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रत्नत्रयं
नरराजहंसा;
संवित्तिदर्शन चरित्रमयप्रकाशम्; क्षित्याप्त संसृति परिश्रमदुःखदाहं, त्वत्पादपंकजवनाश्रणियो लभन्ते ...३६
निरुपमं
भावार्थ
हे जग सारथवाह ! सम्यग् ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररुप प्रकाशवाळा, वळी जेनो सांसारिक परिश्रम अंगेनो दुःखनो संताप नाश पाम्यो छे ओवा तारां चरणकमळरुपी वननो आश्रय लेनारां उपमारहित मनुष्यरूपी राजहंसो ज्ञान दर्शन - चारित्ररुपी त्रण रत्नोनां समुदायने पामे छे.
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वित्तेन साधकतमेन सुनद्धभावात् कैवल्यनार्युरसिजैक रसाभिलाषाः; सम्यक् प्रमादसुभृतोऽव्ययतां त्वदीयात् त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ४०
भावार्थ
प्रसिद्ध उत्तम करण वडे प्रसिद्ध हेय-ज्ञेयादि पदार्थोंना जाणकार तथा शुभ ज्ञानना स्वामी सेवा आपना स्मरणथी मुक्ति रुपी शिववधूना स्तनोना मर्दननी तीव्र अभिलाषावाळा प्राणीओ भवसंसारना त्रासथी पार पामी अक्षयपणाने पामे छे.
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