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चाकरी मोहनी छोडवी, राजुलने शिवपुर दीध रे; आपे रैवतगिरि सजी, भीतर संयमघट लीघ रे... (७) श्रवण घरम योध्धा लडे, संवेग खडग धृति ढाल रे; भाला केस उपाडतो, शुभ भावना गडगडे नाळ रे... (८) ध्यान धारा शर वरसतो, हणी मोह थयो जगनाथ रे; मान विजय वाचक वदे, में ग्रह्यो ताहरो साथ रे... (९)
(१९) सुणो सैयर मोरी सुणो सैयर मोरी, जुओ अटारी आवे छे नेम कुमार; शिवा देवीनो ‘नंद छे वालो, समुद्र विजय छे तात, कृष्ण मोरारीनो बांधव वखाj, यादव कुळ मोझार रे, प्रभु नेम विहारी, बाळ ब्रह्मचारी, जुओ अटारी... १ अंग फरके छे जमणुं बेनी, अपशुकन मने थाय; जरूर व्हालो पाछो ज वळशे, नहि ग्रहे मुज हाथ रे, मने थया दुःख भारी, कहुं छु आभारी, जुओ अटारी रे... २ परणुं तो बेनी तेनेज परj, अवर पुरूष भाइ बाप; हाथ न ग्रहो मारो तो तेमने मुकावु मस्तके हाथ, हुं थावं व्रत धारी, बाळ ब्रह्मचारी, जुओ अटारी... ३ संयमधारी राजुल नारी, चाल्या छे गढ गिरनार; मारगे जाता मेघजी वरस्या, भी जाय सतीना चीररे, गया गुफा मोझारी, मनमां विचारी, जुओ अटारी... ४ चीर सुकवे छे सती राजुला , नग्न पणे तेणी वार; रहने मि तिहां काउस्सग्गे उभा, रूपे मोह्या तेणीवार, सुणो भाभी अमारी, थाव घरबारी, जुओ अटारी... ५
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