SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्योम स्फारविमानतूरनिनदै: श्री नेमिभक्तं जनं, प्रत्यक्षामर साल पादपरतां वाचालयन्ती हितम् ; दध्यान्नित्यमिताऽऽम्र लुम्बिलतिका विभ्राजिहस्ताऽहितं, प्रत्यक्षामर सालपादरतां ऽम्बा चालयन्ती हितम् ... (४) (२१) कमलवल्लपंन तव राजते, जिनपते ! भुवनेश शिवात्मज, मुकुरवद् विमलं क्षणदावशाद्, हृदयनायकवत् सुमनोहरम् ... (१) सकलपारगतः प्रभवन्तु मे, शिवसुखाय कुकर्म विदारकाः; रूचिरमंगलं वल्लिवने घना, दशतुरंगम गौर यशोधराः (२) मदनमानजरानिघनोजिझता, जिनपते ! तववाग मृतोपमा, भवभतां भवता वशर्मणेच्छि, पयोधिपत ज्जनतारका (३) ... जिनपपादपयोरूहहंसिका, दिशतु शासन निर्जर कामिनी, सकलदेह भृताममलं सुखं, मुखविभाभर निर्जित भाधिपा .... (४) (२२) जित मद नम नेमे, तानि सन्नाथ नेमे, निरूपम शम नेमे, येन तुभ्यं विनेमे; निकृत जलधि नेमे, सीर मोह द्रु नेमे, प्रणिदधति न नेमे, तं परा आप्य नेमे... . (१) विगलित व्रजिनानां, नौमिराजीं जिनानाम्, सरसज नयनानां, पूर्ण चंद्राननानाम्; ૫
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy