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जो सुनो तो कहे प्रभुजी मारी छे विनंती, दुखीजन ने धीरज दो, हारे नहीं आ जगथी, तमे निर्बल ने रक्षा दो, रहे निर्बल जगमां सुखथी... भक्ति ने शक्ति दो (२) जगना तमे स्वामी छे, मारी आ अरज सुनो...
ओ तारणहारे...
| प्रभु अमे डूबी रह्या...। (तर्ज : फिझाभी है जवां जवां - निकाह) प्रभु ! अमे डूबी रह्यां, गळा लगी विलासमां, विकासथी वळी रह्यां, धीमे धीमे विनाशमां,
प्रभु ! अमे डूबी रह्यां.... विलासथी मझा मळे, विलासमां जीवन जडे, विलासना अभावमां, घडीओ चेन ना पडे, चूंटी रह्यां विलासने, हरेक श्वासश्वासमां,
विकासथी वळी रह्यां... मूकी छे दोट आंधळी, शरीरने रीझववा, नवा नवा उपायथी, सुखोनी मोज माणवा, सफर करी रह्यां अमे, पतन छे जे प्रवासमां.
विकासथी वळी रह्यां... लगीर दुःख देहर्नु, सहन हवे थतुं नथी, विलासना व्यसनतj, शमन हवे थतुं नथी, ढळी रह्यां धीरे धीरे, गुलामना लिबाशमां,
विकासथी वळी रह्यां... प्रभु ! अमे डूबी रह्यां...
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