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शौरिपुरीमां, च्यवन जन्म लइ, दीक्षा लीधी सहेसावने, चोपन दिनमां घाती खपावी, केवल पाम्या सहेसावने सकल कर्मनो अंत करीने, शिव पाम्या प्रभु गिरनारे नेमि प्रभुनुं शरणुं लेता, गिरनारे तेने तारे.
समवसरणमां, आप बिराजी, दीधी देशना शुध्ध यदा, भव्य जीवों जे सांभळी हरखे, हुं भटकतो कयां तदा ? नेमि प्रभु तुज बिंब निहाळी, भावुं भावना एह सदा, समवसरणमां बेसी सुणीश हुं, जिनवाणी आकंठ कदा ?
अध्यात्म गुणमां जे रमे, तेने ज साचुं ब्रह्म छे, वली विषय संगथी जे परे, तेने प्रभु पण ब्रह्म छे, निर्मल एवा ब्रह्मथी, द्विविध जेना पक्ष छे, ते नेमि जिनना चरणे वंदु, एह मारुं लक्ष छे.
कृष्णादिक दश जीव थाशे, तीर्थपति तारा निमित्त, एक कोडि देवो भक्ति भावे, नमन करशे तस विनित, अवतार दशमांथी कोड् एक, तीर्थपति कने आपजो, गिरनार गिरि पर ज्यां तर्या त्यां, नेम मुक्ति आपजो.
गिरनार जे पावन बन्यो छे, आज नेमि नामथी, चोवीश जिनवर मुक्ति थाशे, जे गिरिवर ठामथी, ए गिरिवर संभारता, अमे नेम नमता निर्मळा, नेमि जिणंद कृपा करो जेम, कर्मो थाए वेगळा.
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