं मनडुं लगीरे,
एक थकी एक ऊंचा तारां परिणाम... केम करी... हो पूरुं तो पुराय नहि कल्पनाना रंगो,
हारी जाय बधा मारा मनना तरंगो, अटकीने ऊभुं रहे मारुं अनुमान... केम करी...
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मारो धन्य बन्यो आजे...
- (राग : मैं तो भूल चली) हो मारो धन्यो बन्यो आजे अवतार, के मल्या मने परमात्मा; हे करुं मोंघो ने मीठो सत्कार, के मल्या मने परमात्मा... के मल्या...
श्रद्धाना लिलुडां तोरण बधावं, भक्तिना रंगोथी आंगण सजावू,
हो... हो सजे हैयु... सजे हैयुं सोनेरी शणगार... के मल्या... प्रीतिनां मघमघतां फूलडे वधावं, संस्कारे जळहळतां दीवडां प्रगटावं, हो... हो करे मननो... करे मननो.... मोरलियो टहुंकार... के मल्या...
उरनां आसनिये हुं, प्रभुने पधरावं, जीवन आखं अना चरणे बिछाएँ, हो... हो हवे थाशे... हवे थाशे... आतमनो उद्धार.... के मल्या....
ओ तारणहारे...
ARRI
(राग : ओ पालनहारे...) ओ तारणहारे, अवगुण हरना रे, तारा विना जगमां कोई नथी. अवी उलझन जीवनमां भगवन, तारा विना जगमां कोई नथी. अमने हवे दर्शन दो, जीवन रखवाले, तारा विना जगमां कोई नथी.
भक्तिमां हरखे प्रभुजी आंखडी, दरस तारा दे दो ओ जिनजी, आ नयन छे मगन, नैया मारी दो तमे तारी... भगवन् आ जीवन तमे, ना संवारो तो कौन संवारे... ओ तारणहारे...
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जो सुनो तो कहे प्रभुजी मारी छे विनंती, दुखीजन ने धीरज दो, हारे नहीं आ जगथी, तमे निर्बल ने रक्षा दो, रहे निर्बल जगमां सुखथी... भक्ति ने शक्ति दो (२) जगना तमे स्वामी छे, मारी आ अरज सुनो...
ओ तारणहारे...
| प्रभु अमे डूबी रह्या...। (तर्ज : फिझाभी है जवां जवां - निकाह) प्रभु ! अमे डूबी रह्यां, गळा लगी विलासमां, विकासथी वळी रह्यां, धीमे धीमे विनाशमां,
प्रभु ! अमे डूबी रह्यां.... विलासथी मझा मळे, विलासमां जीवन जडे, विलासना अभावमां, घडीओ चेन ना पडे, चूंटी रह्यां विलासने, हरेक श्वासश्वासमां,
विकासथी वळी रह्यां... मूकी छे दोट आंधळी, शरीरने रीझववा, नवा नवा उपायथी, सुखोनी मोज माणवा, सफर करी रह्यां अमे, पतन छे जे प्रवासमां.
विकासथी वळी रह्यां... लगीर दुःख देहर्नु, सहन हवे थतुं नथी, विलासना व्यसनतj, शमन हवे थतुं नथी, ढळी रह्यां धीरे धीरे, गुलामना लिबाशमां,
विकासथी वळी रह्यां... प्रभु ! अमे डूबी रह्यां...
ક
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पाप करतां माप राख्यं...
( राग : आंखडी मारी प्रभु हरखाय... ) पाप करतां माप राख्यं होत जो, आज मारी हालत आ ना होत तो,
पाप करतां माप...
कर्मराजा कोईने मुकता नथी, सत्य अ में याद राख्युं होत जो, आज मारी हालत... सुखमां रहेवुं गमे छे सर्वने, अन्यने में दुःख दीधुं ना होत जो, आज मारी हालत... जंतुने पण जीव वहालो होय छे, कोईनो में जीव लीधो ना होत जो,
आज मारी हालत...
अन्न खातां, बोलतां के चालतां, काळजी थोडीक राखी होत जो,
आज मारी हालत... सो गणो बदलो वळे छे पापनो, अ वचनने मान आप्युं होत जो, आज मारी हालत...
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JERMENAJERING-36 16-ORAS
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तारी पासे अq शुं... (राग : तेरे सूर और मेरे गीत - गूंज ऊठी शहनाई) तारी पासे अq शुं ? दोडी दोडी आq हुं,
. तारी पासे अq शुं ? | मुजने ओ ना समजातुं, हैयुं शाने हरखातुं ?. . तारा दर्शन ज्यां पामुं, शाने मनईं मलकातुं ? तारा रुपमा अर्बु शुं ? दोडी दोडी आतुं हुं.
तारी पासे अq शुं ? || नींदर मुजने आवे ना, भोजन मुजने भावे ना, तुजने जो हुं ना भेटुं, शांति मुजने थावे ना, तारा दिलमा अर्बु शुं? दोडी दोडी आकुं हुं,
तारी पासे अq शुं ? मारी सघळी चिंताओ, घेरा दुःखनी घटनाओ, तारा वेणे विसराती, वळगेली सौ विपदाओ, . . तारा स्वरमां अq शुं ? दोडी दोडी आq हुं.
तारी पासे अq शुं?
दूर तमे ना रहेशो, प्रभुजी !... (राग : फूल तुम्हें भेजा है खतमें - सरस्वतीचंद्र) दूर तमे ना रहेशो, प्रभुजी ! रहेजो मारा हैयामां, कोणे जाण्यु क्यारे जागे, आंधी दिलना दरियामां ? आज भले हो जळ जंपेला, छतरनारी छे शांति, बीक मने छे, आवी चडशे वावाजोडुं उत्पाति.
दूर तमे ना रहेशो...
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वायु वाशे अवळी गमनो, सुसवाटा देतो ज्यारे, मेघ गरजशे, वीज चमकशे, त्राटकशे वर्षा भारे, पर्वत जेवां मोटां मोजां, ऊंचा थईने पछडाशे, काळु काळु घोर अंधाधु चारे बाजु पथराशे.
दूर तमे ना रहेशो... हालकडोलक थाशे मारी आतमनैया आंधीमां, थई जाशे बेकार हलेसा घुमरी लेता पाणीमां, गांडो वायु जोर करीने ऊंधी दिशामां लई जाशे, कोने मालूम, राह भूलेथी आ होडी, शुं थाशे ?
दूर तमे ना रहेशो... ते समये जो साथ तमे हो, बीक रहे ना बूडवानी, तोफानोमां मार्ग करीने नैया आगळ वधवानी, आप सुकानी बनतां मारा विघ्नो सघळां टळी जाशे, मारी नैया आप सहारे भवसागरने तरी जाशे.
दूर तमे ना रहेशो...
साचो संगम प्रभु साथे...] (राग : मेरा जीवन कोरा कागज - कोरा कागज)
साचो संगम प्रभु साथे हजुये ना थयो, ओ दिशामां, रेलो मारो हजुओ ना गयो.
साचो संगम... ओक लगनी साथे वहेतुं, आतम झरj, पावनसरिता पासे पहोंची, लई लउं शरणुं, आमत करो, आ मनोरथ हजुये ना फल्यो,
साचो संगम...
सरण,
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मारग रोके डुंगरधारा, गया भवनां पाप, पाछळ वहेती पुनित गंगा, थाये ना मेळाप, विरहअगनी, आतमाने बाळतो रह्यो.
रोजे रोजे नानुं झरणुं, डुंगर खो जाय, कोण जाणे क्यारे तूटशे, करमनो अंतराय ? . आज लगी तो उद्यम अनो सफळ ना थयो.
परोढ ऊग्युं अनेक वेळा, हृदयगुफामां बधुं यथावत्,
खूणे खूणामां हृदय ...
( राग : हजार बातें कहे जमाना - घटना ) खूणे खूणामां हृदय तपास्युं, प्रकाश क्यांये नथी जणातो, नजर चडे छे बधे अंधारं, उजास क्यांये नथी जणातो, खूणे खूणामां हृदय तपास्युं. अनेक वेळा पूनम प्रकाशी, विकास क्यांये नथी जणातो.
धूळे भरी छे फरस बिचारी, अवावरं आ जगा पडी छे,
साचो संगम...
दीवेल पण छे, दीवेट पण छे, दीवानी ज्योति झगाववानो,
साचो संगम...
खूणे खूणामां हृदय तपास्युं. दीवाल पर छे करोलियाओ, निवास क्यांये नथी पणातो,
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खूणे खूणामां हृदय तपास्युं. दीवासळी पण पडी समीपे, प्रयास क्यांये नथी जणातो
खूणे खूणामां हृदय तपास्युं. अधीर आतुर युगोयुगोथी, किरण खडुं छे प्रवेशद्वारे, स्वीकार करवा हजु, अरेरे ! उल्लास क्यांये नथी जणातो, खूणे खूणामां हृदय तपास्युं.
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दानधर्मनी ज्वलंत ज्योति....
(राग : मैत्री भावनुं पवित्र झरj) दानधर्मनी ज्वलंत ज्योति, जगमां निशदिन जल्या करे, टमटम थता दीवडाओने, नवी जिंदगी मल्या करे. तरफडता ने तरस्या जीव पर, वत्सलतानी वृष्टि हो, दुःखडां ओनां दूर करवानी, दाताओनी दृष्टि हो. अदकुं पामे अन्य थकी ते, अंतरमां हो उदारता, वधु मल्युं ते वहेंची देवू, वर्तनमां हो विशाळता, शुभ कार्योमां खरचे अनी, शक्ति दिनदिन वध्या करे, प्रीतछलकता परमारथना, पूर हृदयमां चढ्या करे. दिलना रंगे दान करे जे, ते मानवने धन्य हजो, 'आतमने अजवाळे अर्बु, पावन अनुं पुण्य हजो.
तुं तारे के ना तारे... (राग : परायी हुं परायी - कन्यादान) तुं तारे के ना तारे, तारो साथ ना छेडुं, जे जोड्या तुजने हाथ बीजे हाथ ना जोडु,
_ तुं तारे के ना तारे... चमत्कारो देखाडी कोई मुजने भरमावे, विचारो क्रांतिना फेलावी कोई बहेकावे, अनाथ समजीने लालचमां कोई लपटावे, ओ मायावी मृगजळनी पाछळ, नाथ ! ना दोडूं,
तुं तारे के ना तारे...
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भले ने दिवसो आवे भूख्यातरस्या रहेवाना, समूळा उपसगों ने ओकी साथे सहेवाना, कदाच जगना लोको मूरख मुजने कहेवाना, पण समजीने जे लीधो ते संगाथ ना छेडु,
तुं तारे के ना तारे... भरोसो छ के मारो बेडो पार थई जाशे, मने तुं वहेलो मोडो सामे पार लई जाशे, तमाम झंझावातो ठंडा थईने रही जाशे, जे मूक्यो छे तारामां ते विश्वास न तोडु
तुं तारे के ना तारे...
अवतार मानवीनो...
(राग : मिलती है जिंदगी में मुहब्बत - आंखे)
अवतार मानवीनो फरीने नहीं मळे, अवसर तरी जवानो फरीने नहीं मळे, सुरलोकमां ये ना मळे भगवान कोईने, अहीया मल्या प्रभु ते फरीने नहीं मळे,
.. अवतार... लई जाय प्रेमथी तने कल्याण मारगे, संगाथ आ गुरुनो फरीने नहीं मळे.
अवतार... जे धर्म आचरीने करोडो तरी गया, आवो धरम अमूलो फरीने नहीं मळे.
अवतार...
Rપs
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करशुं धरम निरांते कहे तुं गुमानमा, जे जाय छे घडी ते फरीने नहीं मळे.
अवतार...
मोडं शाने करे छे वधं ?...
(राग : जिंदगी की न तूटे लडी - क्रांति) मोडुं शाने करे छे वधु ? आज कही दे प्रभुने बधुं, काळा कर्मोनी काळी कथानो, भार वेठे छे शाने हजु?
आज कही दे प्रभुने बधुं. जो तुं माने हुं पापी नथी, तो ओ ताई अभिमान छे, तारा चहेराना चिन्हो कहे, तारो जीवडो परेशान छे, हो परेशान छे, नथी संताडवानुं गजु, आज कही दे प्रभुने बधुं,
मोडुं शाने करे छे वधु ? तारो आत्मा कबूले छे पण, बोली देतां तुं अचकाय छे, छूपा राखेला मनना भरम, खोली देतां तुं खचकाय छे, शाने खचकाय छे ? नथी सांभळतुं कोई बाजुमां, आज कही दे प्रभुने बधु,
मोडं शाने करे छे वधु? प्रभु पासे पस्तावो करे, अना पापो घटी जाय छे, जाणे मोटी शिलानु वजन, माथा परथी हटी जाय छे, हो हटी जाय छे. हेयुं थई जाशे हळवू घj, आज कही दे प्रभुने बधुं,
मोडुं शाने करे छे वधु ? जीवडा... प्रभुजीने... सघळु... कही दे (२)
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हृदयने अशांतिमां...
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(राग : हमे और जीने की - अगर तुम न होते) हृदयने अशांतिमां राहत रहे छे, प्रभु नाम लेतां (२)
हृदयने अशांतिमां दिवस ज्यां ऊगे छे, समस्या ऊगे छे, संध्या-सूरज पण, फिकरमां डूबे छे, परंतु बधी आ, आफत टळे छे, प्रभु नाम लेतां (२)
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हृदयने अशांतिमां....
प्रतिपळ कषायो करे छे चडाई, धीरजना रहे ओवी चाले लडाई, आवा समयमां हिमत मळे छे, प्रभु नाम लेतां (२)
हृदयने अशांतिमां... घडी अक देवी, घडी देव बीजा, नजीवा सुखो काजे अपात्रोनी पूजा, ज्यां त्यां रझळवानी आदत टळे छे, प्रभु नाम लेतां (२)
हृदयने अशांतिमां...
युगोथी हुं पुकारं छु... (राग : सुहानी चांदनी राते - मुक्ति) युगोथी हुं पुकाएं छु, प्रभु ! क्यारे कृपा करशो ? विनंती हुं गुजाएं छु प्रभु ! क्यारे कृपा करशो ?
युगोथी हुं पुकाएं छु...
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प्रवासी कोई जंगलमां, सलामत आशरो शोधे,गरम रणमां तरुवरनो, मुसाफर छांयडो गोते तमोने ओम चाहुं हुं, प्रभु ! क्यारे कृपा करशो ? गोथी हुं गुजारं छं... समावीले सरिताने, समंदर जे उमळकाथी, त दिलमां स्वीकारी लो, मने ओवी ज ममताथी, वियोगे हुं सुकाउं छं प्रभु ! क्यारे कृपा करशो ? विनंती हुं गुजारुं छं... जनेता जेम डगमगता शिशुनी आंगळी झाले, तमे आपो सहारो तो सरळ मारी सफर चाले, तमारो साथ मागुं छं प्रभु ! क्यारे कृपा करशो ? विनंती हुं गुजारुं छं... युगोथी हुं पुकारं छं...
जिनवर मंदिर जे बंधावे...
( जिनमंदिर निर्माण फळ) ( राग : गिरिवर दरिशन वीरला पावे) जिनवर मंदिर जे बंधावे, लाभ अनेरो ते जीव पावे, जिनवर... महिमा एनो मंगलकारी, शास्त्रवचन अवुं फरमावे, जिनवर... कर्म कंठण जे जीवने वळग्यां, ते कर्मोने नरम बनावे, ..जिनवर... मुक्त थवानुं पहेलुं साधन, ते समकितनी प्राप्ति थावे, जिनवर... भव करवाना बाकी रह्या जे, संख्या अनी अल्प करावे, जिनवर... तीर्थंकर पद पुण्य उपार्जन, सिद्ध शिलाामं वास करावे, जिनवर ... संप्रति राजा उरना उमंगे, प्रतिदिन नवला चैत्य चणावे, जिनवर...
