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________________ ने श्रेष्ठवेणु मोरली, वीणा मृदंग तणां ध्वनि, वाजिंत्र ताले नृत्य करती, किन्नरीओ स्वर्गनी, . हर्षे भरी देवांगनाओ नमन करती लळी लळी, एवा (६) जयनाद करता देवताओ, हर्षना अतिरेकमां, पधरामणी करता जनेताना महाप्रसादमां, जे इन्द्रपूरित वरसुधाने, चूसता अंगुष्ठमां, एवा (७) - (अतिशयवंत) आहारने निहार जेना, छे अगोचर चक्षुथी, प्रस्वेद व्याधि मेल जेना अंगने स्पर्शे नहि, स्वर्धेनु दुग्ध समा रुधिर ने मांस जेना तन महीं, एवा (८) मंदार पारिजात सौरभ, श्वास ने उच्छवासमां, ने छत्र चामर जयपताका स्तंभ जव करपादमां, पूरा सहस्र विशेष अष्टक, लक्षणो ज्यां शोभता, एवा (९) देवांगनाओ पांच आज्ञा, इन्द्रनी सन्मानती, पांचे बनी धात्री दिले, कृतकृत्यता अनुभवाती, वळी बालक्रिडा देवगणना, कुंवरो संगे थती, एवा (१०) जे बाल्य-वयमां प्रोढज्ञाने, मुग्ध करता लोकने, सोळे कळा विज्ञान केरा, सारने अवधारीने, त्रण लोकमां विस्मयसमा गुणरूप यौवनयुक्त जे, एवा (११) ४ .
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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