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दीक्षा गीत
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मने वेश श्रमणनो मळजो मने वेश श्रमणनो मळजो रे (२) पंचमहाव्रत पाळु, पावन निर्दोषने निष्कलंक; समतामां लयलीन रहेQ, सरखा रायने रंक, मारी स्तवना प्रभु सांभळजो रे... मने वेश... आठ प्रहरनी साधना माटे, वहेली परोढे हुं जागुं; श्वासो लेवा माटे पण हुं, गुरुनी आज्ञा मांगु, आंख इर्यासमितिओ ढळजो रे... मने वेश... आहारमा रस होय न कोई, घरघर गोचरी भमकुं; गामोगाम विहरता रहेQ, कष्ट अविरत खमवं, मारा कर्मों निर्जरी जाजोरे... मने वेश... आजीवन अणिशुद्ध रहीने, पामु अंतिम मंगळ; साधी समाधि परलोक पंथे, आतम रहे अविचल, मारी सद्भावनाओ फळजो रे... मने वेश...
ओघो छे अणमूलो... । (राग : होठो से छू लो तुम - प्रेमगीत) ओघो छे अणमूलो, अनुं खूब जतन करजो, मोंघी छे मुहपत्ति अq रोज रटण करजो.
___ ओघो छे अणमूलो...
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