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सवालाख जिनालय बांध्या, सवा करोड प्रतिमा स्थपावे, जिनवर... चक्री भरत अष्टापद उपर, चोवीश जिनना बिंब भरावे, जिनवर... पूरवजनमना पुण्य उदयथी, अवसर आवो निज घर आवे, जिनवर... दर्शन-पूजन-भक्ति करीने, कैक जीवो त्या पावन थावे, जिनवर... निमित्त बनी आ शुभ कार्योनु, पोते पण उत्तम फळ पावे, जिनवर...
कर्मो करेला मुजने...
कर्मो करेला मुजने नडे छे, हैयुं हीबका भरीने रडे छे, जीववा चाहुं तो जीवातुं नथी, मरवा चाहुं तो मरातुं नथी...
कोई जन्मे करम, में हसीने कर्या, आंसुडा आज मारा, नयने भर्या, में प्रयासो कर्या, माणवा जिंदगी,
कर्म मुजने सफळ, न थवा दे कदि... कर्मो.... जिंदगीना मले, मोत आवे अगर, मोत पण ना मळे, कर्म तूट्या वगर, जाण नहोती मने, आ परिणामनी, तो करत नहीं संगत, बूरा कामनी... कर्मो....
आज वगडावो... आज वगडावो वगडावो रुडां शरणायुंने ढोल, हे... शरणायुंने ढोल रुडां नगारानां ढोल... आज.
आज नाचे रे उमंग अंग अंगमां रे लोल, हुँ तो अवो रे रंगाणो प्रभु रंगमां रे लोल, . हे... हुं तो गावू ने गवडावु रुडां गीतडां ना बोल... आज.
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आतो आव्यो अवसर आज आंगणे रे लोल, . बांधो आसोपालवनां तोरणियां रे लोल, हे... आज हैये आनंद छे तन मनमां रे लोल... आज. आवो आवो स्नेहीओ अम आंगणे रे लोल, अमे वाटलडी जोतां बेठां बारणे रे लोल, प्रेमे पधारी बोलो प्रभुजीनां बोल... आज.
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केसरियां रे... केसरियां....। केसरियां रे... केसरियां.... तारां गीतो हुँ गाउं... मनमंदिरे पधरावं... तारी मुद्रा पर वारी जाउं... जाउं जाउं...केसरियां... जळ कळश भरावं... स्नान विधिओ करावं... मारा अंतरना मेल धोवरावं... धोवरावं... केसरियां... सोना वाटकडी लावं... चंदन पूजा रचावं... करी केसरियां मुक्तिपद पावं... पा... पा.. केसरियां... पंचवरण पुष्प लावू... मोंघी माळा गूंथावं... प्रभु कंठे सोहावी रंग राचुं.... रंग राचुं... केसरियां... धूप पूजा रचायूँ अगर तगर मिलावू... मारे ऊर्ध्व गतिओ आज जावं... जावं... जावं... केसरियां... दीपक पूजा रचावं... माहे ज्योति प्रगटावं... तारी ज्योतिनी ज्योति बनी जावं... जावं... जावू... केसरियां... अक्षतपूजा रचावं... माहे स्वस्तिक करावं... हुं तो अक्षयपद आजे पावं... पा... पावू... केसरियां...
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नेवैद्य पूज रचावुं... विधविध पकवान्न धरावुं ...
मारे अणहारी आज बनी जावं... जावं... जावं... केसरियां...
कल्पतरु फळ लावुं... प्रभु चरणे धरावं...
मारे सिद्धशिलाओ... आज जावं... जावं... जावं... केसरियां...
ढोलीडा ढोल धीमो...
ढोलडा ढोल धीमो धीमो वगाड ना....
प्रभु भक्तिनो जोजे.....
महिमा वही जाय ना....
हो... वीर प्रभुनी वाणी में अंतरथी जाणी,
ढोलीडा...
प्रभुजीना गुणला गातां, हैयुं आ धराय ना... प्रभु भक्तिनो जोजे.
हे पल पल सम हैये, आवुं हुं उमंगे,
दर्शन करतां मारी, आंखडी धराय ना... प्रभु.
हो... करवी तो छे मारे, आ सयंमनी साधना, हो... मुक्तिना पंथे छे, मारी अक ज भावना, आतम दर्शन केरा रंग ऊडी जाय ना... प्रभु भक्तिनो.
मारा दादाने दरबारे..
मारा दादाने दरबारे ढोल वागे छे,
वागे छे ढोल वागे छे,
गाम - गामना सोनीडा आवे छे,
आवे छे शुं- शुं लावे छे ?
मारा दादाने मुगट भरावे छे... मादा दादाना...
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गाम - गामनां माळीडा आवे छे,
आवे छे शुं- शुं लावे छे ?
मारा दादाना फूलडां लावे छे... मारा दादाना... गाम-गामनां श्रावको आवे छे,
आवे छे शुं-शुं लावे छे ?
साचा अंतरनी भावना लावे छे... मारा दादाना...
मारे भक्ति तमारी...
मारे भक्ति तमारी करवी छे, मारे मुक्ति नगरमां जावुं छे,
मने पार उतारो जिनवरिया, मने मुक्ति आपो जिनवरिया... भवसागरमां भगवान मल्यो, मने तारा जेवो नाथ मल्यो, मने पार उतारो. प्रभुवीर जीवनमां तुं ज मल्यो, ज्यां जाउं त्यां नीरकुंज भर्यो, मने पार उतारो. जेम सरिताने सागर मल्यो, ओम अमने तुं वीतराग मल्यो, मने पार उतारो. मारा मनमां वस्या छो आप प्रभु, मारा दिलमां चाले जाप प्रभु, मने पार उतारो.
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मारी आजनी घडी छे...
मारी आजनी घडी छे रळियामणी...
हां रे... मने व्हालो मल्यानी वधामणी रे... मारी. हां रे हुं तो ध्यान धरं छं प्रभु तारुं,
हां रे मारा अंतरमां थयुं अजवाळुंजी रे... मारी.
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हां रे में तो मोतीना साथिया. पुराविया, हां रे में तो प्रेमे प्रभुने वधावियाजी रे... मारी. हां रे तारी भक्ति करवाने काजे आवीयो, हां रे तारा दर्शन करवाने आज आवीयो... मारी.
रंगे रमे आनंदे... रंगे रमे आनंदे रमे, आज देव देवीओ रंगे रमे;
प्रभुजीने देखी भूप नमे... आज... प्रभुजीनी पासे सोनीडो आवे,
हे... मुगट... चडावी प्रभुने पाये नमे... आज.... प्रभुजीनी पासे मालीडो आवे,
हे... हार चडावी प्रभुने पाये नमे... आज... प्रभुजीनी पासे पूजारी आवे,
हे... पूजा करीने प्रभुने पाये नमे... आज... प्रभुजीनी पासे भक्तो रे आवे,
हे... भक्ति करीने मोक्षे जावे... आज.
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| अजवाळां देखाडो... अजवाळां देखाडो... अंतर द्वार उघाडो... प्रभुजी... अजवाळां देखाडो... प्रभुजी... अंतरद्वार उघाडो. काम क्रोध मने भान भुलावे, माया ममता नाच नचावे, सत्य मार्ग भूली भटकुं छु, रात सूझे ना दहाडो... प्रभुजी. विपदाना वादळ घेराता, मने अशुभ भणकारा थता,
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चोरेकोर संभळाती मुजने, आज भयंकर राडो... प्रभुजी . नरक निगोदथी तें प्रभु तार्यो, अनंत दुःखोथी मुजने उगार्यो, अक उपकार करो हज़ी मुज पर, जनम मरण भय टाळो... प्रभुजी जन्म जीवनना तमे छो त्राता, तमे प्रभु मारा भाग्य विधाता, अक उपकार करो हजी मुज पर, नहि भूलू उपकारो... प्रभुजी.
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| अरिहंतना ध्याने....। अरिहंतना ध्याने अरिहंत बनी जशो, जिननी भक्ति करतां करतां जिन बनी जशो. वीर प्रभुना ध्याने महावीर बनी जशो, जिननी वाणी सूणतां साचा जैन बनी जशो. ...अरिहंतना. आ संसारे भमतां भमतां, चाहे प्राणी सुखने, सुखनी पाछळ दोट मूके पण, पामे भारे दुःखने, प्रभुनां चरणे रहेतां रहेतां, सुखी बनी जशो... जिननी. स्वास्थ्यनी आ दुनिया केवी सुखमां भाग पडावे, कोईक दुःखमां दूर थाय तो कोईक वधु रिबावे, प्रभुना पंथे वहतां वहेतां संत बनी जशो... जिननी. परमकृपाळु तुजने पामी बीजे शाने जावं, भ्रमर बनी इयळनी पेरे अक ज तुजने ध्यावं, वीर प्रभुने गातां गातां महान बनी जशो... जिननी.
दुखडा निवारो मारा... | केवां केवां दुःखडा स्वामी, में सह्या नारकीमां,
अकरे जाणे छे मारो आतमा परमातमा...
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लबकारा लेती काळी वेदनाओ सहेता सहेता,
वरसोनां वरसो स्वामी में विताव्या त्रासमां, इरे मलकनुं ज्यां पूरे थयुं आयऱ्या त्यां,
जनम थयो रे मारे जानवरना लोकमां दुःखडा निवारो मारा जनम मरणना परमतामा, केवा केवा जुल्मो वेठ्यां, जानवर बनीने स्वामी, . .
ओक रे जाणे छे मारो आतमा परमातमा. बोजो अळखामणो ने लाकडीना मार खाता,
वहेतीती आंसुडानी धार मारी आंखमां,. इरे मलकनुं ज्यां पूरं थयुं आयऱ्या त्यां,
जनम थयो रे मारो देवताना लोकमां. दुःखडा निवारो मारा जनम मरणनां परमातमा. केवां केवां मंथन स्वामी में कर्या देवलोकमां,
अक रे जाणे छे मारो आतम परमातमा. रिद्धिने सिद्धि तोये तमारा वियोगे स्वामी,
जन्मारो गाळ्यो जाणे घोर कारावासमां, इरे मलकनुं ज्यां पूरे थयुं आयऱ्या त्यां,
जनम थयो रे मारो मानवीना लोकमां, दुःखडा निवारो मारा जनम मरणनां परमातमा. केवा केवा नाटक स्वामी, हुं करुं आ जनममां,
अक रे जाणे छे मारो आतमा परमातमा. मनडानी माया काजे धरवा पडे छे मारे,
डगले ने पगले नवलां रुप आ संसारमां, आरे मलकनुं ज्यां पूरे थाय आयऱ्या त्यां,
तेडावो मुजने स्वामी त्यां तमारा लोकमां दुःखडां निवारो मारा जनम मरणनां परमातमा
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हे... केवां केवां वर्णन स्वामी में सुण्या ओ मलकनां,
अधीरो बन्यो छे मारो आतमा परमातमा, जन्म, जरा, मृत्यु केरां दुःखडांने बदले स्वामी,
रहेवानुं त्यां तो सुखनां शाश्वता सहेवासमां. चार चार गतिना फेरा हवे नथी फरवा मारे,
करवो छे कायमनो वसवाट, पंचम लोकमां, दुःखडां निवारो मारा जनम मरणनां परमातमा.
प्रभुथी पागल थई... प्रभुथी पागल थई कर प्रीत,
..पछी तारी ज्यां जाय त्यां जीत, प्रभुथी भावधरी कर प्रीत,
___ पछी तारी ज्यां जाय त्यां जीत... कर प्रयत्न संताप मूकी दे, यश अपयश नहीं थाय, कोई पूरे ना आश जो तारी, पूरशे श्री जगन्नाथ,
तो युगपुराणी रीत... पछी तारी.... निश्चय करी ले क्यारे जावं, शुं करवो व्यापार, लाभ हानि क्यां समजी ले, तो थाशे बेडो पार,
करजे सद्गुणना रे गीत... पछी तारी.... पूर्णविराम. मेळवq छे तो, मूक अल्प अर्धविराम, प्रभुना चरणे शिश नमावी, ओळख आतमराम,
फरतुं बांधी ले तुं चित्त... पछी तारी.... देव जिनेश्वर वीर वीतरागी, हैये धरे जगहित, प्राणी मात्रनो हितचिंतक, ओ सहुथी करतो प्रीत, हैये वसे अवचनातीत... पछी तारी....
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खुल्ला मुक्या छ में तो... खुल्ला मुक्या छे में तो दिलडाना द्वार,
प्रभुजी आवोने अकवार, मारा जीवननी सुनी पगथार, .
पगलां पाडोने अकवार... वरसोथी मीट मांडी वाटडी निहाळु, शमणांनी सोडमां हुं तुजने पुकाएं,
तुजने विसारी ना शकुंपलवार... प्रभुजी... तारा विना उरना आसनिया खाली, छलकावी धोने नाथ करुणानी प्याली,
तुजने स्मर्या करुं वारंवार.... प्रभुजी... अंतरनी आरसीमां रहेजे छबीला, मारा रे अंतरमां तारा ज पगलां,
तारो महिमा छे अपरंपार... प्रभुजी... . भक्तो तमारा अवा रे भोळा,.. शाने लीधा छे प्रभु अबोला, . अमने उतारोने भवपार... प्रभुजी... काळजाने कोडीये दीवडो प्रगटावं, प्रेमघृत भरी भाव ज्योति जलावं,
. झळकावू जीवन झाकळमाळ... प्रभुजी... साथिया पुरं छु अंतरने आंगणे, बेसुं छु मीट तारी मांडीने बारणे,
जीवनभर झंखुं छु तारो प्यार... प्रभुजी... तनना आ तंबूराने आशाना तारे, . छेडं वीतराग तारा स्नेहनी सितारे,
प्रीतभयाँ गुंजे रणकार... प्रभुजी...
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मनना मंदिरे आवोने अकवार, लळी लळी विनतुं हुं वारंवार,
पावन थाये आ अंतरद्वार... प्रभुजी...
कैसे रीझावं में तुम्हे... (राग : बहोत चाहने वाले...) कैसे रीझावं में तुम्हे भगवन्
तेरे चरणमें लाखो नमन... गीत न आये गावं मैं कैसे,
साज नहीं है बजावू में कैसे, • . चरणोमें चढावू (२) मेरा ये जीवन..
फूल नहीं कैसे चढावू में माला, दीप नहीं कैसे करुं में उजाला,
पानी नहीं है (२) भीगे ये नयन...
इतनी शक्ति हमे...। इतनी शक्ति हमे देना दाता,
मनका विश्वास कमजोर हो ना.... हम.चले नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हो ना... हम चले... दूर अज्ञान के हो अंधेरे,
तुं हमे ज्ञानकी रोशनी दे, हर बुराई से बचते रहे हम,
जीतनी भी दे भली जिंदगी दे,
કપ
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बेर हो ना कीसीको कीसीसे,
जूठ
भावना मनमें बदले की होना.... हम चले...
हम न सोचे हमे क्या मिला है,
हम ये सोचे किया क्या है अर्पण, फूल खुशीओं के बाटे सभीको,
सबका जीवन ही बन जाय मधुवन, ' अपनी करुणा का जल तुं बहाकर,
करदे पावन हर ओक मनका कोना... हम चले...
हम को मनकी शक्ति...
हम को मनकी शक्ति देना, मन विजय करे,
दूसरों की जय से पहेले, खुद विजय करे... हमको .... भेदभाव अपने दिलसे, साफ कर शके,
भूल
दोस्तों से से बचे रहे, सच का दम भरे,
हो तो माफ कर के,
दूसरों की जय से पहेले, खुद विजय करे... हमको ....
