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(४) जे भोगना काळे अनुपम, योगने साधी गया,
वनिताना संगम काळमां, विरति शुं प्रीत बांधी गया, महासत्त्वशाळी शिरोमणी, प्रभु सत्त्वनी करूं याचना...
गिरनार... (५) निष्काम निर्मल निर्विकारी, नेमिनाथ नमुं सदा,
चाहु हुं उज्जवल जीवनमां, लागे कलंक नहीं कदा, अविकारता रहो दृष्टिमां, बस आटली मुज प्रार्थना..
गिरनार... (६) अंजनसरिखा पण निरंजन, राग द्वेष विनाशथी
छो श्याम पण जीवन तमारूं, शोभे शुभ प्रकाशथी . केवो विरोधाभास, तारा स्वरुपनी शी कल्पना.....
गिरनार... (७) रैवतगिरीना शिखर पर, प्रभु मुकुट मणी सम ओपतां
मनोहारिणी मुद्राथी भविमां, बोधिना बीज ओपता, हैयुं छे हर्षविभोर आजे, हवे न रही कोई झंखना...
गिरनार... |(८) उत्तंगगिरि गिरनार नजरे दूरथी देखाय ज्यां,
उभराय आनंद रोमे रोमे नयन बे छलकाय त्यां .. मळशे हवे दर्शन प्रभुना, श्वासे श्वासे भावना...'
गिरनार...