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________________ जमणी आंखे श्रावण सरवरे, डाबी आंखे भादरवो भरपुर रे १४ चीर भीजाय राजुल नारीना, वागे छे काइ कंटको अपार रे. १५ नेम तीर्थंकर बावीसमा, सखीयो कहे ना मळे एनी जोड रे. १६ हीर विजय गुरू हीरलो, लब्धि विजय कहे करजोड रे. १७ (१०) सहसावन जई सहसावन जई वसीये, चालोने सखी सहसावन जइ वसीये; घरनो धंधो कबही न पुरो, जो करीए अहो निशिए; पीयरमां सुख घडीय न दीर्छ, भय कारण चउदिशिये, १ नाथ विहुणा सयल कुटुंबी, लज्जा कमियी न पसीए; भेगा जमीए ने नजर न हिंसे, रहेवू घोर तमसीए. २ पीयर पाछळ छल करी मेल्युं, सासरीये सुख वसीये; सासुडी ते घर घर भटके, लोकने चटके डसीए. ३ कहेता साचुं आवे हासुं, भुंशीये मुख लइ मशीए; ... कंत अमारो बाळो भोळो, जाणे न असि मसि कसिए, ४ . जुठा बोली कलहण शीला, घर घर शूनि ज्युं भसीये; ए. दुःख देखी हइडं मुंझे, दुर्जनथी दूर खसीये. ५ रैवत गिरि ध्यान न धरीयुं, काल गयो हसमसीए; श्री गिरनारे त्रण कल्याणक, नेमि नमन उल्लसीए. ६ शिव वरसे चोविश जिनेश्वर, अनागत चउवीशीए; कैलास उज्जवंत रैवत कहीए, शरण गिरिने फरशीये. ७ गिरनार नंद भद्र ए नामे, आरे आरे छवीसीये; देखी महितल महिमा मोटो, प्रभुगुण ज्ञान वरसीए. ८ अनुभव रंग वधे तेम पूजो, केशर घसी ओरशीये; भावस्तव सुत केवल प्रगटे, श्री शुभवीर विलशीये. ९ ૧૦
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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