मुश्किलें पडे तो हम पे, इतना कर्म करे,
साथ दे तुं धर्म का, चलेंगे धर्म पर,
खुद पे होंसला रहे, बदी से न डरे,
दूसरों की जय से पहेले, खुद विजय करे... हमको ...
तुम्ही हो माता पिता...
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्हीं हो,
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तुम्ही हो साथी, तुम्ही सहारा,
कोई ना अपना सिवा तुम्हारा तुम्ही हो नैया तुम्ही खेवैया,
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो... जो खील शके ना वो फूल हम है,
तुम्हारे चरणों की धूल हम है दया की दृष्टि सदा ही रखना, ...
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो... तुम्ही हो माता...
गिरनार के निवासी
ग्रिनार के निवासी, नमुं बारबार हुं... आयो शरण तीहारे, प्रभु तार तार तुं... करुणा का हे समंदर तेरी निगाह में, आते ही शांति पाते तेरी पनाह में, ब्रह्मचार सदाचार निर्विकार तुं, आयो शरण... पशुओका पोकार सुना सिर्फ एकबार, छूडा के उनके बंध तुने छोड दिया संसार, अकबार नेमकुमार सुन पुकार तुं (२) आयो शरण... राजुलने किया तुमसे नव नव भवो से प्यार, अखंड सौभाग्य का तुने दे दिया उपहार, देना साथ नेमिनाथ पकड हाथ तुं (२) आयो शरण... बैठे थे जेसे राजुल के आत्मकमल में, वैसे ही बेठ जाना तुं हमारे जीवनमें, हम नावके मुसाफीर ओ जलदी उगार तुं (२) आयो शरण...
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दीक्षा गीत
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मने वेश श्रमणनो मळजो मने वेश श्रमणनो मळजो रे (२) पंचमहाव्रत पाळु, पावन निर्दोषने निष्कलंक; समतामां लयलीन रहेQ, सरखा रायने रंक, मारी स्तवना प्रभु सांभळजो रे... मने वेश... आठ प्रहरनी साधना माटे, वहेली परोढे हुं जागुं; श्वासो लेवा माटे पण हुं, गुरुनी आज्ञा मांगु, आंख इर्यासमितिओ ढळजो रे... मने वेश... आहारमा रस होय न कोई, घरघर गोचरी भमकुं; गामोगाम विहरता रहेQ, कष्ट अविरत खमवं, मारा कर्मों निर्जरी जाजोरे... मने वेश... आजीवन अणिशुद्ध रहीने, पामु अंतिम मंगळ; साधी समाधि परलोक पंथे, आतम रहे अविचल, मारी सद्भावनाओ फळजो रे... मने वेश...
ओघो छे अणमूलो... । (राग : होठो से छू लो तुम - प्रेमगीत) ओघो छे अणमूलो, अनुं खूब जतन करजो, मोंघी छे मुहपत्ति अq रोज रटण करजो.
___ ओघो छे अणमूलो...
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आ उपकरणो आप्यां, तमने ओवी श्रद्धाथी, उपयोग सदा करशो, तमे पूरी निष्ठाथी, आधार लई अनो धर्माराधन करजो, ओघो छे अणमूलो...
आ वेश विरागी नो, अनुं मान घणुं जगमां, माबाप नमे तमने, पडे राजा पण पगमां, आ मान नथी मुजने अवुं अर्थघटन करजो, ओघो छे अणमूलो...
आ टुकडा कापडना, कदी ढाल बनी रहेशे, दावानळ लागे तो, दीवाल बनी रहेशे, अना ताणावाणामां तपनुं सिंचन करजो, ओघो छे अणमूलो...
आ पावन वस्त्रो तो, छे कायानुं ढांकण, बनी जाये ना जोजो ! ओ मायानुं ढांकण, चोक्खु ने झगमगतुं दिलनुं दर्पण करजो. ओघो छे अणमूलो... मेला के धोयेला, लीसा के खरबचडा, फाटेला के आखा, सौ सरखा छे कपडा, ज्यारे मोहदशा जागे त्यारे आ चिंतन करजो. ओघो छे अणमूलो.... आ वेश उगारे छे, ओने जे अजवाळे छे, गाफेल रहे ओने, आ वेश डूबाडे छे, डूबवुं के तरवुं छे, मनमां मंथन करजो, ओघो छे अणमूलो...
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देवो जंखे तोपण जे वेश नथी मळतो, तमे पुण्य थकी पाम्या, अनी किंमत पारखजो, देवोथी पण ऊंचे तमे स्थान ग्रहण करजो,
.. ओघो छे अंणमूलो...
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जा, संयम पथे, दीक्षाथी...। (राग - बाबुल की दुआयें लेती जा - निलकमल) जा, संयम पथे, दीक्षार्थी ! तारो पंथ सदा उझमाळ बने, जंजीर हती जे कर्मोनी, ते मुक्तिनी वरमाळ बने.
जा, संयम पंथे.... होंशे होंशे तुं वेश धरे, ते वेश बने पावनकारी, उज्जवळता अनी खूब वधे, जेने भावथी वंदे संसारी, देवो पण झंखे दर्शनने, तारो अवो दिव्य दीदार बने.
जा, संयम पंथे.... जे ज्ञान तने गुरुओ आप्यु, ते ऊतरे तारा अंतरमां, रगरगमां ओनो स्त्रोत वहे, ने प्रगटे तारा वर्तनमां, तारा ज्ञानदीपकना तेज थकी, आ दुनिया झाकझमाळ बने.
. जा, संयम पंथे.... वीतरागतणां वचनो वदती, तारी वाणी हो अमृतधारा, कोई मारग ढूंढे अंधारे, तारां वेण करे त्यां अजवाळां, वैराग्यभरी मधुरी भाषा, तारा संयमनो शणगार बने.
. जा, संयम पंथे.... जे परिवारे तुं आज भळे, ते उन्नत हो तुज नाम थकी, जीते सौनो तुं प्रेम सदा, तारा स्वार्थविहोणा काम थकी, शासननी जगमां शान वधे, तारा अवा शुभ संस्कार बने
जा, संयम पंथे....
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अणगार तणा जे आचारो ओनं पालन तुं दिनरात करे, ललचावे लाख प्रलोभन पण, तुं धर्म तणो संगाथ करे, संयमनुं साचं आराधन, तारा तरवानो आधार बने.
जा, संयम पंथे....
जेना रोमरोमथी त्याग... (राग : जहां डाल डाल पर - सिकंदर आझम)
अज्ञान तिमिरान्धानां, ज्ञानांजन शलाकया;
ने उन्मिलतं येन, तस्मै श्री गुरुवे नमः... जेना रोमरोमथी त्याग अने संयमनी विलसे धारा,
आ छे अणगार अमारा... दुनियामां जेनी जोड जडे ना, अq जीवन जीवनारा,
आ छे अणगार अमारा... सामग्री सुखनी लाख हती, स्वेच्छाओ अणे त्यागी, संगाथ स्वजननो छोडीने, संयमनी भिक्षा मागी, (२) । दीक्षानी साथे पांच महाव्रत अंतरमां धरनारा.
आ छे अणगार अमारा... ना पंखो विझे गरमीमां, ना ठंडीमां कदी तापे, ना काचा जळनो स्पर्श करे, ना लीलोतरीने चांपे, (२) नानामां नाना जीवतणुं पण संरक्षण करनारा.
आ छे अणगार अमारा... जूळू बोलीने प्रिय थवानो, विचार पण ना लावे, या मौन रहे, या सत्य कहे, परिणाम गमे ते आवे, (२) जाते ना ले कोई चीज कदी, जो आपो तो लेनारा.
आ छे अणगार अमारा...
एक+vir..
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रुडा राजमहेलने त्यागी...
रुडा राजमहेलने त्यागी पेलो चाल्यो रे वैरागी... (२) अनो आतम उठ्य छे आज जागी, पेलो चाल्यो रे वैरागी... (२) नथी कोई अनी रे संगाथे, नीचे धरतीने, आभ छे माथे
ओ तो नीकल्यो छे खाली हाथे... (२) अणे मुकी जगतनी माया, अनी युवाान छे हजु काया
अणे मुक्तिमां दीठो सार... (२) अने संयमनी तलप ज लागी, अनो आतम आज बन्यो मोक्षगामी
अनी भवोभवनी भ्रमणा भागी... (२)
यौवनवयमां सुख छोडनारा...
(राग : सोलह बरसकी बाली ऊमर - अक दूजे के लीये) . यौवनवयमा सुख छोडनारा महान, आ काळमां साधु थनारा महान... आ काळमां... यौवननु पतन करावे अवो आ समय, विषयो व्यसन करावे ओवो आ समय, आवा समयमा सघळी वासनाओ जीतीने, मनने विरागमां वाळनारा महान... आ काळमां... जेणे गुरु कनेथी तत्त्वो ग्रहण कर्या. शास्त्रोमहीं रहेला सत्यो श्रवण कर्या, भवमां भमाडनारा कर्मोथी छुटवा, संयम भणी कदम मांडनारा महान... आ काळमां...
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हैयामां भाव जाग्या दीक्षाना ज्यारथी, सादाई ते घडीथी राखनारा महान... आभूषणो सोनाना ने कपडा किंमती, साधन शृंगार केरा त्यागनारा महान.... आ काळमां... खावानुं जे खपे ना दीक्षा लीधा पछी, खाई लेवानी वृत्ति रोकनारा महान... पीकचर जोवा जq ने फोटा पडाववा, अवा अनिष्टने दाबनारा महान... स्नेहीजनो भले ने आग्रह घणो करे, खोटी प्रणालिकाने तोडनारा महान... आ काळमां...
साधु बने कोई... (राग : जब हम जवां होंगे - बेताब) साधु बने कोई, संसार ने छोडी, अवा विरागीनुं बधा बहुमान करे छे, सन्मान करे छे,
.. . साधु बने कोई... जेने साचुं ज्ञान मल्युं छे जीवननु, वळगेलुं अज्ञान गयुं छे भवभवर्नु, ओ भाग्यशाळीनो सहु सत्कार करे छे, सन्मान करे छे,
साधु बने कोई... उज्वळ जेणे कुळ बनाव्युं पोतार्नु, जन्मभूमिने स्थान बनाव्युं शोभानु, ओ धन्य आत्माना बधा गुणगान करे छे सन्मान करे छे,
___ साधु बने कोई...
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जेना तेजे दीप धरमनो झळके छे,
किरणो जेना कुंदन जेवा चमके छे, अ ज्योतनो जगमां सहु जयकार करे छे, सन्मान करे छे,
साधु बने कोई.....
आशा अना अंतरनी फळवानी छे,
माळा अने मुक्तिनी मळवानी छे,
मुक्तिगामीने सहु फूलहार करे छे, सन्मान करे छे,
साधु बने कोई....
साधनाना पंथे आजे...
( राग : साथियां पुरावो द्वारे - मेना गुर्जर ) साधनाना पंथे आजे ओक ऊंचो आत्मा जाय,
आज अने आपीओ अंतरना रुडा आशीर्वादो, वहेली वहेली मळजो ओने मुक्ति मंझिल (२) साधनाना पंथे... ज्यां जुओ त्यां लोको आजे सुखना साधन मागेछे, ने दुःखथी छेटा भागे छे.
विरला कोई नीकळे छे जे सुखसामग्री त्यागे छे,
ने कष्ट कसोटी मागे छे, वडलानो छांयो छोडीने (२) रणना रस्ते तपवा जाय, आज अने आपीओ...
धर्मतणा मारगमां जातां लोको हांफी जाय छे,
ने वचमां बेसी जाय छे.
अभिनंदन से आत्माने जे लांबी सफरे जाय छे, ने हों होंश जाय छे.
नानुं अवुं बाळक जाणे (२) मोटो डुंगर चढवा जाय, आज अने आपीओ...
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रागद्वेषना आ दरियामां कैंक जीवो खेंचाय छे,
- ने अधवच डूबकां खाय छे. ओ आत्माने वंदन हो जे समये जागी जाय छे,
ने डूबतां उगरी जाय छे. संयमनो सथवारो लईने (२) भवनो सागर तरवा जाय,
आज अने आपीओ....
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| संयम जीवननो... संयम जीवननो लीधो मरागडो, प्रभु तारा जेवा थावाने (२) कोई कहे गांडो, कोई कहे डाह्यो, प्रभु तारा चरणोमां रहेवाने, संयम.... दुःखना डुंगर तूटी पडे पण, कर्मोनां बंधन तूटे छे ज्यारे (२) लीला लहेर छे प्रभुना पंथे, मोक्षना मार्गे जावाने (२) कोई कहे... पूर्व जन्मना आव्या उदयमां, वीरनुं शासन पाम्या रे त्यारे (२) जिनशासननी छे बहिलारी, मुक्तिना पंथे जावाने (२) कोई कहे... दुःखियाने दुःख हरनारा, सुखिया ने ते सुखी करनारा (२) गीतो रे गाय छे, दास तमारा, प्रभुजी तमने रीझववाने... कोई कहे...
बेना रे..
(राग : बेना रे... पारकी थापण) बेना रे.., आज अमारां अंतरमांथी आवे छे उद्गार, संयमनी नावमां तरजे संसार, बोले छे आज, सखीओनो प्यार.
संयमनी नावमां...
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आ जीवनना दरिये वहेती, तृष्णा केरी धारा, उपराउपरी मोजां आवे, केम तरे तरनारा ? बेना रे...
अनी सामे ओक ज साचो संयमनो आधार,
अक हसे छे आंख अमारी, बीजी आंख रडे छे, सन्मार्गे तुं जाय परंतु, अमने वियोग पडे छे,
बेना रे...
रडता हैये हसता मुखे, दईओ छीओ विदाय.
आज अमारा पुण्य अधूरा, आवी शक्या ना जोडे, बोध हवे तुं देजे ओवो जे बंध अमारा तोडे,
बेना रे...
तारे पगले पगले चाली करशुं सागर पार,
संयमनी नावमां...
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संयमनी नावमां...
संयमनी नावमां....
हुं जउं छं....
( राग : खुश रहो हर खुशी है - सुहागरात )
हुं जाउं छं गुणियल गुरुना घरे, आंसुडां आंखमांथी शाने झरे ? हुं जउं छं...
हैयां शाने तमारां बने छे दुःखी ?
शाने चहेरा उपर आ उदासी उठी ?
जे प्रभु लीधो पंथ ओ हुं लडं,
नाम रोशन करे से दिशामां जउं छं... जउं छं...
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क्यारे बनीशं हं साचो रे संत
क्यारे बनीश हुँ साचो रे संत, क्यारे थशे मारा भवनो रे अंत; लाख चोराशीना चोरे चौटे, भटकी रह्यो छु मारग खोटे;
क्यारे मळशे मुजने मुक्तिनो पंथ ...क्यारे थशे. काळ अनादिनी भूलो छूटे ना, ध[ये मथु तोये पापो खूटे ना;
क्यारे तोडीश ओ.पापोनो तंत ...क्यारे थशे. छ काय जीवनी हुं हिंसा रे करतो, पापो अढारे जरी ना विसरतो;
- मोह मायानो हुं रटतो रे मंत्र ....क्यारे थशे. पतित पावन ओ प्रभुजी उगारो, रत्नत्रयीनो हुं याचक तारो;
. भक्त बनी मारे थावं महंत ...क्यारे थशे.
॥
तमे मारगडो लई... (राग : हुं तो कागळियां लखी लखी थाकी - लोकगीत) तमे मारगडो लई लीधो साचो, जे लई जशे अमरापुरे,
भले कांटाळो अने-होय काचो, पण लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे ठीलापोचा विचारोने अळगा काँ.
