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मैथुन परिषहथी रहित जे, नंदता निजभावमां, ने भोगकर्म निवारवा विवाह कंकण धारता, ने ब्रह्मचर्य तणो जगाव्यो, नाद जेणे विश्वमां, एवा (१२)
(राज्यावस्था) . मूर्छा नथी पाम्या मनुजना, पांच भेदे भोगमां, उत्कृष्ट जेनी राज्यनीतिथी प्रजा सुखचेनमां, वळी शुद्ध अध्यवसायथी, जे लीन छ निजभावमां, एवा (१३)
पाम्या स्वयंसंबुद्ध पद जे, सहज वर विरागवंत,
ने देवलोकांतिक घणी, भक्ति थकी करता नमन, . जेने नमी कृतार्थ बनता चार गतिना जीवगण, एवा (१४)
आवो पधारो इष्टवस्तु, पामवा नरनारीओ, ए धोषणाथी अर्पता सांवत्सरिक महादानने, ने छेदता दारिद्रय सहुनु, दानना महाकल्पथी, एवा (१५)
दीक्षा तणो अभिषेक जेनो, योजता इन्द्रो मळी, शिबिका स्वरूप विमानमां, बिराजता भगवंतश्री,
अशोक पुनाग तिलक चंपा वृक्ष शोभित वनमहीं, .. एवा प्रभु अरिहंतने पंचाग भावे हुं नमुं (१६)
श्री वज्रधर इन्द्रे रचेला, भव्य आसन उपरे, बेसी अलंकारो त्यजे, दीक्षा समय भगवंत जे, जे पंचमुष्टि लोच करता, केश विभु निज कर वडे, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग भावे हुं नमुं. (१७)