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(पछी त्रण खमासमण दइ, डाबो ढींचण ऊभो करी हाथ जोडी) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं? इच्छं कही
चैत्यवंदन करवू. सकल कुशल वल्ली – पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्पवृक्षोपमानः भव जल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतुः, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः श्रेयसे पार्श्वनाथः.
श्री सामान्यजिन चैत्यवंदन तुज मुरतिने निरखवा, मुज नयणां तलसे; . तुज गुण गणने बोलवा, रसना मुज हरखे .....१ काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे; तो सेवक तार्या विना, कहो किम हवे सरसे .....२ एम जाणीने साहिबा ए, नेहनजर मोहे जोय; ज्ञानविमल प्रभु सुनजरथी, ते शुं? जे नवि होय .....३
- जंकिंचि सूत्र जंकिंचि नामतित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए;
जाइं जिणबिंबाइं, ताइं सव्वाइं वंदामि.
(भावार्थ : आ सूत्र द्वारा त्रणे लोकमां विद्यमान नाम रूपी तीर्थों अने जिन प्रतिमाओने नमस्कार करवामां आवेल छे.)
नमुत्थुणं सूत्र . नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं. १. आइगराणं तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं, २. पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरिआणं,
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