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________________ यात्रा नव्वाणुं करीओ... (राग : यात्रा नव्वाणुं करीओ...) यात्रा नव्वाणुं करीओ रैवतगिरि... यात्रा नव्वाणुं तीर्थंकरो अनंता सिध्या, दीक्षा-केवल धरीने... रैवतगिरि...१ __ घेर बेठां तस ध्यान धरंता, चोथे भवे शिव लहीओ..२' अरिहंतपदनो जाप जपतां, कर्म मल सवि हरीओ...३ त्रण-त्रण कल्याणक नेमिजिनना, आराधी भव तरीओ...४ गजपदकुंडना जलने फरसतां, आधि-व्याधि दूर करीओ...५ ____ अतीत चोवीसी माहे घडेला, पडिमा पूजी हरखीओ...६ सहसावने व्रत-ज्ञान वरंता, चरण नमी अघ हरीओ...७ .. ___ नव्वाणुं वार ओ गिरि चढंता, भवरण नवि भमीओ...८ हेम वदे ओ तीरथ सेवतां, वल्लभपदने वरीओ...९ | तारी कीकी कामणगारी रे.. (राग : तारी अजब शी योगनी मुद्रा रे...) तारी कीकी कामणगारी रे, लागे मने मीठी रे, .. ते तो करुणारसनी प्याली रे, घट घट पीधी रे...१ शांत सुधारस नयन कचोळे, नेण ठर्या तत क्षिण रे, पुनमचंद जिम वदन सोहे, पेखी पीगळ्युं मन मीण रे...२ मेघ सम तुम देह लताओ, चमके विद्युत जिम कांति रे मेघनाद जिम गंभीर गाजे, वाणी भांजे मोह भ्रांति रे...३ निर्मळ आतम पेखण काजे, तुम दरिसणे रढ लागी रे, सोहम् पदनुं ध्यान ध्यावत, शुद्धि मति तिहां जागी रे...४ -
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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