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में मुखने मेलुं कयु, दोषो पराया गाइने, ने नेत्रने निंदित कर्या परनारीमां लपटाइने, वळी चित्तने दोषित कर्यु चिंती नठारं परतणुं, हे नाथ ! मारुं शुं थशे, चालाक थइ चूक्यो घणुं. (१०)
करे काळजाने कतल पीडा कामनी बिहामणी, ए विषयमां बनी अंध हुँ, विडंबना पाम्यो घणी, ते पण प्रकाश्युं आज लावी, लाज आप तंणी कने, जाणो सहु तेथी कहुं, कर माफ मारा वांकने (११)
नवकार मंत्र विनाश कीधो, अन्य मंत्रो जाणीने, कुशास्त्रनां वाक्यो वडे, हणी आगमोनी वाणीने, कुदेवनी संगत थकी कर्मो नकामा आचर्या, मतिभ्रमथकी रत्नो गुमावी काच कटका में ग्रहा. (१२)
आवेल दृष्टिमार्गमां मूकी महावीर आपने, में मूढधीए हृदयमां ध्याया मदनना चापने, नेत्रबाणो ने पयोधर, नाभि ने सुंदर कटी, शणगार सुंदरीओ तणा, छटकेल थइ जोया अति. (१३)
मृगनयनी सम नारीतणां मुखचंद्र नीरखवा वली, मुज मन विषे जे रंग लाग्यो, अल्प पण गाढो अति, ते श्रुतरूप समुद्रमां, धोया छतां जातो नथी, तेनुं कहो कारण तमे बचु कम हुं आ पापथी. (१४)