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एवो प्रभु अरिहंतने पंचाग....
(च्यवन कल्याणक)
जे चौद महास्वप्नो थकी, निजमातने हरखावता, वळी गर्भमांही ज्ञानत्रयने, गोपवी अवधारता, ने जन्मता पहेलां ज चोसठ इन्द्र जेने वंदता, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचाग भावे हुं नमुं. (१)
(जन्म कल्याणक)
महायोगना साम्राज्यमां जे, गर्भमां उल्लासता,
ने जम्नतां त्रण लोकमां महासूर्य सम प्रकाशता,
जे जन्मकल्याणक वडे सहु जीवने सुख अर्पता, ओवा (२)
(जन्मोत्सव)
छप्पन दिक्कुमरी तणी, सेवा सुभावे पामता,
देवेन्द्र करसंपुट महीं, धारी जगत हरखावता, मेरुशिखर सिंहासने जे नाथ, जगना शोभता, एवा (३)
'कुसुमांजलिथी सुरअसुर, जे भव्य जिनने पूजता, क्षीरोदधिना न्हवणजलथी, देव जेने सिंचता, वळी देवदुंदुभि नाद गजवी, देवताओ रीझता, एवा (४)
मघमघ थता गोशीर्ष चंदनथी विलेपन पामता, देवेन्द्र दैवी पुष्पनी माळा गळे आरोपता, कुंडल कडां मणिमय चमकतां हार मुकुटे शोभता, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचाग भावे हुं नमुं. (५)
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