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गजवर गमनानां, वारिवाह स्वनानाम्,
हत मद मदनानां, मुक्तजीवासनानाम् ... (२) अविकल कल तारा, प्राणनाथं सु तारा, भवजलधि तारा, सर्वदा विप्र ताराः; सुरनर विन तारा, त्वार्हति गीर्बतारा, दनवर तमि तारा, ज्ञानलक्ष्मी सुतारा ... (३)
नयन जीत कुरंगि, कांशु धारो चिरंगि, मिह किल मुहु रंगि, कृत्य चित्तां तरंगि; स्मृतिः सुचिरंगि, देवतां य स्तुरंगि, कुरूत इम मुरंगि, त्यादि कृत् बंधुरंगी ... (४)|
(२३) यदुवंशाकाशे उडुपतिसमा नेमिजिनजी !, शरीरे रंभा भारती मदहरी राजुल तजी; ग्रही दीक्षा भारी भविजन विबोधे दिनकरी !, करो दृष्टि सवामी हरिणपशु जैसे हितकारी ...(१)
गया मुक्ति स्वामी गिरिशिखर उज्जंत शिरसी !, अपापामां वीर शिवसुख अनंत विफरसी; ज्याभू चंपामां धवलगिरि श्री आदिजिनजी !,
समेता आनंदामृत रस कर्या वीस जिनजी ... (२) अनेकांत स्याद्वादनयगम भंगा विविधसु !, यजे आहीं तीर्थांतर सवबुधै कीट स प्रसु; निहारी वाणी जो जिननी सय पंचासय विहा, सुधा धारा सारा जिन मुख थकी निर्गत सुहा...(३) .
अधिष्ठात्री अंबा प्रवचन नमे नेमिजिनजी, कुरोगो ने धोई सतत सुख शांति अति घणी;