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करुं छं पहाडने जंगल
(राग : युगोथी हुं पुकारं छं... (सुहानी चांदनी राते ) ) फरुं छं पहाडने जंगल, कहोने क्यां छुपाया छो, मनोहर मीठडा मोहन, कहोने क्यां छुपाया छो,
तृषातुर आंखडी मारी, तलसती रातदिन व्हाणे, नयननी दिलगिरि खातर कहोने क्यां छुपाया छो...
करुं हुं क्यां सुधी वन वन, प्रतिक्षा आपनी पलपल, अव्हा कधा में तन मन कहोने क्यां छुपाया छो...
निहाल्या पाणी झाकळनां, तमारा जाणी ने मोती, पकडतामां वह्युं पाणी, कहोने क्यां छुपाया छो...
लागी मुजने लगन तुजथी, प्रबळ बंधन विभेदीने, चाहुं छु झलक तारी, कहोने क्यां छुपाया छो...
कहो घरमां अगर बाहिर, समवसरणे के मुक्तिमां, रमो छो शुं आ ब्रह्मांडे, कहोने क्यां छुपाया छो...
मनोहर मूर्ति ओ जिनवर, हटावी द्यो हवे अंतर, करी करुणा हवे मुज पर, कहोने क्यां छुपाया छो...
सदा हुं तुं सदा तुं हुं....
( राग : युगोथी हुं पुकारूं... )
परस्पर प्रेमना रंगे, खरेखर चित्त रंगाया, उछळतां चित्त देख्याथी, सदा हुं तुं सदा तुं हुं...
मल्युं छे चित्तथी चित्तज नथी ज्यां मृत्युनी परवा, विशुद्ध प्रेमसागरमां, सदा हुं तुं सदा तुं हुं...
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