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१७ चैतन्यगिरि
चैतन्यशक्ति प्रगटतां, आत्मानंद जिहां थाय; तेह गिरिना स्मरणथी चैतन्यपूंज समराय. अव्ययगिरि व्यय होवे कर्मो तणो, वली अशुभ परिणाम; अव्ययगिरिने वंदता, शुद्ध स्वरुपने पाम. ध्रुवगिरि अह गिरि छे अनादिथी, काळ अनंत रहे जेह;
भूमितले ध्रुवपणे रही, शाश्वतता लहे तेह. २० निस्तारगिरि
सहसावने संयमग्रही, गजसुकुमाल मुर्णिद;
रैवत मसाणे शिव लही, निस्तारण गिरिंद. २२ पापहरगिरि
मातपिताने घातकी, गिरनारे आवंत;
भीमसेन मुगते गयो, पापहर गिरि सेवंत. २३ कल्याणकगिरि
अनंत कल्याणक जिन तणा, गिरि शृंगे सोहाय; ___ व्रत-केवल-मुक्ति लहे, कल्याणक गिरि जोवाय.
वैराग्यगिरि मेघ परे वरसे सदा, गिरि वैराग्य झरण; सिंचे आतम गुणने, परमानंद रमण. पुण्यदायकगिरि सुरतरु सम आराधता, पुण्यदायक गिरिराज;
ऋद्धि समृद्धि तत्क्षणमिले, वळी मळे सिद्धराज. २६ सिद्धपदगिरि
सिद्धपद अर्पण करे, जेह गिरिनी सेव; तिणे कारण वंदीओ सदा, अभेद थई तत्खेव.
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