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________________ १९ - १७ चैतन्यगिरि चैतन्यशक्ति प्रगटतां, आत्मानंद जिहां थाय; तेह गिरिना स्मरणथी चैतन्यपूंज समराय. अव्ययगिरि व्यय होवे कर्मो तणो, वली अशुभ परिणाम; अव्ययगिरिने वंदता, शुद्ध स्वरुपने पाम. ध्रुवगिरि अह गिरि छे अनादिथी, काळ अनंत रहे जेह; भूमितले ध्रुवपणे रही, शाश्वतता लहे तेह. २० निस्तारगिरि सहसावने संयमग्रही, गजसुकुमाल मुर्णिद; रैवत मसाणे शिव लही, निस्तारण गिरिंद. २२ पापहरगिरि मातपिताने घातकी, गिरनारे आवंत; भीमसेन मुगते गयो, पापहर गिरि सेवंत. २३ कल्याणकगिरि अनंत कल्याणक जिन तणा, गिरि शृंगे सोहाय; ___ व्रत-केवल-मुक्ति लहे, कल्याणक गिरि जोवाय. वैराग्यगिरि मेघ परे वरसे सदा, गिरि वैराग्य झरण; सिंचे आतम गुणने, परमानंद रमण. पुण्यदायकगिरि सुरतरु सम आराधता, पुण्यदायक गिरिराज; ऋद्धि समृद्धि तत्क्षणमिले, वळी मळे सिद्धराज. २६ सिद्धपदगिरि सिद्धपद अर्पण करे, जेह गिरिनी सेव; तिणे कारण वंदीओ सदा, अभेद थई तत्खेव. 305
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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