को दीक्षानो मनोरथ पाको, जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे रातालीला वस्त्रोने अळगा कर्या,
. मान्यो वैरागी रंग तमे साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे सोनाकेरा आभूषणो अळगा कर्या,
मान्यो संयमनो शणगार साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे खाटीमीठा खाणापीणा अळगा कर्या,
मान्यो तपनो संगाथ तमे साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे.
ARRALLLLLL
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तमे सिनेमाना शोख बधा अळगा कर्या,
मान्यो मंदिरनो संग तमे साचे जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे रागीद्वेषी सगाओने अळगा कर्या,
मान्यो सद्गुरुनो साथ तमे साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे पोचा पोचा बिछानाने अवळा कर्या,
मान्यो भूमिसंथारो तमे साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे वाहन केरा आधारोने अळगा कर्या,
मान्यो पगनो प्रवास तमे साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे. तमे अंधाराना आवरणो अळगा कर्या,
जल्यो आतमनो दीवो हवे साचो जे लई जशे अमरापुरे... तमे.
कदी जो परिषह रडावे...
(राग : कोई जब तुम्हारा - पूरब और पश्चिम) कदी जो परिषह रडावे मने, अगर जो अनुकूळता हसावे मने, . मारा हृदयमां ऊतरजो, प्रभु ! के घटमाळनी आ गुलामी भूलीने तमोने भजु....
कदी जो परिषह... नजीवा दुःखोनी असर ज्यां पडे, के आकुळव्याकुळ हुं थई जउं, उपालंभ आपुं तमोने कदी, कदी दोष सुखिया जनोने दउं, दुःखो जो अतिशय सतावे मने,
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के वांछा मरणनी करावे मने, मारा हृदयमां उतरजो, प्रभु !
के मक्कम बनीने उपाधि भूलीने तमोने भजुं...
लहर ओक सुखनी अडे ज्यां प्रभु ! भूली जडं धुं हुं दुःखोनी असर,
गुमानी बनीने फरुं रातदिन, लउंना अभागी जनोनी खबर, मदिरा जो सुखनी नचावे मने, के निष्ठुर दानव बनावे मने,
मारा हृदयमां उतरजो, प्रभु ! के तोरी मगजनी तुखामी, भूलीने तमोने भजुं
कदी जो परिषह...
जाग्यो रे आतमा आश जागी
(राग : आधा है चंद्रमा रात आधी... ) जाग्यो रे आत्मा आश जागी, मुक्तिना अमृतनी प्यास जागी, अभिलाषा जागी... जाग्यो रे.
ज्यारे आतमनो दीवडो जागे, त्यारे बंधन संसारना भागे, त्यागे सखीओनो प्यार, त्यागे सघळो परिवार,
अणे वस्त्रालंकारोनी प्रीत त्यागी... जाग्यो रे.
कदी जो परिषह...
ज्यारे आतमनो दीवडो जागे, त्यारे वैभव अळखामणा लागे, लागे खारो संसार, लागे प्यारो अणगार,
ओने संयमना पंथनी लगनी लागी... जाग्यो रे.
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ज्यारे आतमनो दीवडो जागे, त्यारे अंधारा दूर दूर भागे, भांगे पातकनो भार, भांगे अवगुणनी जाळ, अना मारगना कंटको जाय भांगी... जाग्यो रे.. ज्यारे आतमनो दीवडो जागे, त्यारे सद्गुरुनो आशरो मांगे, मांगे कर्मोनो नाश, मांगे शिवपुरनो वास, ओणे भवभवनां दुःखमांथी मुक्ति मांगी... जाग्यो रे.
। मुक्ति तणा सपना . . . (राग : जब हम जवां होंगे) मुक्ति तणा सपना, जोया घणा भवमां, हवे आ भवे सपना बधा साकार करी ले... भवपार करी ले अणगमतो अंधकार गयो छे जागी जा ! झळहळतो अणसार थयो छे, जागी जा ! अवसर उग्यो अनो हवे सत्कार करी ले... भवपार करी ले मानवनो अवतार मळे छे, सद्भाग्ये धर्मतणो आधार मळे छे, सद्भाग्ये साचा गुरुः केरो हवे स्वीकार करी ले... भव पार करी ले भोग अने भोजन मल्याता सौ भवमां त्याग अने संयम मल्या छे आ भवमां मनने मनावीने हवे तैयार करी ले... भवपार करी ले तारी पासे साव किनारो आव्यो छे हंकारी दे नाव, इशारो लाव्यो छे .. कांठे पहोचीने तुं, विजय टंकार करी ले... भवपार करी ले
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आ केशनुं लुंचन छे
( राग : संसार है एक नदियां... )
आ केशनुं लुंचन छे, आ कर्मोनुं लुंचन छे; कषायो छे काळा, तेनुं आ लुंचन छे... आ केशनुं
नरकमां दुःख वेठ्या, तिर्यंचमां दुःख वेठ्या; आ तो जिन आणा छे, भवदुःखनुं भंजन छे... आ केश
महासत्त्वना धारक जे, महापुण्यना धारक जे; ते लोच करे होंशे, अविचल जेनुं मन छे.. आ केशनुं
हसता बांध्या कर्मों, ते रोता ना छूटे; लुंचन करता करता, पलमां तूटे बंधन... आ केशनुं
आगळ पोथी ने पाछळ
( राग : झगमगता तारलानुं)
आगळ पोथी ने पाछळ पातरा लेशो हाथमां दांडो लईने विहार करशो संघ सकळनी आशिष लईने पगलां भरशो.
पोथी जेने परिणत थाये, संयम रसने चाखे रे (२) ज्ञानभक्तिनी अनुपम शक्ति, अरिहंतो तो भाखे रे (२) स्वाध्यायमां लीन थईने, समता धरशो... संघ सकळनी
आगम आपे पातरामां खावानो, अधिकार रे (२) जेणे विद्या जिंन वचनोने हृदयमां स्वीकार रे (२) बेतालीश दोषोथी सावध रहेशो... संघ सकळनी
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मारे साधवी छे मारे साधवी छे संयमनी साधना (२) मारे अंतरथी करवी आराधना... वाणी विचारे संयमना रंग हो जीवन सागरना संयमी तरंग हो, . . रे... नथी करवी ओ मारे विराधना... मारे. मोक्षना प्रदेशनो शोधक छे संयमी, पाप पूंजनो अवरोधक छे संयमी, . रे... अने पगले पगले उपशामना... मारे संयमी वर्तनना नर्तन जीवन हो, . मृत्यु पामेला पण मारा सजीवन हो, रे... मारा श्वासे श्वासे अक भावना... मारे संयम चरण रमे लक्ष्मी संसारनी, भावना जागी रहे नित्य भवपारनी रे... मारा जीवननी अक ज ओक कामना... मारे
तमे ओघो लईने तरिया
(राग : तमे मन मूकीने...) तमे ओघो लईने तरीया, अमे संसारे रळवळीया, तमे महाव्रतधारी बनीया, अमे राग-द्वेषमां बळीया... तमे अनंत तीर्थंकर भगवंते, जे संयमने आदरीयं महामूल ते संयम पामी, जीवन सार्थक करीयु तमे देव-गुरुने वरीया, अमे पाप पनारे पडीया... तमे
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पगले पगले छ काय जीवनी रक्षाना परिणाम, अष्ट प्रवचन मातानुं पालन, नित्य चढते परिणाम तमे निर्मळ ब्रह्मे रसीया, अमे मोहपाशमां फसीया... तमे व्रत लीधा गुरु साखे तेने, जीवनभर जालवजो, प्राण जाय पण व्रत नहिं जाओ, ओ श्रद्धा केळवजो तमे मुक्तिपुरी संचरिया, अमे चउगतिमा भमीया... तमे
| हो संयम साधक शूरवीरो
(राग : प्रभु ते मने जे आप्यु...) हो संयम साधक शूरवीरो, तुज मार्ग सदा मंगळ होजो कुकर्मो साथे युद्ध करी, जय जय मुक्तिमाळा वरजो... कुकर्मो संयम पथ छे कंटक भरीओ, उपसर्ग परिषहनो दरियो, हैयामा हाम भरी पूरी, निज आत्म स्वरुपे लीन रहेजो.... कुकर्मो जिन आण तणु पालन करजो, गुरुभक्तिना रसिया सदा बने सवी जीव प्रति समभाव धरी, तप त्याग विरागे मने धरजो... जे श्रद्धाथी संयम लेता, ओ श्रद्धा जीवनभर ना मुक्ता ईर्ष्या निंदादिक दोष त्यजी, गुण रत्नोथी जीवन भरजो... कुकर्मो तजी माया प्रपंच भरी दुनिया, सहु स्वजन संबंधी स्वारथिया गुरु-देव तणा चरणो सेवी, निर्मळ संयम सुखमां रमजो... कुकर्मो
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लेजो समजीने संयमनो भार
(राग : कहेदो कोईना करे यहाँ प्यार...) लेजो समजीने संयमनो भार... (२) सहेजे मनडु चळे, सघळु धूळमां भळे, डगले पगले ज्यां खांडानी धार... लेजो... उजळा चीवर तो भले ने धर्या, मनडाना वस्त्रो जो मेला रह्या; . तो करम ना छूटे, भवना फेरा ना तूटे, नवा दोषो वधे बेसुमार... लेजो. सगपण संसारना भूलवां पडे, मुक्तिनो मारग तो त्यारे जडे, भाई केवा हशे ? मा शुं करती हशे ? जो जे याद न आवे संसार... लेजो. सुख तो संसारथी अधिकां मळे, हैया ने कहेजो लगीर ना ढळे, मोंघा वस्त्रो मळे मीठां भोजन मळे, जोजे लोभे ना मनडु लगार... लेजो. प्रगति देखी कोईनी ईर्ष्या करे, मोटां थवानी जे स्पर्धा करे, आचारोने चूके, मर्यादाने मूके, तेनो थाये कदी ना उध्धार... लेजो. पदवी सन्माननी वांछा करे, किर्तीनी पाछळ जे घेलां फरे साचो मारग भूले, तेनी साधना डूबे, डूबे मोंघोने मूलो अवतार... लेजो.
होजो जयजयकार
होजो जयजयकार दिव्यात्मा तारो होजो जयजयकार जिनशासनमा जनम लई, सार्थक कीधो अवतार... . रिद्धि सिद्धि सुख सामग्री खोट जीवनमां नहोती, मिथ्या मोह त्यजी जीवननी, नवली केडी गोती... लाग्यो लाग्यो जगत असार... पूर्व जनमना पुण्य प्रभावे, करी साधना भारी, पितृ मातृना नाम दीपाव्या, मानी कूख उजाळी, तरी गया संसार...
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तनमां मनमां रोमरोममां, स्मरण प्रभुनुं व्याप्यु, संयमचित्तने प्रभुमय द्वारा, स्थिर करीने स्थाप्युं कर्यो अडग निर्धार... माया ममता मोहना बंधन, मूळथी अळगा कीधा, वाघा आ दंभी दुनियाना, पळभरमां फगावी दीधा, थई दीधा अंगीकार...
वीरा रे
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(राग : बेना रे...) वीरा रे... शूरवीरो तो संयमना पंथे चाल्या जाय वसमी लागे छे अमने तारी विदाय... आंखडी भीजाय दीलकुं दुभाय... वसमी लागे छे. माता पितानी आंखनो तारो, लाडलो मारो भाई (२) बेनी तारी जोने रुवे छे, डूसके डूसका खाई, वीरा रे... आंसुडानी धारने ठोकर ना मराय... वसमी लागे छे. नाजुकं काया नमणो चहेरो, जाणे गुलाबनो गोटो (२) सौथी रे नानो सौथी रे व्हालो, शेनो पड्यो तने तोटो, वीरा रे... ओछु | आव्युं तुजने ओ ज ना समजाय ...वसमी सुरजदादा ! धीमा रे तपजो, वादळ देजो रे छाया (२) लाडला वीराने विहार करता, जो जो कांई ना थाय वीरा रे... विहार करता करता पगनी पानी ना छोलाय ...वसमी आज अमारा पुण्य अधूरां, आवी शक्या ना जोडे (२) बोध हवे तुं देजे अवो, बंधन अमारा तोडे, वीरा रे... तारा पगले पगले चाली करशुं सागर पार ...वसमी
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हं तो अरिहंत अरिहंत हुं तो अरिहंत अरिहंत जपुं मोरी मा, मारुं मन लाग्युं संयममां, हुं तो सासरीये नहीं जाउं मोरी मा, मारुं मन लाग्युं संयममां, मेवा मीठाई मने काम नहीं आवे
तपस्या ओ मन मोडं मोरी मा... माई..... . माता-पिता मने काम नहीं आवे
गुरुमा ओ मनडुं मोडं मोरी मा... माउं... बेनीने बेनपणी मने काम नहीं आवे गुरुबेने मनडु मोद्यं मोरी मा... माउं... पेप्पसीने कोला मने काम नहीं आवे
उकाळेला पाणी मंगावो मोरी मा... माएं... स्टीलना वासण मने काम नहीं आवे
पातरा तरपणी मंगावो मोरी मा... माई... डनलोपना सोफासेट काम नहीं आवे
संथारो उतरपटो लावो मोरी मा... मारुं... फलेटने बंगला मारे काम नहीं आवे
उपाश्रये मनईं मोडं मोरी मा... माएं... हीरा मोतीनी माळा काम नहीं आवे
नवकारवाळी लागे प्यारी मोरी मा... मारुं...
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गुरुभक्ति गीत
संत परम हीतकारी
( राग : वो दिन क्युं न संभारे )
संत परम हितकारी, जगतमांही संत परम हितकारी प्रभु पद प्रगट करावत प्रीति, भरम मीटावत भारी... परम कृपालु सकल जीव पर, हरी सम सब दुःख हारी.... त्रिगुणातीत फीरत तनुं भागी, रीत जगत अ न्यारी... ब्रह्मानंद कहे संत की सोबत, मिलत है परम मुरारी ...
तारा गुणोनी पाट
तारा गुणोनी पाट मने आप मारा स्वामी, मने तारा मारग तणा ओरता, . तारुं विरति वरदान मने आप मारा स्वामी मने संयमना रंग तणा ओरता...
आ. संसारे मन मदारी, नाच नचावे क्रोध करावे, कुरगडु मुनिनी क्षमा मुजने आप मारा स्वामी, मने हळवा थवाना घणां ओरता...
कपटी छे आ संसारनी माया, कामणगारी ओनी काया, स्थूलभद्रजीनुं व्रत मने, आप मारा स्वामी,
मने सत्त्व फोरववाना ओरता...
इच्छाना द्वार जो खोले, श्रद्धानी नावलडी डोले, सुलसा श्राविकानी श्रद्धा मने आप मारा स्वामी, .मने धर्मलाभ सुणवाना ओरता...
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अहंकारनो अग्नि झरतो, जेमां आतम पल पल बळतो, अर्हम् तणी आराधना तुं आप मारा स्वामी,
मने अरिहंत थवाना घणा ओरता...
गुरुमा तेरे...
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(राग : संसार है अक नदिया, यह है पावन भूमि) गुरुमा तेरे आंसुके, दो बूंद जो मिल जाओ, यह बुंद को पाकर के, ये जीवन बदल जाओ... अक भटके राही को, तुने राह बताया है, कीचड में पडे फूलको, मस्तक पे चडाया है...
अज्ञानके बिस्तरसे, मुझे तुजने उठाया है,
उपशमके आसन पे, अब तुजने बिठाया है... दुर्गतिके दुखोमें, मुझे गिरते बचाया है, दुर्लभ मानवभव को, अब सफल बनाया है...
नजरों के अमृत शे, प्रक्षालन कर देना,
ये दोष भरे चित्तको, तुम निर्मल कर देना... तेरी अमृत वाणीने, संसार छूडाया है, महावीर के मारग में, मुझे संत बनाया है...
