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________________ परस्पर चित्त रेडायां, थता संयम परस्परमां, उठे छे तारामां तारो, सदा हुं तुं सदा तुं हुं.... समाज सौ मुमां, समातुं तुजमां मुज सौ, सदा अवुं बन्युं रहेतुं, सदा हुं तुं सदा तुं हुं... सदा संबंध ओवो ज्यां, विशुद्ध ज्ञानप्रीति त्यां, बुध्यब्धि दिव्य संबंध, सदा हुं तुं सदा तुं हुं... मोहे लागी लगन मोहे लागी लगन, प्रभु चरनन की... चरन बीना मोंहे कछु नहीं भावे (२) जगमाया है, सपनन की, भवसागर अब सुक गयो है (२) फीकर नहीं महे तरनन की ... मोहे लागी.... चरण में जाने से आनंद परगट (२) चिंता गई अब मरनन की, आनंद रस में झीलत झीलत, (२) प्यास लगी प्रभु रटनन की ... मोहे लागी... अंग अंग में ज्वाला उपजी (२) प्रभु विरह के अगनन की, तीनही कारन भान नहीं तनु (२) ग्रीष्म ऋतु के तपनन की ... मोहे लागी... अमर भये हम चरन की छांव में (२) भांगी चिंता जनननकी, સલ
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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