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में भोग सारा चिंतव्या, ते रोग सम चिंत्या नहि,
आगमन इच्छयुं घनतj, पण मृत्युने प्रीछ्युं नहि, नहीं चिंतव्युं में नरक कारागृह समी छे नारीओ, मधुबिंदुनी आशा महीं भयमात्र हुँ भूली गयो. (२०)
हुं शुद्ध आचारो वडे साधु हृदयमां नव रह्यो, करी काम पर उपकारनां, यश पण उपार्जन नव कर्यो,
वळी तीर्थना उद्धार आदि कोइ कार्यो नव कर्या, . फोगट अरे आ लक्ष चोराशी तणा फेरा फर्या. (२१)
गुरुवाणीमां वैराग्य केरो, रंग लाग्यो नहि अने, दुर्जनतणा वाक्यो महीं शांति मळे क्यांथी मने ? तरूं केम हुं संसार आ अध्यात्म तो छ नहि जरी, तूटेल तळियानो घडो, जळथी भराये केम करी? (२२)
में परभवे नथी पुण्य कीg, ने नथी करतो हजी, तो आवता भवमां, कहो क्याथी थशे हे नाथजी भूत भावि ने सांप्रत त्रणे भव नाथ हुं हारी गयो, स्वामी त्रिशंकु जेम हुँ, आकाशमां लटकी रह्यो. (२३)
अथवा नकामुं आप पासे, नाथ ! शुंबकवू घj, हे देवताना पूज्य ! आ चारित्र मुज पोता तणुं, जाणो स्वरूप त्रण लोकनुं, तो माहरु शुं मात्र आ, ज्यां क्रोडनो हिसाब नहीं त्यां पाइनी तो वात क्यां (२४) .
पट