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सुंदर नथी आ शरीर के समुदाय गुण तणो नथी, उत्तम विलास कला तणो देदीप्यमान प्रभा नथी, प्रभुता नथी तो पण प्रभु अभिमानथी अक्कड फरुं, चोपाट चार गति तणी, संसारमा खेल्या करूं. (१५)
आयुष्य घटतुं जाय तो पण पापबुद्धि नव घटे, आशा जीवननी जाय पण, विषयाभिलाषा नव मटे, औषध विषे करुं यत्न पण, हुं धर्मने तो नव गणुं, बनी मोहमां मस्तान हुं, पाया विनानां घर चगुं. (१६)
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आत्मा नथी परभव नथी, वळी पुण्य पाप कशुं नथी, मिथ्यात्वीनी कटु वाणी में, धरी कान पीधी स्वादथी, रवि सम हता ज्ञाने करी, प्रभु आपश्री तो पण अरे! दीवो लइ कूवे पड्यो, धिक्कार छे मुजने खरे. (१७)
में चित्तथी नहिं देवनी, के पात्रनी पूजा चही, ने श्रावको के साधुओनो धर्म पण पाळ्यो नही, पाम्यो प्रभु नरभव छतां रणमा रड्या जेवू थयुं, धोबी तणा कुत्ता समुं, मम जीवन सहु एळे गयु. (१८)
- हुंकामधेनुं कल्पतरूं, चिंतामणिना प्यारमां,
खोटा छतां झंख्यो घणुं, बनी लुब्ध आ संसारमां, जे प्रगट सुख देनार तारो, धर्म ते सेव्यो नहि, . मुज मुर्ख भावोने निहाळी नथा, कर करुणा कंइ. (१९)
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