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(दीक्षा कल्याणक)
लोकाग्रगत भगवंत सर्वे, सिद्धने वंदन करे,
सावद्य सघळा पाप योगोनां करे पच्चक्खाणने, जे ज्ञान - दर्शनने महाचारित्र रत्नत्रयी ग्रहे, एवा (१८)
निर्मलविपुलमति मनः पर्यव - ज्ञाने सहेजे दीपता, ने पंचसमिति गुप्तित्रयनी रयणमाळा धारता, दश भदथी जे श्रमण सुंदर धर्मनुं पालन करे, एवा (१९)
पुष्कर कमलना पत्रनी, भ्रांति नहि लेपाय जे, ने जीवनी माफक अप्रतिहत, वरगतिए विचरे, आकाशनी जेम निरालंबन गुण तकी जे ओपता, एवा (२०)
अस्खलित वायु समूहनी जेन जे निर्बंध छे, संगोपितांगोपांग जेना, गुप्त इन्द्रिय देह छे,
निस्संगता य विहंगशी, जेनो अमुलख गुण छे, एवा (२१)
खड्गीतणा वरशृंग जेवा, भावथी एकाकी जे, भारंडपंखी सारीखा गुणवान ने अप्रमत्त छे, व्रतभार वहेता वरवृषभनी, जेम जेह समर्थ छे, एवा (२२)
कुंजरसमा शूरवीर जे छे, सिंहसम निर्भय वळी, गंभीरता सागर समी, जेना हृदयने छे वरी, जेना स्वभावे सौम्यता छे, पूर्णिमाना चंद्रनी, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचाग भावे हुं नमुं. (२३)
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