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________________ घडियां धन्यतापाइ... ( राग : अखियां हरखन लागी हमारी ) घडियां धन्यता पाइ हमारी... गिरि गिरनार निरंजन सांई, देखत हरखन न माइ... दूर देशमें फिरत फिरत में, तुज भक्ति मन लाइ... बावीसमां जिन नेम नगीना, निरखत पाप धोवाइ... मूरत सुरत लागे मजानी, करत है भवकी जुदाइ... भव आवट में बहु पलटाइ, आतम गुण खुंदाइ... मोह महिपति केरी खाइ, दिन दिन मोटी खोदाइ ... जनम जनम में ममता करके, तुम आणा नहि ध्याइ... वरदत्तादिक कैकने तारी, दीधी निज प्रभुताई.... राजुलराणीने पण तारी, दीधी शिव पधराइ... श्रेयपदनी लगन लगाइ, द्यो दर्शन गुण सांई... श्री रे गिरनार भेटीने... ( राग : श्री रे सिद्धाचल भेटवा... ) श्री रे गिरनार भेटीने, हैये हरख न मायो; नेमिजिन भक्ति करी गिरिवर गुणमें गायो... श्री रे.... श्यामवरण तनु मनुं, देखी आनंद पायो; ब्रह्मेन्द्रे पडिमा भरी, लीधो अनुपम लाहो... श्री रे... तस पुण्यपसायेलीये, संयम नेमनी पास; वरदत्त गणधर थया, साधे सिद्धपद खास... श्री रे... दीक्षा नाण प्रभु नेमना, सहसावन मोझार; पंचमे गढ लहे तेह, शिवपदवी उदार... श्री रे.... १४७ १ २ ३ ४ ८ ९ १०
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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