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विजय आनंदे श्री तपगणगणि वल्लभ सदा, नमो भावे शुध्धे मनवचन काया फळ तदा ... (४)
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गिरनार गिरिवर, नेमि जिनवर विश्वसुखकर देवरे, ज्योतिष व्यंतर, भुवनवासी नाकि सारे सेव रे, यदुवंश दिपक मदनज़ीपक बावीसमो नेमिनाथ रे, भावे भजो भवि भुवन हितकर मुक्ति केरो साथ रे ... १. प्रथम जिनेश्वर सिध्धि पाम्या अष्टापद गुणंवत रे, बासुपूज्य चंपा रैवताचल नेमि राजीमति कंत रे, नयरी अपापा वीर स्वामी समेतशिखर गिरि राय रे; तिहां वीश जिनवर मुक्ति पाम्या तास प्रणमु पाय रे २. अरिहंत वाणी सुणो प्राणी चित्ते जाणी सार रे, सिद्धांत दरियो रयण भरीयो भविकजन सुखकार रे; आगम आराधि भाव साधी नरनारी वली जेह रे, स्वर्गना सुख भोगवी पछी परम पद लहे तेह रे ३. अंबिका देवी यक्षगोमेध नेमि सेवा सारता, जिन धर्म वासिंत भविकजनना दुरित दूर निवारता, श्रीपुन्यविजय उवज्झाय सेवक भक्ते नामी शीश रे, गुणविजय करजोडी जंपे पुरो संघ जगीश रे ... (४)
(२५)
यदु कुलाम्बर भासन भास्करो, जनि शिवानि शिवातनयः सृजन्; नयतु नेमिजिनो जिन सम्पदं, सुजन मंजन मंजु तनुत्विषः
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