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________________ ॥८ ॥ - 'कर्मक्षायक', 'अजेयगिरि मन मोहन मेरे, 'सत्त्वदायक गिरि' जोय रे सुण शामळ प्यारे गुण अनंत अगिरितणा मन मोहन मेरे, पार न पामे कोय रे सुण शामळ प्यारे नेमिनिरंजन साहिबो मन मोहन मेरे, बीजा न आवे दायरे सुण शामळ प्यारे, कृपा नजर प्रभु ताहरी मन मोहन मेरे, हेमने शिवसुख थायरे सुण शामळ प्यारे ॥९॥ धन धन श्री गिरनारने... ॥ २॥ (राग : धन धन श्री अरिहंतने रे...). धन धन श्री गरिनारने रे, तार्या अरिहा अनंत सलूणा; .. ओ गिरिवरने फरसता रे, आतम निर्मल थाय सलूणा ॥१॥ जिम जिम ओ गिरि सेवीओ रे, तिम तिम कर्म खपाय सलूणा; .. त्रस थावर तस वासथी रे, पामे शिवपद पंथ सलूणा विकल्याणक भूतकाळमां रे, अनंता जिन गिरनार सलूणा; वळी अनंता प्रभु पामिया रे, निर्वाणपद गिरनार सलूणा ॥३॥ गत चोवीसीमांत्रण थया रे, नेमीश्वर आदि अडना सलूणा; अन्य बे जिनवर लहे रे, मोक्षगमन गिरनार सलूणा अनंतवीर्य भद्रकृतना रे, दीक्षा-नाण-निर्वाण सलूणा; शेष बावीस जिन पामशे रे, मुक्तिपद बहुमान सलूणा ॥५॥ सहसावनमां राजीमती रे, रथनेमि वरे ज्ञान सलूणा; कृष्णकेरा सप्त बांधवा रे, रुकमणी सह अणगार सलूणा ॥६॥ गजसुकुमाल मुणिंद, रे, व्रत-नाण ने निर्वाण सलूणा; सुमुखादि पंदर ग्रहे रे, संसार छेदक व्रत सलूणा समुद्रविजय शिवामातने रे, विरति केरुं वरदान सलूणाः निषध सारणादि कुमारने रे, चारित्र मळे गिरनार सलूणा ॥८॥ || ॥ ४ ॥ ॥ ७ ॥ ૧૫૭
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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