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________________ ओ वीर तारा चरणकमळमां (राग : अमी भरेली...) ओ वीर तारा चरणकमळमां आ जीवन कुरबान छ, .. मारा जीवननी नौकानुं तुज हाथ सुकान छे. सुख आवे के दुःख आवे मने तेनुं कई नहीं भान रे, .. तारी भक्तिमां मस्त बनीने आ काया कुरबान छे ... ओ वीर ! भवसागरमां आवी छे आंधी अमांथी मने तारजे, मने तो तारी ओक ज आशा तुं मारो आधार छे ... ओ वीर ! तारी सेवामां मस्त बनुं ने बीजुं मारे नहीं काम रे, तारी पूजामां मस्त बनीने तारा गुणला गावा छे ... ओ वीर ! तारी भक्तिमां आंच न आवे अटलुं मारुं ध्यान छे, आ दुनियानी मोहमायामां तुं अक तारणहार छे. ... ओ वीर ! | भवना मुसाफर प्रेमे विनवे, भक्तोने तमे तारजो, भक्त अंतरथी आग्रह करतो प्रेमे वहेला आवजो ... ओ वीर ! मारो धन्य बन्यो... मारो धन्य बन्यो आजे अवतार के मळ्या मने परमात्मा, करें मोंघो ने मीठो सत्कार के मळ्या मने परमात्मा... श्रद्धाना लीलुडां तोरण बंधावू, __भक्तिना रंगोथी आंगण सजावू, हो... सजे हैयुं सोनेरी शणगार... के मळ्या मने परमात्मा...
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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