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________________ गगने जिम हरिचाप पलक एक पेखिये खिणमांहे विसराल थाये नवि देखिये, तिम एह यौवन-रूप सकल चंचल छे, चटाको छे दिन चार विरंग हुए पछे... २|| जिम कोइक नर राज्य लहे सुपना विशे, हय-हाथी-मढ-मंदिर देखी उल्लसे; जब जागे तव आप रहे तिम एकलो, तेहवो ऋद्विनो गारव तिल पण नहि भलो...३ देखीतां किपाकतणां फल फूटरां, खातां सरस स्वाद अंते जीवितहरां; तिम तरूणी तनुभोग तुरत सुख उपजे, आखर तास विपाक कटुक रस निपजे... ४ ए संसार शिवासुत एहवो ओळखी, राज रमणी ऋद्धिछोडी थया पोते रिखी; कर्म खपावी आप गया शिवमंदिरे, दानविजय प्रभु नामथी भवसागर तरे... ५ (३२) नेमजी रे तोरण (राग - बेना रे...) नेमजी रे तोरण आवीने पाछा न जवाय, कुंवारी कन्या राणी राजुल कहेवाय, भावना प्रभु गुण गाय, सामे ज थाय... कुंवारी... १ आठ भवोनी प्रितलडीने, नवमे भवे ना तोडाय (२) बाल ब्रह्मचारी राजुलबाळा, विनवे नेमजीने पाय (२).. नेमजी रे पाछा वळीने, अमारो पकडोने हाथ... कुंवारी... २ - १३४
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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