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आ उपकरणो आप्यां, तमने ओवी श्रद्धाथी, उपयोग सदा करशो, तमे पूरी निष्ठाथी, आधार लई अनो धर्माराधन करजो, ओघो छे अणमूलो...
आ वेश विरागी नो, अनुं मान घणुं जगमां, माबाप नमे तमने, पडे राजा पण पगमां, आ मान नथी मुजने अवुं अर्थघटन करजो, ओघो छे अणमूलो...
आ टुकडा कापडना, कदी ढाल बनी रहेशे, दावानळ लागे तो, दीवाल बनी रहेशे, अना ताणावाणामां तपनुं सिंचन करजो, ओघो छे अणमूलो...
आ पावन वस्त्रो तो, छे कायानुं ढांकण, बनी जाये ना जोजो ! ओ मायानुं ढांकण, चोक्खु ने झगमगतुं दिलनुं दर्पण करजो. ओघो छे अणमूलो... मेला के धोयेला, लीसा के खरबचडा, फाटेला के आखा, सौ सरखा छे कपडा, ज्यारे मोहदशा जागे त्यारे आ चिंतन करजो. ओघो छे अणमूलो.... आ वेश उगारे छे, ओने जे अजवाळे छे, गाफेल रहे ओने, आ वेश डूबाडे छे, डूबवुं के तरवुं छे, मनमां मंथन करजो, ओघो छे अणमूलो...
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