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ब्रह्मचारीमां शिरदार जिनवर, नेम मूर्ति तारनार कळियुगमा ए कल्पवेली, विषय वासना वारनार, दर्शन लडं जे ताहरूं ते, पुण्य केरा प्राग्भार, तारा शरण विण आ जगे बीजो नहि उगारनार.
नेमि प्रभु हुं अवर न याचं, तारुं दर्शन नित मळजो, कुदेवनी सवि वासना संगत, मिथ्यामति मारी बळजो, शासन तारुं पामी प्रभुजी, भवभम्रण मारुं टळजो, अरिहंत देव सुसाधु गुरु, वीतराग कथित धरम मळजो.
• समुद्र विजय शिवादेवी नंदन, श्याम वरण पडिमा दिठी, नहि जपमाळा नहि हथियारो, स्त्री विना लागे मीठी, नयणा पावन करती पडिमा, जे भवियण भावे भजता, एक भविक थावा गति करतां, दूर भवियण दूरे तजता.
षड्रस भोजन में कर्या, तोय ना हटे जे दीनता, गुण गान करतां ताहरा, आश्चर्य रसना लिनता, वाजीव नाद सुण्या घणा तोये, चित्त शान्ति नव जरी, नेमि प्रभु तुज वाणी सुणता, कर्णयुग शान्ति खरी.
एकादशी एक दिन देखाडी, कृष्ण बांधव कारणे, ते निमित्त बनतुं भव्य जननी, दुर्गतिना वारणे, नेमि प्रभु दिनरात ध्यावं, कर्म कुटिल विदारणे, भटकी रह्यो गति चारमां, बोलो प्रभु क्या कारणे ?
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