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क्यारे बनीश...
क्यारे बनीश हुं साचो रे संत ! क्यारे थशे मारा भवनो रे अंत ! लाख चोराशीना चौटे चौटे, भटकी रह्यो धुं मारग खोटे, क्यारे मळशे मुजने मुक्तिना पंथ... क्यारे थशे... काळ अनादिनी भूलो छूटेना, घणुंये मथुं पण पापो खूटे ना, क्यारे तोडीश ते पापोनो तंत... क्यारे थशे... छ काय जीवनी हुं हिंसा रे करतो, पापो अढारे हुं जरीना विसरतो मोह मायानो हुं रटतो रे मंत... क्यारे थशे. पतित पावन प्रभुजी ! उगारो, रत्नत्रयीनो हुं याचके तारो, भक्त बनी मारे थावुं महंत... क्यारे थशे...
स्वामि तारा स्नेहथी
स्वामि तारा स्नेहथी मने धरव नथी, प्यास छीपती नथी, थाय छे के बस घूंट पीधा करुं... स्वामि... स्नेह तो मल्यो मने घणानो, पण बधा स्वार्थना सगानो, आतमनो ओक तुं स्वजन छे, तारो मारो साथ छे सदानो, भाव जेमां स्वार्थनो लगीर पण नथी, ओवा आ संबंधनी, थाय छे के बस गांठ बांध्या करूं... स्वामि... सूर्यना किरण वघे घटे छे, मेघराजा कदि रुठे छे, धान्य आपनारी धरती माता, कोई दिन धान्य चोरी ले छे, रात दिन वहे छे तारा प्रेमनी नदी, कदि ओटती नथी,
थाय छे के बस डूबकी मार्या करूं... स्वामि..... तारो प्रेम पापथी बचावे, पुण्यनी प्रवृत्तिओ करावे, द्वार दुर्गति तणा भीडीने, सद्गति तणी सफर करावे, दीपजे जले छे मुजने मार्ग चींधवा, मंजिले लई जवां,
थाय छे के बस तेज झील्यां करुं... स्वामि...
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