तेरे वत्सलरसो से, मेरे विषय सफा करना,
तेरे कृपाभरे जल से, मेरे कषाय दफा करना... दिन दिनकी जुदाई ये, मुझे सालसी लगती है, पलपल तेरी यादोंसे मेरी आंख ऊभरती है...
अब अक अभिलाषा, जब आखिर दम मेरा,
तेरे पावन आंचलमें, तब मस्तक हो मेरा... आंखो की अग्निसे, सब कर्म जला देना, ये हेम से आतम को, अब शुद्ध बना देना...
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औसो चिद्रस दीयो गुरु मैया ( राग : मैली चालर ओढके... ) औसो चिद्रस दीयो गुरुमैया, प्रभु से अभेद हों जाउं मैं, अब अंधकार मिटा दो गुरुमैया, सम्यग् दर्शन पाउ मैं... प्रभु स्वरुप है अगम अगोचर, कहो कैसे उसे पाउ मैं, करो कृपा करुणामय सिंधु, मैं बालक अज्ञानी हुं... शिवरस धारा वरसावो गुरु मैया, स्वार्थ व्याधि मिटावो रे, सवि जीव करु शासन रसिया, औसी भावना भावु मैं... सिद्धरस धारा वरसावो, गुरुमैया, परमातम को पाउ मैं, आनंदरस वेधक करके गुरुजी, परमानंद पद पाउ मैं,
विश्व कल्याणनी प्यारी गुरुमैया, तेरी कृपा मे खो जाउं मैं, दो औसा वरदान गुरुजी, तेरे गुणको ध्यावुं मैं.
कोटि कोटि वंदन...
(राग : कोई जब तुम्हारा हृदय तोड दे )
कोटि कोटि वंदन, गुरुवर तमोने, तमे पंथ साचो बताव्यो अमोने (२) करी छे विनंती अमे तो विभुने, उमर लागी जाये अमारी तमोने; छे अर्पण समर्पण जीवन आ तमोने... तमे पंथ साचो.
तमारो से विश्वास कदीना भूलीशुं, तमे जे कह्यो ते ज मारग ग्रहीशुं; हशे श्वास त्यां सुधी तमने पूजीशुं, अहर्निश तुम गुण स्मरण करीशु... छे अर्पण समर्पण
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तमारा ज्यां अंतरमां पगलाओ थाता, अंधारा जाताने अजवाळा थातां; जोईने नयनथी अमी छलकाता, जे पासे आवे ते तमारा थई जाता. छे अर्पण समर्पण घडवा घाट आतमनां घडवैया, संयम दुंदुभिना छे तमे बजैया; भवसागरमां डूबती आ नैया, झाली हाथ उगारो बनीने खेवैया...
छे अर्पण समर्पण
गुरु प्रेम रोग है
( राग : न ये चांद होगा न तारे रहेंगे मगर हम ... )
गुरु प्रेम रोग है, गुरु प्रेम रोग है,
जीसे लग गया समज प्रभु संग योग है (२)
गुरु ज्ञान मिलता नहीं मॉलसे,
गुरु प्रेम मिलता नहीं तोलसे,
श्रद्धा रहे धीरज रहे तो खुद ही लागे योग है...
गुरु मिल गये मुजको हरि मिल गये,
चमनमें लगा जैसे फूल खिल गये,
हर श्वासमें जब हो बसे तो खुद ही लागे रोग है...
मेरे सत्गुरु मेरे भगवन ही तुं,
मुजीमें समाया है बनकर गुरु,
तुं मुजमें है मैं तुजमें हुं तो खुद ही लागे योग है....
गुरु दिव्य दृष्टि जो मुज पर पडी,
सजाग हुई जिंदगी हरपल हर घडी, गुरु के संग किया सत्संग तो छूटे माया रोग है ...
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गुरुदेव मेरे दाता
गुरुदेव मेरे दाता हमको औसा वर दो, सेवा सुमीरन सत्संग, जोली में मेरे भर दो (२) नफरत जो करे हमसे, हम उनसे प्यार करे, करते जो हमारा बुरा, उनका सत्कार करे, नफरत को मीटा करके तुम प्यार का रंग भर दो... मेरे मनके मंदिर में, गुरुदेव तुं बस जाये, जीसको भी देखें मैं, तेरा रुप नजर आये, दे ज्ञानका अमृत तुं, जीवनको सफल कर दो...
तुम्ही हो भ्राता
(राग : तुम्ही हो माता...) तुम्ही हो भ्राता, तुम्हीं हो त्राता;
सद्गुरु तुम्ही हो जगत विधाता... गुरुमां... गुरुमां... तुम्ही हो सुख, तुम्ही हो शांति; तुम्हीं से मेरी, भागे भयभ्रांति... गुरुमां... गुरुमां...
तुम्ही हो ज्ञान, तुम्ही हो ध्यान;
तुम्ही हो दया, सागर महान... गुरुमां... गुरुमां... तुम्हीं हो दृष्टि, तुम्ही हो सृष्टिः तुम्ही हो मेरे, पुण्यकी पुष्टि... गुरुमां... गुरुमां...
तुम्ही हो यंत्र, तुम्ही हो तंत्र; तुम्ही हो मेरे, प्राणप्रिय मंत्र... गुरुमां... गुरुमां...
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तुम्हा
Sea.arunama
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तुम्ही हो रिद्धि, तुम्ही हो सिद्धि तुम्हीं से मेरे, जीवन की शुद्धि... गुरुमां... गुरुमां...
तुम्हीं हो शक्ति, तुम्ही हो भक्ति; तुम्हीं से मेरे, आतम की मुक्ति... गुरुमां... गुरुमां...
गुरुवर तेरी परम
. (राग : कसमेवादे प्यार) गुरुवर तेरी परम क्रिया का, ईस जगमे कोई पारना (२) . तुम बिन मेरी जीवन नैया, पावे कभी किनारा ना, गुरुवर तेरी परम क्रिपाका, ईस जगमें कोई पार ना... मानवभव मुश्किलसे पाया, भटकके लख चौराशी मैं, क्रोध कपट मद मान विषयवस, रहा में आशा दासी मैं, गुरु बिन मुज जीवननैयाका, कैसेभी उद्धार ना... गुरुवर तेरी... गुरुकी महिमा जगमे भारी, भवजल तारनहारी है, भेद भरम सब दूर मिटाने, जग जन मंगलकारी है, गुरु चरणोकी रजसे बढकर, मेरा कोई शिंगार ना.... गुरुवर तेरी... मनकी दुविधा दूर करो गुरु, चिदानंद भरपूर भरो, अपने रंगमे रंगलो गुरुजी, इतनाही उपकार करो... गुरुवर तेरी...
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श्वासोनी माळामां
(राग : श्वासो की माला में..) श्वासोनी माळामां समरु हुं, तारुं नाम, बनी जावु तारो गुरुमां, करुणा निधान... श्वासोनी माळामां समरु हुं, तारुं नाम (२) संतोनी सेवा करतो रहुं हुं, चरणोमां मस्तक धरतो रहुं हुं, भरी दे तुं झोळी गुरुमां, ओ गुरुमां... श्वासोनी माळामां (२) इच्छा छे मारी तारा जेवो थावं, संयम स्वीकारीने मोक्षे हुं जावं तन मन मारुं गुरुमां, तुज पर कुरबान... श्वासोनी (२) कृपा करो अवी खीले सत्त्व माएं, छोडीने झंझाळो बनी जावू तारो जे दिन हुं विसरु तुजने, छूटे मारा प्राण... श्वासोनी (२) । झालो मारो हाथ हुं भटकी न जावू, सुखोमां रही तुजने विसरी न जावु तारो समजी मुजने आपी दे चरणोमां स्थान... श्वासोनी (२) भक्तोना दिलमा छ जेनुं स्थान, चंद्रशेखर विजयजी अनुं नाम शासनना काजे कयुं छे जीवनने कुरबान (२)...श्वासोनी (२) बनी जावू तारो गुरुमां, करुणानिधान (२) श्वासोनी माळामां समरं छु, तारुं नाम (२)
| जीवन लीला संकेलीने... दुहो : जीवन लीला संकेलीने आदरी नवी सफर, मृत्यु तो होय मानवीना महामानव तो होय अमर... क्यां जईने वसवाट कर्यो गुरु, क्यां जई दरिशन पामुं... क्यां गोतुं सरनामुं.... ||
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क्यां जईने ठालवशुं गुरुमा, हैयानी वातलडी,
पुनित तारा पगला गोते, अश्रुभीनी आंखलडी,
तारा विण आ आयखु जाणे, थई गयुं साव नकामुं... क्यां गोतुं सरनामुं
वत्सल मूरत, स्नेहल सूरत, जोवा फरी नहीं मळशे,
तारा वियोगे ओ गुरुमाता, मारुं हृदय टळवळशे,
अमृतझरती आंखलडीथी, कोण निरखशे सामु... क्यां गोतुं सरनामुं
गुरुमा गुरुमा कहीने तुजने, तारो बाळ पुकारे,
ज्यां हो त्यांथी आशिष देजो, जीवशुं ओज सहारे, जनमो जनम रगरगमां तारी, वदनाकृति पामु... क्यां गोतुं सरनामुं
जईने कोई दिव्यलोकमां, अटलुं कहीने आवे,
पळपळ प्यारा गुरुवर अमने, तारी याद सतावे,
आ अवनी पर करी अंधा, अस्त थयो कां भानु.... क्यां गोतुं सरनामुं
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चलतीना दुहा
हे... परम उपकारी पावनकारी समताधारी सुखकारी, करुणाकारी वाणी तमारी, मंगलकारी जयकारी रे; हे... शिखामण तमारी बहुओं सारी, सुणता सहेजे नरनारी... अमारी विनंती ल्यो अवधारी, आंगण आवो अवधारी...
हे... गान तमारा गाता गाता, अमे समयनुं भान भूल्या, खावुं भूल्या, पीवुं भूल्या, उंघ अने आराम भूल्या; ... राग भूल्या ने द्वेष भूल्या वळी पापतणो व्यापार भूल्या, ओवा अकाकार थया के, सळगेलो संसार भूल्या...
हे... परम पुरुष तुं परमेश्वर छे, नेमिनाथ ओ कृपा करो, दुनियामां हुं रखडुं स्वामी, दुःखडा मारा दूर करो; हे... जैन कुले अवतार मलो ने सांभळवा जिन वाणी मलो, जिन पूजा त्रण काल मळो अने अंत समय नवकार मलो...
हे... रुमझुम (२) करती बालीका, नृत्य करती आवी रही, हे... पंच दीपनी आरती करती, प्रभुना गीतो गाई रही; हे... पाये पडंती नमन करती, सोले शणगारे नाची रही, हे... प्रभु भक्तिमां मस्त बनीने, दीपक ज्योती जलावी रही.
हे जीरे... राय श्रेयांसनुं दान मलो ने शेठ सुदर्शननुं शील मलो, हे जीरे... ऋषभदेवनुं तप मलो ने, भरत राजानो भाव मलो, हे जीरे... सुंदर शासन सेवा मलो ने प्रभु भक्तिना मेवा मलो, हे जीरे... दान सुपात्रे देवा मलो ने, जिन चरणोमां रहेवा मलो,
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हे जीरे... अरिहंत जेवा नाथ मलो ने, गुरुजनोनो साथ मलो, हे जीरे... गिरनार जेवुं तीर्थ मलोने, नेमिनाथनुं सत्त्व मलो, हे... घनन घननन घन घंटा वागे, टनन टननन टन कार करे, अरे घम घम घम घम घुघरी वागे, मारे हैये भक्तिनो भाव चढे... हे... फरर फररर फरके ध्वजाओ, मंदिर तारे सोहामणी, अरे टगर टगर सौ जुवे, धजाओ पेली सुहावणी...
हे... तारक तीरथ अ भलुं, गिरनार गिरिराज. हे... आशधरीने आवीयो, दर्शन करवा काज. हे... कल्पतरु सम शोभता, महिनानो नही पार. हे... करुणासागर आवजो, अंतर केरा द्वार. हे... पंच परमेष्ठीनुं शरण मलो ने, दर्शन ज्ञानने चरण मलो. हे... नवकार मंत्रनुं रटण मलोने, सुख समाधि मरण मलो. हे... जैन कुले अवतार मलो ने सांभळवा जिनवाणी मलो. है.... जिनपूजा त्रणकाल मलोने, अंतसमय नवकार मलो.
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उछामणीना दुहा
ओ म्हारा स्वामी भाई नेनी - नेनी बोलिया कोई बोलो. ओ म्हारा स्वामी भाई मोटी-मोटी बोलिया बोलो. म्हारां स्वामी भाई भेडो अडो अवसर नहीं आवे...
आ वावणीनी वेला छे, वावी ल्यो भाई वावी ल्यो; रंगमां रंग जमावी ल्यो, रग-रग रंग लगावी ल्यो, आ...
जो खोले ना तीजोरी का ताला,
ईसका पर भव में निकले दीवाला तुनतुना,
क्या लेकर तुं आया था, क्या लेकर तुं जायेगा,
खाली हाथ आया था, खाली हाथ जायेगा,
जो खोलेगा तीजोरी का ताला, ईसका परभव में प्रभु रखवाला...
ले जायेंगे ले जायेंगे दीलवाले चढावा ले जायेंगे,
रह जायेंगे रह जायेंगे, पैसे वाले देखते रह जायेंगे,
रह जायेंगे रह जायेंगे, नोटों के बंडल यहां रह जायेंगे....
अवसर आवा नहीं मळे, तमे लाभ सवाया लेजो, तमे पडोसी ना कानमां कहेजो रे, अवसर आवा नहीं मले...
तदायुं होय तो काढजो रे काल कोणे दीठी छे, अवसरियो वही जाय छे रे, काल कोणे दीठी छे...
चूपचूप बैठे हो, जरुरं कोई बात है, बोलियां बोलोगे तो ही देगा प्रभु साथ है (२)
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मनमां बोली बोलुं बोली बोलुं थाय, मारा मनडानी वात, मारा दिलडानी वात, माराथी बोली बोलाय...
भले पुण्य लाव्या, भले पाप लाव्या, भले रम्य जाले सहुं फसाया, छतां साथे कांई अमे नथी रे लई जवाना, अमे मोक्ष नगरमां जवाना... जवाना.... काम जैसा करीओ, धन्ना शेठ ने किया
राणकपुर बनवाके, जगमें नाम कर दिया.... • बेसबुं होय तो बेसी जाओ, गाडी उपडी जाय छे,
गाडी उपडी जाय छे ने वेला वीती जाय छे. जिंदगीमां केटलुं कमाणा रे, जरा सरवाळो मांडजो समजु सज्जनने शाणा रे, जरा सरवाळो मांडजो लाव्याता केटलुं ने लई जवाना केटलुं ? आखीर तो लाकडाना छाणा रे, जरा सरवाळो मांडजो. मोटर वसावीने बंगला बंधाव्या, खूब कीधा अकठा नाणां रे, जरा सरवाळो मांडजो. तारी ओक ओक पल जाये लाखनी, तुं तो बोलीले बोली प्रभु नामनी । तुं तो छोडी दे फिकर आखा गामनी, तारी जिंदगी छे चार दिननी चांदनी.. डंको वाग्यो, शासनना प्रेमी जागजो रे.... प्रेमी जागजो रे, धर्मी जागजो रे, बोली बोलीने ल्हावो तमे लेजो रे, ल्हावो लेजो रे, शासन शोभावजो रे...
