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चारित्र्यमां मुज मन वसो ... |
★ चारित्र जो ना होय तो सुज्ञान पण निष्फळ रहे ! चारित्र जो ना होय तो सद्दर्शनम् निर्बळ रहे ! सुज्ञान दर्शन पण सदा चारित्रयुक्त सफळ रहे ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! १ ★ चूमे निरंतर देवता चारित्रधरना चरणने ! झंखे निरंतर इन्द्र पण चारित्रना आचरणने ! चाहे निरंतर चित्त मुज चारित्रधरना शरणने ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! २ ★ षखंड महासाम्राज्यमां पण जे महादुःख देखता ! ते चक्रवर्तीओ सदा चारित्रमा सुख देखता ! सिंहासने बेसे छतां चारित्र सन्मुख देखता ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! ३ ★ विश्वे अनंता काळथी चारित्रनो छे पथंडो ! आ पंथ पर चाल्या अनंता जिनवरो ने गणधरो ! आत्मा अनंता शिव वर्या चारित्रनो लई आशरो ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! ४ ★ समता-वरसती साधना, करुणा-छलकती दृष्टि छे ! चारित्रधरनी चोतरफ आनंदनी अमी वृष्टि छे ! संयम अने संतोषमय चारित्रधरनी सृष्टि छे ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो ! ५ ★ भिक्षुक जुओ एक ज दिवस चारित्र पाळीने थयो ! सम्राट संप्रति-शास्त्रमा जे धर्म उद्धारक कह्यो ! चारित्र जेने सांपड्यु, आखो जनम उत्सव भयो ! चारित्रमा मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमा वसो! ६