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________________ दादा तारी मुखमुद्राने, अमीय नजरे निहाळी रह्यो, तारा नयनोमांथी झरतुं, दिव्य तेज हुं झीली रह्यो, क्षणभर आ संसारनी माया, तारी भक्तिमां भूली गयो, तुज मूर्तिमा मस्त बनीने, आत्मिक आनंद माणी रह्यो. ३, छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी, श्री वीरजिणंदनी, भक्तोने छे सर्वदा सुखकारी , जाणे खीली चांदनी, आ प्रतिमाना गुणभाव धरीने, जे माणसो गाय छे, पामी सघळा सुख ते जगतना, मुक्ति भणी जाय छे. ४, . हे देव ! तारा दीलमां, वात्सल्यना झरणा भर्या, हे नाथ ! तारा नयनमां, करुणा तणा अमृत भर्या, वीतराग ! तारी मीठी मीठी वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज तारा चरणमां, बालक बनी आवी चडया. ५, प्रभु आज तारा बिंबने जोता, नयण सफलां थया, पापो बधा दूरे गयां, तेम भाव निर्मळ नीपज्या, संसार रूप समुद्रभासे, चूलुक सरखो निश्चये, आनंद रंग तरंग उछळे, पद कमलना आश्रये. - m याचक थईने हुं मागुं छु, हे वीतरागी ! तारी कने, महाविदेह क्षेत्रमा जावू मारे, श्री सीमंधर स्वामी कने, आठ वरसनी वयमां मारे, संयम लेवें स्वामी कने, घाती-अघाती कर्मो खपावी, आवी पहोंचु तारी कने.
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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