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नाना,
देखो दादाना दरबारे बोली बोलजो रे लोल, चंचल लक्ष्मी त्यागो करवाने धर्म कमाई, संसारी वातो ने, अब छोडो मारा भाई, हे बोली बोलनेमें थे रंगाई लो, ऋतु आ सुंदर आई. आजनो ल्हावो लीजये रे, काल कोणे दीठी छे, अवसरियां वही जाय छे रे, काल कोणे दीठी छे, नाणुं मळशे टाणुं नहीं मळे रे, काल कोणे दीठी छे.... . जोजे रे थारी जिंदगी जवानी, जिंदगी जवानी ओ तो कायम न रहेवानी,
. । कायम न रहवानी, दाव रे मल्यो छे तने आज रे मजानो, करी ले विचार तुं तो ओकलो जवानो, अंते तो काया थारी राख रे थवानी... जोजे रे... पथ्थर जेवा पैसा ने सोना जेवा स्वामी, अमां कोण तमने प्याएं, बोलो पैसा के प्रभु ? वाजा वागे, तबला वागे, शरणाई वागे सही, आ बोली बोलवा माटे तमे, गडबड करशो नहीं; दान देजो शीयल पालजो, तप जप करजो सही, प्रभुजीनी बोली बोलवा, भावना भावजो सही... धीरे धीरे बोली अमे बोलवाना, तीजोरीना ताला खोलवाना, प्रभुजीनी आरती उतारवाना, भवसागर तरी जवाना, बोली बोलीने लाहो लेवाना, धीरे धीरे बोली अमे बोलवाना
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लाभ लेजो (२) रे, आवेला भाईओ तमे लाभ लेजो रे, तनथी लेजो, मनथी लेजो, धनथी लेजो रे, प्रभुजीनी पूजानो तमे लाभ लेजो रे सिद्धचक्र पूजननो तमे... आ जिंदगीमां चोपडानो, सरवाळो मांडजो, आज सुधी जीव्या छो केटलुं ने केवं. केटली कमाणी करी, केटलुं छे देवं, काढी सरवैयुं ने, लाभ लई लेजो रे. करवानुं भाई आज करी ले, वीर प्रभुनुं नाम रटी ले, . काले शुं थनार एनी, कालनी कोईने खबर नथी, भक्तिनु भाथु आज भरी ले, पुण्यना कामो आज करी ले,.
काले शु थनार... • ले जावे ले जावे पुण्याशाळी चढावा ले जावे,
रह जावे रह जावे मोटा शेठ देखता रह जावे... दिल खोल के बोली बोलो, ताले तिजोरी के खोलो, ये मौका अरे, वापस नहीं आयेगा...! बोली जो छूट जायेगी, मनमें ही रह जायेगी, अरे लाल ! तुं मनमें पछतायेगा... अंजनशलाका होती है ओक बार, प्रतिष्ठा नहीं होती बारबार अवसर आया है, बोली बोल दो, दिल के दरवाजे भाई खोल दो... अवसर बोलना हो तो बोलो ये बोली अब छूट जायेगी, मन में ही रह जायेगी (जलदी बोलो) नोटो के बंडल खोलो वर्ना सरकार लूंट जायेगी, मन में ही रह जायेगी (जलदी बोलो)
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श्री गिरनार महातीर्थनी
९९ यात्रानी विधि। . श्री गिरनार महातीर्थ ज्यां पूर्वे अनंता तीर्थंकरोना कल्याणक, वर्तमान चोवीशीना बावीशमा बालब्रह्मचारी नेमनाथ परमात्माना दीक्षा-केवळज्ञान अने मोक्ष कल्याणक द्वारा आ पुनितभूमि पावनकारी बनेल छे. आवती चोवीशीना २४| तीर्थंकरो मोक्षे जवाना, आ महातीर्थनी ९९ यात्रानी विधि माटे शास्त्रोमां विशेष कोई उल्लेख आवतो नथी. परंतु पश्चिम भारतमां तीर्थंकरोना मात्र आ त्रण कल्याणको ज थवा पाम्या होवाथी ते महाकल्याणकारी भूमिना दर्शन-पूजन अने स्पर्श द्वारा अनेक भव्यजनो आत्मकल्याणनी आराधनामां विशेष वेग लावी शके ते माटे पुष्ट आलंबन स्वरुपे गिरनार गिरिवरनी ९९ यात्राओनुं आयोजन कराय छे. * वर्तमान परिस्थितिने अनुलक्षीने नीचे मुजब यात्रा करी शकाय. ★ गिरनारना पांच चैत्यवंदन तथा ९९ यात्रानी समज : १. जयतळेटीमां. २. तळेटीमां पांच पगथिये नेमिनाथ परमात्मानी चरणपादुका सन्मुख. ३. पछी यात्रा करी दादानी प्रथम टुंके, मूळनायक सन्मुख. ४. मूळ देरासर पाछळ आदिनाथना देरासरे.
अमिझरा पार्श्वनाथनुं चैत्यवंदन करवू अथवा नेमिनाथ परमात्माना पगलानुं चैत्यवंदन करवं. त्यांथी सहसावन (दीक्षा-केवळज्ञान कल्याणक), अथवा जयतळेटी आवतां प्रथमयात्रा पूर्ण थयेल कहेवाय. पछी पाछा जयतळेटीथी अथवा सहसावनथी उपर चडतां पूर्वमुजब बे चैत्यवंदन करी यात्रा करीने दादानी टुंके दर्शन चैत्यवंदन करी नीचे उतरता बीजी यात्रा थई गणाय क्रमशः आ मुजब १०८ वखत दादानी ढूंकनी स्पर्शना करवी आवश्यक छे.
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* नित्य आराधना : १. उभयटंक प्रतिक्रमण. २. जिनपूजा तथा ओछामां ओछु ओक वखत दादा देववंदन. ३. ओछामा ओर्छ एकासणानुं पच्चक्खाण. ४. भूमि संथारो. ५. दरेक यात्रामां मूळनायकनी ३ प्रदक्षिणा. ६. "उज्जित सेलसिहरे दिकखा नाणं निसीहिआजस्स्, तं | धम्मचक्कवृष्टि अरिट्टनेमि नमसामि" अथवा "ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथाय ॥ नमः"नी २० नवकारवाळी. |७. "श्री रैवतगिरि महातीर्थ आराधनाएं..." ९ लोगस्सनो काउस्सग्ग. ८. गिरनार महातीर्थना ९ खमासमणां. ★ ९९ यात्रा दरमियान १ वखत मूळनायक दादानी १०८ प्रदक्षिणा/१०८
लोगस्सनो काउस्सग्ग/आखा गिरनार गिरिवरनी प्रदक्षिणा (लगभग २८
कि.मी.) ★ ९ वार पहेलीटुंकना दरेक देरासरनां दर्शन. ★ १ वार चोविहार छठ्ठ करीने सात यात्रा. ★ यात्रा दरमियान अकवखत गजपदकुंडना जलथी स्नान करी परमात्मानी
पूजा करवी. गिरनार गिरिवरनी ९९ यात्रा केवी रीते करशो?
गिरनारनी ९९ यात्राथी आप गभराई गया ? तेमां गभराववानी कोई जरुर नथी - हकीकतमां शत्रुजयनी ९९ यात्रा करतां तो गिरनारनी ९९ यात्रा साव सरळ छे.
हा! हा !! तेमां आश्चर्य पामवानी जरुर नथी. * शत्रुजयनी प्रथम यात्रा लगभग ३६०० पगथिया थाय, गिरनारनी पहेली
यात्रा लगभग ३८४० पगथिया थाय.
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★ शत्रुजयमां बीजी यात्रा माटे घेटीपागना २८०० पगथिया. उतरवाना थाय
ज्यारे गिरनारमा बीजी यात्रा माटे १००० पगथियाना डिस्काउन्ट साथे
सहसावन सुधीना मात्र १८०० पगथिया उतरवाना थाय. ★ शत्रुजयनी त्रण यात्रामां जेटला पगथिया थाय तेनाथी ओछा पगथियामां गिरनारनी तो चार यात्रा थई जाय अटले ! गिरनारनी ९९ यात्रा खूब ज अघरी छे तेवो जरापण भय न राखशो.
कोईपण डर राख्या वगर गिरनारनी आ ९९ यात्रानी अमूल्य तक चूकशो नहीं.
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अनंततीर्थंकर परमात्माना कल्याकोथी पावन थयेल | श्री गिरनारजी महातीर्थना महाकल्याणकारी १०८ नाम
सहितना १०८ खमासमणाना दुहा कैलासगिरि कैलासगिरिवरे शिववर्या, तीर्थंकरो अनंत; आगे अनंता पामशे, तीरथकल्प वदंत, उज्जयंतगिरि उज्जयंतगिरिवर मंडणो, शिवादेवीनो नंद; युदुकुलवंश उजाळीयो नमो नमो नेमिजिणंद. रैवतगिरि रैवतगिरि समरं सदा, सोरठ देश मोझार; मानवभव पामी करी, ध्यावं वारंवार, स्वर्णगिरि ओकेकुं पगलुं चढे, स्वर्णगिरि जेह; हेम वदे भवोभवतणां पातिक थाये छेह. गिरनारगिरि सोरठदेशमा संचर्यो, न चढ्योगढ गिरनार; सहसावन फरश्यो नहीं, अनो ओळे गयो अवतार. नंदभद्रगिरि आधि व्याधि उपाधि सौ, जाये तत्काळ दूर; भावथी नंदभद्र वंदता, पामे शिवसुख नूर. पारसगिरि लोह जिम कंचन बने, पारसमणिने योग; गिरि स्पर्शे चिन्मय बने, अशोकचंद सुयोग.
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योगेन्द्रगिरि मन वच काया योगने, जीत्या जे गिरि माही; तिण कारण योगी तणो, इन्द्र कहायो ज्यांही. सनातनगिरि गिरि तणा गुणने कहे, तीर्थंकर भगवंत; सनातनगिरि मानथी, शिव लहे जीव अनंत. सुरभिगिरि दुर्गंधा नारी इणगिरि, गजपद कुंडे स्नान; बनी सुगंधी देहडी सुरभिगिरिने प्रणाम. उदयगिरि उदय लहे शुभ कर्मनो, अशुभनो थाये जिहां छेद;
ओह गिरिना ध्यानथी, अंते लहे अवेद. १२ । तापसगिरि
तापस पण शिव सुख लहे, अहवो जेहनो प्रभाव; अष्ट कर्मनो क्षय करी, पामे आत्म स्वभाव. आलंबनगिरि आलंबन आपी रह्यो, सिद्धिसदन सोपान;
जे जे जीवडा तेह भजे, झट पामे शिवस्थान. १४ परमगिरि
गिरिवरोमां परमता, पामी जेह सौभाग्य; आनंद आपे सहु जीवने, दूर करी दुर्भाग्य. श्रीगिरि . श्री गिरि छे अक अहवो प्रिय वस्तुमां अजोड; भविक जीव झंखे घj, वरवा शिववधू कोड. . . सप्तशिखरगिरि · सातराज पहोंचाडवा, जे धरे सप्त शिखर; स्वगुण महेल प्रवेशवा, जे करे मोटुं विवर.
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१७ चैतन्यगिरि
चैतन्यशक्ति प्रगटतां, आत्मानंद जिहां थाय; तेह गिरिना स्मरणथी चैतन्यपूंज समराय. अव्ययगिरि व्यय होवे कर्मो तणो, वली अशुभ परिणाम; अव्ययगिरिने वंदता, शुद्ध स्वरुपने पाम. ध्रुवगिरि अह गिरि छे अनादिथी, काळ अनंत रहे जेह;
भूमितले ध्रुवपणे रही, शाश्वतता लहे तेह. २० निस्तारगिरि
सहसावने संयमग्रही, गजसुकुमाल मुर्णिद;
रैवत मसाणे शिव लही, निस्तारण गिरिंद. २२ पापहरगिरि
मातपिताने घातकी, गिरनारे आवंत;
भीमसेन मुगते गयो, पापहर गिरि सेवंत. २३ कल्याणकगिरि
अनंत कल्याणक जिन तणा, गिरि शृंगे सोहाय; ___ व्रत-केवल-मुक्ति लहे, कल्याणक गिरि जोवाय.
वैराग्यगिरि मेघ परे वरसे सदा, गिरि वैराग्य झरण; सिंचे आतम गुणने, परमानंद रमण. पुण्यदायकगिरि सुरतरु सम आराधता, पुण्यदायक गिरिराज;
ऋद्धि समृद्धि तत्क्षणमिले, वळी मळे सिद्धराज. २६ सिद्धपदगिरि
सिद्धपद अर्पण करे, जेह गिरिनी सेव; तिणे कारण वंदीओ सदा, अभेद थई तत्खेव.
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२७ दृष्टिदायक गिरि
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स्फटीक जिम छे उजळो, निरंजन निराकार; शुद्धतम इण गिरि करे; दीसे अंजन आकार. विश्रामगिरि
इण क्षेत्रे दान तप करे, क्रोड गणुं फळ पाम; अनंत ऋषि निर्मलपणुं, लहेशो गिरि विश्राम. ३१ पंचमगिरि
| ३२
३३
| ३४
मिथ्यादृष्टि भमता भवे, पामे गिरि शरण; सुदृष्टि लहे पंथें रही, दृष्टिदायक चरण. इन्द्रगिरि
पडिमा भरावी सुरवरे, पूजा करे त्रिकाळ; चैत्यद्वारे रक्षा करे, इन्द्र थई रखेवाळ. निरंजनगिरि
| ३५
स्पर्शो पंचम शिखरे, शिवगामी नेमि चरण; वरदत्त गणधर पूजो, पामो चरण शरण. भवच्छेदकगिरि
भावनिर्वेद करी मुनिवरो, अनशन तपे तपंत; भवच्छेदकगिरि वंदता, अजरामर पद लहंत. आश्रयगिरि
द्रव्यभाव शत्रुहणे, आपे मन वांछित; गिरिवरो आश्रय लहे, विश्व बने आश्रित. स्वर्गगिरि
देवो वास करे जिहां, करवा जनम पवित्र; जाणे स्वर्ग वस्युतिहा, तिणे स्वर्गगिरि सिद्ध. समत्वगिरि
समत्वगुण विलसी रह्यो, महागिरि कणे कण; स्मरण दर्शन स्पर्शने, दीये अनुभव मण.
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manageraRamanan
अमलगिरि भव्यरुपी कमळ खीले, ज्ञानोद्योतगिरि तेज; गुणश्रेणी प्रकाशमां, पामी सिद्धिनी सेज. . गुणनिधि गुणनिधि ओ गिरि थयो, अनंत जिननो ज्यां; प्रगट्यो निज स्वरुपनो, अकल अमल गुण त्यां.. स्वयंप्रभगिरि स्वयंप्रभा खीली रही, जेनी अनादि अनंत; तेह गिरिने वंदता, दोष टळे अनंत. अपूर्वगिरि
.. ओ गिरनारने भेटतां, अपूरव उल्लसे देह;
करमदल चरण करी, पामे भविसुख तेह. |४१ पूर्णानंदगिरि
आनंद पूरण जेहना, फरसे ध्याने जेह; पूर्णानंदगिरि तेहनु, नाम थयुं जगतेह. अनुपमगिरि वानरीमुख नृपअंगजा, इणगिरि झरणपसाय; . अनुपम मुखकमल लही, पामे शिव सुखसदाय. प्रभंजनगिरि प्रभंजनगिरि अहथी, पाप प्रणाशन थाय; पुण्यपूंज करी अकठो, सुखपामे वरदाय. प्रभवगिरि प्रभवगिरिना प्रभावथी, तिणे शिवपाम्या अनंत; पामे छे ने पामशे, लब्धि लही अनंत. अक्षयगिरि हिम सम शीतळता हुवे, करे जीव समतापान; आतम सत्ता प्रगट करी, अक्षयपद विसराम.
