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________________ गिरनारनो महिमा न्यारो... तेनो गाता ना आवे आरो... नित्यानित्य स्थावर जंगमतीर्थाधिकं जगत् त्रितये / / पर्वसु ससुरेन्द्राय॑ः, स जयति गिरनार गिरिराजः // (श्री गिरनार महातीर्थकल्प - श्लोक - 20) / त्रण जगतमां रहेला नित्य अनित्य अर्थात् शाश्वत - अशाश्वत स्थावर जंगम तीर्थोथी जे अधिक श्रेष्ठ छे अने पर्व दिवसोमां देवो सहित इन्द्रो जेने पूजे छ, ते गिरनार गिरिराज जय पामे स्वर्भूमूस्थ चैत्ये वस्याकारं सुरासुरनरेशाः / सं पूजयन्ति सततं, स नयति गिरनार गिरिराजः // (श्री गिरनार महातीर्थकल्प - श्लोक - 5) / स्वर्गलोक, पाताळलोक अने मृत्युलोकना चैत्योमां सुर, असुर अने राजाओ जेना आकारने हमेशा पूजे छे ते श्री गिरनार गिरिराज जय पामे छे. अन्यस्था अपि मबिनो, यद्ध्यानाद् धातिकर्ममलमुक्तः। सेत्स्यंति भवचतुष्के, स जयति गिरनार गिरिराजः // (श्री गिरनार महातीर्थकल्प - श्लोक - 19) __ बीजा स्थानमां पण रहेला (अर्थात् गिरनारथी दूर घर-दुकान-देश-विदेश गमे ते स्थानमां पण रहीने) जे भव्य जीवो गिरनारनुं ध्यान धरे छे ते जीवो धातीकर्मना मल दूर करी चार भवमां मोक्ष पामे छे, ते श्री गिरनार गिरिराज जय पामे छे. अन्यत्रापि स्थितः प्राणी, ध्यायन्नेनं गिरीश्वरम / / आगामिनी भवे भावी, चतुर्थे किल केवली / / (वस्तुपाळचरित्र - प्रस्ताव - 5, श्लोक - 85) / अन्य स्थाने (गिरनार सिवाय) पण रहेलो जीव आ गिरनार गिरीश्वरनुं ध्यान धरे तो ते आगामी चार भवमां केवलीपणाने पामी, मोक्षपदने प्राप्त करे छे. / महातीर्थमिदं तेन, सर्वपापहरंस्मृतम् / / शत्रुजयगिरेरस्य, वन्दने सदृश फलम् // विधिनास्य सुतीर्थस्य, सिद्धान्तोक्तेन भावतः / एकशोऽपि कृता यात्रा, दत्ते मुक्तिं भवान्तरात् // (वस्तुपाळचरित्र - प्रस्ताव - 5, श्लोक - 80/81) / गिरनारनो अनेरो महिमा होवाथी आ गिरिवरने सर्व पापने हरण करनार कहेल छ तथा शत्रुजय अने गिरनारने वंदन करवामां बनेनुं एकसर फळ कहेवामां आवेल छे. . आ गिरनार महातीर्थनी शास्त्रानुसार भावपूर्वक एकपण यात्रा करवामां आवे तो ते ___भवान्तरमा मुक्तिपदने आपनार बने छ. गिरनार तीर्थनी यात्रा करवा वर्षमा एकवार आववानो संकल्प करवो.
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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