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________________ वमेला आहारने शुं करवो छे, सुणो दियर मोरी वात; मुजने वमेली जाणो देवरजी, शाने खोवो व्रत धीररे, संयम सुखकारी, पाळो आवारी, जुओ अटारी... ६ रहने मि मुनिवर राजमतिने, उपन्यु केवळ ज्ञान; चरम शरीरी मोक्षे पधार्या, साधवा आतम काजरे, वीर विजय आवारी, गाउं गुण भारी, जुओ अटारी... ७ (२०) थारों काम सुभट गयो ___ (राग - चांदीकी दिवार ना तोडी...) थाशुं काम सुभट गयो हारी, थारों काम सुभट गयो हारी; रतिपति आण वहे सौ सुरनर, हरि हर ब्रह्म मुरारि रे... थारुं... १ गोपीनाथ विगोपीत कीनो, हर अर्धांगित नारी रे; तेह अनंग कीयो चकचूरण, ए अतिशय तुज भारी... थारुं... २ ए साचुं जिन नीर-प्रभावे, अग्नि होत सवि छारी रे; ते वडवानल प्रबल जब प्रगटे, तब पीवत सवि वारि रे... थाशुं... ३ तेणी परे दहवट अति कीनी, विषय रति अरति नारी रे; .. नय विजय प्रभु तुहीं निरागी, तुं ही मोटा ब्रह्मचारी... थाशुं... ४ (२१) नेमि निरंजन नाथ - . राग - आज मारा प्रभुजी नेमि निरंजन नाथ हमारो, अंजन वर्ण शरीर; पण अज्ञान तिमिरने टाळे, जीत्यो मनमथ वीर... प्रणमो प्रेम धरीने पाय, पामो परमानंदा; यदुकुलचंदा राय ! मात शिवादेवी नंदा... प्रणमो प्रेम...१ . . ૧૭
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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