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४६ रत्नगिरि
रत्नबलाह गुफामंही, रत्नपडिया शोभंत;
देव सहाये दरिसण, निकट भवि लहंत. ४७ प्रमोदगिरि
प्रमोद लहे गिरि दर्शने, पूर्णता स्पर्शे पमाय; गढ गिरनारनी सहजता,जेह सदा सुखदाय. प्रशांतगिरि प्रकर्षथी करे शांत देह, कर्म वंटोळ अतीत; प्रशांत गिरिवर तेह छे, वंदु तेहने सदैव. पद्मगिरि पद्मतणी परे जिहां सदा, प्रसरे गुण सुवास;
तेह आपे भविं जीवने, मुक्ति सुख आवास. ५०. सिद्धशेखरगिरि
सिद्धो थकी शेखर थयो, अन्य गिरिमां तेह;
अनन्त जिन निवासथी, पाम्यो मुक्तिरुपे जेह. ||५१ चंद्रगिरि
चंद्रसम शीतळपणुं, आपे जीवने जेह; पाप संताप टळे इहां, सुख पामे ससनेह.. सूरजगिरि सूरज सम प्रतपे बहु, सर्व गिरिमां तेह; .
तेहथी सूरजगिरि का, नाम अनुपम जेह. ५३ इन्द्रपर्वतगिरि
देवोतणा परिवारमां, शोभे इन्द्र महाराय; तिम गिरिमाळ मांहे, शोभे तीरथराय. आत्मानंदगिरि । आत्म आनंद जिहां लहे, अनुभवे निरमल सुख; काल अनादिना टळे, मिथ्या मतिना दुःख.
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५५ आनंदधरगिरि
आत्मानंदने पामवा, मुनिवर कोडा कोड; आनंदधर ओ गिरिवरे, करतां दोडा दोड: सुखदायीगिरि सुखदायी ओ गिरि थयो, आपी अनंत सुखशात; तेहने पामी भवितणा, टळी गया दुःख व्रात. . भव्यानंदगिरि अनंत सिद्ध जिहां थया, करी अनशन शुभ भाव;
भव्यानंद पामी करी, विलसे निज स्वभाव. ५८ परमानंदगिरि
, परमानंदने पामतो, दरिसण लहे भवि जेह; तेह परम पदवी भणी, गतिलहे ससनेह. इष्टसिद्धिगिरि सर्व शाश्वती औषधि, सुवर्ण सिद्धि रसकूप; पुण्यशाळीने गिरि दीये, इष्टसिद्धि अनुप. . रामानंदगिरि आतमराम आनंदमां, झीले जेहनो संग, रामानंदगिरि वंदता, पामो सुख असंग. भव्याकर्षणगिरि भव्याकर्षणगिरि प्रति, प्रीत भविने अतीव; जिन अनंतनी प्रगति, आकर्षे ते भविजीव. दुःखहरगिरि गोमेधे घणुं दुःख लद्यं, रोगे पीडीयो भमंत; थयो अधिष्ठायक गिरि, दुःखहर गिरि भजंत. शिवानंदगिरि
शिवनो आनंद जे गिरि, चढतां अनुभवे जीव; ___अहवा ते शिवगिरि प्रति, प्रगट्यो नेह अतीव.
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६४ उज्वलगिरि .
इण गिरिनी उज्वलप्रभा, प्रसरे चिंहु दिशे ज्यांय; तिहा थकी तिमिर सहु, झटपट नासे त्यांय. आनंदगिरि आनंदना जिंहा समुह छे, अनंत जिननां जेह; तेह फरसी भवि लहे, रहेना फलेशनी रेह. तीर्थोत्तमगिरि ओ तीरथने भेटतां, सर्व तीरथ फललाध; ते तीर्थोत्तम प्रणमतां, सुख मले अव्याबाध. महेश्वरगिरि आणा महेश्वरगिरि तणी, त्रण लोके वर्ताय;
अनंत कल्याणकनी जिंहा, आर्हन्त्य शक्ति समाय. ६८ · रम्यगिरि
रम्यता ओ गिरि तणी, देखी मोर्खा मन; देवो अने विद्याधरो, आवे दोडी प्रसन्न. बोधिदायगिरि सदा काळ जे वरसतो, गिरि प्रभाव अमंद; बोधि बीज वपनकरे, बोधिदाय निर्मद. महोद्योतगिरि नेमीश्वरने गिरि श्यामलो, मन मोहे दिन रात; महोद्योत भीत करे, गुण पेखी सुख शात. अनुत्तरगिरि अरिहंत ध्यान परमाणुने, ग्रहे अर्हम् पद योग;
साधे जे भवि ते लहे, अनुत्तर सुखनो योग. |७२ प्रशमगिरि
प्रशमगुण जिंहा उपजे, फरसता जीवने ज्यां; तिणे कारण गिरि स्पर्शथी सुख पामो भवि त्यां.
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बाग
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मोहभंजकगिरि मोहे पीडीत जीवडा, आवे गिरि सानिध; सम्यक्त्व पामी शिव लहे; मोहभंजक गिरि किध. परमार्थगिरि अनंत काळथी प्राणीया, सेवे स्वार्थीय भाव; गिरि चरण शरण ग्रही, प्रगटे परमार्थ भाव. शिवस्वरुपगिरि मन-वच-काया वशकरी, योगी सेवे गिरि आज; शिव स्वरुप रस लीये, बनी सदा शृंगराज. ललितगिरि गिरि हारमाळाओ महीं, मनोहर रुप लहंत; तेह गिरि निरखी भवि, ललितगिरि वदंत. . अमृतगिरि अमृतसम दरिसण लहि, पामे भव्यत्व छाप; अमृतगिरि तणी सेवा करे, तेना टळे सवि पाप. दुर्गतिवारणगिरि आ भवे परभव भावथी, रैवत भक्ति करंत; .. दुःख दरिद्र दुर्गति टळे, दुर्गतिवारण नमंत. कर्मक्षायकगिरि कर्मविडंबना जीवने, वळगी काळ अनंत; कर्मक्षायक गिरि सेवतां, आतम मुक्ति लहंत. अजेयगिरि अजेय जे सवि शत्रुन, चिंता सवि दूर जाय; रागद्वेष जीती करी, अरिहंत पदने पमाय. सत्त्वदायकगिरि रजस् तमो गुणी आवी, गिरिवर पाद चढंत; - सत्त्वदायक गिरि बळे, क्षपक श्रेणी धरंत.
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विरतीगिरि
परमाणु जे सहसावने, दिये विरती परिणाम;
अंतराय सवि दूरे करी, सप्त गुणठाणुं पाम. व्रतगिरि
हरि पटराणीने यादवो, प्रद्युम्न शांब कुमार; व्रतगिरि व्रत ग्रही, पाम्या भवनो पार. संयमगिरि
जिन अनंता सहसावने, नेमिप्रभु ठवे पाय;
संयम ग्रही मन - पर्यवी, ध्यानधरी मुगते जाय. सर्वज्ञगिरि
रवि लोक प्रकाशतो, सर्व लोका लोक; मोह तिमिर दूरे टळे, चेतन शक्ति आलोक. केवलगिरि
. ओक ओक प्रदेशमां, गुण अनंतनो वास; इणगिरि केवल लइ, भोगवे लील विलास. ज्ञानगिरि
सहजानंद सुख पामियो, ज्ञान रस भरपूर; तेहना बळथी में हण्यो, मोह सुभट महाक्रूर. निर्वाणगिरि
जे गिरिओ अनंता, निर्वाण पाम्या जिन; ते निर्वाणगिरि पर, कोई नहिं दीन हिन. तारकगिरि
आंगणुं ओ गिरि तणुं, पामे जल थल जेह; भव सातमे मुक्ति लहे, तारकपणुं गुण गेह, शिवगिरि
राजीमतिने रहनेमि सहसावने दीक्षा लीध; वळी शिवपद पामिया, इणगिरि अनशन कीध.
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९१ हंसगिरि
हंस परे निर्मल करे, परिणती शुद्ध सदाय; जेह गिरि सांनिध्यथी, अनुपम गुण पमाय. ९२ विवेकगिरि
विवेकगिरि आतम तणो, देह थकी जे भिन्न; ध्यान धारा मांही लहे, परम सुख अभिन्न. |९३ मुक्तिराजगिरि
मुगतिना मुगट समो, शोभे से गिरिराज; मुक्तिराज अ गिरि थयो, आपे सिद्धनुं राज. ९४ मणिकांतगिरि
मणिसम कान्ति जेहनी, दीपे सदा दिनरात; भविक लोकनी दृष्टिमां, दीसे ते भलीभात. ९५ महाशयगिरि
महान शयने पामियो, अनंतजिन जिहां सिद्ध; तेहनी तुलनामां नहीं, अन्य कोई प्रसिद्ध. ९६ अव्याबाधगिरि
त्रण लोकमां सुरनरो, गिरि आकार पूजंत; संसार बाधा छेदीने, अव्याबाध भजंत. ९७ जगतारणगिरि
जगतना जीव सहु, पामी तरे संसार; अह गुण छे गिरितणो, न लहे फरी अवतार. ९८ विलासगिरि
ओ गिरिनो विलास जे, प्रसरे त्रिहु जगमांय; आतम शक्ति प्रटाववा, भविजन आवे त्यांय. ९९ अगम्यगिरि
अगम्य गुण छे जेहना, पार न पामे कोई; केवली अह जाणी शके, कही न शके ते जोई. १०० सुगतगिरि
प्राचीन पडिमां विश्वमां, दरिसणे दुर्गति जाय; पूजो प्रणमो भावथी, सुगतिगिरिना पाय.
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१०१ वीतरागगिरि
कर्म रेणु दूरे करे, रैवत भक्ति समीर;
वीतरागगिरि भणे, मुक्त बनी रहे स्थिर. १०२ चिंतामणीगिरि
भाव चिंतामणि गिरि दिये, गुणरत्नो क्रोडा क्रोड;
ईच्छित सर्व शिघ्र फळे, भेटवा मन धरे दोड. ||१०३ अतुलगिरि
अनंत कल्याणको थकी, मेरु सम गिरि अतुल;
अन्य गिरि तुलना नहीं, भाखे ऋषभ अमूल. १०४ महावैद्यगिरि
भव रोग पीडतो मने, जन्मजरा मृत्य दुःख;
गुण योगे रोग वारजो, महावैद्यगिरि दीपे सुख. १०५ पावनगिरि । . त्रस स्थावर गिरि खोळे, कर्म मळथी अपवित्र;
"मा" बाळने पुनित करे, तिम पावनगिरि करे हित. १०६ अचळगिरि
विकल्याणक परमाणुओ, काळ असंख्य अविचळ;
रत्नत्रयी अविचळदीये, अचळगिरि परिबळ. |१०७ लब्धिगिरि
अनंत लब्धि इहां उपनी, गणधर मुनि महंत;
आत्म लब्धिगिरि नमो, भावे भजो भगवंत. |१०८ सौभाग्यगिरि
अकसो आठ शिखर महीं, सौभाग्यशाळी गिरि शंग; विकल्याणक इण गिरि, रहे प्रतिकाळ उत्तंग. गुणकेटला गिरि तणा, गाइ शकुं मति मंद; बृहस्पति न गणी शके, गुणवंतगिरि अमंद.
श्री गिरनारजी महातीर्थना शास्त्राधारे छ आराना छ नामो जोवामां आवे छे, परंतु तीर्थभक्ति माटे तेना विविध गुणानुसार
आ १०८ नामो तथा दुहानी रचना करवामां आवेल छे.
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यात्रा करता पहेला आ खास वांचो
जगमां तीरथ दो वडां, शत्रुजय गिरनार, एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेम कुमार
शुं आप आ गिरनार महातीर्थनी यात्रा करवा आव्या छो? | शं आप गिरनार महातीर्थनो महिमा जाणो छो? नहीं? तो आवो आ गिरनार महातीर्थनी अपंरपार महिमानी आछी झलक जोइए ! १ आ पावनभूमिमां वहेता वायुमां अनंता तीर्थंकरोना दीक्षा अवसरना वैराग्यनी
सुवास प्रसरेल छे.... आ पावनभूमिमां अनंता तीर्थंकरोना केवलज्ञाननो प्रकाश फेलायेलो छे... आ पावनभूमि अनंता तीर्थंकरोना सिद्धिपदनी महेकथी मघमघायमान छे... आ पावनभूमिमां विश्वना प्राचीनतम श्री नेमिनाथ परमात्मानी प्रतिमाजी बिराजमान छे. आ पावनभूमिथी आवती चोवीसीना चोवीसे चोवीस तीर्थंकर परमात्मा परमपदने प्राप्त करवाना छे... आ पावनभूमिनी उपासनाथी अतिचीकणा एवा गाढ निकाचित कर्मो पण नाश थइ जाय छे... आ पावनभूमि उपरथी विश्वनी प्रत्येक वनस्पति, औषधि, जडीबुट्टीनी प्राप्ति थाय छे... आ पावनभूमिमां वसनारा जानवरो पण आठमां भवमां सिद्धपदने पामे छे... आ पावनभूमि उपर शुद्धभावथी दान-शील-तप-भावधर्मनी कोईपण
आराधना करवामां आवे तो शीघ्र मोक्षपदनी प्राप्ति थाय छे... १० आ पावनभूमिर्नु घरबेठां पण शुभभावपूर्वक ध्यान धरवामां आवे तो चोथा
भवे मोक्षनी प्राप्ति थाय तो त्यां करेल आराधना तो क्या पहोंचाडे ?.... ११. आ पावनभूमि उपर आकाशमा उडता पंखीनो पडछायों पण पडे तो तेना
भवोभवतणां दुर्गतिना फेरा पण टळी जाय छे...
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१२ आ पावनभूमि सहसावन मध्ये श्री नेमिनाथ परमात्माना प्रथम अने अंतिम समवसरणनी रचना करोडो देवो द्वारा करवामां आवी हती...
| १३ आ पावनभूमिमां सहसावनमां साध्वीवर्या राजीमती श्री सिद्धपदने पाम्या
हता...
★ सहसावन कल्याणकभूमिनी स्पर्शना - दर्शन-पूजन कर्या वगरनी आपनी गिरनार यात्रा अधुरी रही जाय छे. पहेली ट्रंकनी यात्रा करी कल्याणकभूमिनी स्पर्शना कर्या वगर नीचे पाछा आववुं ते परमात्मानी कल्याणकभूमिनी महाआशातना छे.
सहसावनमां संप्रतिकालीन श्री नेमिनाथ परमात्मा सहित चौमुखजी प्रतिमाजी विशाळ समवसरण मंदिरना मूणनायक छे. त्यां श्री नेमिनाथ परमात्माना काळमां ज बनेली जीवितस्वामी श्री नेमिनाथनी अने श्री रहनेमिजीनी प्रतिमा सिद्ध अवस्थामां छे. गुफामां प्रभावक श्री नेमिनाथ परमात्मानी प्रतिमा छे.
सहसावनमां श्री नेमिनाथ परमात्मानी दीक्षा - केवळज्ञान कल्याणकनी प्राचीन देरी पण छे.
सहसावन तीर्थना उद्धारक, साधिक ३००० उपवास अने ११५०० आयंबिलना घोर तपस्वी प.पू. आ हिमांशुसूरि महाराजनी अंतिम संस्कार भूमि पण छे.
सहसावन कल्याणभूमिनी यात्रा केम करवी ?
श्री गिरनारनी पहेली ट्रंक (३८३९ पगथीया) थी २८० पगथीया चडी गौमुखी गंगाना मंदिरनी पहेला डाबी बाजु वळीने थोडुं चालता सेवादासनो आश्रम आवे छे. त्यांथी १३०० पगथीया उतरता विशाळ सहसावन समवसरण मंदिर आवे छे. त्यांथी ७० पगथीया उतरता केवणज्ञान, दीक्षाकल्याणकनी प्राचीन देरी आवे छे. पाछा ५० पगथीया चडीने तळेटी रस्ते ३२०० पगथीया उतरीने | अडधो किलोमीटर चालता तळेटीनी धर्मशाळा आवे छे.
