________________
(राग-स्नातस्या...) ताराथी न समर्थ अन्य दीननो, उद्धारनारो प्रभु, माराथी नहि अन्य पात्र जगमां, जोतां जडे हे विभु, मुक्ति मंगळ स्थान तोय मुजने इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यग्रन श्याम जीवने, तो तृप्ति थाये घणी. (२५).
.
मंवेदना पच्चीशी (राग-मंदिर के मुक्तितणा)
हुं मोहमदिरामा डुबी, भूली स्वरूप निज आत्मानु, भवभ्रमणमां बस काम कीधुं पारकी पंचातर्नु, चोरासीना चौटे कर्या, में नट बनी नाटक घणा, कहुं बाळभावे प्रभु तने, मुज आत्मानी संवेदना. (१)
भव सागरे भमता कदी, तुम नाम श्रवणे ना पड्यु, आजे अनंता काळथी, दर्शन तमारू सांपड्यु, तारा विरहने विस्मरणथी भोगवी में आपदा, रहेजे स्मरणमां तुं सदा, जेथी लहुं शिवसंपदा. (२)
संसारथी सिद्धि सुधीना पंथनो तुंसारथि, मुज कर्मवनने बाळनारो, एक छे तुं महारथि, भवचक्रने तुं भेदतो, तारी कृपाना चक्रथी, छे केवी मुज विडंबना, हजु ओळख्यो तुजने नथी. (३)
.