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प्राग्भार इषत् पृथ्वी पहोंचे, कर्म छोडी भव्य छे, व्यवहार राशि पामवी, बाकी रही दूर भव्य छे, विण मुक्ति माने भक्ति करतां, जीव ते अभव्य छे, नेमि प्रभु कृपा मिले ते, जीव आसन्न भव्य छे.
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ठारक क्रोधानल तणा हे, नेमिनाथ जगत्पति, कारक मुक्तिपुर तणा हे, नेमिनाथ यतिपति; नारक नर तिरि देव भव, मुकावता राजुलपति, धारक गुण समुदायना, गुण आपजो मुज यदुपति.
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धन शौरीपिरीना मानवी, तुज जन्म कल्याणक जुए; धन द्वारिकाना मानवी, दीक्षा कल्याणक उजवे; धन धरा गिरि गिरनारनी, कल्याणक त्रण संपजे, गुण गान बावीस जिन गाता, पुण्य अंकुर नीपजे.
शांब प्रद्युमन वली, वसुदेवनी जे नारीओ, गज़सुकुमाल गुणे भर्यो, आंतर वैरी वारीओ; यदुकुलने सोहावता, नर नारीओ तें तारीओ, तुज कृपा भूख्यो तडपतो, प्रभु केम मुज विसारीओ
विधि जो चूके तो श्याम होवे, सरल ए जग उक्तिने, ते नाश कीधी श्याम देहे, पामी केवल मुक्तिने; ए शामळा बावीशमा, नेमि जिनेसर छोडीने, छे कोण बीजो तारनारो, जाउं हुं त्यां दोडीने.
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