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________________ तुज द्रष्टिथी द्रष्टि मिले तो, द्रष्टि दोष टळे बधा, तुज मूर्तिमा मन जो भळे तो, निर्विकारी बने तदा; तुज स्पर्शथी महाब्रह्मनी, सिद्धि सधाये सर्वदा, करूं...६ भगवान तुजने निरखनारा, निर्विकारी थाय छे. भगवान तुजने वंदनारा, वंदनीय बनी जाय छे; भगवान तुजने भेटनारा, भव थकी य 'मूकाय छे, चाय ले. करूं...७ तुज मूर्तिना दर्शन प्रभु, भवोभव मने मळता रहो, तुज भक्तिनो अवसर प्रभु, भवोभव मने मळतो रहो; मुक्तिकिरण नी ज्योत, भवोभव हृदयमां जलती रहो, करूं...८ नेमि भक्तिगान नेम प्रभु हुं पुछु प्रेमे, कर्मो मारा केटला ? जन्म मरणना फेरा करवा, हजुए मारे केटला ? मोक्ष पुरीमां, जावा आडे, आगळाओ केटला ? एक समता तुज मिले तो, भार एना केटला ? पहाडो मांथी नीकळे त्यारे, लागे नागें झरj, नेमि प्रभुनुं मारे लेवू, एवं साचुं शरणुं; झरणुं ज्यारे आगे जातुं, नदी बनती मोटी, नेमि प्रभुनु, शरणुं एवं, कापे कर्मो कोटि. २३
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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