सहसावन जवा माटेनो बीजो रस्तो
जय तळेटी, आदिनाथ मंदिर तथा श्री नेमिनाथ भगवाननी चरणपादुकाना मंदिरमां दर्शन करीने २५ डगला पाछा फरीने जमणी बाजु दिगंबर धर्मशाळांनी
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बाजुमांथी नीकळीने अडधो किलोमीटर चालीने ३० सहेला पगथीया चडीने सहसावन पहोंची शकाय छे. त्यांथी १३०० पगथीया चडीने थोडुं चाल्या पछी २८० पगथीया | उतरवाथी श्री नेमिनाथ परमात्मानी पहेली टूंकना मंदिरमां पहोंची शकाय छे. चारपांच यात्रिको साथै जवाथी आ रस्ते खतरानुं कोइ कारण रहेतुं नथी.
★ सौथी पहेला गिरनार महातीर्थनी जय तणेटीनुं चैत्यवंदन करवुं.
पहाडना पांचमा पगथीया पर श्री नेमिनाथ परमात्मानी चरणपादुकानी देरीमां चैत्यवंदन करवुं.
गिरनारनी पहेली ट्रंकनी तरफ ३८३९ पगथीया चडती वखते आ पवित्रभूमिनी आशातना न थाय तेम मनमां पवित्रता राखवा टेपरेकोर्डर, मोबाइल अने रस्तामां मस्ती-मजाक न करता परमात्मानुं नाम स्मरण करता तीर्थंकरनी कल्याणक भूमिनी स्पर्शना करवानी शुभ भावना साथे चडवुं. यात्रा दरम्यान नीचे द्रष्टि राखीने धीरे धीरे जयणापूर्वक जीवदयानुं पालन करवुं जोइए.
यात्रा दरम्यान कोईनुं मन कलुषित न थाय अने मर्यादानुं पालन थाय एवा वस्त्रो पहेरीने यात्रा करवी.
यात्रा दरम्यान कोइ साथे कषाय न थाय अने कठोर वाक्य न बोलाई जाय माटे मौनपूर्वक शांतिथी यात्रा करवानो आग्रह राखवो.
पहेली टूंके पहोंचीने श्री नेमिनाथ परमात्माना दर्शन करी स्नान करीने तैयार थवुं. जो पक्षालने थोडो समय वार होय तो अंदरना त्रण मंदिर (१) मेरकवसी (२) सगरामसोनी अने (३) कुमारपाणना मंदिरना दर्शन-पूजन करशो. पछी मूळनायकनी पक्षाल पूजा करीने आजुबाजुनी देरीनी पूजा करशो. पछी मूणनायकनी पूजा करीने बहारना मंदिरमां दर्शन-पूजन करवा जशो. जो सामान लईने बहारना मंदिरनी पूजा करवा जाओ तो चौमुखजी मंदिर अने रहनेमिजी मंदिरनी पूजा करीने सीधा सहसावन कल्याणकभूमि तरफ जई शकाय छे. त्यां समवसरण मंदिरमां पूजा - चैत्यवंदन करीने दीक्षा - केवणज्ञान कल्याणकोनी प्राचीन भूमिनी पूजा स्पर्शना करीने चैत्यवंदन करीने तळेटी तरफ उतरवानुं शरु करी शकाय छे. सहसावनमां भातु आपवामां आवे छे.
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गिरनार महातीर्थना पांच चैत्यवंदन
(१) जय तळेटी नेमिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन.
(२) जय तळेटीमां श्री नेमिनाथ भगवाननी चरणपादुकानुं चैत्यवंदन. (३) पहेली ट्रंकमां श्री नेमिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन.
(४) भमती ना भोंयरामां श्री अमीझरा पार्श्वनाथनुं चैत्यवंदन अथवा.
नेमिनाथ भगवाननी चरणपादूकानुं चैत्यवंदन. आ सिवाय जो समय होय तो ज्यां थइ शके त्यां चैत्यवंदन करी शको छो. सहसावनमां (१) समवसरण मंदिर (२) दीक्षा कल्याणकनी प्राचीन देरी (३) केवळज्ञान कल्याणकनी प्राचीन देरीनुं चैत्यवंदन करवुं.
श्री नेमिनाथ टूंकना मंदिरनी माहिती (१) मूळनायक श्री नेमिनाथनुं मंदिर - श्री नेमिनाथ भगवान जगमाल गोरधननुं मंदिर - श्री आदिनाथ भगवान अमिझरा पार्श्वनाथनुं भोंयरु - अमिझरा पार्श्वनाथ भगवान मेरकवशीनुं मंदिर - श्री पार्श्वनाथ भगवान
अदबदजी मंदिर - श्री ऋषभदेव भगवान पंचमेरुनुं मंदिर -
अष्टापदजीनुं मंदिर - २४ भगवान
(३) सगराम सोनीनुं मंदिर
२४ भगवान
(४) कुमारपाळनुं मंदिर - श्री अभिनंदन स्वामी
(५) मानसंग भोजराजनुं मंदिर - श्री संभवनाथ भगवान
(६) वस्तुपाल - तेजपालनुं मंदिर - श्री शामळा पार्श्वनाथ भगवान
(७) गुमास्तानुं मंदिर श्री संभवनाथ भगवान
(८) संप्रतिराजानुं मंदिर - श्री नेमिनाथ भगवान | (९) ज्ञानवावनुं मंदिर श्री संभवनाथ भगवान
(१०) चंद्रप्रभ स्वामिनुं मंदिर - श्री चंद्रप्रभ स्वामी, गजपद कुंड - (११) मलवालानुं मंदिर - शांतिनाथ भगवान
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(१२) धरमचंद हेमचंदनुं मंदिर - श्री शांतिनाथ भगवान (१३) चौमुखजीनुं मंदिर - श्री नेमिनाथ भगवान (१४) रहनेमिनुं मंदिर - श्री रहनेमि सिद्ध भगवान * गौमुखीगंगामां चोवीस भगवानना पगला ★ अंबाजी ढूंकमां श्री नेमिनाथना पगला ★ गोरखनाथ ढूंकमां प्रद्युम्नना पगला ★ ओघड ट्रंकमां श्री नेमिनाथना पगला तथा प्रतिमा ★ पांचमी ढूंकमां श्री नेमिनाथना मोक्षकल्याणकना पगला तथा प्रतिमा
सहसावन कल्याणकभूमि : . . H) समवसरण मंदिर Gi) प.पू.आ.हिमांशुसूरिजीम. नी अंतिमसंस्कार भूमि . (ii) केवळज्ञान कल्याणकनी प्राचीन देरी (iv) दीक्षाकल्याणकनी प्राचीन देरी
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परमात्मा भक्तिना अंते संकल्प
हे परमात्मा... हे वीतरागदेव... हे देवाधिदेव...
मारा जीवे अनंता भवमां करेला दुष्कृत्यो तेमज चालु भवमां करेला | दुष्कृत्योनी निंदा कर छं. भविष्यमां दुष्कृत्य माराथी न थाय तेवी आपने प्रार्थना करु छु.
हे परमात्मा !
मारा जीवे अनंता भवमां करेला सुकृत्यो तेमज चालु भवमां करेला सुकृत्योनी अनुमोदना कर छं. भविष्यमां सुकृत्य करवानुं चालु रहे तेवी आपने प्रार्थना कर छु.
हे परमात्मा...!
सुकृत्य करनार व्यक्तिओमां अग्रगण्य श्री अरिहंतदेव, सिद्ध भगवंतो, | आचार्य भगवंतो, उपाध्याय भगवंतो, साधु भगवंतो, महाश्रावक एवा देशविरतिधर सम्यग्द्दष्टि आत्माओ, सम्यग्द्दष्टि देवो तथा मनुष्योना त्रणे काळना सुकृत्योनी आपनी समक्ष अनुमोदना कर छु.
हे परमात्मा...!
मारे कोइनीय साथे वैर नथी, कोई मारी साथे वैर राखे नहि. दरेक जीवोने हुं भावपूर्वक खमावुं छं. दरेक जीवो मनें भावपूर्वक खमावे.
हे परमात्मा !
देवोनी पासे ज वैक्रिय लब्धि होय छे तेवी लब्धि मने आपो जेना कारणे भूतकाळमां जे कोई तीर्थंकरो थई गया, भविष्यकाळमां जे कोई तीर्थंकरो थवांना अने वर्तमानकाळमां जे कोई तीर्थंकरो विचरी रह्या होय ते दरेक तीर्थंकरोमां एक-एक तीर्थंकरना अनंता अनंत जिनालयो बनावं. तेमां अनंती - अनंत प्रतिमाओ भरावं. दरेक प्रतिमा समक्ष मार एक-एक स्वरुप मूकी अष्टप्रकारी पूजा तेमज स्नात्र पूजा वगेरे उत्कृष्ट कोटीनी भक्ति भावना करूं.
तेमज वर्तमानकाळमां त्रणे लोकमां ज्यां ज्यां जिन प्रतिमा होय ते दरेक
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प्रतिमा समक्ष मारु एक-एक स्वरुप मूकी उत्कृष्ट कोटीनी भक्ति भावना स्नात्र पूजा वगेरे क.
प्रभु! मारी आ आजनी जिनेश्वर परमात्मानी भक्तिना प्रभावे आखा जगतनुं कल्याण थाओ, विश्वमात्रमा जैनशासन, साम्राज्य प्रवर्तो ! जिनशासनना स्थावर जंगम तीर्थोना प्रभाव सर्वत्र व्यापी जाओ ! पूजनीय साधु साध्वीजी भगवंतोना संयमजीवन शक्यत : निरतिचार थाओ ! मने सम्यग्दर्शन, सम्यगज्ञान अने सम्यग्चारित्रनी साथे मोक्ष पदनी प्राप्ति थाओ.
अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडम्.... .
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अमासना दिवसे कल्याणकारी ।
कल्याणकभूमिनी स्पर्शना देवांगना ने देवताओ, जेनी सेवना झंखता, मळी तीर्थकल्पो वळी, जेना गुणलां गावता,
जिनो अनंता जे भूमिए, परमपदने पामता, .. ए गिरनारने वंदता, मुज जन्म आज सफळ थयो. शास्त्रकारो फरमावे छे के... .
गिरनार महातीर्थनी मध्ये आज पर्यंत अनंता तीर्थंकर परमात्माना दीक्षाकेवळ अने मोक्ष कल्याणक थयेल छे तथा अन्य अनंता तीर्थंकर परमात्माना मात्र मोक्षकल्याणक थया छे. ___ आ महातीर्थ उपर थयेल अनंता तीर्थंकरना कल्याणक दिनोनी तिथि तथा चोक्कस स्थानथी पण आपणे आजे अज्ञात छीए त्यारे आपणा जन्मो जन्मना अज्ञान तिमिरने दूर करवा... ___चालो ! श्री नेमिनाथ प्रभुना केवणज्ञान कल्याणकनी मासिक तिथिना दिवसे आ कल्याणकभूमिनी स्पर्शना-भक्तिनी साथे साथे भूतकाळमां थयेल अनंता तीर्थंकर परमात्माना दीक्षाकल्याणक, केवळज्ञानकल्याणक अने मोक्ष कल्याणकनी पावनभूमिनी पण स्पर्शना-भक्तिनी आराधना द्वारा आपणा अनंताजन्मोना विषय-कषायना कर्ममलने दूर करी आत्मकल्याणनी आराधना करीए.
श्री नेमिप्रभुना केवळज्ञान कल्याणक अवसरे अमासना दिवसे करोडो देवताओ द्वारा समवसरणनी रचना थइ हती त्यारे श्री नेमिप्रभुना शासनना तथा श्री गिरनारजी महातीर्थना अधिष्ठायिका देवी तरीके अंबिकादेवीनी स्थापना पण थइ हती.
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बालब्रह्मचारी श्री नेमिप्रभना कल्याणक दिन
च्यवनकल्याणक ___ - आसो वद १२ शौरीपुरी जन्मकल्याणक ___- श्रावण सुद ५ शौरीपुरी दीक्षाकल्याणक - श्रावण सुद ६ सहसावन (गिरनार) केवळज्ञानकल्याणक - भादरवा वद अमास सहसावन (गिरनार) मोक्षकल्याणक - अषाढ सुद ८ पांचमीट्रॅक (गिरनार)
दर मासनी अमासे गिरनारजी महातीर्थनी
यात्रा करवा अवश्य पधारो...
જ
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________________ गिरनारनो महिमा न्यारो... तेनो गाता ना आवे आरो... नित्यानित्य स्थावर जंगमतीर्थाधिकं जगत् त्रितये / / पर्वसु ससुरेन्द्राय॑ः, स जयति गिरनार गिरिराजः // (श्री गिरनार महातीर्थकल्प - श्लोक - 20) / त्रण जगतमां रहेला नित्य अनित्य अर्थात् शाश्वत - अशाश्वत स्थावर जंगम तीर्थोथी जे अधिक श्रेष्ठ छे अने पर्व दिवसोमां देवो सहित इन्द्रो जेने पूजे छ, ते गिरनार गिरिराज जय पामे स्वर्भूमूस्थ चैत्ये वस्याकारं सुरासुरनरेशाः / सं पूजयन्ति सततं, स नयति गिरनार गिरिराजः // (श्री गिरनार महातीर्थकल्प - श्लोक - 5) / स्वर्गलोक, पाताळलोक अने मृत्युलोकना चैत्योमां सुर, असुर अने राजाओ जेना आकारने हमेशा पूजे छे ते श्री गिरनार गिरिराज जय पामे छे. अन्यस्था अपि मबिनो, यद्ध्यानाद् धातिकर्ममलमुक्तः। सेत्स्यंति भवचतुष्के, स जयति गिरनार गिरिराजः // (श्री गिरनार महातीर्थकल्प - श्लोक - 19) __ बीजा स्थानमां पण रहेला (अर्थात् गिरनारथी दूर घर-दुकान-देश-विदेश गमे ते स्थानमां पण रहीने) जे भव्य जीवो गिरनारनुं ध्यान धरे छे ते जीवो धातीकर्मना मल दूर करी चार भवमां मोक्ष पामे छे, ते श्री गिरनार गिरिराज जय पामे छे. अन्यत्रापि स्थितः प्राणी, ध्यायन्नेनं गिरीश्वरम / / आगामिनी भवे भावी, चतुर्थे किल केवली / / (वस्तुपाळचरित्र - प्रस्ताव - 5, श्लोक - 85) / अन्य स्थाने (गिरनार सिवाय) पण रहेलो जीव आ गिरनार गिरीश्वरनुं ध्यान धरे तो ते आगामी चार भवमां केवलीपणाने पामी, मोक्षपदने प्राप्त करे छे. / महातीर्थमिदं तेन, सर्वपापहरंस्मृतम् / / शत्रुजयगिरेरस्य, वन्दने सदृश फलम् // विधिनास्य सुतीर्थस्य, सिद्धान्तोक्तेन भावतः / एकशोऽपि कृता यात्रा, दत्ते मुक्तिं भवान्तरात् // (वस्तुपाळचरित्र - प्रस्ताव - 5, श्लोक - 80/81) / गिरनारनो अनेरो महिमा होवाथी आ गिरिवरने सर्व पापने हरण करनार कहेल छ तथा शत्रुजय अने गिरनारने वंदन करवामां बनेनुं एकसर फळ कहेवामां आवेल छे. . आ गिरनार महातीर्थनी शास्त्रानुसार भावपूर्वक एकपण यात्रा करवामां आवे तो ते ___भवान्तरमा मुक्तिपदने आपनार बने छ. गिरनार तीर्थनी यात्रा करवा वर्षमा एकवार आववानो संकल्प करवो.