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तमारा ज्यां अंतरमां पगलाओ थाता, अंधारा जाताने अजवाळा थातां; जोईने नयनथी अमी छलकाता, जे पासे आवे ते तमारा थई जाता. छे अर्पण समर्पण घडवा घाट आतमनां घडवैया, संयम दुंदुभिना छे तमे बजैया; भवसागरमां डूबती आ नैया, झाली हाथ उगारो बनीने खेवैया...
छे अर्पण समर्पण
गुरु प्रेम रोग है
( राग : न ये चांद होगा न तारे रहेंगे मगर हम ... )
गुरु प्रेम रोग है, गुरु प्रेम रोग है,
जीसे लग गया समज प्रभु संग योग है (२)
गुरु ज्ञान मिलता नहीं मॉलसे,
गुरु प्रेम मिलता नहीं तोलसे,
श्रद्धा रहे धीरज रहे तो खुद ही लागे योग है...
गुरु मिल गये मुजको हरि मिल गये,
चमनमें लगा जैसे फूल खिल गये,
हर श्वासमें जब हो बसे तो खुद ही लागे रोग है...
मेरे सत्गुरु मेरे भगवन ही तुं,
मुजीमें समाया है बनकर गुरु,
तुं मुजमें है मैं तुजमें हुं तो खुद ही लागे योग है....
गुरु दिव्य दृष्टि जो मुज पर पडी,
सजाग हुई जिंदगी हरपल हर घडी, गुरु के संग किया सत्संग तो छूटे माया रोग है ...
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